असुरक्षित अंतराल पर बच्चों को जन्म देने के मामले युवा और शिक्षित महिलाओं में ज्यादा
नई दिल्ली: पिछले एक दशक से 2015-16 के दौरान, 15 से 29 वर्ष की आयु की भारतीय महिलाओं और स्कूल में अधिक वर्ष तक जाने वाली महिलाओं ने ‘कम और असुरक्षित अंतराल’ पर बच्चों को ज्यादा जन्म दिया है। यह जानकारी स्वास्थ्य आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक, 24 महीनों से कम का जन्म अंतराल ( दो लगातार जीवित जन्मों के बीच का समय ) का परिणाम जन्म के समय बच्चे का कम वजन और मृत्यु के रुप में भी हो सकता है।
ग्लोबल रिसर्च (यहां और यहां) के अनुसार नवजात और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए आदर्श जन्म अंतराल तीन से पांच साल का है। दस वर्षों में, भारत में, 15-29 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में जन्म के बीच का अंतर 25 महीने से कम होकर 22.5 महीने हुआ है, जैसा कि हमने पाया है।
वर्ष 2005-06 और 2015-16 के आंकड़ों पर हमारे किए गए विश्लेषण के अनुसार, 15 से 19 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं के बीच 2015-16 में दो जीवित जन्मों के बीच औसत अंतराल 2.5 महीने से गिर कर 22.5 महीने तक पहुंचा है। 2005-06 में दो जीवित जन्मों के बीच औसत अंतराल 25 महीना था।
नाम न बताने की शर्त पर नई दिल्ली स्थित एक जनसांख्यिकी विशेषज्ञ ने कहा, “असंगत एनएफएचएस डेटा को देखे बिना टिप्पणी करना मुश्किल है, जो 2015-16 तक जारी नहीं किया गया है। हमें यह देखना होगा कि 15-19 आयु वर्ग के महिलाओं में पैदा हुए बच्चों में कितने जीवित या मरे हुए थे और फिर उलझे हुए कारणों की जांच करना होगा। भारत की उच्च नवजात मृत्यु दर के साथ, यह संभव है कि युवा महिलाओं में औसत दर्जे का अंतराल उन लोगों में बढ़ गया है जिनके बच्चों की जन्म लेने के फौरन बाद मृत्यु हुई हो।”
भारत में पुरुषों के लिए विवाह के लिए कानूनी आयु 18 और महिलाओं के लिए 21 है। कम उम्र में विवाह के मामले, विशेष रुप से लड़कियों के, शहरी क्षेत्रों में बढ़े हैं ( 2011 में शहरी इलाकों में 10 से 17 साल की उम्र के बीच पांच लड़कियों में से एक शादीशुदा थी ) और हलांकि इसके पीछे तत्काल कारण स्पष्ट नहीं थे, पितृसत्ता और परंपरा की लगातार पकड़ बनी हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड 9 जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। आंध्र प्रदेश और तेलंगना में बाल गरीबी पर चल रहे वैश्विक अध्ययन के मुताबिक, 22 साल की उम्र में, 56 फीसदी महिलाएं शादीशुदा थी। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 17 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
कुल मिलाकर, 15 से 49 वर्ष की आयु के महिलाओं के लिए लगातार जीवित जन्मों के बीच औसत अंतर 27-28 दिन बढ़ गया।
उच्च शिक्षा स्तर वाली महिलाएं ही केवल एकमात्र समूह थी, जिनके बीच 2005-06 में जन्म अंतराल 36.5 महीने था, जो 24-25 दिन कम हो कर 2015-16 में 36 महीना हुआ है।
वर्ष 2015-16 के दशक में, 31 महीनों से अधिक, 15 दिनों से 31 महीने से कम होने वाली औसत अंतराल के साथ सबसे गरीब 20 फीसदी घरों में महिलाओं ने कम अंतराल पर बच्चों को जन्म दिया है।
पिछले जन्म के बाद से अंतर
Source: National Family Health Surveys 2005-06, 2015-16
छोटा परिवार भी कम से कम एक बेटा चाहता है !
वर्ष 2015-16 तक एक दशक के दौरान, शहरी इलाकों में भारतीयों का एक उच्च हिस्सा और उच्च शिक्षा के साथ लोगों ने कम से कम एक बेटे की चाहत की सूचना दी है।
जबकि पांच साल तक स्कूली शिक्षा प्राप्त वे महिलाएं, जिन्होंने कहा कि वे बेटियों से ज्यादा बेटों को पसंद करती हैं, उनके हिस्से में 2 प्रतिशत अंक की गिरावट हुई है जबकि आठ वर्ष या अधिक वर्ष स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली ऐसी महिलाओं के हिस्से में 1-3 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई है।
जबकि पुरुषों में, पांच साल तक स्कूली शिक्षा प्राप्त यह कहने वालों का कि वे बेटियों से ज्यादा बेटों को पसंद करते हैं, उनमें 4 प्रतिशत अंक की गिरावट हुई है जबकि आठ वर्ष या अधिक वर्ष स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली ऐसे पुरुषों के हिस्से में 3 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है।
शहरी इलाकों में, पुरुषों और महिलाओं के एक उच्च हिस्से ने कहा कि वे बेटियों से ज्यादा बेटों को पसंद करते हैं। हालांकि, बेटों को वरियता देने वाले शहरी पुरुषों की संख्या में 3 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। यह आंकड़े 2005-06 में 13.6 फीसदी से बढ़ कर 2015-16 में 16.4 फीसदी हुए हैं। वहीं इसी अवधि के दौरान, शहरी महिलाओं में बेटों चाहत रखने वालों में 0.2 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई यानी यह आंकड़े 14 फीसदी से 14.2 फीसदी हुआ है।
महिलाओं में बच्चे की वरियता
Source: National Family Health Surveys 2005-06, 2015-16
पुरुषों में बच्चे की वरियता
Source: National Family Health Surveys 2005-06, 2015-16
एक वैचारिक संस्था ‘इंडिया ब्रांच ऑफ द पॉपुलेशन काउंसिल में सहयोगी, राजिब आचार्य कहते हैं, "मूलतः, आप दूसरे और प्रथम जन्म या तीसरे और दूसरे जन्म के बीच अंतराल के बारे में बात कर रहे हैं। शादी में बढ़ती उम्र के साथ, 15-19 वर्ष की आयु के लड़कियों के समूह में 2006 की तुलना में वर्ष 2016 में अधिक वंचित लड़कियों की संख्या शामिल है। तो, यह असामान्य नहीं है, यदि आप वर्षों में जन्म के अंतराल में गिरावट देखते हैं। "
आचार्य ने कहा, "अधिक शिक्षित महिलाओं के बीच में बेटियों की तुलना में अधिक बेटों की इच्छा रखने वालों के बारे में जान कर मुझे आश्चर्य नहीं हो रहा है।” उन्होंने समझाया कि, इस समूह में प्रजनन क्षमता में काफी कमी आई है, और अब प्रतिस्थापन के स्तर से कम है ( प्रति महिला 2.2 बच्चे )
आचार्य ने तर्क दिया, बेटों के लिए सामान्य प्राधान्य ( भारतीय अभी भी मानते हैं कि एक बेटा एक बेटी से बेहतर है ) अभी तक वैसी ही है। परिवार के आकार गिर रहे हैं, लेकिन यह अधिक संभावना है कि परिवार कम से कम एक बेटा चाहता है। वह कहते हैं, "इसलिए आप शहरी इलाकों में रहने वाले या जो निश्चित स्तर से अधिक शिक्षित हैं, उनके बीच बेटे की वरीयता में मामूली वृद्धि देखते है।"
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार, 2015-16 में, 1.05 के आदर्श के साथ तुलना में पहले जन्म के लिए भारत का लिंग अनुपात प्रत्येक लड़की के लिए 1.82 लड़कों का था और चौथे जन्म के लिए 1.51 था।
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Sex Ratio At Last Child | ||
---|---|---|
Child No | Sex Ratio At Last Child | Ideal Sex Ratio At Last Child |
1 | 1.82 | 1.05 |
2 | 1.55 | |
3 | 1.65 | |
4 | 1.51 | |
5 | 1.45 |
Source: Economic Survey 2017-18
(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 मार्च, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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