क्यों झिझक रहें हैं भारतीय कोविड का टीका लगवाने से?
अभी तक टीके के कुल लभार्थियों की संख्या, लक्षित संख्या से काफ़ी कम है। कई स्वास्थ्य कर्मी टीका लगवाने से मना कर चुके हैं, लोगों में टीकाकरण को लेकर अभी भी जानकारी का काफ़ी अभाव है
नई दिल्ली: भारत में कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान का दूसरा चरण शुरू हो चुका है। लेकिन इस अभियान के प्रथम चरण में लाभार्थियों की संख्या लक्ष्य से काफी कम रही है।
सरकारी आँकड़ों के अनुसार, 26 फ़रवरी 2021 तक यानी कोविड टीकाकरण के 42 वें दिन देश में कुल 1.37 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी थी, जिसमें 88,41,132 स्वास्थ्य कर्मचारी और 49,15,808 फ़्रंटलाइन कर्मचारी शामिल हैं। कोविड-19 वैक्सीन की मुहिम देशभर में 16 जनवरी को शुरू हुई, जिसका लक्ष्य पहले चरण में 3 करोड़ लाभार्थियों का टीकाकरण करना था।
16 जनवरी के दिन देशभर में लगभग एक लाख 65 हज़ार से ज़्यादा लभार्थियों का टीकाकरण, देश भर में 3,006 टीकाकरण केंद्रों में किया गया। ये 1,65,714 का आँकड़ा पहले दिन की लक्षित संख्या 3 लाख से काफ़ी कम था।
सिर्फ़ उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहाँ पहले दिन 31,700 लोगों को कोविड-19 का टीका लगाने का लक्ष्य था पर दिन ख़त्म होते होते सिर्फ़ 21,291 लोगों को ही टीका लगाया गया। वहीं बिहार में 30,000 के लक्ष्य के बदले सिर्फ 18,169 लोगों ने ही टीकाकरण में भाग लिया । ये पहले दिन के आँकड़े भारत में कोविड टीकाकरण की एक तस्वीर बताते हैं।
अभी तक टीके के कुल लभार्थियों की संख्या, लक्षित संख्या से काफ़ी कम है। कई स्वास्थ्य कर्मी टीका लगवाने से मना कर चुके हैं, लोगों में टीकाकरण को लेकर अभी भी जानकारी का काफ़ी अभाव है, साथ ही सोशल मीडिया आदि पर फैली हुई अफवाहें भी टीकाकरण करवाने में देखी जा रही झिझक के मुख्य कारणों में से एक है।
"लोगों को पहले काफ़ी डर था की टीका लगेगा तो हाथ में दर्द रहेगा, बुखार आएगा, काम नहीं हो पाएगा, ये सारे डर धीरे-धीरे कम हुए है, जैसे-जैसे बाक़ी लोग ज़्यादा लोगों को लगता देख रहे हैं तो उनको लग रहा है की ठीक है," लखनऊ के गोसाईंगंज की आशा कार्यकर्ता शिवदेवी ने बताया जिनको 25 जनवरी को पहला टीका और 22 फ़रवरी को दूसरा टीका लगाया गया।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री, अश्विनी कुमार चौबे ने लोकसभा में 5 जनवरी, 2021 को माना की टीकाकरण मुहिम की शुरुआत में लक्ष्य से काफ़ी कम लोगों का टीकाकरण हो पाया। इसके लिए उन्होंने दो कारण बताए, कोविन ऐप, जिसपर टीकाकरण से जुड़ी सारी कार्रवाई डिजिटल होनी थी, इसका ठीक से ना चलना और इसकी तकनीकी समस्याएँ। और दूसरा कारण वैक्सीन लगवाने में झिझक या वैक्सीन हेज़िटन्सी।
"कोवैकसिन का तीसरे चरण का ट्रायल हुआ नहीं है और इसकी प्रभावकारिता पुख़्ता नहीं है, तो लभार्थियों में इसके प्रति थोड़ी आशंका है," बिहार के ऐम्स पटना के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, डॉ विनय कुमार, ने बताया।
"अगर आप एक टीका ले चुके हैं तो इसका बाद आप दूसरा टीका ले सकते हैं या नहीं इसपर भी शंका है। अगर अभी किसी ने कोवैकसिन ले ली जिसकी प्रभावकारिता 50% से कम है, तो फिर ये वैक्सीन बार बार लेनी पड़ेगी, उस स्थिति में कोई दूसरी वैक्सीन भी नहीं ले पाएँगे और इसका भी कोई असर नहीं हुआ तो इस कारण भी काफ़ी आशंकाएँ है," डॉ कुमार ने बताया।
"शुरुआत में लक्षित संख्या से कम लोग इसलिए भी आए क्योंकि सूचियों में एक मोबाइल नम्बर पर एक से ज़्यादा लोग पंजीकृत किए गए थे, पुलिस कर्मियों में जिनके नाम सूची में थे उनमे से कई ड्युटी पर बाहर थे, इसी तरह के कुछ कारण थे, पर अब ऐसा नहीं है," लखनऊ के अतिरिक्त चीफ़ मेडिकल अधीक्षक और कोविड टीकाकरण के नोडल अधिकारी एमके सिंह ने बताया।
क्या हैं वैक्सीन के प्रति झिझक के कारण?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वैक्सीन हेज़िटन्सी का मतलब है वैक्सीन होने के बावजूद इसे लगवाने में देरी करना या लगवाने से मना कर देना। हालिया सर्वे के अनुसार जानकारी का आभाव इस झिझक का सबसे बड़ा कारण है।
ज़्यादातर लोगों को टीकाकरण से पहले ये जानकारी नहीं दी गयी थी की बुखार जैसे लक्षण, जो किसी भी टीके के बाद आम हैं, वो कोविड के टीके के बाद भी हो सकते हैं। इसकी वजह से कई लोगों को जब बुखार हुआ तो इसकी वजह से उनमे वैक्सीन के प्रति डर और बढ़ गया।
उत्तराखंड के अलमोड़ा ज़िले के महरखोला गाँव, कुमछाऊँ गाँव और नक्सीला गाँव, की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, तीनो ने साथ में कोविड का टीका 3 फ़रवरी लगवाया इसके बाद तीनो को ही तेज बुखार हो गया और उसके बाद से ये तीनों टीकाकरण को एक अलग दृष्टि से देखती हैं ।
"मैं एकदम स्वस्थ थी, टीका लगने के बाद मुझे 102 बुखार हो गया और तीन दिन तक रहा, मेरे साथ की दूसरे गाँव की दो और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को भी बुखार रहा। तीन दिन तक उठ भी नहीं पाए इतना बुखार था, हमारे परिवार में से तो अभी हम किसी को भी नहीं लगवाएँगे टीका। अगर गाँव वाले पूछते हैं तो उनको यही कहते हैं जिसको लगवाना हो सब अपनी ज़िम्मेदारी पर ही लगवाएँ", पुष्पा भकुनी, 38, ने बताया जो कुमछाऊँ गाँव की आंगनवाड़ी हैं।
लोकल सर्कल नाम के संस्थान ने 4 फ़रवरी को एक सर्वे में बताया की भारत में 58% लोग अभी भी वैक्सीन लगवाने में झिझक रहे हैं, हालाँकि एक महीने में ये आँकड़ा 16% कम हुआ है। झिझकने वाले 40% लोगों का कहना है की अगर नेता, मंत्री, विधायक आदि ये वैक्सीन लगाते हैं तो उन्हें इस वैक्सीन पर ज़्यादा भरोसा होगा। इस सर्वे में देश के 289 जिलों से 25,000 लोग शामिल थे।
16 जनवरी को वाराणसी के एक टीकाकरण केंद्र पर ड्युटी पर तैनात एक पुलिस कर्मी ने इंडियास्पेंड को बताया था कि स्वस्थ्य्कर्मियों के बाद जब उनकी टीकाकरण की बारी आएगी तो वो टीका नहीं लगवाएँगे।
"हम यहाँ आज सुबह से हैं, ना कलेक्टर ने टीका लगवाया, टीवी पर भी किसी नेता या किसी मंत्री ने टीका नहीं लगवाया तो हम इसपर कैसे भरोसा कर लें," उन्होंने बताया।
आंकड़ों की पारदर्शिता
लोकल सर्कल के सर्वे के अनुसार 62% लोगों का कहना है कि अगर टीकाकरण और एईएफ़आई के आँकड़े उनके ज़िलों के लिए उपलब्ध करवाए जाते हैं तो उन्हें वैक्सीन पर ज़्यादा भरोसा होगा। अश्विनी चौबे द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार 31 जनवरी, 2021 तक एईएफ़आई के अभी तक कुल 7,580 मामले सामने आए हैं।
एईएफ़आई यानी टीकाकरण के बाद होने वाले दुशप्रभाव। इन दुष्प्रभावों को पहचानने और इनसे निपटने के लिए हर कोविड टीकाकरण केंद्र पर एईएफ़आई कक्ष भी बनाए गए हैं। टीका लगने के तीस मिनट तक लाभार्थी को अवलोकन कक्ष में रखा जाता है जिसके बाद अगर कोई भी अनचाहे प्रभाव देखे जाते हैं तो उन्हें एईएफ़आई कक्ष में ले जाया जाता है।
सर्वे में पूछा गया की क्या लोगों के पास अपने-अपने ज़िलों में टीकाकरण केंद्र, रोज़ हो रहे टीकाकरण और इसके दुशप्रभाव के मामलों का डेटा उपलब्ध है, 62% लोगों ने कहा की उनके पास ये जानकारी नहीं है और वो ये जानकारी चाहेंगे। इसके ऊपर 21% ने कहा की उनके पास भी ये जानकारी नहीं है, हालाँकि उनकी इसमें कोई रुचि भी नहीं है। "इंटरनेट पर ज़िले का नाम और वैक्सीन डाल कर सर्च करने पर भी कोई ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है," सर्वे ने कहा।
अश्विनी चौबे द्वारा दिए गए जवाब के अनुसार, कोविड-19 का टीका लगने के बाद कुल 12 लोगों की मौत भी हुई है, हालाँकि मंत्रालय के अनुसार फ़िलहाल मौजूद जानकारी के हिसाब से इन मे से किसी भी मौत का वैक्सीन से कोई संबंध नहीं था, यानी वैक्सीन की वजह से अभी तक कोई मौत नहीं हुई है।
लोकल सर्कल सर्वे के अनुसार देश के अलग-अलग इलाक़ों से टीकाकरण के बाद होने वाली मौतों और दुष्प्रभावों के मामलों की खबरों से भी लोगों में वैक्सीन के प्रति झिझक और इसके ख़िलाफ़ डर पैदा हुआ है।
झिझक में गिरावट लेकिन बहुत कम
लोकल सर्कल ने 19 फ़रवरी तक किए गया अपने सारे सर्वे के जवाबों को मिलाकर एक ट्रेंड देखा जिसके अनुसार अक्टूबर-नवंबर 2020 में लगभग 60% लोगों में वैक्सीन के प्रति झिझक थी। ये आँकड़ा दिसम्बर-जनवरी में बढ़कर 70% हो गया। हालाँकि 3 फ़रवरी को आँकड़ा 58% था वो 17 फ़रवरी को घटकर 50% पर आ गया।
अश्विनी चौबे ने ये भी कहा कि बाक़ी देशों में कोविड-19 का अनुभव देखकर समझा जा सकता है कि ज़्यादातर देश कोविड के मामलों में होने वाली दूसरी और तीसरी तीव्र बढ़ोत्री महामारी के आख़िरी चरण में होती है। यानी की देश में घट रहे कोरोना की मामलों का मतलब ये नहीं है की महामारी धीरे धीरे कम हो रही है, इसीलिए ज़रूरी है की जिन लोगों को सबसे ज़्यादा ख़तरा है उन्हें सुरक्षित किया जाए ताकि जब तक टीकाकरण पूरा ना हो, कोविड के मरीज़ों की संख्या कम ही रहे।
"लोगों में पहले थोड़ा डर था टीके को लेकर। शुरुआत में जितने लोग आने की उम्मीद थी उतने लोग नहीं आए, प्रक्रिया थोड़ी धीमे थी पर लभार्थियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अब लोग इसे लेकर उत्साहित हैं, कोई डर और कोई झिझक नहीं है," एमके सिंह ने बताया।
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(साधिका, इंडियास्पेंड के साथ प्रिन्सिपल कॉरेस्पॉंडेंट हैं।)