#TIL एक्सप्लेनर: भारत में गर्म होती रातें कैसे मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं?

ग्लोबल वार्मिंग के संकेतक के रूप में भारत में चल रही हीटवेव पर सबकी नजर तो है, लेकिन गर्म होती रातें भी चिंता का विषय हैं। गर्म दिनों के साथ-साथ गर्म रातें भविष्य में आम लोगों के स्वास्थ्य और खुशहाली को प्रभावित करेंगी।

Update: 2024-06-27 01:30 GMT

मुंबई: साल 1877 के बाद साल 2023 की फरवरी सबसे गर्म फरवरी थी। उस साल फरवरी महीने का न्यूनतम तापमान, इतिहास का पांचवां सबसे अधिक तापमान वाला फरवरी का महीना था। सरल शब्दों में कहें तो फरवरी 2023 की रातें उतनी ठंडी नहीं थीं, जितनी पहले हुआ करती थीं। गौरतलब है कि न्यूनतम तापमान का उपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि रातें कितनी ठंडी है।

फरवरी 2023 के लिए किए गए क्षेत्रवार विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तर-पश्चिम, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत का न्यूनतम तापमान अब तक का दूसरा सबसे अधिक तापमान था।
मार्च 2023
में भी देश का औसत न्यूनतम तापमान सामान्य से 0.59 °C अधिक था।

फरवरी 2023 में भारत का न्यूनतम तापमान, जो यह बताता है कि रातें कितनी ठंडी हैं। यह फरवरी महीने के इतिहास में पांचवां सबसे अधिक तापमान था। स्त्रोत: आईएमडी

हम #TIL एक्सप्लेनर में बढ़ते न्यूनतम तापमान, गर्म रातें और उसके मायने, इन सबके बारे में बात करेंगे।

गर्म रातें क्यों महत्वपूर्ण है?

जब दिन गर्म होते हैं, तो अपेक्षाकृत ठंड रातें मानव शरीर को ठंडा होने का मौका देती हैं। लेकिन जब रातें गर्म होती हैं, तो यह प्रक्रिया नहीं हो पाती है और शरीर पर गर्मी का तनाव (हीट स्ट्रेस) बढ़ जाता है। गर्म दिन और गर्म रात का संयुक्त प्रभाव मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। जापान, दक्षिण कोरिया और चीन के 28 शहरों में मृत्यु दर का विश्लेषण करने वाले 2022 के एक शोधपत्र में बताया गया है कि गर्म रात वाले दिनों में सापेक्ष मृत्यु दर अपेक्षाकृत ठंड रातों वाले दिनों की तुलना में 50% अधिक हो सकती है।

2017 के एक चीनी शोधपत्र के अनुसार, “अगर मानव शरीर को रात के दौरान गर्मी से राहत नहीं मिलती है तो स्वास्थ्य जोखिम और बढ़ सकता है।” भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गांधीनगर के 2018 के एक शोधपत्र में मौजूदा अध्ययनों का हवाला देते हुए कहा गया, “अगर दिन की गर्मी का तनाव (हीट स्ट्रेस) रात में भी बना रहता है तो यह पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं को और बढ़ा देता है। इसलिए गर्म दिन और गर्म रातों का मृत्यु दर और बीमारियां बढ़ने से सीधा संबंध है, जैसा कि 1995 के शिकागो हीटवेव के दौरान देखा गया था।"

यह शोधपत्र 1995 में शिकागो में हुई हीटवेव का जिक्र करता है, जब दो दिनों की अवधि में न्यूनतम तापमान 31.5 °C से कम नहीं हुआ था, जो इस क्षेत्र के लिए एक बहुत ही असामान्य घटना थी।

डेनमार्क के शोधकर्ताओं द्वारा 2022 के एक शोधपत्र में कहा गया है कि गर्म रातें नींद को भी प्रभावित करती हैं। निम्न आय वाले देश के लोगों, वृद्धों और महिलाओं की नींद पर तापमान का प्रभाव बहुत अधिक होता है। शोधकर्ताओं ने चेताया है कि इस सदी के अंत तक तापमान के कारण प्रत्येक व्यक्ति के प्रति वर्ष नींद में 50 से 58 घंटे तक की गिरावट आ सकती है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में भारत में हीटवेव का प्रकोप और बढ़ेगा। इसलिए नीति निर्माताओं को गर्मी से निपटने का एक्शन प्लान बनाते समय रात की गर्मी का भी ख्याल रखना होगा और सबसे अधिक संवेदनशील लोगों को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनानी होंगी।

इंडियास्पेंड ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) से यह जानने की कोशिश की है कि वे बढ़ते हुए न्यूनतम तापमान और स्वास्थ्य पर पड़ रहे इसके प्रभावों से निपटने के लिए क्या योजना बना रहे हैं और अब तक क्या-क्या कदम उठाए हैं? उनका जवाब मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट किया जाएगा।

विज्ञान क्या कहता है?

भारत में 2000-2009 के दशक की तुलना में 2010-2019 के दौरान हीटवेव की घटनाओं की संख्या में लगभग 24% की वृद्धि हुई। इसके कारण इसके कारण होने वाली मौतों की संख्या में भी लगभग 27% की वृद्धि हुई है। चरम-मौसम के कारण होने वाली मौतों की संख्या में हीटवेव का कारक अब तीसरे से दूसरे स्थान पर आ गया है। एनडीएमए की एक रिपोर्ट के अनुसार, जहां 2015 में हीटवेव से प्रभावित भारतीय राज्यों की संख्या नौ थी, वह 2020 में बढ़कर 23 हो गई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के 2022 के एक अध्य्यन के अनुसार देश के विभिन्न हिस्सों में हीटवेव की गंभीरता को बढ़ाने में न्यूनतम तापमान की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

उदाहरण के लिए 11 मई को महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के जेउर में अधिकतम तापमान 43 °C दर्ज किया गया, जबकि पिछली रात न्यूनतम तापमान सामान्य से 4 °C अधिक 25 °C दर्ज किया गया था। 12 मई को महाराष्ट्र के मालेगांव में रात का तापमान 29 °C था, जो सामान्य से 6 डिग्री अधिक था। 25 मई को राजस्थान के बीकानेर में दिन का तापमान 42.5 °C था, जबकि अगली रात न्यूनतम तापमान 21.8 °C था, जो सामान्य से 6 डिग्री अधिक था।

जब अधिकतम तापमान 40°C या उससे अधिक और न्यूनतम तापमान सामान्य से 4.5 °C से 6.4 °C अधिक होता है, तो आईएमडी इसे 'गर्म रात' कहता है। यदि न्यूनतम तापमान सामान्य से 6.4 °C अधिक है, तो आईएमडी इसे 'बहुत गर्म रात' कहता है।

आईएमडी के वैज्ञानिक अखिल श्रीवास्तव ने कहा, "आईएमडी के पास 'गर्म रात' घोषित करने के लिए एक निश्चित मानक हैं। यदि दिन का तापमान अधिक है, तो सामान्य से अधिक न्यूनतम तापमान मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। किसी भी दिन का न्यूनतम तापमान आम तौर पर देर रात या भोर के समय दर्ज किया जाता है। यदि न्यूनतम तापमान सामान्य से अधिक है, तो इसका अगले दिन के अधिकतम तापमान पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।"

1987-2017 के बीच अहमदाबाद में उच्च तापमान और उससे होने वाले मौतों पर अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकतम तापमान 42 °C से अधिक और न्यूनतम तापमान 28 °C से अधिक होने पर मृत्यु दर में पर्याप्त वृद्धि हुई, जो यह दर्शाता है कि अधिकतम और न्यूनतम तापमान दोनों के बढ़ने का प्रतिकूल प्रभाव मानव जीवन पर पड़ा।

एनआरडीसी इंडिया में स्वास्थ्य और जलवायु मामलों के प्रमुख और इस शोधपत्र के सह-लेखक अभियंत तिवारी ने कहा, "हमारे शोध से पता चला है कि गर्मियों के दौरान एक निश्चित सीमा के बाद न्यूनतम तापमान बढ़ने से मृत्यु दर जोखिम भी बढ़ जाता है। जहां अधिकतम तापमान में हर 1°C की वृद्धि के साथ मृत्यु दर का जोखिम 9.6% तक बढ़ता है, वहीं न्यूनतम तापमान में हर 1°C की वृद्धि के साथ मृत्यु दर का जोखिम 9.8% तक बढ़ जाता है।"

यह कितना बुरा हो सकता है?

ईरानी शोधकर्ताओं के 2022 के एक शोधपत्र के अनुसार एशिया में गर्म रातों की संख्या में प्रतिवर्ष 84.6% की वृद्धि हो रही है, जो प्रति वर्ष एक से तीन रातों की वृद्धि हो सकती है। विभिन्न उत्सर्जन परिदृश्यों को ध्यान में रखते हुए 2070 तक एशिया के 22% से 25% क्षेत्र में गर्म रातों की संख्या प्रति वर्ष 96 से अधिक हो सकती है। यह विशेष रूप से दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया का सच है, जहां इंडोनेशिया जैसे देशों में लगभग सभी रातें गर्म होंगी। शोधपत्र ने चेतावनी दी है कि 2070 तक एशिया का 8.7% हिस्सा साल भर में 308 से अधिक गर्म रातों का अनुभव करेगा।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन की इसमें भूमिका है। शोधपत्र में पाया गया कि यदि वैश्विक औसत तापमान 1°C बढ़ता है, तो एशिया में गर्म रातों की औसत आवृत्ति लगभग 37 रातों तक बढ़ जाती है।

शोधपत्र में यह भी कहा गया है कि चूंकि रात में सूरज नहीं होता, इसलिए रात के दौरान गर्मी होने का स्पष्ट कारण ग्रीनहाउस गैस है। इससे ग्रीनहाउस गैस के दुष्प्रभावों को अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। शोध के अनुसार, "गर्म रातों की प्रवृत्ति का अध्ययन करने से जलवायु पर ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को अधिक सटीकता से समझा जा सकता है।"

इस शोध के अनुसार, "गर्म रातों की तीव्रता दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की घनी आबादी वाले अविकसित या कम विकसित देशों में सबसे अधिक है। एशिया के इस बड़े हिस्से में अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है और ये कृषक समुदाय गर्म जलवायु के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। चरम जलवायु घटनाएं अब सामान्य घटनाओं में बदल रही हैं, ऐसे में इन क्षेत्रों की कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं के ढहने का खतरा भी बन रहा है।"

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के 2018 के एक शोधपत्र में भारत के परिप्रेक्ष्य में एक विशिष्ट चेतावनी दी गई थी। शोध में पाया गया है कि 1984 के बाद की अवधि में पश्चिमी और दक्षिणी भारत के बड़े हिस्से में ‘गर्म दिन और फिर गर्म रात’ की आवृत्ति में वृद्धि हुई है।

हाल के कुछ दशकों के दौरान रात के दौरान, दिन की तुलना में गर्मी अधिक बढ़ी है। हालांकि शोधकर्ताओं ने पाया कि सिंधु-गंगा के मैदानों और पूर्वी भागों में ऐसी घटनाओं की आवृत्ति में गिरावट आई है, जो आंशिक रूप से सिंचाई और वायुमंडलीय एरोसोल के कारण स्थानीय शीतलन से जुड़ी हो सकती है।

उन्होंने पाया कि मानव-जनित उत्सर्जन के कारण भी ऐसी घटनाओं की आवृत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह सदी के अंत तक वर्तमान स्तर से चार से 12 गुना तक बढ़ सकती है। इंडियास्पेंड से बात करते हुए शोधकर्ताओं ने कहा कि हीटवेव चेतावनी प्रणाली को डिजाइन करते समय गर्म होती रातों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो भारत की हीट एक्शन योजनाओं में बढ़ते न्यूनतम तापमान और इनडोर हीट को भी ध्यान में रखना चाहिए।

जापान, दक्षिण कोरिया और चीन पर अध्ययन हुए 2022 के एक शोधपत्र में कहा गया है, "एयर कंडीशन नहीं खरीद सकने वाले निम्न आय के लोगों के लिए रात के समय की गर्मी अधिक गंभीर हो सकती है। इस कारण भविष्य की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियों में इन पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा।”

(इंडियास्पेंड के साथ इंटर्नशिप कर रहे पवन थिमवज्जला ने भी इस स्टोरी में अपना योगदान दिया है।)



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