उत्तराखंड में बढ़ती चरम जलवायु घटनाएं और मौसम की चेतावनी का अभाव
उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्य में बादल फटने की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने और इसकी चेतावनी पहुँचाने के तंत्र का आभाव है।
देहरादून: पिछले महीने, यानी 19 अगस्त की रात लगभग 2:30 बजे उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के नजदीक मालदेवता क्षेत्र में बहने वाली बांदल नदी में आये तेज़ वहाब के कारण क्षेत्र में जान माल का काफी नुक़सान हुआ है। हादसे में कई घर बह गए और क्षेत्र में फैला मलबा आपदा के भयानक मंजर को साफ दर्शाता था।
लेकिन इस आपदा के बाद सरकार और अधिकारियों के अलग अलग बयान आने लगे। कुछ इसे बादल फटने की घटना बता रहे थे तो कुछ इससे इंकार करते हुए इस अतिवृष्टि का नाम दे रहे थे।
उत्तराखंड राज्य में मौसम विभाग ने 19-20 अगस्त को राज्य के कुछ जिलों में कहीं-कहीं भारी बारिश का येलो अलर्ट जारी किया था। लिहाजा कहीं भी बड़े खतरे की आशंका नहीं थी। मौसम विभाग की और से ना तो बादल फटने और ना ही अतिवृष्टि की की कोई चेतावनी दी गयी थी। राज्य के देहरादून, टिहरी और पौड़ी जिलों के रायपुर, धनौल्टी और यमकेश्वर (क्रमशः) में बहुत तेज़ बारिश से भारी नुकसान हुआ।
ऐसे में उत्तराखंड जैसे प्राकृतिक रूप से बेहद संवेदनशील राज्य में मौसम की चेतावनी के इन्तेज़ामों में कमी या विफलता इस प्रदेश के लोगों के लिए काफी भारी पड रही है।
"हमारे यहां साल 2014 में भी इस प्रकार की घटना घट चुकी है, इसी कारण नदी के लगातार बढ़ते जल स्तर को देखते हुए हम गांव के लोगो ने तय किया कि गांव के सभी पुरुष रात में जागकर नदी की निगरानी करेंगे और कोई भी ख़तरा होने पर बाकी सभी लोगो को आगाह करेंगे," सरखेत गांव के निवासी महावीर कोटवाल बताते हैं।
खबरों के मुताबिक, 19 अगस्त को बांदल नदी के जल संग्रहण क्षेत्र के ऊपरी इलाकों में 'बादल फटा' था। इसके अलावा, रातभर लगातार बारिश ने नदी में जलस्तर बढ़ा दिया था। हालांकि देहरादून स्थित मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह इस घटना को बादल फटना नहीं कहते। अपने बयान में उन्होंने कहा कि इस इलाके में बारह घंटों के दौरान भारी बारिश हुई थी। परिभाषा के मुताबिक, बादल फटने की घटना तब मानी जाती है, जब किसी इलाके में एक घंटे में एक 100 मिमी से ज्यादा बारिश होती है।
उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य है जहां बादल फटना और अतिवृष्टि की घटनाएं सालों से घटती आ रही है लेकिन पिछले कुछ सालों से इन घटनाओं में लगातार वृद्धि देखने को मिलती है, जिसके लिए जानकार ग्लोबल वार्मिंग और हिमालय क्षेत्र में बढ़ती मानवीय गतिविधयों को जिम्मेदार ठहराते हैं। जानकारों का मानना है कि इस प्रकार की घटनाएं तो घटती रहेंगी लेकिन इन घटनाओं से सबक लेना इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए हम कितने तैयार है
साल 2013 में आयी केदारनाथ आपदा में 5,798 लोगों की जान गयी और लाखों लोग इससे प्रभावित हुए थे। इस आपदा के पहले साल 1998 में मालपा में भूस्खलन से करीब 300 लोगों की जान गई थी। पिछले साल चमोली में ऐसी ही एक घटना में 200 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और पिछले साल ही नैनीताल जिले में भी आपदा के चलते करीब 80 लोग मारे गए थे। अतिवृष्टि, और बादल फटना जैसी घटना मानसून सीजन (जुलाई, अगस्त और सितम्बर) में ही अधिक देखने को मिलती थी लेकिन पिछले साल इन घटनाओं को अक्टूबर माह तक देखा गया है।
साल 2013 में आयी केदारनाथ आपदा में देखा गया कि राज्य में एक पूर्व चेतावनी प्रणाली की भारी आवश्यकता है, जिसके बाद राज्य में तीन डॉप्लर राडार लगाए जाने थे। जनवरी 2021 में राज्य को पहला डॉप्लर राडार मिला जिसे नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर में लगाया गया, हाल ही में दूसरे रडार ने भी अपनी सुविधाएं देनी शुरू कर दी है जो टिहरी जिले में है। लेकिन राज्य को अपने तीसरे डॉप्लर राडार का अभी भी इंतज़ार है, इस राडार को पौड़ी जिले में स्थापित किया जाना है।
उत्तराखंड में लगने वाले राडार एक्स-बैंड डॉपलर रडार हैं। इस राडार की रेंज 100 किलोमीटर की होती है और यह 360 डिग्री के कोण पर वास्तविक समय में डाटा दे सकते हैं। यह एक दोहरी ध्रुवीकृत राडार प्रणाली है जो वर्षा के प्रकार, बर्फ, ओलों, पानी की मात्रा और वर्षा की तीव्रता पता लगा सकती है।
क्षेत्र में होने वाली बारिश के माप की सही जानकारी भविष्य में इस प्रकार की घटना से बचा सकती है। देहरादून के दून साइंस फोरम के संजोयक विजय भट्ट का मानना है कि बारिश को मापने के लिए प्रत्येक गांव के सरकारी स्कूल में एक वर्षा मापक यंत्र लगाया जाना चाहिए जिससे औसत से अधिक बारिश होने पर गांव के लोग सतर्क हो सकें।
"प्रशासन से किसी भी प्रकार की चेतावनी आने में कभी-कभी अधिक समय लग जाता है लेकिन यदि गांव के स्तर पर यह यंत्र लगा होगा तो समय से लोगों को जानकारी मिलेगी और इस प्रकार की (अगस्त की) घटना से बचा जा सकता है," भट्ट कहते हैं।, क्योंकि
सूचना पहुँचाना बड़ी चुनौती
भारत मौसम विज्ञान विभाग से मिलने वाली जानकारी के सही तरीके से मिलने के बाद भी इस जानकारी को सूचना को सुदूर पहाड़ी इलाकों में पहुँचाना एक चुनौती है। उत्तराखंड जैसे राज्य में मोबाइल नेटवर्क की अस्थिरता है के चलते अधिकांश लोगों को मौसम में आने वाले बदलाव की जानकारी नहीं मिल पाती है।
इस समस्या के समाधान के लिए कम्युनिटी रेडियो एक बेहतर विकल्प हो सकता है जिसके लिए पहले भी सुझाव आते रहे हैं। लेकिन उत्तराखंड आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के द्वारा 4 जनवरी 2022 को जारी एक आदेश के अनुसार राज्य के प्रत्येक जिले में कम्युनिटी रेडियो स्टेशन की स्थापना की जाएगी और इस रेडियो स्टेशन के लिए गैर सरकारी संस्थाएं भी आवेदन कर सकती हैं। इसके लिए सरकार की ओर से 20 लाख रुपये तक का अनुदान भी दिया जायेगा। इन रेडियो स्टेशन के शुरू हो जाने से राज्य के लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा में मौसम और आपदा से जुड़ी कोई भी जानकारी समय से प्राप्त कर पाएंगे।
कुमाऊँ वाणी नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर में स्थित ऐसा ही एक रेडियो स्टेशन है। इसके प्रोग्राम कॉर्डिनेटर सुमित बंसल बताते हैं, "हमारा यह कम्युनिटी रेडियो स्टेशन 11 मार्च 2010 से कार्यरत है। मौसम, आपदा और आपदा के बाद चलने वाले राहत कार्यों के लिए हमें जो जानकारी प्रशासन की ओर से दी जाती है वह जानकारी हम आगे अपने श्रोताओं तक अपने चैनल के माध्यम से पहुंचाते हैं।"
बंसल आगे बताते हैं कि उत्तराखंड जैसे विषम परिस्थितियों वाले राज्य में जहां सुदूर गांवों में अखबार और मोबाइल नेटवर्क आसानी से नहीं पहुंचते वहां मौसम और आपदा जैसी घटनाओं की जानकारी जमीनी स्तर तक पहुंचाने के लिए कम्युनिटी रेडिओ एक बेहतर विकल्प है क्योंकि सुदूर गांवो में जहां बिजली की भी समस्या होती है वहां आज भी लोग रेडियो का इस्तेमाल करते है|
कम्युनिटी रेडियो को लेकर उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला कहते हैं, "जिस माध्यम से जुड़े लोग जितने ज़्यादा होंगे वह माध्यम उतना ही अधिक कारगर साबित होगा और अभी की जो टेक्नोलॉजी हमारे पास है उससे केवल अनुमान ही लगाया जाता है किसी भी घटना के बारे में सटीक जानकारी मुश्किल होती है।"
राज्य में आने वाली इन आपदाओं की सटीक और समय पर जानकारी लोगों तक पहुंच पाये तो इन आपदाओं में होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
महावीर कोटवाल अगस्त की घटना का ज़िक्र करते हुए कहते हैं, "प्रशासन की ओर से केवल येलो अलर्ट था, जिसके चलते हम इस प्रकार की आपदा से निश्चित थे लेकिन हमारे गांव में पहले भी इस प्रकार आयी है इसलिए हम अपने पिछले तजुर्बे और लगातार होती बारिश को लेकर सतर्क थे, परन्तु हमे बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि यह घटना बड़ी होगी।"