अधिक भारतीय लड़कियां मोटापे से ग्रस्त, उनमें से ज्यादातर अमीर और शहरी
नई दिल्ली: हालांकि भारत में महिलाओं और बच्चों के बीच कुपोषण व्यापक है लेकिन लड़कियों और महिलाओं की बढ़ती संख्या मोटापे से भी ग्रसित हो रही है, खासकर शहरी, शिक्षित और अमीर परिवारों के बीच यह समस्या ज्यादा है। यह निष्कर्ष एक वैश्विक अध्ययन में सामने आई है। अध्ययन के मुताबिक, पिछले 17 सालों से 2016 तक, अधिक वजन और मोटापे से ग्रस्त महिलाओं का अनुपात दोगुना हो गया है।
‘ट्रेंड्स एंड कोरिलेट्स ऑफ ओवरवेट अमॉंग द प्री-स्कूल एज चिल्ड्रन,ऐडलेसन्ट गर्ल्स एंड अडल्ट वुमन इन साउथ एशिया’ शीर्षक से यह अध्ययन अगस्त-2019 में वैश्विक पत्रिका ग्लोबल जर्नल न्यूट्रिएंट्स में प्रकाशित हुआ है।
पिछले 17 वर्षों, 1999 से 2016 तक, पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों का अनुपात, जो अधिक वजन के हैं, उनमें गिरावट हुई है। यह आंकड़े 2.9 फीसदी से 2.1 फीसदी तक हुए हैं। इसी अवधि के दौरान, हालांकि, किशोर लड़कियों (15-19 वर्ष) और महिलाओं (20-49 वर्ष) का अनुपात क्रमशः दोगुने से अधिक 1.6 फीसदी से 4.9 फीसदी और 11.4 फीसदी से 24 फीसदी तक था। इस आयु वर्ग की महिलाओं में मोटापे की व्यापकता 2.4 फीसदी से 6 फीसदी तक दोगुनी हुई है।
अध्ययन में दक्षिण एशिया के छह देशों - अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, मालदीव और नेपाल में प्रीस्कूल, किशोर और वयस्क महिलाओं की जांच की गई। सभी देशों ने अतिरिक्त शरीर के वजन और मोटापे के प्रसार में एक समान प्रवृत्ति का पालन किया है, जैसा कि येल विश्वविद्यालय, टफ्ट्स विश्वविद्यालय और यूनिसेफ के अध्ययन पर काम करने वाले शोधकर्ताओं ने पाया है।
नेपाल, भारत और बांग्लादेश में समय के साथ अधिक वजन वाली लड़कियों और महिलाओं का अनुपात बढ़ा है। ये देश अभी भी अपनी आबादी के विशाल वर्गों के बीच कुपोषण से भी जूझ रहे हैं, वहीं अन्य सेगमेंट में बढ़ते पोषण को देख रहे हैं, यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों और अशिक्षित और गरीब घरों में भी यह समस्या देखने मिल रही है, जैसा कि अध्ययन में पाया गया है।
शोधकर्ताओं ने लिखा, "विश्व स्तर पर, किशोर अधिक वजन और मोटापे में वृद्धि , कम वजन में होने वाली गिरावट से बड़ी है। यह अनुमान लगाया गया है कि यदि 2000 के बाद के रुझान असंतुलित रहे, तो बच्चे और किशोर मोटापे की व्यापकता वर्ष 2022 तक कम वजन की व्यापकता दर को पार कर जाएगी।"
हालांकि, दक्षिण एशिया में, भारत में महिलाओं में शरीर के अतिरिक्त वजन का सबसे कम प्रसार (24 फीसदी) हुआ है, मालदीव (46 फीसदी) और पाकिस्तान (41 फीसदी) का स्तर 38 फीसदी के वैश्विक अनुमान से काफी अधिक है। अध्ययन ने यह भी सुझाव दिया कि मोटे और अधिक वजन वाले लोगों का अनुपात कम शिक्षित और गरीबों के बीच तेजी से बढ़ता है, जिसके स्पष्ट नीतिगत निहितार्थ हैं।
भारत का दोहरा बोझ
इन परिवर्तनों के बावजूद, कुपोषित बच्चों, किशोरों और महिलाओं का अनुपात उच्च बना हुआ है। उदाहरण के लिए, उसी अध्ययन के अनुसार, 2016 में, पांच साल से कम उम्र के 37.4 फीसदी बच्चे स्टंड थे, 41.8 फीसदी किशोर लड़कियों और 18.8 फीसदी महिलाओं का वजन कम था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के नौ पोषण लक्ष्यों में से किसी को प्राप्त करने के लिए भारत ट्रैक पर नहीं है। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कम ऊंचाई), वेस्टिंग (ऊंचाई के हिसाब से शरीर का कम वजन), और अधिक वजन को कम करना;प्रजनन आयु की महिलाओं में एनीमिया के प्रसार को कम करना, महिलाओं और पुरुषों में मोटापा और मधुमेह को कम करना; और अनन्य स्तनपान बढ़ाना। 2025 के लक्ष्य के चूक जाने की आशंका है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने दिसंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया था।
हालांकि, इस बात के सबूत हैं कि कुपोषण और शरीर के अतिरिक्त वजन में समान देशों, समुदायों और यहां तक कि परिवारों में सह-अस्तित्व है, जैसा कि पेपर में कहा गया है।
इससे पहले, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर न्यूट्रीशन, जो भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अंतर्गत आता है, ने 2016 के एक अध्ययन में वयस्कों में मोटापे का उच्च प्रसार पाया था।शहरी भारत में 44 फीसदी महिलाएं मोटापे से ग्रस्त थीं और 11 फीसदी कम वजन की थीं।
खाद्य नीति थिंक-टैंक, इंटरनेश्नल फूल पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट में सीनियर रिसर्च फेलो, पूर्णिमा मेनन ने कहा, "वर्तमान पोषण रणनीति चुनौती को स्वीकार करती है, लेकिन इसमें एक्शन शामिल नहीं हैं।" पोषाहार परिणामों में सुधार करने के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम पोषण अभियान के पांच लक्ष्य हैं और वे केवल कुपोषण और एनीमिया से निपटते हैं और अतिपोषण का उल्लेख नहीं करते हैं।
मेनन ने कहा, “नीतिगत कार्य और लोग जो समस्याओं [अतिपोषण और कुपोषण] से निपटते हैं, वे आम तौर पर लोगों के अलग-अलग समूह रहे हैं, लेकिन दो समूहों की बढ़ती मान्यता एक साथ मजबूती से आ रही हैं।"
भारत वर्तमान में दुनिया के 49 फीसदी मधुमेह रोगियों का घर है, 2017 में अनुमानित 7.2 करोड़ मामलों के साथ, 2025 तक लगभग 13.4 करोड़ तक एक आंकड़ा होने की उम्मीद है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अप्रैल 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
2016 के फूड एंड न्यूट्रिशन बुलेटिन के अनुसार, हृदय रोग के कारण भारत में आर्थिक नुकसान 2012 से 2030 तक 2.25 ट्रिलियन डॉलर आंका गया है।
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि चूंकि सार्वजनिक नीति में सुधार के साथ-साथ बड़े पैमाने पर शिशु आहार के माध्यम से कुपोषण से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना जारी है, जैसा कि कुपोषण की व्यापकता बढ़ रही है, इसलिए इन प्रथाओं की निगरानी की जानी चाहिए। जबकि स्तनपान से मोटापे के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है।
दक्षिण एशिया में अतिरिक्त शरीर के वजन और मोटापे में रुझान | ||||||
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Afghanistan | Bangladesh | India | Maldives | Nepal | Pakistan | |
Year | 2003 | 2014 | 2016 | 2009 | 2016 | 2013 |
Preschool children overweight (%) | 5.3 | 1.5 | 2.1 | 5.8 | 1.3 | 3.3 |
Adolescent girls (15-19 years) | ||||||
Overweight (>25 kg/m2) (%) | 10.4 | 8.2 | 4.9 | 24.5 | 4.4 | 7.1 |
Obese (>30 kg/m2) (%) | 2 | 1.3 | 0.9 | 2.8 | 0.4 | 0.4 |
Adult women (20-49 years) | ||||||
Overweight (>25 kg/m2) (%) | 29.3 | 25.6 | 24 | 45.8 | 6.8 | 41.2 |
Obese (>30 kg/m2) (%) | 8.7 | 4.7 | 6 | 13.2 | 1.2 | 15.4 |
Source: Nutrients
गरीबों में मोटापे का जोखिम
इस अध्ययन से यह भी पता चलता है कि मोटे और अधिक वजन वाले लोगों का अनुपात कम शिक्षित और गरीबों के बीच तेजी से बढ़ता है। साथ ही इस बात पर भी जोर दिया गया है कि वे पहले से ही कुपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के सभी रूपों के लिए संवेदनशील हैं।
आय बढ़ने के साथ, अधिक गतिहीन कार्य और उच्च मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, खाद्य तेल, मिठास और पशु-स्रोत खाद्य पदार्थ बढ़ते हैं और रिसर्च ने इन्हें एनसीडी से जोड़ा है।
आईएफपीआरआई के मेनन ने कहा, "अल्पपोषण और अधिक वजन / मोटापा दोनों के लिए एक आम सुरक्षात्मक कारक बेहतर गुणवत्ता वाला विविध आहार। हमें ‘दोहरे कर्तव्य’ कार्यों की एक श्रृंखला खोजने की आवश्यकता है - हस्तक्षेप, कार्यक्रम और नीतियां, जो एक साथ अधिक वजन, मोटापा और आहार संबंधी एनसीडी के साथ-साथ दोनों कुपोषण के जोखिम या बोझ को कम करने की क्षमता रखते हैं।"
शोधकर्ताओं ने लिखा है,"दक्षिण एशिया में अधिक वजन और मोटापे की बढ़ती चिंताओं को दूर करने के लिए, खाद्य पर्यावरण की एक महत्वपूर्ण परीक्षा, अच्छी गुणवत्ता वाले आहार तक पहुंच, और कुपोषण के सभी रूपों के संबंध में भोजन आधारित प्रोग्रामिंग की प्रभावशीलता की तत्काल आवश्यकता है।"
अधिक वजन वाली माताओं के अधिक वजन वाले बच्चे
दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत में, अधिक वजन वाली माताओं के बच्चों को उन बच्चों की तुलना में अधिक वजन होने की संभावना होती है, जिनकी माताएं अधिक वजन की नहीं थीं। यह संबंध 1999, 2001 और 2016 के जिला स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के माध्यम से स्थिर रहा, हालांकि समय के साथ इसकी संभावना कम हो गई।
अध्ययन में कहा गया है कि जिन बच्चों ने कम से कम विविध आहारों का सेवन किया है-विविध आहारों में प्रत्येक भोजन में आठ में से कम से कम पांच भोजन शामिल हैं - उनके अधिक वजन होने की संभावना अधिक थी।
अध्ययन में कहा गया है कि अन्य देशों के समकक्षों की तुलना में भारत में किशोरावस्था की लड़कियां जो शहरी क्षेत्रों में रहती थीं, उनका वजन अधिक होने की संभावना थी।
शोधकर्ताओं ने पाया कि, 1999 की तुलना में 2016 में अधिक भारतीय महिलाओं का वजन अधिक था, खासकर जो शहरी क्षेत्रों में रहती थी, शिक्षित थी और अमीर घरों से थी।
मोटापे को लेकर शिक्षा प्रणाली संवेदनशील नहीं
दक्षिण एशिया में, अमीर और अधिक शिक्षित महिलाओं में अधिक वजन और मोटे होने की संभावना उतनी ही अधिक है,पश्चिम के विपरीत जहां निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों में मोटे होने की संभावना अधिक है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि औपचारिक शिक्षा अधिक वजन को बढ़ावा नहीं देती है, लेकिन यह इष्टतम स्वास्थ्य और पोषण प्रथाओं के बारे में ज्ञान में सुधार करने के लिए कुछ भी नहीं करती है। पेपर के अनुसार, “दक्षिण एशिया की शिक्षा प्रणालियां एक प्रभावी रूप से महत्वपूर्ण पोषण और स्वास्थ्य संकट के सामने आने वाले निष्क्रिय भूमिका में दिखती हैं;उन्हें बेहतर आहार विकल्पों, शारीरिक गतिविधियों और स्वस्थ व्यवहारों के बारे में बताने, शिक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए अधिक समर्थ बनाने की जरूरत है।”
(यदवार विशेष संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 28 अगस्त 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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