ग्राउंड रिपोर्ट: क्यों है उत्तराखंड के अल्मोड़ा का पॉज़िटिविटी रेट राज्य में सबसे ज़्यादा

अल्मोड़ा जिले में रोज़ाना की जाने वाली कोविड जांचों की संख्या भी जिले की 6.22 लाख जनसँख्या के अनुसार बहुत ही कम है

By :  Vishal
Update: 2021-06-14 05:41 GMT

फोटो: शैलेष श्रीवास्तव

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से करीब 350 किलोमीटर दूर बसा जिला अल्मोड़ा पॉज़िटिविटी रेट के लिहाज से राज्य का कोविड19 से सबसे ज़्यादा प्रभावित जिला है। जब पूरे भारत में कोरोना के मामलों में कमी देखी जा रही है वहीं अल्मोड़ा जिला पॉज़िटिविटी रेट के मामले में उत्तराखंड में सबसे आगे है। अल्मोड़ा जिले में रोज़ाना की जाने वाली कोविड जांचों की संख्या भी जिले की 6.22 लाख जनसँख्या के अनुसार बहुत ही कम है और यही सबसे बड़ा कारण है कि अल्मोड़ा का पॉज़िटिविटी रेट इतना अधिक है। जिले की रोज़ाना की जाने वाली कोविड जांचों की संख्या अधिकतर 100 से 800 के बीच है।

इंडियास्पेंड ने अल्मोड़ा जिला मुख्यालय और इसके अंदरूनी ग्रामीण क्षेत्रों के दौरे के बाद पाया कि जिले के बढे हुए पॉज़िटिविटी रेट के पीछे कम जांचें, सामाजिक कार्यक्रम जैसे शादियां और त्यौहार, और बिना लक्षण वाले मरीज़ बड़े कारण हैं।

जून के पहले हफ्ते में अल्मोड़ा जिले में कोविड के 3,761 सैंपल लिए गए जिसमे से 501 पॉजिटिव मामले पाए गए। राज्य सरकार की वेबसाइट पर दिए गए आंकड़ों के अनुसार इस हफ्ते में अल्मोड़ा का पॉज़िटिविटी रेट 13% से भी ज़्यादा था। अल्मोड़ा की औसत जांच की दर इन 7 दिनों में सिर्फ 537 सैंपल प्रति दिन की रही है जो कि लगभग समान जनसँख्या वाले जिले जैसे पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल और नैनीताल से काफी कम थी।इस हफ्ते के दौरान जिले में सबसे ज़्यादा 880 सैंपल जून 7 को लिए गए, लेकिन इसके ठीक एक दिन पहले लिए गए सैंपलों की संख्या सिर्फ 120 थी।

Full View
Full View

दूरी, सामाजिक डर कम टेस्टिंग के कारण

अल्मोड़ा में 6 कोविड19 जांच की लैब हैं जिसमे से एक आरटीपीसीआर और 5 ट्रूनेट लैब हैं। लेकिन इकट्ठे किये गए सैंपल की संख्या सिर्फ कुछ सैकड़ों में ही है। जून 6 को जिले में सबसे कम सैंपल लिए गए जिनकी संख्या सिर्फ 120 थी। जब इंडियास्पेंड ने अल्मोड़ा के विभिन्न भागों और कलेक्शन सेंटर का दौरा किया तो पाया कि सबसे ज़्यादा सैंपल नैनीताल-अल्मोड़ा बॉर्डर चेकपोस्ट से लिए गए थे। इस चेकपोस्ट पर अल्मोड़ा के अंदर आने वाले यात्रियों, जो बिना टेस्ट रिपोर्ट के सफर कर रहे हैं, की टेस्टिंग की जाती है। जून 8 को इस चेकपोस्ट पर टेस्ट करने वाली टीम ने सुबह 10.30 बजे तक 100 सैंपल ले लिए थे। इस कलेक्शन सेंटर पर अपनी सेवा दे रहे डॉ योगेश जोशी ने बताया, "आज लोगों की संख्या ज़्यादा है और हमारी टेस्टिंग किट ख़त्म हो गयी हैं क्योंकि हम 100 सैंपल ले चुके हैं, हमने और टेस्टिंग किट के लिए डिमांड भेज दी है और किट जल्दी ही आ जाएँगी।"

जब उनसे यहां किये जाने वाली जांचों की संख्या के बारे में पूछा गया तो उन्होने बताया, "हम करीब 200-250 सैंपल रोज़ लेते हैं, लेकिन आज कुछ ज़्यादा ही भीड़ है।"

पॉजिटिव पाए गए सैंपल के बारे में डॉ जोशी कहते हैं, "हमें इसके बारे में नहीं पता क्योंकि हम यहां पर आरटीपीसीआर टेस्ट करते हैं तो अगर लोग पॉजिटिव भी होते हैं तो हमें यहां पता नहीं चलता।"

सुपाई गाँव के बलवंत सिंह गॉंव के एक जाने माने व्यक्ति हैं, उनकी पत्नी बबली जड़ौत गॉंव प्रधान हैं। सिंह बताते हैं कि अगर किसी को कोविड जांच करवानी होती है तो उसे बाड़ेचीना के अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र जाना होता है जो कि उनके गाँव से 10 किलोमीटर दूर है।

 बाड़ेचीना के अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र। फोटो: शैलेष श्रीवास्तव

"कोरोना की दूसरी लहर में हमारे गाँव में सिर्फ दो बार स्क्रीनिंग के लिए कैंप लगे। पहला कैंप पिछले हफ्ते लगा था लेकिन उसमे टेस्टिंग करवाने कोई नहीं आया। फिर मैंने खुद जाकर लोगों को समझाया और कहा कि ये टेस्टिंग उनके खुद के भले के लिए है। फिर तीन दिन पहले एक कैंप फिर से लगाया गया जिसमे 45 लोगों के टेस्ट किये गए," सिंह ने बताया। हालाँकि उन जांचों की रिपोर्ट तब तक नहीं आयी थी।

सिंह ये भी बताते हैं कि गाँव के लोगों में कोविड जांच को लेकर एक संशय बना रहता है। उन्हें लगता है कि अगर उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आयी तो उन्हें अपने आप को आइसोलेट करना पड़ेगा और अगले 14 दिन के लिए उनकी आजीविका या मजदूरी बंद हो जाएगी।

सुपाई गाँव का पंचायत भवन। फोटो: शैलेष श्रीवास्तव

अरुण एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर हैं और उन्हें कुछ होम आइसोलेशन के मरीज़ों की स्थिति की निगरानी का काम सौंपा गया है। उनके अनुसार पहाड़ी इलाकों में गावों और घरों के बीच की दूरी स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए एक बड़ी परेशानी है।

"हमारी परेशानी दूरी और पहाड़ी इलाकों की बनावट है। हमें होम आइसोलेशन के मरीज़ों की स्थिति की निगरानी का काम मिला है। अब एक मरीज़ यहां है तो दूसरा करीब 5 किलोमीटर दूर, ऐसी स्थिति में हम बहुत मुश्किल से एक-दो मरीजों से ज़्यादा से मिल पाते हैं," अरुण, जिनके आग्रह पर उनका पूरा नाम प्रकाशित नहीं किया जा रहा है, ने बताया।

सिर्फ एक अस्पताल पर निर्भर पूरा जिला

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोविड19 के लगभग सभी मामलों का भार सिर्फ एक अस्पताल पर था। अल्मोड़ा का बेस अस्पताल इस साल कोविड डेडिकेटेड अस्पताल घोषित किया गया था ताकि हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल का बोझ थोड़ा कम हो सके। लेकिन, अल्मोड़ा का ये अस्पताल कोविड के मरीजों की देखभाल बिना किसी आईसीयू या वेंटीलेटर के कर रहा था।

बेस अस्पताल को पिछले महीने अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत लाया गया था और इसकी जिम्मेदारी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ राम गोपाल नौटियाल को सौंपी गयी थी।

डॉ नौटियाल बताते हैं, "इस बार कोविड के बहुत सारे केस थे और हल्द्वानी पर भी काफी भार था। हमें सभी मरीजों का इलाज यहीं पर बिना वेंटीलेटर के करना पड़ा। और जिन मरीजों को वेंटीलेटर की ज़रुरत थी उन्हें हमने हल्द्वानी रेफर किया लेकिन दुर्भाग्यवश उनमे से कोई भी नहीं बच पाया।"


 अल्मोड़ा बेस अस्पताल। फोटो: शैलेष श्रीवास्तव

अल्मोड़ा बेस अस्पताल में मई 1 से लेकर जून 8 तक कोविड19 से 101 मौतें हुई थी और उस ही दौरान पूरे जिले में रिपोर्ट की गयी कोरोना मौतों की संख्या 137 थी। इस ही दौरान अस्पताल में 653 पॉजिटिव या कोरोना संदिग्ध मरीजों को भर्ती किया गया जिसमे से 448 मरीजों की छुट्टी कर दी गयी और 79 की हालत गंभीर होने से उन्हें हल्द्वानी भेज दिया गया।

इसके अलावा गाँव वालों को इमरजेंसी में भी एम्बुलेंस के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ रहा था। "हमे एक गंभीर कोविड मरीज को अस्पताल ले जाना था, यह लड़की टीबी की मरीज भी थी। हमने एम्बुलेंस को कई बार कॉल किया लेकिन एम्बुलेंस नहीं आयी। हमे देहरादून तक कॉल करके सिफारिश करनी पड़ी और उसके बाद भी 12 घंटे बाद एम्बुलेंस आयी," बलवंत सिंह बताते हैं।

संक्रमण के पीछे सामाजिक आयोजन, प्रवास

जब चिकित्सकों, ग्रामीणों और विशेषज्ञों से अल्मोड़ा के बढ़े हुए पॉज़िटिविटी रेट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने इसके पीछे सामाजिक आयोजन और राज्य में लगे लॉकडाउन के बावजूद लोगों के आवागमन को जिम्मेदार ठहराया।

पांडेतोली गाँव के रहने वाले गोपाल सिंह पेलवान बताते हैं कि अभी तक उनके यहां कोविड से दो मौतें हुई हैं और 10 से ज़्यादा लोग पॉजिटिव पाए गए हैं। लेकिन ये लोग संक्रमित कैसे हुए यह कोई नहीं जानता। लेकिन पेलवान मानते हैं कि उनके गाँव में कुछ शादियाँ पिछले दो महीनों में हुई और यह कोरोनावायरस के उनके गाँव में आने का कारण हो सकता हैं।

ऐसे ही, सुपाई गाँव के बलवंत सिंह कहते हैं, "हमारी शादियों को केवल 20 लोगों तक कैसे ही सीमित किया जा सकता है? ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार ही बहुत बड़े होते हैं और दूल्हा और दुल्हन की तरफ से सिर्फ 10-10 लोगों को शामिल करना लगभग असंभव है। इस ही कारण से कई लोग शादियों में शामिल हुए और संक्रमण का ये भी एक कारण हो सकता है।"

सिंह के अनुसार सुपाई गॉंव में पिछले दो महीनों में 6 लोगों की अन्य कारणों से मौत हुई और लोगों ने उनके अंतिम संस्कारों में भी भाग लिया।

अनूप नौटियाल, सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ फाउंडेशन के संस्थापक, कहते हैं कि दुसरे क्षेत्रों से अपने घरों को लौटने वाले लोग भी संक्रमण का एक कारण हो सकते हैं क्योंकि इसकी बड़ी सम्भावना है कि दुसरे प्रदेशों से लौटने वाले लोगों के साथ संक्रमण उनके गाँवों तक पहुंचा हो।

सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज़ फाउंडेशन उत्तराखंड में सतत विकास और शासन से सम्बंधित मुद्दों पर काम करता है और साथ ही राज्य की कोरोना स्थिति पर कोविड19 ट्रैकर चलता है।

उत्तराखंड के ग्राम विकास और पलायन आयोग ने सरकार को भेजी गयी रिपोर्ट में बताया कि अप्रैल 1 से मई 5 के बीच, जब कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर थी, राज्य के 53,092 प्रवासी अपने घरों को वापस लौटे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार अल्मोड़ा में सबसे अधिक 9,473 प्रवासी लौटे उसके बाद पौड़ी में 8,087 और टिहरी में 4,713 प्रवासी लौटे।

नौटियाल ने यह भी बताया कि इसमें से 34,360 (64.7%) प्रवासी दूसरे प्रदेश से आये थे जबकि 16715 (31.5%) प्रवासी राज्य के ही अन्य क्षेत्रों से अपने घरों को लौटे थे।

पलायन आयोग के आंकड़े ये भी दर्शाते हैं कि अन्य राज्यों से लौटने वाले प्रवासियों में कोरोना से प्रभावित क्षेत्रों जैसे दिल्ली और मुंबई से लौटने वाले लोग ज़्यादा थे।

अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ नौटियाल भी सामाजिक कार्यक्रमों को दूर पहाड़ों में फैलने वाले संक्रमण के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।

"कोई भी कार्यक्रम जिसमें लोग इकठ्ठा होते हैं वह इस समय सुपरस्प्रेडर हैं। पहाड़ी इलाकों में 'बैठकी होली' होती हैं जो कि एक महीने लम्बा त्यौहार है जिसमें लोग एक दूसरे को होली की बधाई घर-घर जाकर देते हैं और यह हर गाँव में मनाया जाता हैं। इस साल भी इसे हर बार की तरह मनाया गया। इसके अलावा शादियों और यात्रियों के माध्यम से भी बिना लक्षणों वाला संक्रमण फैला जिसकी वजह से अल्मोड़ा में ज़्यादा मामले पाए जा रहे हैं," डॉ नौटियाल ने बताया।

मौतों का आंकड़ा आधिकारिक संख्या से बड़ा

भले ही सरकारी आंकड़ों में अल्मोड़ा में कोविड से होने वाली मौतों की संख्या कम दिखती हो लेकिन वास्तविकता में यह संख्या बड़ी है।

इंडियास्पेंड ने अल्मोड़ा के भैंसवाड़ा फार्म में चालू किये गए अस्थ्याई श्मशान घाट का दौरा किया तो पाया कि यह घाट जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर जंगल के बीच बिना किसी ठीक रोड या सुविधाओं के बनाया गया है।

भैंसवाड़ा फार्म का अस्थ्याई श्मशान घाट । फोटो: शैलेष श्रीवास्तव

इस दौरान हमें वहाँ पर न तो जिला प्रशासन का कोई अधिकारी मिला और ना ही कोई ऐसा व्यक्ति जो कि यहां होने वाले अंतिम संस्कारों का ब्यौरा रखता हो। पहले प्रकाशित हुई ख़बरों के अनुसार यह श्मशान आधिकारिक तौर पर नहीं बनाया गया है बल्कि कुछ ग्रामीणों, जिनके गाँव वालों ने गाँव में कोविड लाशों के अंतिम संस्कार पर विरोध किया, ने यहां पर अंतिम संस्कार शुरू कर दिया।

प्रताप सिंह बिष्ट, जो कि भैंसवाड़ा श्मशान के पास ही एक दुकान चलते है, कहते हैं, "हमने 100 से भी ज़्यादा एम्बुलेंस को यहां आते देखा है। पिछले दो महीनों में यहां रोज़ाना बहुत सारी लाशें जलाई गयी हैं। प्रशासन अभी यहां श्मशान के अंदर सड़क भी बना रहा है और पैसा भी लगा रहा है। ये लोग इसे परमानेंट श्मशान बना देंगे।"

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। कृपया respond@indiaspend.org पर लिखें। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार सुरक्षित रखते हैं।

Similar News