कम नहीं हो पा रहा अल्पपोषण- पांच साल में आंकड़े बढ़े
(मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में कुपोषित बच्चे की जांच करती स्वास्थ्य कर्मचारी)
भूख संबंधी रिपोर्ट ( 2015) में ये संख्या 194.6 मिलियन बताई गयी है। सर्वाधिक संख्या के साथ, इस मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है।
1990 में चीन में अल्पपोषको की संख्या तक़रीबन 289 मिलियन थी।दो दशको में ये आंकड़ा 53% घट कर तक़रीबन 133.8 मिलियन तक आ गया है।हालाँकि पिछ्ले दो दशको में, भारत में यह संख्या 7% घटती ज़रूर दिखाई देती है लेकिन पिछले 5 सालों में यह आंकड़ा 2.6% बढ़ता ही दिखा है।
खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक, लंबे समय तक पर्याप्त और पौष्टिक आहार न मिलना ही कुपोषण है।कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओ की रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे कई तरह की बीमारियो के शिकार बन जाते हैं।
भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सहायता कार्यक्रमो पर करोड़ो रूपए खर्च किये जाने के बावजूद अल्पपोषण लगातार एक बड़ी समस्या बना हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक अल्पपोषण का एक मुख्य कारण उच्च विश्व खाद्य कीमतों का पूर्ण रूप से घरेलू कीमत में परिवर्तित न हो पाना है।
भारत में अल्पपोषण: विगत दशक
पिछले पांच सालो में अल्पपोषको के अनुपात में केवल 0.4% ही गिरावट देखी गयी है।जारी रिपोर्ट के अनुसार अल्पपोषको की संख्या 4.7 मिलियन बढ़ी है। भारत का एक बड़ा तबका आज भी दो वक्त की रोटी के लिये संघर्ष करताहै फिर भी उसे भरपेट भोजन नहीं मिलता। यह एक साफ़ संकेत है की आज भी गरीबो की क्रयशक्ति, पर्याप्त और पौष्टिक भोजन पाने की नहीं है। एनडीए सरकार ने अपने पहले साल में , अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुधारों की ओर ध्यान ज़रुर दिया लेकिन कृषि क्षेत्र में ये सुधार न के बराबार ही हुए।
कृषि भारत में महत्वपूर्ण है इसलिए नहीं क्योकि 600 मिलियन लोग इससे अपनी जीविका चलाते है बल्कि इसलिए भी क्योंकि कृषि से ही देश की अधिकाँश लोगो की खाद्य की आपूर्ति होती है
1947 से अब तक की जीडीपी पर एक नज़र
क्षेत्र अनुसार जीडीपी का अंशदान
Source: NITI Aayog, *At constant prices (2004-05 series)
50 के दशक में कृषि और समवर्गी क्षेत्रो का अंशदान जीडीपी का 51% था। उन दिनों आर्थिक नीति और सुधार का मुख्य बिंदु दूसरे क्षेत्रो पर था। दूसरे क्षेत्रो, मुख्य रूप से सेवाओं का अंशदान 1990 के आर्थिक उदारीकरण के बाद तेज़ी से बढ़ा।
लेकिन कृषि के क्षेत्र में 1960 के हरित क्रांति और 1970 के ऑपरेशन फ्लड के अलावा कुछ ख़ास सुधार देखने को नहीं मिला। तकनीक और नवीनता की कमी इस क्षेत्र में साफ झलकती है।। मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत उद्योग और उत्पादन में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
क्यों भारत को चाहिए उत्पादन में तेज़ शुरुआत
हालांकि 24% कृषि जनबल को किसी और विभाग में बेहतर अवसरों के लिए स्थान्तरित करना व्यवहारिक नहीं है पर किसान जो कृषि से जुड़े रहना चाहते हैं उनके लिए उत्पादन बढ़ाना ज़रूरी है।कृषि विभाग प्रगतिशील अर्थवयवस्था में भले ही सकल घरेलु उत्पाद (GDP) में बड़ा योगदान नहीं देता फिर भी उसकी उत्पादकता काफी बेहतर है।
विकासशील देशो ने उत्पाद से मुनाफा कमाने में काफी हद तक सफलता पायी है। खाद्य उत्पादन में तीसरे स्थान होने के बावजूद भारत की स्थिति कुछ ठीक नहीं।
विश्व और भारत धान्य उत्पादन
Source: FAO, World Bank; Note: There is a difference in GDP figures for India between the World Bank and NITI Aayog due to differences in methodology.
उभरते हुए और विकसित अर्थवयवस्था के एक संगठन में से जिन देशो को हमने चुने उनमे से भारत का धान्य उत्पादन सबसे कम है।भारत के मुकाबले चीन की दुगुनी, ब्राज़ील की 32 % और साउथ अफ्रीका की 34% अधिक उत्पादन है।भारत की पूरी खाद्यान उत्पादन में से 92% धान्यहै।
कृषि सुधार भारत के लिए गहन चिंतन का विषय है।हाल ही में अशोक गुलाटी, प्रोफेसर कृषि, इंडियन कौंसिल फॉर रिसर्च ओन इंटरनेशनल इकनोमिक रिलेशन्स कृषि की महत्वपूर्णता दर्शाते हुए लिखते हैं
" भारत के नीतिनिर्धारको के लिए ये जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण है की चीन ने आर्थिक सुधार उद्योग से नहीं बल्कि कृषि से किया था। चीन में आर्थिक बदलाव साल 1978-84 के दौरान हुआ था।कृषि क्षेत्र में सही कदम उठाने की वजह से एक तरफ जहां कृषि में 7.1% की बढ़ोतरी हुई वहीँ दूसरी तरफ सालाना कृषि आय में 14% मुनाफा मिला। और इसी प्रगति के साथ केवल छह सालो में चीन ने अपना कायाकल्प कर लिया"।
(तिवारी इंडिआस्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं।)
यह लेख मूलतः जून 2, 2015, को indiaspend.com में प्रकाशित हुआ था |
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