फिरोजाबाद के गांवों में डेंगू और बुखार का कहर, न इलाज, न बचाव के उपाय
फिरोजाबाद के ग्रामीण इलाकों को देखने पर यह बात साफ होती है कि गांवों में डेंगू और बुखार के मामले बहुतायत में हैं।
फिरोजाबाद (यूपी): सुबह के सात बज रहे हैं। इस वक्त फिरोजाबाद शहर जाग ही रहा है। सड़कों पर अभी भीड़ कम नजर आती है, लेकिन शहर में स्थित मेडिकल कॉलेज में इस वक्त तक भीड़ लग चुकी है। दूर दराज के गांव से लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को लिए यहां जुट रहे हैं। इनमें से ज्यादातर बच्चों को बुखार की शिकायत है।
उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद में पिछले एक महीने से डेंगू और वायरल बुखार का कहर देखने को मिल रहा है। आधिकारिक तौर पर अकेले फिरोजाबाद में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है, जिसमें बड़ी संख्या बच्चों की है। हाल यह है कि फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज के बच्चों के अस्पताल (पिडियाट्रिक विभाग) में 400 से ज्यादा बच्चे भर्ती हैं, जिनमें एक तिहाई डेंगू से पीड़ित हैं। बच्चों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रशासन को पहले से चल रहे पीडियाट्रिक विभाग के अलावा 200 बेड का एक नया वॉर्ड शुरू करना पड़ा है।
इंडियास्पेंड की टीम जब फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज पहुंची तो ओपीडी (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) के बाहर भारी भीड़ देखने को मिली। यह सभी लोग बच्चों के खून की जांच कराने के लिए जुटे थे। इसी भीड़ में रीना भी शामिल हैं। फिरोजाबाद शहर की ही रहने वाली रीना सिंह सुबह करीब आठ बजे अपने बेटे को लेकर यहां पहुंची थीं। उनके 9 साल के बेटे को पिछले दो दिन से बुखार की शिकायत है।
रीना बताती हैं, "अभी खून की जांच करा ली है, लेकिन रिपोर्ट शाम तक आएगी। उसके बाद ही डॉक्टर भर्ती या इलाज करेंगे, तब तक बुखार के लिए एक दवा दी है।" रीना की तरह तमाम लोग जांच रिपोर्ट का इंतजार करते नजर आते हैं। इस भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने कंपाउंड में ही एक टेंट लगवा दिया है, जिससे लोग धूप से बच सकें। इसी टेंट के नीचे लोग अपने बुखार से तपते बच्चों को लेकर बैठते हैं।
मेडिकल कॉलेज के हालत पर इंडियास्पेंड ने कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. संगीता अनेजा से बात की। डॉ. अनेजा ने बताया, "हमारे पिडियाट्रिक विभाग में कुल 540 बेड हैं। एक शिफ्ट में 20 डॉक्टर काम कर रहे हैं और पूरे दिन में करीब 60 डॉक्टर काम करते हैं।"
एक महीने से बुखार के मरीज कम क्यों नहीं हुए और मेडिकल कॉलेज में जांच के लिए लगी भीड़ से जुड़े सवाल पर डॉ अनेजा का कहना है, "पहले हमारे पास बच्चे गंभीर हालात में आते थे, अब ऐसा नहीं है। साथ ही संख्या कम नहीं हुई इसको ऐसे न देखा जाए कि बीमारी कम नहीं हुई है। इसमें 50% वायरल बुखार के मरीज हैं। लोग जागरूक हो गए हैं, इसलिए बच्चों को लेकर यहां आ रहे हैं, उनका हम पर विश्वास है।"
वहीं, जांच रिपोर्ट में देरी और तब तक मरीज को एडमिट न करने के सवाल पर डॉ. अनेजा कहती हैं, "अगर बच्चा सीरियस होगा तो हम जांच से पहले भी उसे एडमिट कर रहे हैं।"
मेडिकल कॉलेज में बुखार से संबंधित ज्यादातर मरीज फिरोजाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों से आ रहे हैं। पहले डेंगू का आउटब्रेक फिरोजाबाद के शहरी इलाकों में देखने को मिला था, बाद में यह ग्रामीण क्षेत्रों में भी फैल गया। 2011 की जनगणना के अनुसार फिरोजाबाद की करीब 66% आबादी ग्रामीण क्षेत्र में रहती है।
सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था ठप्प
इंडियास्पेंड की टीम ने फिरोजाबाद के ग्रामीण क्षेत्रों के हालात को समझने लिए कई गांवों का दौरा किया। इस दौरान यह देखने को मिला कि गांव के लोगों को नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर बेहतर इलाज नहीं मिल रहा। ऐसे हाल में मजबूरी में उन्हें कई किलोमीटर दूर मेडिकल कॉलेज जाना पड़ रहा है या फिर महंगे दाम पर प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराना पड़ रहा है। कई लोग तो कर्ज लेकर इलाज कराने की बात भी कहते हैं।
फिरोजाबाद के नूरपुर गांव के लोगों ने इंडियास्पेंड से बताया कि गांव के हर घर में कोई न कोई बीमार है। एक 22 साल की लड़की की बुखार से मौत भी हो गई है। गांव वालों ने 20 किलोमीटर दूर स्थित फतेहाबाद कस्बे में एक प्राइवेट अस्पताल में 25 बेड बुक करके रखे हैं, ताकि किसी की तबीयत बिगड़ने पर उसे इलाज मिल सके।
नूरपुर गांव के रहने वाले देवेंद्र सिंह कहते हैं, "हमारे गांव के पास दो सरकारी अस्पताल हैं। वहां के हालात ऐसे हैं कि घास उग रही है। अस्पताल में कोई डॉक्टर नहीं रहता। अगर हम किसी पर आश्रित रहेंगे तो स्थिति खराब हो सकती है। इसलिए हमने फैसला लिया कि एक दूसरे की मदद करके इलाज कराएंगे। इसलिए प्राइवेट अस्पताल में 25 बेड बुक करा लिए हैं।"
नूरपुर गांव के ही संजय शर्मा भी सरकारी अस्पताल की व्यवस्था और प्राइवेट अस्पताल के खर्च से खिन्न नजर आते हैं। संजय कहते हैं, "सरकारी अस्पताल में जगह नहीं मिलती। प्राइवेट में दिखाने के लिए रात में दो बजे से नंबर लगा रहे हैं। पहले प्राइवेट डॉक्टर 300 रुपए फीस लेते थे, अब 400 रुपए ले रहे हैं। जो जांच पहले 300 से 400 रुपए में होती थी वो अब एक हजार और 1,100 रुपए में हो रही है। मजबूरी में कर्ज पर पैसा लेकर इलाज कराना पड़ रहा है, क्या करें?"
यह हाल सिर्फ नूरपुर गांव का नहीं है। हमारी टीम बिलहना, बरगदपुर और ऐसे ही गई गांव गई, जहां हालात कमोबेश ऐसे ही नजर आए। फिरोजाबाद के ही नगलाचूरा गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना हुआ है। ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल पिछले 8 दिन से बंद है। वहीं, यहां डॉक्टर कभी कभार आते हैं। ऐसी स्थिति में लोग प्राइवेट अस्पताल और झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करा रहे हैं।
बिलहना गांव में झोलाछाप डॉक्टर के क्लीनिक पर मरीजों की भीड़ भी देखने को मिलती है। हालांकि क्लीनिक पर इलाज कर रहा व्यक्ति बताता है कि वो केवल घाव पर मरहम पट्टी करता है। किसी को भी बुखार या इससे जुड़ी दवाई नहीं दे रहा। जबकि ठीक उसके पीछे एक आदमी को पानी की बोतल चढ़ रही होती है।
बिलहना की तरह दूसरे गांव के बाजारों में भी इस तरह के क्लीनिक देखने को मिलते हैं। अभी फिरोजाबाद प्रशासन ऐसे क्लीनिक पर कार्यवाही भी कर रहा है। कई जगह क्लीनिक बंद कराए गए हैं। डॉक्टरों का मानना है कि झोलाछाप क्लीनिक पर इलाज कराने की वजह से मामले बिगड़ जाते हैं।
गांवों में फैली गंदगी से बीमारी को निमंत्रण
स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली के अलावा गांवों में गंदगी का अंबार भी देखने को मिलता है। गंदगी की वजह से बीमारियों का बढ़ना आम बात है, खास तौर से मच्छर जनित बीमारियां ऐसे माहौल में ज्यादा फैलती हैं। फिरोजाबाद के बरगदपुर गांव के लोगों ने बताया कि गंदगी को लेकर वो प्रधान से लेकर अधिकारियों तक शिकायत कर चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। वहीं, गांव में कई लोग बीमार हैं, लेकिन मच्छरों को मारने के लिए न तो कोई दवा का छिड़काव हुआ, न ही कोई स्वास्थ टीम गांव पहुंची।
फिरोजाबाद के ग्रामीण इलाकों को देखने पर यह बात साफ होती है कि गांवों में डेंगू और बुखार के मामले बहुतायत में हैं। लोग सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाली की वजह से दर दर भटकने को मजबूर हैं। इसकी वजह से उन्हें आर्थिक तौर पर नुकसान भी हो रहा है। एक बात और समझ आती है कि ग्रामीण इलाकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है, न यहां इलाज मिल रहा है, न ही बचाव का कोई प्रबंध किया जा रहा है।
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