उत्तर प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं की पहुंच से दूर है एक रुपए वाला सेनेट्री नैपकिन
लखनऊ: 25 फ़रवरी 2019 वो ऐतिहासिक दिन था जब सेनेट्री नैपकिन्स पर बनी डॉक्यूमेंट्री, पीरियड: एंड ऑफ़ सेंटेंस ने लघु फ़िल्मों की श्रेणी में दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित ऑस्कर अवार्ड जीता। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों की महिलाओं पर बनी इस डॉक्यूमेंट्री ने सेनेट्री नैपकिन की समस्या को चर्चा के केंद्र में ला दिया। मीडिया में इस बारे में बातें होने लगीं। जिन इलाक़ों में माहवारी पर चर्चा तो दूर इसका नाम तक लेने से लोग कतराते थे, वहां महिलाओं में सेनेट्री नैपकिन के इस्तेमाल को लेकर जागरुकता बढ़ी। लेकिन एक समस्या फिर भी बनी हुई थी और वो थी इसकी क़ीमत। बाज़ार में मिलने वाले एक सेनेट्री नैपकिन की कीमत चार से आठ रुपए तक थी। हर महीने होने वाले इस ख़र्च को उठाना ग़रीब परिवारों की महिलाओं के लिए संभव नहीं था।
केंद्र सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए 27 अगस्त 2019 को जन औषधि केंद्रों पर मिलने वाले ‘सुविधा’ नाम के 4 सेनेट्री नैपकिन के पैकेट की कीमत 10 रुपए से घटाकर चार रुपए कर दी। यानी एक नैपकिन की कीमत एक रुपया।
केंद्र सरकार के इस कदम की हर तरफ़ सराहना की गई लेकिन इन नैपकिन्स की उपलब्धता की समस्या एक साल बाद भी बनी हुई है। ये नैपकिन्स वैकल्पिक और सस्ती दवाओं की सरकारी दुकानों जन औषधि केंद्रों पर ही मिलता है। इन केंद्रों की पहुंच ग्रामीण इलाक़ों में अभी कम है। मसलन, लगभग 20 करोड़ जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश में 963 जन औषधि केंद्र हैं जो अधिकतर शहरी इलाक़ों में हैं। यही वजह है कि गांव की महिलाओं को इस सुविधा नैपकिन्स के बारे में जानकारी तक नहीं है।
"एक रुपए का पैड कहां मिलता है? अगर एक रुपए का पैड मिलने लगे तो लूट मच जाए," 37 साल की सरोजनी रावत यह कहते हुए हंस पड़ती हैं। सरोजनी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जुग्गौर गांव की रहने वाली हैं। केंद्र सरकार की योजना के तहत एक साल से एक रुपए के सैनिटरी नैपकिन बिक रहे हैं, लेकिन सरोजनी ने आज तक इनके बारे में नहीं सुना।
एक रुपए वाला पैड
'सुविधा' नाम का यह बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन जन औषधि केंद्रों में 4 जून 2018 से मिलना शुरू हुआ था। चार पैड के पैकेट की कीमत पहले 10 रुपए थी। 27 अगस्त 2019 को इसकी कीमत घटाकर चार रुपए कर दी गई, यानी एक रुपए का एक पैड।
प्रेस इनफ़ॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की ओर से 17 जून 2020 को जारी प्रेस रिलीज में बताया गया कि देश में जन औषधि केंद्रों से 27 अगस्त 2019 से 10 जून 2020 तक 3.43 करोड़ पैड बेचे गए। यूपी में कितने पैड बिके इसकी जानकारी के लिए इंडियास्पेंड ने ब्यूरो ऑफ़ फ़ार्मा पीएसयू ऑफ़ इंडिया (बीपीपीआई) से संपर्क किया। बीपीपीआई प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के कार्यों को लागू कराने वाली एजेंसी है। यूपी में 27 अगस्त 2019 से 31 अगस्त 2020 तक 66 लाख पैड बेचे गए हैं, बीपीपीआई द्वारा इंडियास्पेंड को उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक़।
बाजार में एक रुपए का पैड मिलने के बाद भी लखनऊ के जुग्गौर गांव की रहने वाली सरोजनी और उनकी दो बेटियां सोहिनी रावत (15) और मोहिनी रावत (14) जानकारी के अभाव में महंगे दाम पर पैड ख़रीद रही हैं।
"लॉकडाउन से पहले बच्चियों के स्कूल से फ्री वाले पैड आते थे, अब हर महीने पैड पर 150 रुपए ख़र्च हो रहे हैं," सरोजनी ने बताया। सरोजनी को यह 150 रुपए इसलिए भी ज़्यादा लगते हैं, क्योंकि लॉकडाउन में उनके पति की नौकरी छूट चुकी है।
सरोजनी और उनकी दो बेटियां सोहिनी और मोहिनी। फोटो: रणविजय सिंह
सरोजनी फ़िलहाल महंगे दाम पर पैड ख़रीद पा रही हैं, लेकिन कई महिलाएं आर्थिक तंगी की वजह से पैड की जगह कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। "मैं पैड इस्तेमाल करती हूं, लेकिन अभी हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तो मम्मी कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। अगर एक रुपए में पैड मिल जाए तो हमारे लिए अच्छा होगा," इलाहाबाद की हरि नगर बस्ती में रहने वाली नेहा कुशवाहा (19) ने कहा। नेहा बीएससी की छात्र है और उसने आज तक एक रुपए के पैड के बारे में नहीं सुना।
ग्रामीण क्षेत्रों तक एक रुपए वाले पैड की पहुंच कम
सरकार सब्सिडी पर एक रुपए का पैड इसलिए उपलब्ध करा रही है ताकि महिलाओं में पीरियड्स के दौरान स्वच्छता को बढ़ावा मिले। भारत में पीरियड्स के दौरान स्वच्छता का स्तर काफ़ी बुरा है।
देश में सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में पीरियड्स के दौरान स्वच्छता का हाल बेहद ख़राब है। यूपी में पीरियड्स के दौरान 81% महिलाएं कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, एनएफएचएस-4 के मुताबिक।
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं में पीरियड्स के वक़्त स्वच्छता का स्तर शहरी क्षेत्रों के मुकाबले कम होता है। इसके पीछे कई कारण हैं। एनएफ़एचएस-4 के मुताबिक देश के ग्रामीण क्षेत्रों की 48.5% महिलाएं ही सेनेट्री नैपकिन्स का इस्तेमाल करती हैंं जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 77.5% है। यूपी के ग्रामीण इलाकों में केवल 40% महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं और शहरी क्षेत्र में सेनेट्री नैपकिन का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं 69% हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधा पैड की उपलब्धता का हाल जानने इंडियास्पेंड की टीम बाराबंकी के भिटौली कला गांव पहुंची। हमने 'जन औषधि सुगम' ऐप पर नज़दीकी औषधि केंद्र की जानकारी ली तो 11 किलोमीटर की दूरी पर एक जन औषधि केंद्र का पता चला। यह केंद्र बाराबंकी के महिला अस्पताल में था।
"एक रुपए का पैड लखनऊ में बिकता होगा, यहां ऐसा कुछ नहीं है," भिटौली कला गांव की रहने वाली शिवानी राजपूत (15) ने बताया। शिवानी ने एक रुपए के पैड के बारे में सुना है, लेकिन कभी इस्तेमाल नहीं किया। वो कहती है, "घर पर रहती हूं तो कपड़ा ही इस्तेमाल करती हूं। जब स्कूल जाना होता है तो पैड लेना पड़ता है। गांव में पैड आसानी से मिल जाता है, लेकिन एक रुपए वाला नहीं मिलता।"
शिवानी ने बताया कि उसकी चचेरी बहन ख़ुशबू लखनऊ में रहती है, वो एक रुपए वाला पैड इस्तेमाल करती है। हमने जब ख़ुशबू राजपूत (18) से बात की तो उसने बताया, "मुझे इस पैड के बारे में पता है। मैं पांच महीने से इसे इस्तेमाल कर रही हूं। घर के पास ही जन औषधि केंद्र है, वहीं से इसकी जानकारी मिली थी। ये अच्छा है और सस्ता भी," ख़ुशबू लखनऊ के इंदिरा नगर में रहती है।
शिवानी और उसकी दोस्त रमशा खातून। फोटो: रणविजय सिंह
शिवानी और ख़ुशबू की कहानी से यह समझ आता है कि एक रुपए वाला पैड शहरी क्षेत्र में आसानी से मिल रहा है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में रहने वाली महिलाओं के लिए यह दूर की बात है। जबकि उत्तर प्रदेश की 77.73% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, जिसमें 7.4 करोड़ से ज़्यादा महिलाएं हैं, 2011 की जनगणना बताती है।
एक रुपए के पैड की जरूरत ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादा है। लेकिन जन औषधि केंद्रों की पहुंच अभी ग्रामीण क्षेत्रों तक कम है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि शिवानी राजपूत बाराबंकी की रहने वाली है और उसने आज तक एक रुपए का पैड इस्तेमाल नहीं किया। पैड न इस्तेमाल करने का मुख्य कारण उसके गांव से नज़दीकी जन औषधि केंद्र की दूरी है। बाराबंकी में केवल 4 जन औषधि केंद्र हैं जबकि इस ज़िले की आबादी 32.61 लाख है, जिसमें से 89.85% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
शिवानी की बहन खुशबू लखनऊ शहर में रहती है और वह एक रुपए के पैड का इस्तेमाल करती है। ख़ुशबू यह पैड इसलिए ख़रीद पा रही है क्योंकि जन औषधि केंद्र उसके घर के पास है। अकेले लखनऊ में कुल 68 जन औषधि केंद्र हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, लखनऊ की आबादी 45.90 लाख थी, इसमें से 66.21% आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है।
इससे साफ़ है कि बाराबंकी में ज़्यादा ग्रामीण आबादी है, लेकिन यहां केवल 4 जन औषधि केंद्र हैं जबकि लखनऊ में शहरी आबादी ज़्यादा है और यहां 68 जन औषधि केंद्र हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जन औषधि केंद्र की कमी की वजह से ग्रामीण महिलाओं को एक रुपए के पैड नहीं मिल पाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में कम हैं जन औषधि केंद्र
बीपीपीआई की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार सरकार का लक्ष्य है कि मार्च 2024 तक देश में 10 हज़ार प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र खोले जाएं। फ़िलहाल देश के 734 ज़िलों में से 732 में 6,612 जन औषधि केंद्र हैं। पीआईबी की ओर से 17 जून 2020 को जारी प्रेस रिलीज में बताया गया कि देश में 6,300 प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र पर एक रुपए के सैनिटरी नैपकिन बेचे जा रहे हैं।
लखनऊ के गोमती नगर का जन औषधि केंद्र। फोटो: रणविजय सिंह
ग्रामीण इलाकों तक जन औषधि केंद्र की पहुंच हो इसके लिए सरकार ब्लॉक स्तर पर केंद्र खोलने का प्रयास कर रही है। 6 मार्च 2019 को रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख लाल मंडाविया ने कहा था, "वर्ष 2020 तक देश के सभी ब्लॉक (प्रखंड) में जन औषधि केंद्र खोल दिए जायेंगे जिससे ग्रामीण स्तर पर भी लोग सस्ती और गुणवत्तापूर्ण जेनरिक दवाएं ले सकेंगे।"
"यूपी में हम ज़िला और तहसील स्तर पर जन औषधि केंद्र खोल चुके हैं। अब ब्लॉक स्तर पर ये केंद्र खोले जा रहे हैं। जब ब्लॉक स्तर पर केंद्र होंगे तो गांवों तक भी इनकी पहुंच होगी और ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसका लाभ ले सकेंगे। मैं पश्चिम यूपी देखता हूं, यहां क़रीब 60% ब्लॉक ऐसे हैं जहां ये केंद्र खुल चुके हैं। अगर कोरोना नहीं होता तो अब तक सभी ब्लॉक में केंद्र खुल चुके होते," बीपीपीआई के डिप्यूटी मैनेजर (मार्केटिंग) गौतम कपूर ने इंडियास्पेंड को बताया।
सुविधा पैड के बारे में कम लोगों को जानकारी
एक रुपए के पैड भले ही शहरों में आसानी से मिल जा रहे हैं, इसके बावजूद बहुत सी महिलाएं इसके बारे में नहीं जानती। पैड को लेकर जानकारी न होने की वजह से यह महिलाएं महंगे दाम पर पैड ख़रीद रही हैं।
लखनऊ का ग्वारी गांव शहर के पॉश इलाके गोमती नगर के बीचोबीच स्थित है। यहां की रहने वाली राजकुमारी रावत (43) घरों में काम करती हैं। राजकुमारी ने कभी एक रुपए के पैड के बारे में नहीं सुना था। उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि एक रुपए का पैड भी मिलता है। इंडियास्पेंड की टीम ने उन्हें यह पैड ख़रीद कर दिया। इसके बाद राजकुमारी ने जन औषधि केंद्र का पता लिया और कहा, "अगर पहले पता होता तो कितने पैसे बच जाते।"
राजकुमारी की तरह हरदोई की रहने वाली शैल कुमारी (19) ने भी कभी एक रुपए के पैड के बारे में नहीं सुना था। शैल कुमारी नोएडा में रहकर घरों में काम करती हैं। हमने उनसे फोन पर बात की तो वो पूछने लगीं कि यह पैड कहां मिलेगा।
लखनऊ और नोएडा दोनों ही यूपी के बड़े शहर हैं। लखनऊ में 68 जन औषधि केंद्र हैं तो नोएडा में 11 केंद्र हैं। इसके बावजूद भी अगर राजकुमारी और शैल कुमारी को इन पैड के बारे में नहीं पता तो यह इन पैड के प्रचार-प्रसार की कमी को दिखाता है।
Menstrual hygiene is an essential aspect of hygiene for women and adolescent girls. PMBJP gives women and young girls of this nation an affordable sanitary napkin at just Rs 1/- per pad to ensure that all women have a hygienic menstrual cycle. #pmbjpotc #janaushadhisuvidha pic.twitter.com/ekJXaUGWDo
— Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana (@pmbjpbppi) August 27, 2020
गांव की लड़कियों और महिलाओं को पीरियड्स के दौरान नैपकिन इस्तेमाल करने के लिए जागरूक करने की ज़िम्मेदारी आशा और आंगनबाड़ी वर्कर्स की होती है। इंडियास्पेंड की टीम जब बाराबंकी और लखनऊ के कुछ गांवों में पहुंची तो यहां की आशा बहुओं और आंगनबाड़ी वर्कर्स ने बताया कि उन्हें ख़ुद यह नैपकिन नहीं मिल रहा।
"इस पैड के बारे में सुना है, लेकिन ये हम तक कभी पहुंचा नहीं। मुझे लगता था कि यह योजना सिर्फ़ शहरों के लिए है। यही वजह है कि मैंने कभी मीटिंग में पूछा भी नहीं। अगर यह पैड दिए जाते तो हम गांव की हर महिला तक पहुंचा देते," बाराबंकी के भिटौली कला गांव की आशा बहू संगीता देवी ने कहा।
आशा बहू संगीता देवी। फोटो: रणविजय सिंह
"सरकार ने जब पैड के दाम घटाए तो मैंने अपने क्षेत्र में घूम कर लोगों को इसके बारे में बताया," देवरिया ज़िले के एक जन औषधि केंद्र के सेल्स इंचार्ज राहुल मिश्रा ने बताया, “जो भी पैड ले जाता वो दूसरों को भी बताता, इस तरह से इसका प्रचार हुआ है। आज मेरी दुकान से हर महीने 4 से 5 हज़ार तक पैड बिक जाते हैं।”
"एक रुपए के पैड पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। यह जन औषधि केंद्रों पर आसानी से मिल जाते हैं। हमारी टीम ने इसे इस्तेमाल किया है और यह बहुत अच्छे हैं," पिंकिश फ़ाउंडेशन की नेशनल सेक्रेट्री जनरल शालिनी गुप्ता ने इंडियास्पेंड से कहा। पिंकिश फ़ाउंडेशन एक पैड बैंक चलाता है, जहां यह पैड मुफ़्त में बांटे जाते हैं। “लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। सरकार को जन औषधि केंद्रों को बढ़ाते हुए जागरूकता पर भी ज़ोर देना चाहिए, तब कहीं जाकर इसका उद्देश्य पूरा हो पाएगा,” शालिनी ने कहा।
"पीरियड्स और सैनिटरी पैड जैसे विषयों पर बात करने से लोग अभी भी कतराते हैं। यही वजह है कि एक रुपए के सैनिटरी पैड का लोगों के बीच ही प्रचार कम हुआ है। जब तक लोग इस पर बात नहीं करेंगे तो किसी को पता भी नहीं चलेगा," शालिनी ने आगे कहा।
(स्वाति और रणविजय, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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