किस प्रकार हिंसा के कारण बढ़ रहा है सेक्स वर्कर्स में रोग
अंजना के लिए काम करना और उसका पतन तब शुरु हुआ जब वह 15 साल की भी नहीं थी।
एक शराबी पिता, मां और दो छोटी बहनों के साथ, अंजना (बदला हुआ नाम) तमिलनाडु के शहर में 14 वर्ष की उम्र में ही स्थानीय चिकित्सक के सहायक के रूप में काम शुरू कर दिया गया था। इसके बाद अंजना ने एक वकील के घर पर एक नौकरानी के रुप में काम करना शुरु किया जहां उसके मालिक ने उसका यौन शोषण किया और पैसे के लिए उसे देह व्यापार में धकेल दिया। अंजना ने सारी कहानी श्री भवानी, स्वस्ति स्वास्थ्य संसाधन केन्द्र, एक बेंगलुरु की गैर लाभ के साथ एक सलाहकार को सुनाई है।
17 में अंजना – एक दुबली-पतली किशोरी – एक सेक्स वर्कर थी। अपने जीवन में उसे अक्सर अपने ग्राहकों, पति और साथी द्वारा शारीरिक शोषण का सामना किया है और यौन संबंध के लिए मजबूर किया गया है। और आज की तारीख में वो अपने पति के साथ एचआईवी-एड्स की रोगी हैं। आज वह 15,000 रुपए प्रति माह कमाती हैं लेकिन फिर भी – जैसा कि हम आगे देखेंगे - उसका जीवन और अधिक शांतिपूर्ण बनाने की संभावना नहीं है।
स्वस्ति द्वारा अव्हान पहल (चरण 3) के तहत अपने काम के हिस्से के रूप में, सितंबर 2015 तक छह महीने में एकत्र की गई ऐसी ही 109366 श्रमिकों पर के आंकड़ों पर किए गए विश्लेषण के अनुसार, अंजना की तरह ही, हरेक पांचवीं यौनकर्मी हिंसा के साथ रहती है, औसतन महीने में उन पर चार बार हमला किया जाता है।
आंकड़ों से पता चलता है कि जिनके पास ग्राहक और आय अधिक हैं उन पर हमला होने की संभावना अधिक है जिससे उनमें एचआईवी - एड्स सहित यौन संचारित संक्रमण (एसटीआई) होने की संभावना अधिक होती है। इसका कारण कम परीक्षण की संभावना हो सकती है।
महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक में किए गए सर्वेक्षण के दौरान: छह महीनों में 92,838 में से कम से कम 24,815 या 22,7 फीसदी महिलाओं ने उनके खिलाफ यौन, भावनात्मक और शारीरिक हिंसा की सूचना दी है।
39,832 घटनाओं के साथ हिंसा का सबसे प्रचलित रुप शारीरिक शोषण दर्ज किया गया है जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर भावनात्मक (35,887) और यौन हिंसा (17119) रहे हैं।
हिंसा से यौन संचरित संक्रमणों (एसटीआई) का खतरा बढ़ता है
जैसा कि नीचे दिए आंकड़े बताते हैं,सेक्स वर्करों पर किए गए हिंसा से एड्स सहित एसटीआई का खतरा बढ़ता है। हालांकि यौन हिंसा का यौन रोग से संबंध स्पष्ट है, शारीरिक और भावनात्मक हिंसा जोखिम को बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
हिंसा और यौन रूप से संक्रामित संक्रमण के बीच सहसंबंध
Source: Swasti Health Resource Centre
2005 की इस विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार, सेक्स वर्करों में एचआईवी संक्रमण होने का खतरा सबसे अधिक होता है।
डब्लूएचओ की रिपोर्ट कहती है, “सेक्स वर्कर्स का 'खुद को एचआईवी से बचाने एवं अच्छे यौन स्वास्थ्य को बनाए रखने की क्षमता के लिए हिंसा का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से असर होता है।” प्रत्यक्ष असर में बलात्कार और सेक्स के लिए मजबूर करने की घटनाएं शामिल है जबकि अप्रत्यक्ष प्रभाव में सेक्स वर्करों की ग्राहकों, भागीदारों और अन्य संभावित यौन साथी के साथ सुरक्षित सेक्स के लिए बातचीत करने अक्षमता शामिल होती है।
एड्स नियंत्रण विभाग की वार्षिक रिपोर्ट 2013-14 के अनुसार, भारत में, प्रमुख जोखिम समूहों के बीच महिला सेक्स वर्करों में तीसरा उच्चतम एचआईवी प्रसार है – किसी विशेष समय में या समय की अवधि में एक निर्दिष्ट बिंदु पर विशेष बीमारी के साथ जनसंख्या का अनुपात।
प्रमुख जोखिम समूह के लिए राष्ट्रीय एचआईवी प्रसार, (2010-11)
क्यों समय पर निदान है महत्वपूर्ण
अंजना जानती थी कि उसे और उसके पति को एचआईवी - एड्स है क्योंकि राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण कार्यक्रम के साथ जुड़े गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने उन्हें परीक्षण के लिए राजी किया था।
अंजना का रेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी), दवाएं जो वायरस को दबाती हैं और एचआईवी की प्रगति में बाधा उत्पन्न करती है, शुरु किया गया। जबकि उसके पति ने दवा लेने से इंकार कर दिया, अंजना – जो कि उस वक्त गर्भवति थी – परामर्शदाता से लंबी बातचीत के बाद लेना शुरु किया। आज की तारीख में अंजना का बेटा 10 वर्ष का है और वह इस बीमारी से मुक्त है।
इसलिए, सेक्स वर्कर और उनके बच्चों के लिए सटीआई की नियमित रूप से परीक्षण आवश्यक है। लेकिन, जैसा कि स्वस्ति के अध्ययन से पता चलता है, हिंसा से संभावनाएं उत्पन्न होती हैं कि सेक्स वर्करों का एचआईवी के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए।
हालांकि 95 फीसदी महिलाएं, जिन्होंने छह से कम बार यौन हिंसा का सामना किया है, उन्होंने एचआईवी के लिए परीक्षण किया है जबकि 89.5 फीसदी महिलाओं ने एचआईवी के लिए परीक्षण किया है जिन्होंने छह से अधिक बार यौन हिंसा का सामना किया है।
जिन महिलाओं को कम हिंसा का सामना किया है, उन्हें भी आदर्शत: परिक्षण करानी चाहिए – वर्ष में दो बार, यानि कि छह महीने में एक बार।
यौन हिंसा और एचआईवी परीक्षण व्यवहार
Source: Swasti Health Resource Centre
अस्तित्व के लिए संघर्ष: अधिक पैसे, अधिक हिंसा, अधिक संक्रमण
गरीबी न केवल अंजना जैसी महिलाओं को यौन कार्यों में धकेलती हैं बल्कि हिंसा के प्रति उन्हें कमज़ोर भी बनाती हैं। अधिक पैसे और अधिक ग्राहक, जैसा कि हमने पहले भी कहा है, अधिक हिंसा और यौन रोगों के साथ सहसंबद्ध होते हैं।
अधिक पैसे, अधिक हिंसा
Source: Swasti Health Resource Centre
अधिक ग्राहक, अधिक हिंसा
Source: Swasti Health Resource Centre
अधिक पैसे, अधिक रोग
Source: Swasti Health Resource Centre
अधिक ग्राहक, अधिक रोग
Source: Swasti Health Resource Centre
एक चौथाई से अधिक सेक्स वर्करों पर ग्राहकों द्वारा हमला होता है। जैसा कि अंजना संबंधित है, कुछ अवसरों पर, एक ही ग्राहक महिला को प्रस्ताव देता है लेकिन पहुंचने पर एक से अधिक लोगों का उसे सामना करना पड़ता है।
ऐसे मामलों में, अनिच्छुक सेक्स वर्करों को अक्सर उनकी सहमति के बिना यौन संबंध के लिए मजबूर किया जाता है, ऐसी स्थिति से अंजना दो बार बची है। जीवन साथी या पति और पार्टनर या प्रेमी भी हिंसा दण्ड देते हैं।
एफएसडब्लू के खिलाफ हिंसा को अंजाम देने वालों का प्रतिशत वितरण
Source: Swasti Health Resource Centre
आधे से अधिक सेक्स वर्कर, 55,930, घर से काम करती हैं, जबकि 15314 या 14 फीसदी, वेश्यालयों या लॉज से काम करती हैं; 4741 या 4.3 फीसदी बार से काम करती हैं और शेष 32,184 या 29.4 फीसदी ऐसे स्थानों से काम करती हैं जिनमें सड़कें और बाजार शामिल हैं; कुछ देव दासियां होती हैं। जो वेश्यालयों या लॉज से काम करती हैं उन पर हिंसा होने का खतरा सबसे अधिक होता है।
वेश्यालयों या लॉज से काम करने वाली सेक्स वर्कर पर हिंसा का खतरा अधिक
Source: Swasti Health Resource Centre
यौन कार्य अपराध नहीं, फिर क्यों पुलिस और अदालत महिलाओं को जोखिम में डालते हैं
भारत में यौन कार्य अस्पष्ट कानूनी क्षेत्र है। यह अपराध नहीं है, लेकिन वेश्यालय चलाना अनैतिक तस्करी निवारण अधिनियम (1956) के तहत अवैध है। अधिनियम की स्थापना तस्करी पर अंकुश लगाने और वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए यौन शोषण क रोकथाम के लिए की गई थी। लेकिन अधिकर पुलिस और अदालतों में इसकी व्याख्या इस प्रकार से की जाती है कि उनका नेतृत्व उत्पीड़न, निरोध और सेक्स वर्करों की गिरफ्तारी के रुप में करती है।
अंजना अपनी कहानी सुनाते हुए बताती है कि किस प्रकार उसे ठगों और दलालों के साथ, बिना गर्भ निरोधक के यौन संबंध के लिए मजबूर किया गया है। वे यह जानते थे कि पुलिस इस मामले में दखल नहीं देगी। इसलिए, अधिकतक सेक्स वर्कर हिंसा की रिपोर्ट नहीं करते हैं; और आंकड़ो से पता चलता है कि यदि वह करते हैं तो चौथाई से पांचवा हिस्से के बीच सामुदायिक संगठन चुनते हैं – सर्वेक्षण की गई 81 फीसदी सेक्स वर्कर ऐसे संगठनों के साथ जुड़ी पाई गई हैं।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में 2012 की यह रिपोर्ट कहती है कि, “चुनौती शक्ति संबंधों और संरचनात्मक बाधाएं जो उनके जोखिम के लिए योगदान करता है” के लिए सेक्स वर्करों को सामाजिक समर्थन मिलना आवश्यक है। यह अव्हान पहल का उल्लेख करता है कि किस प्रकार सामुदायिक संगठन सेक्स वर्कर को सशक्त बनाता है, हिंसा को कम करता है और स्वास्थ्य भेदभाव को संबोधित करता है।
अगर वापस धर्मपुरी की अंजना की बात की जाए तो उसकी प्राथमिकता उसके बेटे के लिए पर्याप्त चीज़े जुटाना है जिसे अब तक उसके पति और ससुराल वालों ने स्वीकार नहीं किया है और इतनी ज़िंदगी जीना कि वह अपने बेटे को बड़ा होते और वित्तीय रुप से स्वतंत्र होता देख पाए।
(चतुर्वेदी स्वस्ति स्वास्थ्य संसाधन केन्द्र , बैंगलोर के साथ एक स्वतंत्र मीडिया सलाहकार है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 8 अगस्त 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।
__________________________________________________________________
"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :