अगर भाजपा जल्द चुनाव कराना चाहती है तो क्या है इसका गणित?
राजेश जैन, वर्ष 2014 में ‘भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मिशन- 272’ के चुनावी अभियान के ‘आर्किटेक्ट’ थे। हाल ही में उन्होंने एक लेख ( “12 reasons why Lok Sabha elections could happen in the next 100 days” ) लिखा है, जिसमें उन्होंने राजनीतिक पंडितों, विश्लेषकों और नेताओं के मनोभावों को पढ़ने की कोशिश की है।
जैन ने 2019 के लिए लोक सभा चुनाव समय से पहले होने और मई 2018 में शुरु करने के छह कारणों ( और हाल की घटनाओं से छह संदर्भ ) की सूची दी है।
सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण तर्क 2014 से भाजपा के चुनावी प्रदर्शन में गिरावट की प्रवृत्ति है और इसलिए अग्रिम चुनाव भाजपा के अपने नुकसान की भरपाई के लिए सबसे अच्छा दांव है। हालांकि, राजेश जैन के तर्क सहज और अवलोकनत्मक हैं, लेकिन भाजपा की लोकप्रियता में गिरावट के संबंध में आंकड़े क्या कहते हैं, इसे देखना भी जरूरी है।
2014 के आम चुनाव के बाद से चार साल में 15 राज्यों के चुनाव हुए हैं। इन राज्य चुनावों में, जैसा कि अर्थशास्त्री मतदाताओं की वरीयताओं को बताते हैं, उसके आधार पर कोई भी भाजपा के संभावित प्रदर्शन पर आसानी से आरोप लगा सकता है। यह चुनाव सर्वेक्षण से बहुत भिन्न होता है, जहां मतदाताओं से सर्वेक्षक को प्रश्नों के उत्तर देने की उम्मीद होती है, जो कई तरह की खामियों से भरा हुआ है।
हालांकि, किस प्रकार राज्य चुनाव संसद चुनाव आदि से भिन्न होते हैं, उन पर कई तरह के वाद विवाद होते रहे हैं। वर्ष 2014 की जीत के बाद राज्य चुनावों में मतदाताओं का चुनावी विश्लेषण भाजपा की लोकप्रियता के रुझान को दर्शाने के लिए एक उचित तरीका है।
वर्ष 2014 के आम चुनावों में, भाजपा को लोकसभा में 543 सीटों में से 282 सीटों के साथ स्पष्ट बहुमत मिला था। 2014 के आम चुनाव के बाद, भारत के 29 राज्यों में से 15 राज्यों में चुनाव हुए हैं। प्रत्येक लोकसभा सीट प्रत्येक राज्य में विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के एक निश्चित सेट से मेल खाती है। इसलिए, संभावित लोकसभा सीटों पर दबाव डालने के लिए विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों को जोड़ा जा सकता है।
2014 के चुनावों में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 191 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की है, लेकिन इसके बाद के राज्य चुनावों में इसका प्रदर्शन 146 सीटों के अनुरूप था, यानी 45 लोकसभा सीटों का नुकसान हुआ है। दूसरे शब्दों में, 15 राज्यों के चुनावों के बाद, भाजपा की लोकसभा सीटों की संख्या 237 है। यह आंकड़े, इसके 282 सीटों के 2014 के मिलान से 45 कम है।
इस प्रकार, यदि राज्य के चुनाव अगले आम चुनावों के लिए कोई संकेत हैं, तो भाजपा में निश्चित रूप से गिरावट की प्रवृत्ति है, जैसा कि नीचे के चार्ट में दिखाया गया है।
गिरावट का संकेत आगे राज्यों के चुनावों में भाजपा की वोट हिस्सेदारी और सीट पर प्रदर्शन से पुष्ट होता है। 2014 में, भाजपा ने इन 15 राज्यों में 1,171 विधानसभा क्षेत्रों को जीता था, लेकिन बाद के राज्य चुनावों में, केवल 854 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई है, यानी 2014 के विधानसभा सीटों में से लगभग एक तिहाई का नुकसान हुआ है।
यहां तक कि वोट हिस्सेदारी के मामले में, 2014 के चुनावों में भाजपा ने इन 15 राज्यों में 39 फीसदी वोट हिस्सेदारी हासिल की, जो अब 29 फीसदी तक आ गई है। यानी कि, एक ही निर्वाचन क्षेत्र में, 2014 में 100 में से 39 मतदाताओं ने भाजपा को चुना, जबकि बाद के चुनावों में 100 में से केवल 29 ने ही भाजपा को चुना है।
इस प्रकार आंकड़े 2014 के भाजपा की गिरती साख के बारे में लेख में किए गए दावे का समर्थन करता है।
इसके अलावा, चार बड़े राज्यों ( कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ) में इस साल के अंत तक चुनाव होने जा रहे हैं।2014 के चुनावों में इन चार राज्यों में भाजपा के लिए 79 संसदीय सीटों की हिस्सेदारी थी। अगर भाजपा की मौजूदा गिरावट का रुख जारी रहता है और इन चार राज्यों तक विस्तार होता है तो भाजपा इन चार राज्यों में 20 और लोकसभा सीट हार सकती है जिससे इस राज्य के चुनाव चक्र के अंत तक भाजपा के कुल लोकसभा सीटों की संख्या नीचे 217 सीटों तक आ जाएगी।
इस विश्लेषण के स्पष्ट विरोध यह तर्क होगा कि मतदाताओं ने राज्य के चुनावों और राष्ट्रीय चुनावों के लिए अलग-अलग मतदान किया होगा। इस अभिकथन का समर्थन करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए, यह तर्क नहीं दिया जा सकता है कि पिछले राज्य के चुनाव परिणाम भविष्य के लोकसभा प्रदर्शन के निश्चित संकेतक हैं। लेकिन यह मतदाताओं की वरीयताओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले कुछ बनावटी या नकली सर्वेक्षणों की बजाय पिछले वोटिंग पैटर्न के आधार पर मतदाता व्यवहार में रुझान को समझने के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है।
इसके अलावा, मेरे पिछले शोध से पता चलता है कि जब राज्य और राष्ट्रीय चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते हैं, 77 फीसदी मतदाता दोनों के लिए एक ही पार्टी का चयन करते हैं। यह आगे अन्य राज्य चुनावों के साथ लोकसभा चुनावों को प्रगामी किए जाने के बारे में इस तर्क को मजबूत करता है, क्योंकि यह संभावित रूप से मतदाता व्यवहार को प्रभावित कर सकता है।
चुनावी गणित निश्चित रूप से जल्दी और एक साथ लोकसभा चुनावों के लिए जैन की भविष्यवाणी का समर्थन करता है।
इस लेख एक संस्करण पहले क्विंट में प्रकाशित हुआ है।
(चक्रवर्ती ‘आईडीएफसी इंस्टीट्यूट’ में राजनीतिक अर्थव्यवस्था में सीनियर फेलो हैं और इंडियास्पेंड के फाउंडिंग ट्रस्टी हैं।)
यह लेख अंग्रेजी में 3 फरवरी, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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