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महाराष्ट्र स्टेडियम में होने वाले इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) - भारत का पेशेवर क्रिकेट टूर्नामेंट – के मैच पर प्रतिबंध लगाने से बचाए जाने वाले पानी की तुलना में एक दिन बिना चीनी की चाय पीने से 150 फीसदी अधिक पानी बचाया जा सकता है। यह आंकड़े हमारे विश्लेषण में सामने आए हैं।

बंबई उच्च न्यायालय ने बड़े पैमाने पर पड़ने वाले सूखे के कारण, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को आईपीएल के मैचों का महाराष्ट्र में आयोजन करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया है (सूखे पर इंडियास्पेंड की रिपोर्ट यहां, यहां और यहां पढ़ें) लेकिन शुक्रवार को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेले जाने वाले पहले मैच के लिए मना कर दिया था।

एक याचिकाकर्ता के अनुसार, (एक संस्था जिसे लोकसत्ता मूवमेंट कहा जाता है) महाराष्ट्र के तीन स्टेडियम - मुंबई, पुणे और नागपुर – में होने वाले 20 मैचों के लिए 6 मिलियन लीटर (या 60 लाख लीटर) पानी का इस्तेमाल किया जाएगा।

हालांकि यह पानी की बहुत बड़ी मात्रा लगती है, लेकिन क्रिकेट के मैदान में पानी देने के अलावा पानी के बचत करने के और भी प्रभावी तरीके हो सकते हैं, यदि हम एम्बेडेड पानी की अवधारणा का उपयोग करें - उत्पाद के उत्पादन में इस्तेमाल पानी।

इंडिया इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोर्ट 2011 के अनुसार, भारत में होने वाली पानी के खपत में से 85 फीसदी पानी कृषि में इस्तेमाल होता है।

हम पीने के लिए, नहाने , खाना पकाने और यहां तक कि कार धोने के लिए पानी की का उपयोग करते हैं लेकिन भोजन के माध्यम से हम बहुत अधिक पानी की खपत करते हैं। इसका कारण यह है पानी की बड़ी मात्रा भोजन को उगाने और बाद की प्रक्रिया में इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए, नेशनल ज्योग्राफिक द्वारा इस अनुमान के अनुसार, आधे किलो चिकन के उत्पादन के लिए 1,500 लीटर से अधिक पानी का उपयोग होता है और करीब 1,000 लीटर पानी शराब की बोतल के उत्पादन में इस्तेमाल होता है।

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कुछ आम उत्पादों में एम्बेडेड पानी

सुनील जैन फाइनेंशियल एक्सप्रेस के इस कॉलम में लिखते हैं, "(असली अपराधी) राज्य की नीति है जो अधिक पानी के खपत वाले गन्ने की खेती को प्रोत्साहित करती है”।

नेशनल ज्योग्राफिक भी हमें यह भी बताता है कि एक किलो चीनी के उत्पादन में 1,500 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। अब, यदि हम यह मान लें कि करीब 20 फीसदी मुंबई की आबादी या 2.5 मिलियन लोग (25 लाख) रोज़ना एक चम्मच चीनी के साथ, एक कप चाय पीते हैं तो कुल मिला कर 10,000 किलो चीनी का इस्तेमाल किया जाता है।

यानि कि इतनी चीनी के उत्पादन में 15 मिलियन लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। पानी की यह मात्रा महाराष्ट्र में तीन आईपीएल स्थानों में इस्तेमाल होने वाले पानी से 2.5 गुना अधिक है।

इस गणना के बेशक कई अनुमान है। एक तो यह कि, विभिन्न खाद्य पदार्थों में पानी की कितनी मात्रा अंतर्निहित है, व्यापक रूप से भिन्न हैं। दूसरा यह कि हमारे पास जानने का कोई तरीका नहीं कि शहर में रोज़ाना कितने कप चाय (या कॉफी या कोल्ड कॉफी या दूध या वातित पेय) की खपत होती है। हालांकि, गणना एक संकेत है कि जब जल संरक्षण जैसे मुद्दों की बात आती है तो अटकलें पर्याप्त नहीं होती है।

एक तर्क यह हो सकता है कि पूरे एक दिन चीनी का इस्तेमाल नहीं करने से चीनी की मांग में अतिसूक्ष्म रुप से कमी हो जाएगी और शायद अगले वर्ष भी चीनी का उत्पादन कम नहीं होगा। ज़ाहिर है, इसका आज की तारीख में ही मराठवाड़ा में पानी की स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा । लेकिन फिर, वानखेड़े स्टेडियम में कम पानी का उपयोग नहीं होगा। वानखेड़े में इस्तेमाल न होने वाला पानी, 400 किलोमीटर से अधिक, महाराष्ट्र में संकटग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र में लातूर तक नहीं लाया जा सकता है।

उच्च न्यायालय शायद यह जानता है, लेकिन शायद उसका इरादा लोगों का उस ओर ध्यान केंद्रित करना है कि उनके साथियों के साथ क्या हो रहा है। चीनी की खपत पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर है क्योंकि क्रिकेट के विपरीत, गन्ने की खेती करना महाराष्ट्र और भारत के बड़े हिस्से में पानी की समस्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

गन्ने की खेती में पानी की अधिक मात्रा उपयोग की जाती है। करंट साईंस के इस अध्ययन में विस्तार से बताया गया है।

राषट्रीय स्तर पर सिंचाई के लिए उपलब्ध 650 अरब घन मीटर (बीसीएम) में से 15 फीसदी या 100 बीसीएम पानी, गन्ने द्वारा इस्तेमाल किया जाता है (फसल जलाशयों से पानी के साथ ही भूजल का उपयोग करता है), जो कि भारत के 2.5 फीसदी खेतों पर ही लगाए गए हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी विस्तार से बताया है।

मराठवाड़ा क्षेत्र में चीनी मिलों की संख्या, 2009-10 में 40 से बढ़ कर 2014-15 में 52 हुई है।

मराठवाड़ा में परिचालित चीनी के कारखाने

कृषि और अन्य क्षेत्रों में पानी के लिए समान रुप से प्रतिस्पर्धा है, और अति प्रयोग, जैसे कि गन्ने की खेती, भारतीयों को कई अन्य तरीके से प्रभावित करती है जैसे कि पीने के पानी, बिजली उत्पादन इत्यादि में कमी। कई विशेषज्ञों ने बताया है कि किसानों को वैकल्पिक फसलें पैदा करने के लिए सक्षम करना इसका एक समाधान हो सकता है।

अतिरिक्त रिसर्च: अभिषेक वाघमारे

(उपाध्याय AskHow भारत, के संस्थापक हैं। AskHow India भारत में सार्वजनिक बहस की गुणवत्ता में वृद्धि करने के लिए प्रतिबद्ध है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 8 अप्रैल 16 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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