उत्तर प्रदेश चुनाव में बिजली एक प्रमुख चुनावी मुद्दा, रोजगार और प्रदूषण पर भी मतदाता मांगेंगे हिसाब
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में बिजली का पोल लगाता युवक। एक सर्वेक्षण के लिए साक्षात्कार में शामिल 28 फीसदी लोगों ने चुनाव में बिजली को एक प्रमुख मुद्दा बताया है। जबकि जबकि 20 फीसदी के लिए नौकरी, अर्थव्यवस्था और विकास से जुड़े बड़े मुद्दे थे।
हाल ही में ‘इंडियास्पेंड’ एवं ‘फोर्थलायन’ संस्था द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया है। फोर्थलायन डेटा विश्लेषण एवं जनमत संग्रह के लिए काम करती है। सर्वेक्षण में शामिल करीब एक-तिहाई मतदाताओं के मुताबिक उत्तर प्रदेश में बिजली कटौती एक प्रमुख समस्या है।
13.8 करोड़ मतदाताओं के साथ उत्तर प्रदेश में चुनाव 11 फरवरी से शुरु होगा। हम बता दें कि राज्य में मतदाताओं की संख्या के उत्तरी अमेरिकी देश मेक्सिको की आबादी से ज्यादा है।
‘फोर्थलायन’ ने उत्तर प्रदेश में 2,513 पंजीकृत मतदाताओं से टेलीफोन के माध्यम से हिंदी में बातचीत की है। ‘फोर्थलायन’ के मुताबिक बातचीत के बाद उभर कर आए संकेत उत्तर प्रदेश के शहरी और ग्रामीण के मतदाताओं के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक, उम्र, लिंग और जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सर्वेक्षण 24 जनवरी से 31 जनवरी के बीच आयोजित किया गया है।
इसी सर्वेक्षण के आधार पर इस लेख श्रृंखला के अगले भाग में मतदाताओं के राजनीतिक रूझानों पर चर्ची की जाएगी।
बातचीत में 28 फीसदी मतदाताओं का कहना है कि बिजली की कटौती राज्य की प्रमुख समस्या है, जबकि 20 फीसदी मतदाताओं का कहना है नौकरी, अर्थव्यवस्था और विकास से जुड़े मुद्दे बड़ी समस्याएं हैं। 10 फीसदी लोगों के लिए साफ पानी राज्य में एक गंभीर समस्या है। कुछ मतदाता सड़क, भोजन, नोटबंदी के बाद के हालात, अपराध, भ्रष्टाचार, कृषि, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ी समस्याओं को चुनाव के बड़े मुद्दे के रूप में देख रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की गंभीर समस्याएं
Source: FourthLion-IndiaSpend survey
बिजली क्यों है एक बड़ी समस्या?
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक बुनियादी अंतर के साथ, जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, ऊर्जा के लिए मुख्य स्रोत के रुप में बिजली का इस्तेमाल करने वाले परिवारों का प्रतिशत 2001 में 31.9 फीसदी से बढ़कर 2011 में 36.8 फीसदी हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2011 में 81.42 फीसदी शहरी परिवारों ने ऊर्जा के लिए मुख्य स्रोत के रुप में बिजली का इस्तेमाल किया है, जबकि ग्रामीण परिवारों के लिए ये आंकड़े 23.7 फीसदी रहे हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 के अंत तक ग्रामीण उत्तर प्रदेश में 177,000 ग्रामीण परिवारों के पास बिजली की सुविधा नहीं थी। हम बता दें कि मार्च 2014 में ऐसे परिवारों की संख्या 185,900 थी।
लेकिन ‘फोर्थलायन’ और ‘इंडियास्पेंड’ के सर्वेक्षण से पता चलता है कि जिन घरों में बिजली है, वहां अक्सर बिजली की कटौती होती है। सर्वेक्षण में शामिल कम से कम 38 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें रोजाना बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है। 16 फीसदी लोगों का कहना था कि उन्हें हर हफ्ते बिजली कटौती का सामना करना पड़ता है। पुरुषों और शहरी मतदाताओं की तुलना में ऐसी महिलाएं जो ज्यादातर घर में रहती हैं और ग्रामीण मतदाताओं को बिजली कटौती के संकट से ज्यादा जूझना पड़ता है।
दिन में कितनी बार होती है बिजली गुल
Source: FourthLion-IndiaSpend survey
नई दिल्ली स्थित संस्था ‘सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च’ के सीनियर फेलो निलंजन सरकार का कहना है, “बिजली की कटौती एक गंभीर समस्या है और इसलिए, शिक्षा एवं स्वास्थ्य की तुलना में मतदाताओं द्वारा इसकी पहचान बड़ी समस्या के रुप में हो रही है।”
उत्तर प्रदेश में लोगों के लिए ऊर्जा का प्रमुख स्रोत
रोजगार भी एक बड़ी समस्या
सर्वेक्षण में शामिल 20 फीसदी मतदाताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश में नौकरियों की समस्या भी एक प्रमुख मुद्दा है। वर्ष 2009 से 2015 के बीच उत्तर प्रदेश में प्रति 1,000 कामकाजी आबादी पर बेरोजगारों की संख्या 82 से कम होकर 52 हुई है। लेकिन श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2015-2016 में, यह भारतीय औसत (37) की तुलना में अधिक था। वर्ष 2015-16 में, 18 से 29 आयु वर्ग के बीच प्रति 1,000 बेरोजगार लोगों पर 148 युवा बेरोजगारों की तुलना में ये आंकड़े उच्च रहे हैं।
राज्य में स्नातक डिग्री के साथ भी लोगों को रोजगार उपलब्ध नहीं हो रहा है। यह निश्चत रुप में राज्य में नौकरी की कमी और शिक्षा की बद्तर गुणवत्ता की ओर संकेत देते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में, जबकि 97 फीसदी लोग या तो सॉफ्टवेयर या इंजीनियरिंग क्षेत्र में नौकरी चाहते हैं । इनमें से केवल 3 फीसदी लोग सॉफ्टवेयर नौकरियों के लिए अच्छी तरह उपयुक्त होते हैं और केवल 7 फीसदी ही मूल इंजीनियरिंग कार्यों को संभाल सकते हैं, जैसा कि नई-दिल्ली स्थित रोजगार संस्था, अस्पाइरिंग माइंड्स की रिपोर्ट के आधार पर इंडियास्पेंड ने सितंबर 2014 में विस्तार से बताया है।
वर्ष 2015-2016 के लिए श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 18 से 29 आयु वर्ग के बीच प्रति 1,000 लोगों पर 237 लोग ग्रेजुएट डिग्री के साथ बेरोजगार हैं।
उत्तर प्रदेश में युवा बेरोजगारी उच्च
Source: Ministry of Labour & Employment
क्या कहते हैं मतदाता पर्यावरण के मुद्दे पर?
सर्वेक्षण में शामिल किए गए कम से कम 46 फीसदी शहरी मतदाताओं का कहना है कि वे बेहद प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं।ग्रामीण इलाकों में 26 फीसदी मतदाताओं के लिए यह एक विकट समस्या बन चुकी है। वर्ष 2008 और 2015 के बीच के डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश के कानपुर, फिरोजाबाद, इलाहाबाद, लखनऊ को दुनिया के 25 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल किया गया है।
हमने सर्वेक्षण में पाया कि काफी संख्या में मतदाता सार्वजनिक परिवहन और सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करने के लिए तैयार है।
समृद्ध मतदाताओं की तुलना में कम आय वाले मतदाताओं के द्वारा सौर ऊर्जा और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के उपयोग करने की संभावना अधिक तो है। लेकिन सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ 26 फीसदी कम आय वाले मतदाताओं ने सांस लेने वाली हवा के प्रदूषित होने की बात कही है, जबकि 36 फीसदी समृद्ध मतदाताओं ने प्रदूषण को बड़ी समस्या के रूप में रेखांकित किया और ऐसी हवा में दम घुटने जैसी बात कही।
ऐसे मतदाता जिनके पास कोई वाहन नहीं था, उसमें से लगभग 90 फीसदी मतदाताओं ने कहा है कि वे सौर उर्जा से उत्पन्न बिजली का प्रयोग जरूर करना चाहेंगे,अगर इससे वातावरण में प्रदूषण कम होता है। जबकि ऐसे मतदाता, जिनके पास कार थे, उनमें से 73 फीसदी ने सौर उर्जा से पैदा हुई बिजली में अपना भरोसा जताया।
इसी तरह, ऐसे मतदाता जिनके पास कोई वाहन नहीं था, उसमें से लगभग 96 फीसदी लोगों ने कहा है कि यदि बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हों तो वे सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करेंगे जबकि कार वालों के लिए यही आंकड़े 87 फीसदी रहे हैं।
क्या कहते हैं मतदाता पर्यावरण के मुद्दे पर?
Source: FourthLion-IndiaSpend survey
(शाह लेखक / संपादक हैं। इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। इस रिपोर्ट में संजुक्ता नायर के इनपुट का इस्तेमाल किया गया है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 06 फरवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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