इंडियास्पेंड हिंदी एक्सप्लेनर: बार-बार क्यों बढ़ रही दूध की कीमत, क्या है असल वजह?
मार्च 2022 से फरवरी 2023 के बीच फुल क्रीम दूध की कीमत 8 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ी है। क्या है दूध की कीमत बढ़ने के पीछे की गणित, इंडियास्पेंड हिंदी एक्सप्लेनेर में जानिए
लखनऊ: लखनऊ के गोमतीनगर में रहने वाले रंजीत उपाध्याय एक निजी कंपनी में पेशे से सेल्समैन हैं। वे अपने 4 और 6 साल के बच्चों के लिए पैकेट वाला दूध दो लीटर प्रतिदिन खरीदते हैं। लेकिन आजकल वे दूध की बढ़ती कीमत को लेकर परेशान हैं। वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े दूध उत्पादक मनीष भारती बढ़ते चारे की कीमत से परेशान हैं।
पिछले एक साल के दौरान दूध की कीमत लगातार बढ़ रही है। इसी साल फरवरी 2023 के पहले सप्ताह में दूध कंपनी अमूल ने दूध की कीमत तीन रुपए प्रति लीटर तक बढ़ा दी। इससे पहले दिसंबर 2022 के आखिरी सप्ताह में मदर डेयरी ने भी कीमतों में बढ़ोतरी की थी। उत्तर प्रदेश से संचालित दूध कंपनी पराग ने भी रेट बढ़ा दिए हैं।
दूध की लगातार बढ़ती कीमतों पर रंजीत कहते हैं, "दूध की कीमत ने महीने का बजट बिगाड़ दिया है। हर कुछ महीने में दाम बढ़ जाता है। ऐसे में अब मेरे सामने दो ही विकल्प है। या तो मैं दूध कम कर दूं या फिर घर के दूसरे खर्च में कटौती शुरू करूं।"
मार्च 2022 से पहले तक अमूल (आणंद सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ) के फुल क्रीम दूध (6% फैट और 9% एसएनएफ) की कीमत प्रति लीटर 58 रुपए थी। मार्च में ही कीमत 60 रुपए प्रति लीटर पहुंच गई। इसके लगभग 11 महीने बाद 6 फरवरी 2023 तक ये कीमत 66 रुपए प्रति लीटर हो गई। यानी लगभग 11 महीनों में ही प्रति लीटर दूध की कीमत 8 रुपए तक बढ़ चुकी है। अमूल ने अक्टूबर 2022 के आखिरी सप्ताह में दूध के दामों में वृद्धि की थी और तत्कालीन अमूल के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने इसके पीछे चारे की बढ़ती कीमत का हवाला दिया था।
राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के स्वामित्व वाली मदर डेयरी ने 5 मार्च 2022 से 27 दिसंबर 2022 के बीच फुल क्रीम दूध की कीमत 57 रुपए से बढ़ाकर 66 रुपए प्रति लीटर तक कर दी। इससे पहले मदर डेयरी ने 2021 के नवंबर, अक्टूबर, अगस्त और मार्च माह में कीमतों में इजाफा किया था। उत्तर प्रदेश से संचालित पराग मिल्क फूड्स लिमिटेड ने भी गोवर्धन ब्रांड के दूध की कीमतों में दो रुपए की बढ़ोतरी का ऐलान कर दिया। गोवर्धन गोल्ड दूध की कीमत अब 54 रुपए प्रति लीटर से बढ़कर 56 रुपए हो गई है।
आर्थिक सलाहकार का कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार नवंबर 2022 में दूध की थोक मुद्रास्फीति दर 6.03 प्रतिशत थी। इससे पहले जून 2022 में दूध की मुद्रास्फीति छह प्रतिशत से ज्यादा तक पहुंची थी। जनवरी 2022 में ये दर 2.21% थी। दिसंबर 2022 आते-आते ये दर 6.99 प्रतिशत पर पहुंच गई और साल 2023 के पहले महीने यानी जनवरी में दूध की महंगाई दर 8.96% पर पहुंच गई। जनवरी 2018 में दूध की थोक मुद्रास्फीति 3.93 ही थी। मुद्रास्फीति को दूसरे शब्दों में महंगाई दर भी कह सकते हैं।
जनवरी 2018 से जनवरी 2023 तक दूध की महंगाई दर का रिपोर्ट कार्ड। (सोर्स- Office of the Economic Adviser, Ministry of Commerce & Industry)
ऐसे में अब सवाल यह है कि आखिर दूध की कीमतें इतनी तेजी से बढ़ क्यों रही हैं? इसके पीछे की असल वजह क्या है?
सालभर में 29.30 फीसदी बढ़ी चारे की कीमत
पश्चिमी उत्तर प्रदेश जिला मेरठ के अरनावली गांव में रहने मनीष भारती क्षेत्र के बड़े दूध किसान हैं और उनके पास इस समय 45 गायें हैं। मास्टर इन बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (एमबीए) की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे लगभग 10 वर्षों से इस व्यवसाय में हैं।
वे हमें एक गाय पर प्रतिदिन बैठने वाले चारे की गणित समझाते हैं। "भूसे का रेट हमारे यहां इस समय 14 रुपए किलो है। इसके अलावा मिश्रित चारे की कीमत 28 से 30 रुपए किलो है। एक पशु को डाइट मेंटेन रखने के लिए कम से कम दो किलो रातब (दाना) रोज चाहिए। इसके अलावा दूध के हिसाब से चारे की गणित अलग है।"
औसतन खर्च देखें तो 20 लीटर दूध देने वाली गाय अगर 10 किलो दाना रोज दे रहे हैं तो एक दिन का ही खर्च 300 रुपए के आसपास बैठता है। पिछले साल यानी 2022 में एक गाय के पीछे यही खर्च लगभग 240 से 255 रुपए के बीच था। मतलब एक साल में ही दाने की कीमत 15 से 20% तक बढ़ गई है। "
"सूखे और हरे चारे का अनुपात अलग बनता है। अगर दो किलो भूसा दे रहे हैं तो उसका खर्च आ रहा लगभग 28 रुपए और अगर चार किलो हरा चारा दे रहे हैं 50 से 60 रुपए और जोड़ लीजिए। इसी भूसे और चारे का खर्च एक दिन के हिसाब से एक गाय पर पिछले साल तक 45 से 48 रुपए तक बैठ रहा था। अब जब लागत बढ़ेगी तो दूध की कीमतें तो बढ़ेगी ही।" मनीष अपनी बात खत्म करते हुए कहते हैं।
जनवरी 2028 से जनवरी 2023 के बीच कितना महंगा हुआ चारा। (सोर्स- Office of the economics adviser)
चारे की कीमत लगातार बढ़ ही रही है। अखिल भारतीय थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित चारा मुद्रास्फीति की वार्षिक दर जनवरी 2023 में 29.30 प्रतिशत बढ़कर 244.5 हो गई जो एक साल पहले इसी महीने में 189.1 ही थी। डब्ल्यूपीआई इंडेक्स में चारे का भार 0.53140 होता है।
लोकसभा में एक सवाल के जवाब में 20 दिसंबर 2022 को मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परशोत्तम रूपाला ने भी माना कि देश में चारे की कीमत बढ़ी और इसकी कमी भी है। उन्होंने बताया कि नवंबर 2022 में चारे का सूचकांक मूल्य 225.7 दर्ज किया गया जो नवंबर 2021 में 176.8 ही था। इस तरह देखें तो इस एक साल के दौरान इसमें 27.66 फीसदी तक की वृद्धि हुई। सरकार ने भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान झांसी, उत्तर प्रदेश के हवाले से बताया कि वर्ष 2022 में राष्ट्रीय स्तर पर सूखे चारे की 11.24%, हरे चारे की 23.4% और कंसंट्रेट्स (मिश्रित पशु आहार) की 28.9% की कमी रही। मिश्रित पशु आहार में आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री में अनाज, चोकर, प्रोटीन, खली, चुन्नी, दूसरे खनिज उत्पाद और विटामिन शामिल हैं।
इससे पहले केंद्र सरकार ने वर्ष 2021 में एक सवाल के जवाब में लोकसभा में बताया था कि वर्ष 2025 तक चारे का संकट गहरा सकता है और देश में सूखे चारे की 23%, हरे चारे की 40% और मिश्रित पशु आहार की 38% तक की कमी हो सकती है जिसका सीधा असर दूध उत्पादन और डेयरी सेक्टर पर पड़ेगा।
पुरुषोत्तम रुपाला ने यह भी कहा कि सरकार चारे की कीमत को स्थिर रखने के लिए मुख्य रूप से चारा केंद्रित और सहायक रूप में पशुपालकों के लिए फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (किसान उत्पादक संगठन) बनाने और इसे बढ़ावा देने के लिए कृषि और किसान कल्याण विभाग ने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) को नामित किया है। इस योजना के तहत फसल अवशेषों को सुरक्षित करने, उसकी बिक्री, रेडी टू ईट चारे का उत्पादन जैसे काम होने थे। इसके अलावा छोटे और सीमांत किसानों तक चारे की पहुंच सुलभ बनाने की बात कही गई थी।
पशु आहार भी हुआ महंगा
ऐसा नहीं है बस चारे की ही कीमत बढ़ी है। पशु आहार की कीमतों में भी भारी बढ़ोतरी हुई है। इनपुट कॉस्ट बढ़ने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है।
लखनऊ के अमीनाबाद में पशु आहार के थोक व्यापारी मोहम्मद रहमान कहते हैं, "पिछले चार महीने में दाने की कीमत काफी ज्यादा बढ़ गई है। अक्टूबर में जो दाना 13 रुपए प्रति किलो के हिसाब से हमारे पास आ रहा था, उसकी कीमत 17 से 18 रुपए किलो हो गई है। चोकर का रेट 18 रुपए किलो था जो इस समय 22-23 रुपए किलो हो गया है। इसके अलावा चूनी की जो कीमत अक्टूबर तक 15-16 रुपए थी, वह अब बढ़कर 20 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है।"
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय का होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) यानी थोक कीमतों के आंकड़े भी बता रहे हैं कि तैयार किये जाने वाले पशु आहार की कीमतों में काफी इजाफा हुआ है। सूचकांक में पशु आहार का भार 0.3563 है।
पशु आहार मुद्रास्फीति जनवरी 2023 में 208.9 रही साल जो एक साल पहले जनवरी 2022 में 199.7 ही थी। यानी एक साल में पशु आहार एक साल में 4.60% तक महंगा हो गया।
भारतीय चरागाह और चारा अनुसंधान संस्थान झांसी, उत्तर प्रदेश के निदेशक डॉक्टर अमरेश चंद्रा के अनुसार पशु आहार या दाने को 5 श्रेणियों में बांटा गया है जिसमें गोला और इसी तरह के पशु चारा में चावल की भूसी, सोयाबीन की खली, कपास की खली और सरसों तेल की खली शामिल है। जनवरी 2023 में सबसे ज्यादा कीमत चावल की भूसी की रही जो पिछले साल इसी समय की अपेक्षा 22% तक बढ़ गई।
बदलता मौसम भी एक वजह
डॉक्टर अमरेश चंद्रा चारे की कमी के लिए खराब मौसम और गेहूं की कम पैदावार को जिम्मेदार ठहराते हैं।
वे कहते हैं, "भारत में गेहूं की खेती नवंबर से अप्रैल के बीच होती है। पिछले सीजन में मार्च महीने में ज्यादा तापमान की वजह से गेहूं की फसल प्रभावित हुई और पैदावार घट गई। उत्पाद के अलावा भूसा भी कम हुआ जिसकी वजह से भूसे की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ गई। जब धान का सीजन आया तो कई क्षेत्रों में ज्यादा बारिश हुई जिसकी वजह से फसल प्रभावित हुई और पुआल की क्वालिटी खराब हो गई। ऐसे में सूखे चारे की कमी हुई।"
"वहीं बात अगर हरे चारे की करें तो देश में छोटी जोत के किसान ज्यादा हैं जो हरा चारा बहुत कम क्षेत्र में लगाते हैं। दूसरी ओर मौसम की वजह से सूखा चारा कम हो गया। हम किसानों को जागरूक कर रहे हैं। आने वाले वर्षों में सार्थक बदलाव दिखेंगे।" डॉक्टर अमरेश आगे बताते हैं।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. दीपल राय कहते हैं मवेशियों के चारे में भूसा सबसे जरूरी होता है। वे बताते हैं, "10 लीटर दूध देने वाली एक भैंस को दिनभर में औसतन 30 किलो चारे की जरूरत पड़ती है जिसमें दाना के अलावा 5-6 किलो भूसा और हरा चारा होना चाहिए। गर्मी के समय जब हरे चारे की कमी हो जाती है तब मवेशी पूरी तरह से भूसे पर निर्भर हो जाते हैं। ऐसे में भूसे की उपलब्धता बहुत जरूरी है।"
भारत सरकार ने भी माना था कि मौसम की वजह से रबी सीजन 2021-22 में गेहूं का उत्पादन कम हुआ। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र तोमर ने 20 दिसंबर 2022 को लोकसभा में बताया कि कृषि वर्ष 2021-21 के लिए चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार गेहूं का उत्पादन 106.84 मिलियन टन होना अनुमानित है जो 2021-21 की अपेक्षा 2.75 मिलियन टन (2.5%) कम है। उन्होंने आगे बताया कि मार्च 2022 में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में लू के प्रभाव के कारण उत्पादन में कमी आने की आशंका है।
लंपी और कोरोना का कितना असर?
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- भारतीय पशु-चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली इज्जतनगर में पशु आनुवंशिकी विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर रणवीर सिंह कहते हैं कि लंपी स्किन डिजीज की वजह से बहुत सी गायों ने दम तोड़ दिया। बीमारी की चपेट में आई जो गाएं बच गईं, उनका दूध उत्पादन कम हो गया है। उस समय डर की वजह से कई किसानों ने गायों की संख्या भी नहीं बढ़ाई या इसे लेकर कोई और काम नहीं किया। ऐसे में दूध की कीमत बढ़ने की एक वजह यह भी है। इसके अलावा मवेशी पालन की लागत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। ये सबसे बड़ी वजहों में से है। उस हिसाब से देखें तो किसानों को अभी भी कीमत कम मिल रही है।
इसी साल 7 फरवरी को मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि लंपी बीमारी की वजह से 2022 में 155,724 मवेशियों की मौत हो गई। सबसे ज्यादा (75,820) मवेशियों की मौत राजस्थान में हुई।
डॉक्टर रणवीर बढ़ी कीमतों के लिए कोरोना काल को भी जिम्मेदार मानते हैं। वे कहते हैं, "कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन के दौरान दूध की कीमत बहुत कम हो गई थी जबकि लागत अपनी ही जगह थी। ऐसे में किसानों ने मवेशियों के खाने में कटौती शुरू कर दी थी। उसका असर अब देखने को मिल रहा है। कम दाने, चारे की वजह से मवेशी कमजोर हो गये। उसके बाद जब उन्होंने बच्चा दिया तो उसका असर दिखा और दूध का उत्पादन कम हो गया।"
अमूल लिमिटेड के पूर्व एमडी और इंडियन डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष रूपिंदर सिंह सोढ़ी (आर एस सोढ़ी) दूध की बढ़ी कीमतों के लिए चारा, पशु आहार के महंगा होने के अलावा कोरोना काल को भी कारण मानते हैं। वे कहते हैं, "पिछले दो तीन साल में दूध की कीमत 15 से 16 फीसदी तक बढ़ी है। लेकिन इसमें ये भी देखना होगा कि कोरोना के समय दूध की कीमतें स्थिर थीं। वहीं पिछले कुछ वर्षों में लागत में 25 से 30% तक की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में दूध महंगा तो होगा ही। इसके अलावा कोरोना के समय किसानों ने मवेशियों के खाने में कटौती तो की ही, इसके अलावा इस क्षेत्र में विस्तार नहीं किया। कोरोना के बाद से दूध की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कीमतों में तेजी देखी जा रही है।"
पराग मिल्क फूड्स के चेयरमैन देवेंद्र शाह बताते हैं, "पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स और पशु आहार की कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से दूध उत्पादन की कुल लागत में बढ़ोतरी हुई है। इसलिए दूध के दाम बढ़े हैं।"
वे यह भी कहते हैं कि जून तक डेयरी कंपनियां विभिन्न कारणों से देश में दूध की कीमतों में करीब 5-7 फीसदी की बढ़ोतरी कर सकती हैं और कीमतों में बढ़ोतरी का मकसद किसानों को उनके दूध की अच्छी कीमत देने और दूध उत्पादन को बढ़ावा देना है।
इससे पहले कोविड के दौरान किसानों को उनके दूध की बहुत कम कीमत मिल रही थी जिससे देश में दूध उत्पादन में गिरावट भी आई थी। अब जब मांग बढ़ी है तो कीमतें तेज हुई है। शाह आगे कहते हैं।
मध्य प्रदेश के जिला सतना के सिमरिया में रहने वाले किसान बबलू उपाध्याय (58) कहते हैं, "मेरे पास इस समय कुल पांच भैंस है। जब मैं छोटा था तो घर में 10 से 12 भैंस थी। आज भले ही 1,400-1,500 रुपए क्विंटल में भूसा खरीदना पड़ा रहा है, तब चारा कभी खरीदकर नहीं खिलाना पड़ता था। आसपास कई चारागाह थे। इतना हरा चारा मिल जाता था कि मवेशियों को दाना खिलाने की भी जरूरत ही नहीं पड़ती थी। लेकिन अब सब कुछ खरीदना पड़ रहा है। गाय या भैंस पालकर मुनाफा कमाना अब मुश्किल काम हो गया है।"