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पांच साल से कम आयु के बच्चों में से10 फीसदी मौतें डायरिया के कारण होती है। एक नए अध्ययन के अनुसार पिछले तीन वर्षों में डायरिया और निमोनिया से निपटने के संबंध में भारत की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन कुछ मामलों में देश की स्थिति अपने पड़ोसियों से बदतर है।

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय ने दुनिया के 15 देशों के बीच स्वास्थ्य संबंधी एक अध्ययन किया। उस अध्ययन के अनुसार, भारत में पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के कम से कम 296,279 बच्चों की मौतें डायरिया और निमोनिया से हुई हैं। यह आंकड़े विश्व में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों का 5 फीसदी है। इस अध्ययन से हमें पता चलता है कि अपने देश में बच्चों के स्वास्थ्य की क्या स्थिति है और इसे बेहतर बनाने की कितनी जरुरत है?

इस अध्ययन में एक बात साफ है। बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में भारत प्रगति की ओर है।वर्ष 2013 में जहां भारत का स्कोर 33 अंक था वहीं वर्ष 2016 में यह 41 हुआ है। इस सुधार की एक बड़ी वजह है बच्चों के बीच समुचित ढंग से टीकाकरण और स्तनपान की प्रथा में बदलाव है। लेकिन कुछ मामलों में, जैसे कि बच्चों के एंटीबायोटिक दवाओं लेने का अनुपात, मौखिक पुनर्जलीकरण समाधान (ओआरएस) और जिंक के प्रावधान, में भारत का प्रदर्शन पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पीछे है।

रिपोर्ट के मुताबिक हर साल लगभग 59 लाख बच्चों की मौत उनके पांचवें जन्मदिन से पहले हो जाती है। ‘प्रॉग्रेस रिपोर्ट ऑन निमोनिया और डायरिया’ के अनुसार नौ फीसदी बच्चों की मौत दस्त के कारण होती है और 16 फीसदी मौत का कारण निमोनिया है।

वर्ष 2013-14 के दौरान 65 फीसदी तक बच्चे प्रतिरक्षित किए गए थे। यह आंकड़े 1992-93 की तुलना में 35.5 फीसदी अधिक हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने जुलाई 2015 में विस्तार से बताया है।

सर्वव्यापी टीकाकरण कार्यक्रम में सुधार

Source: Ministry of Health and Family Welfare

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बच्चों में स्तनपान की दर 2013-14 में बढ़ कर 65 फीसदी हुई है। गौर हो कि यह आंकड़े 2005-06 में मात्र 46 फीसदी थे।

भारत में ऐसे बच्चों का प्रतिशत उच्च है, जो विशेष रूप से पहले के छह महीनों में स्तनपान करते हैं। इस संबंध में भारत के लिए आंकड़े 65 फीसदी हैं। 59 फीसदी के साथ तंजानिया दूसरे और 55 फीसदी के आंकड़ों के साथ बांग्लादेश तीसरे स्थान पर है। यह जानकारी ‘जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय’ की ओर से किए गए एक शोध में सामने आई है।

निमोनिया का इलाज: भारत में हो रहा है सुधार

Source: Progress Report on Pneumonia and Diarrhoea, 2013, 2015, 2016 figures in percentage

निमोनिया के लिए स्वास्थ्य प्रदाता से देखभाल प्राप्त करने वाले बच्चों में वृद्धि हुई है। वर्ष 2013 में यह आंकड़े जहां 69 फीसदी थे वहीं वर्ष 2016 में यह बढ़ कर 77 फीसदी हुआ है। इसी तरह,इसी अवधि के दौरान दस्त के लिए ओआरएस प्राप्त करने वाले बच्चों क संख्या 26 फीसदी से बढ़ कर 34 फीसदी हुई है।

इस अध्ययन के लिए भारत से जो आंकड़े लिए गए, वे वर्ष 2007-2008के बीच के थे। बच्चों पर रैपिड सर्वे और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -3 के आंकड़ों से बच्चों के बीच ओआरएस के प्रसार के अनुपात में वृद्धि होने का संकेत मिला। वर्ष 2005-06 में यह आंकड़ा 26.2 फीसदी था, जो 2013-14 में बढ़ कर 54 फीसदी तक पहुंचा।

अफगानिस्तान और सूडान जैसे अस्थिर देशों में 64 फीसदी और 59 फीसदी बच्चों ने निमोनिया के लिए एंटीबायोटिक दवाएं प्राप्त की हैं। अध्ययन के अनुसार, भारत में 12.13 करोड़ बच्चों (5 वर्ष की आयु से कम) या कुल बच्चों में से 29 फीसदी को एंटीबायोटिक दवाएं प्राप्त हुई हैं। इस संबंध में भारत का प्रदर्शन अपने पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी नीचे है। निमोनिया के लिए एंटीबायोटिक दवाएं प्राप्त करने वालों बच्चों के संबंध में पाकिस्तान में आंकड़े 41.5 फीसदी हैं और बंगलादेश में 34.2 फीसदी बच्चों को ये दवाएं मिली हैं।

(सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 18 नवम्बर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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