नई दिल्ली: हाल ही में, संसद ने एसईजेड विधेयक को मंजूरी दे दी है। अब उद्योगों को विशेष आर्थिक जोन में इकाइयों की स्थापना करने की अनुमति होगी। इसके तहत इकाई स्थापित करने वाले "व्यक्ति" की परिभाषा का विस्तार किया गया है। यह नई परिभाषा भारत में एक्सपोर्ट इकाइयों की संख्या बढ़ाने में मदद कर सकता है और इन क्षेत्रों में ज़मीन की पूरी क्षमता का उपयोग करने में भी मदद मिलेगी। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह देश के नेट एक्सपोर्ट बढ़ाने के एसईजेड के मूल उद्देश्य को आगे नहीं बढ़ा सकता है।

इन क्षेत्रों में इकाइयां स्थापित कर करने वाले “व्यक्तियों” की परिभाषा को व्यापक बनाने के लिए, केंद्र ने अगस्त 2019 में विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम (एसईजेड अधिनियम) में संशोधन किये हैं। संशोधन के बाद, "ट्रस्ट" या "केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई भी इकाई" एसईजेड में अपनी यूनिट लगा सकते हैं।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि, यह बिल एसईजेड के अंदर इकाइयों पर लगाए गए टैक्सों की समीक्षा नहीं करता है। न राज्य और सेक्टर-विशिष्ट आवश्यकताओं, एक्सपोर्ट पर बढ़ती निर्भरता या कनेक्टिविटी और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के अनुसार नीति बेहतर बनाई गई है।

एसईजेड वो क्लस्टर हैं जिन्हें उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया है। जो एक्सपोर्ट को बढ़ाने में मदद कर सकता है। सरकार ने अब तक 351 एसीजेड को अधिसूचित किया है, जिसमें से देशभर में 232 चल रहे हैं। हालांकि, देश भर में करीब 150 एसईजेड संचालन में नहीं हैं। इन 150 एसईजेड के लिए अधिसूचित भूमि का आधा हिस्सा अब भी खाली है।

शुरुआत के बाद से ही, इन एसईजेड की स्थापना ने भूमि संघर्ष को हवा दी है। लैंड कंफ्लिक्ट वॉच (एलसीडब्लू ने अब तक ऐसे करीब 11

विवाद दर्ज किए हैं। लैंड कंफ्लिक्ट वॉच शोधकर्ताओं और पत्रकारों का एक स्वतंत्र नेटवर्क है जो देश भर में चल रहे भूमि संघर्षों पर नजर रखता है।

17 वीं लोकसभा के

अंतिम सत्र के दौरान पारित होने वाले 35 बिलों की जांच करने वाली हमारी श्रृंखला की यह चौथी रिपोर्ट है। इस सत्र के दौरान औसतन हर आठ घंटे में एक बिल पास करने के लिए 37 दिन में 281 घंटे काम हुआ और विस्तृत जांच के लिए किसी को भी समिति को नहीं भेजा गया है। एसईजेड बिल 5 अगस्त, 2019 को पारित किया गया था, जब संसद के निचले सदन ने जम्मू-कश्मीर के विशेष संवैधानिक प्रावधान को रद्द कर दिया था।

आलोचकों का कहना है कि कई अनुमोदित बिलों में कमजोरियां थी, जो आगे बहस और समिति मूल्यांकन के दौरान रोके जा सकते थे।

एसईजेड में ज्यादा उद्योगों की संभावना

कंफेड्रेशन ऑफ इंडिया इंडस्ट्री यानी सीआईआई की प्रमुख सलाहकार, शर्मिला कांता ने इंडियास्पेंड को बताया कि,संशोधन के बाद, इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट और रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (आरईआईटी) को एसईजेड में काम करने की अनुमति होगी। एसईजेड के निर्माण और विकास से आरईआईटी को बहुत फायदा हो सकता है जिसने महत्वपूर्ण निवेशकों का ध्यान आकर्षित किया है।

कांता ने आगे बताया कि सरकार एसईजेड की एक श्रृंखला के साथ बड़े तटीय आर्थिक क्षेत्र (सीईजेड) बनाने की योजना बना रही है और इस प्रक्रिया में रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास शामिल होगा, जहां ये संस्थाएं [आरईआईटी] भाग ले सकती हैं।

सीईजेड वे आर्थिक क्षेत्र हैं, जिसमें कई एसईजेड शामिल हो सकते हैं और जिन्हें सरकार देश के समुद्र तट के साथ पोर्ट कनेक्टिविटी का उपयोग करने के लिए विकसित कर रही है। यह केंद्र के महत्वाकांक्षी सागरमाला प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य बंदरगाह आधारित औद्योगिकीकरण है। सभी तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में,बंदरगाह बनाए जाएंगे, जो कार्गो आवाजाही में लगने वाले समय और लागत को कम करेगा और एक्सपोर्ट को बढ़ावा देगा।

ट्रस्ट के रुप में चलने वाले व्यापार और बंदरगाह को अब एसईजेड में निवेश करने की अनुमति होगी। कांता कहती हैं कि, संशोधन से नए निवेश के दरवाजे खुलेंगें और एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

विधेयक लाने से पहले, सरकार ने एसईजेड के अंदर ट्रस्ट को अनुमति देने के लिए एक अध्यादेश पारित किया था। लोकसभा में अन्य पार्टियों ने इस कदम की आलोचना की थी। द हिंदू की 26 जून, 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, डीएमके के नेता, डीएनवी सेंथिलकुमार ने लोकसभा में कहा था कि पिछले अधिनियम के तहत अल्पसंख्यकों के स्वामित्व वाले ट्रस्टों के बड़े हिस्से को बंद कर दिया गया है। संदेह है कि सरकार के पास कुछ चुनिंदा करीबी लोगों के पक्ष में एक गुप्त एजेंडा है।

बेंगलुरु स्थित इन्टर्डिसप्लनेरी रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज (आईएसईसी) में असिसटेंट प्रोफेसर, मालिनी लक्ष्मीनारायण तांत्री के मुताबिक एसईजेड में बढ़ी हुई इकाइयों की संख्या से उनके उपयोग में सुधार होगा - कई एसईजेड 400-500 एकड़ से अधिक (378 फुटबॉल क्षेत्रों के बराबर) क्षेत्र में फैले हुए हैं, लेकिन कुछ ही एक्सपोर्ट इकाइयां हैं, जो आवंटित ज़मीन का बेहद कम इस्तेमाल कर पा रही हैं।

वाणिज्य मंत्रालय की एक्सपोर्ट्स प्रमोशन काउंसिल ऑफ ईओयू (एक्सपोर्टेड आधारित यूनिट्स) एंड एसईजेड के डिप्टी डायरेक्टर आनंद गिरी ने इंडियास्पेंड से कहा, "सनसेट क्लॉज को हटाना अधिक जरूरी है [ट्रस्टों को एसईजेड के अंदर अपने कारोबार को स्थापित करने की अनुमति देने की तुलना में] क्योंकि ये निवेशकों के मन में संदेह पैदा कर रहा है।"

इस क्लॉज के अनुसार, केवल 2020 से पहले संचालित एसईजेड, पॉलिसी के वित्तीय ले सकते हैं।

अभी भी कई अधिसूचित एसईजेड हैं जो अभी शुरु नहीं किए गए हैं, जिन्हें लगता है कि अगर सनसेट क्लॉज समाप्त नहीं किया गया तो उन्हें संचालन शुरु करने से कोई फ़ायदा नहीं मिलेगा। गिरि ने कहा कि कम से कम 351 अधिसूचित एसईजेड के लिए इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। एसईजेड में निवेश में गिरावट का मतलब नौकरियों और एक्सपोर्ट की ग्रोथ में कमी ।

2001 की तुलना में 2018-19 में एसईजेड एक्सपोर्ट 70 गुना हो गया , लेकिन विकास की कहानी में अंतर

भारत में एसईजेड की शुरुआत साल 2000 में की गई थी। इससे पहले, भारत में कई निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (ईपीजेड) थे, जिसका उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना था लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर और आकर्षक आर्थिक पैकेज की कमी थी। इससे जुड़े नियम भी जटिल थे।

इन कमियों को दूर करने के लिए, भारत ने अप्रैल 2000 में एक एसईजेड नीति की घोषणा की, और 2005 में एसईजेड अधिनियम बनाया। अधिनियम ने पहले पांच वर्षों के लिए आयकर से छूट दी,और अगले पांच के लिए इस तरह के मुनाफे के 50% पर आयकर लागू किया।

वर्तमान में, कर छूट के अलावा, एसईजेड में स्थापित उद्योगों को ड्यूटी फ्री आयात और माल की खरीद, जीएसटी से छूट और राज्य सरकारों के शुल्क सहित कईं आर्थिक लाभ मिलते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2018-19 में, भारत ने 7.01 लाख करोड़ रुपये (98 बिलियन डॉलर) का एक्सपोर्ट किया, जो 2013-14 में 4.94 लाख करोड़ रुपये (69 बिलियन डॉलर) से लगभग 30% ज्यादा था।

विशेषज्ञों ने इंडियास्पेंड के साथ बातचीत में बताया कि हालांकि, ये आंकड़े वर्तमान एसईजेड नीति की सफलता को साबित नहीं करते हैं।

आईएसईसी की तंत्री ने कहा कि, अगर आंकड़ों को देखें तो एसईजेड का एक्सपोर्ट 2001 में 10,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 2018-19 में 7,01,179 करोड़ रुपये (2001 का 70 गुना) हो गया है और भारत के कुल एक्सपोर्ट में एसईजेड की हिस्सेदारी 2001 में 5% से बढ़कर 2018-19 में 30% हो गई है। हालांकि, वह पूछती हैं कि, "भारत के एक्सपोर्ट में समान दर से वृद्धि क्यों नहीं हुई है?"

तंत्री आगे कहती हैं, ”क्या यह गैर-एसईजेड घरेलू व्यापार क्षेत्रों से एसईजेड तक निवेश और निर्यात के पुनर्निर्माण का संकेत नहीं देता है?” तंत्री ने यह भी कहा कि, एसईजेड की वास्तविक सफलता का पता लगाने के लिए, उनकी आयात की अधिकता का आंकलन करना होगा, लेकिन भारत सरकार ने 2010 के बाद इन विवरणों को प्रकाशित करना बंद कर दिया है।

निर्यात की आयात अधिकता, आयात की गई वस्तु में बदलाव की वो डिग्री है जो बाद में निर्यात की जाती है। यह आयातित कच्चे माल पर निर्यात की निर्भरता को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ में, रत्न और आभूषण उच्च आयात वाले निर्यात उत्पाद का एक उदाहरण है।

इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (ईपीडब्लू) जर्नल में, तंत्री ने 2010 में किए गए अध्ययन का उल्लेख करते हुए लिखा था क, पहले के ईपीजेड की तुलना में 2000 के बाद बढ़ते रुझान के साथ, 2007-08 में, एसईजेड में आयात की अधिकता 75% थी।

सीआईआई की कांता के अनुसार, कुछ अन्य देशों की तुलना में जहां इस तरह के क्षेत्रों से निर्यात को बढ़ावा मिला है, उसकी तुलना में भारतीय एसईजेड का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा है।

उन्होंने कहा कि हाल ही के वर्षों में एसईजेड से एक्सपोर्ट, कुल एक्सपोर्ट की तुलना में बहुत तेजी से बढ़ा है और यह दर्शाता है कि वे एक्सपोर्टर्स के बीच ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं।

एसईजेड नीति को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है

कांता के मुताबिक, कुछ अतिरिक्त फ़ेज़ में एक्सपोर्ट के विस्तार के लिए एसईजेड ज्यादा प्रभावशाली साधन बन सकता है। जैसा कि सागरमाला बंदरगाह आधारित विकास रणनीति के तहत बताया गया है सीईजेड में नए एसईजेड की स्थापना करना। घरेलू सप्लाई चेन के लिए सीईजेड के पास आंतरिक इलाकों से मजबूत कनेक्टिविटी है। घरेलू टैरिफ क्षेत्र के साथ कनेक्टिविटी को भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

बुक-प्रॉफिट पर 18% न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स लगाने के लिए केंद्र के 2011 के फैसले का जिक्र करते हुए कांता ने कहा कि ने कहा कि एसईजेड में संस्थाओं पर लगाए गए न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) को कम किया जा सकता है। सितंबर 2019 में, सरकार ने न्यूनतम वैकल्पिक कर को 15% तक घटा दिया है।

कांता कहती हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों से श्रमिकों को आकर्षित करने के लिए एसईजेड नीति में कम लागत वाले श्रमिक आवास और सुविधाएं शामिल होनी चाहिए।

दूसरी तरफ तंत्री का मानना था कि, एसईजेड के अंदर चालू या स्थापित होने वाली कंपनियों के लिए आर्थिक प्रोत्साहन पर नज़र रखी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि, “जरुरत से ज्यादा प्रोत्साहन पर जोर देने से अर्थव्यवस्था में नए निवेश को प्रोत्साहित करने के बजाय, निवेशक केवल अपने प्रोडक्शन बेस को स्थानांतरित करने के लिए उत्सुक हो सकते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, वास्तव में एसईजेड का अर्थव्यवस्था के लिए कोई अतिरिक्त योगदान नहीं रह जाता है।”

एसईजेड पॉलिसी को सेक्टर- या राज्य-आधारित प्राथमिकताओं के अनुसार बेहतर तरीके से बनाया जाना चाहिए। तंत्री ने कहा कि, एसईजेड के भीतर ही कारोबार करने क आसान बनाने पर जोर दिया जाना चाहिए।

(त्रिपाठी इंडियास्पेंड रिपोर्टिंग फेलो हैं।)

यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 17 अक्टूबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।