कैसे कम कर सकता है भारत (कम से कम ) 120 भविष्य के बिजली संयंत्र
नई दिल्ली के व्यावसायिक केंद्र में एक इमारत के शिशे साफ करता एक कार्यकर्ता। भारत इमारत ऊर्जा में नई राहें रोशन कर सकता है।
2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ने कहा कि भारत की प्रगति हमारी नियती और हमारे लोगों का अधिकार है। लेकिन हम एक राष्ट्र हैं जिसे जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने आगे आना होगा।
दुनिया की चौथी सबसे बड़ी प्रदूषक के रूप में, 1.25 बिलियन लोगों की आकांक्षाओं के साथ, भारत जिम्मेदारियों को संतुलित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। इनमें से 300 मिलियन बिजली ग्रिड के बगैर हैं। भवनों के डिजाइन ऊर्जा के इस्तेमाल में कटौती करने के लिए एक उल्लेखनीय अवसर प्रदान करता है।
1971 में, आवासीय और वाणिज्यिक भवनें, भारत में बिजली खपत में 15 फीसदी ज़िम्मेदार थी। 2005 तक यह हिस्सेदारी दोगुनी हो कर 30 फीसदी हुई है।
इमारतों से बिजली की खपत
सेक्टर से बिजली की खपत
पिछले एक दशक में बिजली की खपत
राजन रावल, बिल्डिंग विज्ञान और ऊर्जा के क्षेत्र में उन्नत अनुसंधान के लिए केंद्र के कार्यकारी निदेशक, सीईपीटी विश्वविद्यालय , अहमदाबाद, द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, हालांकि, पूर्ण रुप में, इमारतों द्वारा बिजली की खपत बढ़ रही है एवं 2050 तक 2005 के स्तर के ऊपर 700 फीसदी वृद्धि की ओर अग्रसर है।
इसके अलावा, 2005 के स्तर की तुलना में, इमारतों से 2050 से सात गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होगा।
भारत ने अक्षय और कम कार्बन ईंधन से अपनी 40 फीसदी बिजली की स्रोत का वादा किया है और वर्ष 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 33 फीसदी से 35 फीसदी तक कटौती की बात भी कही है।
बिजली है बचाना तो जितनी है ज़रुरत उतनी ही जलाना
1971 की तुलना में भारत के घरों में बिजली खपत की हिस्सेदारी 9 फीसदी से बढ़ कर 22 फीसदी हो गई है। हाल ही में, भारत ( नीति ) आयोग को बदलने के लिए राष्ट्रीय संस्थान रिपोर्ट कहती है कि यदि 2022 तक सबके लिए सरकार आवास एवं 24 × 7 बिजली की आपूर्ति प्राप्त करा पाती है तो 2030 तक यह हिस्सेदारी 37 फीसदी हो सकती है।
2012 और 2030 के बीच भारत नई इमारत फर्श क्षेत्र में अधिक से अधिक 20 बिलियन वर्ग मीटर की जुड़ने की उम्मीद है, इनमें से 85 से 90 फीसदी आवासीय प्रयोजनों के लिए है।
मकान में मुख्य रूप से आवश्यक प्रकाश एवं घरेलू उपकरणों को संचालित करने के लिएए बिजली का उपयोग होता है एवं इनका इस्तेमाल दिन-ब-दिन बढ़ रहा है।
विचार करिए
- ग्रामीण घरेलू टेलीविजन स्वामित्व 1993 में 13 फीसदी से बढ़ कर 2002 में 26 फीसदी एवं 2011 में 33 फीसदी तक पहुंचा है।
- शहरी घरेलू टेलीविजन स्वामित्व 1993 में 49 फीसदी से बढ़ कर 2002 में 66 फीसदी एवं 2011 में 77 फीसदी तक पहुंचा है।
एयर कंडीशनर ( एसी) के स्वामित्व एक अधिक शक्तिशाली कहानी कहता है क्योंकि अन्य उपकरणों की तुलना में यह अधिक बिजली का उपभोग करते हैं। एसी का उपयोग इमारत डिजाइन की गुणवत्ता को इंगित करता है : स्थानीय जलवायु और आराम जो यह प्रदान करता है।
2010 में करीब 4 फीसदी ही शहरी घरों में एसी थे। 2014 की इस अध्ययन के अनुसार एसी वाले कमरे में होने वाली बिजली की खपत में 8 टेरा वाट घंटे ( TWh ) से बढ़ कर 239 TWh तक होने के साथ 2020 तक इन आंकड़ों में 30 फीसदी एवं 2030 तक 73 फीसदी वृद्धि होने की संभावना की गई है।
अध्ययन कहती है कि, चीन के शहरी क्षेत्र में एसी का उपयोग 1992 में शून्य आंकड़े से बढ़ कर 2007 तक 100 फीसदी तक पहुंच गया है। इस वृद्धि का कारण उच्च आय एवं शहरीकरण है।
रावल के शोध के अनुसार जब तक कि ऊर्जा के उपयोग पर रोक नहीं लगाते हैं, 2005 और 2050 के बीच भारत में बिजली की घरेलू खपत 800 फीसदी बढ़ने का अनुमान है।
रावल कहते हैं कि आवासीय भवनों में ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता ( ECBC ) लागू करने से, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के लिए बनाया गया एक ऊर्जा की बचत कोड, आवासीय ऊर्जा की खपत को 57 फीसदी तक कम की जा सकती है एवं इसी अवधि के दौरान 2005 के स्तर से 300 फीसदी तक की खपत की वृद्धि में कटौती की जा सकती है।
रावल आगे कहते हैं कि, “यह इमारतों को रहने के लिए आरामदायक भी बनाएगा।”
अन्य चीज़ों के बीच, ईसीबीसी कोड एसी सहित अत्यधिक कुशल उत्पादों के निर्माण और सामग्री के उपयोग को बढ़ावा देता है।
उपर उल्लखित 2014 के अध्ययन के मुताबिक, केवल रुम एसी के बेहतरीन तकनीक से बनाए जाने से 2030 तक भारत 118 TWh तक बचत कर सकता है या लगभग 60 गीगावॉट की एक अधिकतम मांग की बचत कर सकता है। अध्ययन कहती है, “यह प्रत्येक 500 मेगावाट की क्षमता वाले 120 नई कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से परहेज करने के लिए बराबर है।”
भारत के नए निर्माण कार्य में तेजी के मुहाने के साथ, ऊर्जा बचत के अवसर
वर्तमान में भारत की वाणिज्यिक फ्लोर स्पेस का अनुमान 847 मिलियन वर्ग मीटर है और 2030 तक यह बढ़ कर 1932 मिलियन वर्ग मीटर तक पहुंचने का अनुमान है।
2030 तक आधे से भी अधिक व्यावसायिक इमारतों का निर्माण लंबित होने के साथ देश के पास इमारतों के बेहतर ढ़ंग से निर्माण करने का बेहतर अवसर है। हाल के ही दशकों में, भारत इसका विपरीत करते दिख रही है।
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी ) बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने देश को वास्तुकला के पश्चिमी शैली का स्वाद दिया है। रजत मल्होत्रा , सीओओ, एकीकृत सुविधाएं प्रबंधन (पश्चिम एशिया) जेएलएल इंडिया , एक अचल संपत्ति सेवा कंपनी के अनुसार ग्लास फसाड इमारत एक परिष्कृत, हरावल रूप देता है।
बैंकिंग क्षेत्र में इस प्रवृति के तेजी से फैलने के साथ, पूरे भारत में ग्लास फसाड के साथ टावर होना एक आम बात है। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) के विश्लेषक कहते हैं कि हरे रंग की इमारत " टैग के संबंध में चर्चा करने के बावजूद इन संरचनाओं में से कई ऊर्जा गटकने वाले हैं।
ईसीबीसी के साथ पालन करने के लिए इमारतों को विभिन्न डिजाइन पहलुओं और उत्पादों के लिए निर्धारित न्यूनतम मानकों को पूरा करना होगा जैसे कि खिड़कियां, दीवारें, छत , एयर कंडीशनिंग, वेंटिलेशन , प्रकाश व्यवस्था, के रूप में .; इसे नियम के अनुसार विधि कहा जाता है। यदि वातानुकूलित हैं तो यह पूरी इमारत का ) मूल्यांकन प्रदर्शन ( WBP ) अपना सकते हैं, इमारत की वार्षिक ऊर्जा के प्रदर्शन का ऊर्जा अनुकरण।
आमतौर पर, इमारतों को 'ग्रीन' अंक विद्युत कुशल प्रकाश और एयर कंडीशनिंग उत्पादों, जल- संरक्षण फिक्सचर, आदि की तैनाती के लिए दिया जाता है।
मल्होत्रा कहते हैं, “ऊर्जा कुशल विनिर्माण प्रक्रिया के माध्यम से ग्लास का गैर प्रदूषणकारी कच्चे माल से बने होने के लिए 'ग्रीन' निर्माण सामग्री माना जाता है। इसमें पानी की कम आवश्यकता होती है एवं अपेक्षाकृत कम अपशिष्ट पैदा करता है साथ ही पुनः चक्रित करने योग्य भी है।”
दिन की रोशनी में छोड़ देने से ग्लास प्रकाश व्यवस्था के लिए इस्तेमाल ऊर्जा के संरक्षण में मदद करता है। इसलिए ईसीबीसी, जलवायु क्षेत्र की परवाह किए बगैर 60 फीसदी ग्लास- दीवार अनुपात की अनुमति देता है।
मल्होत्रा कहते हैं कि समस्या यह है कि, एक बार ग्लास का फसाड के रुप में इस्तेमाल होने का बाद इमारत एक दूसरे रुप में बदल जाता है।
ग्लास, सौर विकिरण के उच्च स्तर के माध्यम से देता है जो गर्मी भीतर लेता है, घर के अंदर और आसपास के तापमान को बढ़ाता है एवं एसी का बिल बढ़ाता है।
अनुमिता रायचौधरी , अनुसंधान और संस्था, सीएसई के लिए कार्यकारी निदेशक कहती हैं, “एयर कंडीशनिंग बिजली की खपत के लिए 84 फीसदी के लिए ज़िम्मेदार हो सकता है जैसे तब तब कि कांच के इमारतों के बाहरी हिस्से के रूप में बहुत ज्यादा गर्मी में देता है। ”
मल्होत्रा कहते हैं कि डबल ग्लेज़िंग के प्रयोग से ऊर्जा की खपत को कम किया जा सकता है लेकिन यह कभी भी फसाड के बराबर नहीं होगा।
किस प्रकार इंफोसिस ने की कर्मचारियों की संख्या दोगुनी लेकिन इस्तेमाल किया केवल 13% अधिक ऊर्जा
2008 से पहले, इन्फोसिस, भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी, ने देश के सबसे प्रतिष्ठित गिलास इमारतों में से कुछ का विकास किया था।
इसके बाद इसमें कुछ बदलाव आए।
गुरुप्रकाश शास्त्री , क्षेत्रीय प्रबंधक , इन्फ्रास्ट्रक्चर , इन्फोसिस, बताते हैं कि, “हम जागरुक हुए कि हम डिजाइन और ऊर्जा संरक्षण के निर्माण में बेहतर काम कर सकते हैं और 2008 की तुलना में वर्ष 2018 तक प्रति व्यक्ति बिजली की खपत प्रति कर्मचारी को आधा करने का निर्णय किया।”
इन्फोसिस के 2014-15 की वार्षिक रिपोर्ट कहती है कि, “हमारे परिसरों की कुछ इमारतों का डिज़ाइन शुरुआत में ग्लास के इमारतों में किया गया था, यह लोगों के काम करने के लिए असहज था एवं इसका परिणाम उच्च ऊर्जा खपत के रुप में हुआ था। ”
संशोधन करने के लिए, इंफोसिस कुछ मौजूदा इमारतों में कुछ नए बदलाव किए हैं, ग्लास फसाड कम ककिए गए हैं, एकल ग्लास की जगह दो ग्लेज़िंग लगाए गए हैं और दीवार रोधन, छत रोधन भी किए गए हैं।
शास्त्री कहते हैं कि नए इंफोसिस इमारतों के लिए अन्य बातों के अलावा खिड़की - दीवार अनुपात अधिकतम 30 फीसदी तक ही ध्यान में ऱखा गया है जो यदि उपयुक्त रुप से डिज़ाइन किया गया है एवं अधिक कुशल एयर कंडीशनिंग प्रौद्योगिकियों का सहारा लिया गयया है तो उसे दिन के उजाले में पर्याप्त मिलता है। शास्त्री का मानना है कि खिड़की-दिवार अनुपात के लिए 60 फीसदी ईसीबीसी सीमा भारत के उष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए उच्च है।
बेहतर निर्माण एक जीत प्रस्ताव साबित हुई है।
रेडियंट स्लैब कूलिंग, एक ठंडी सतह से विकिरण की प्रणाली, इंफोसिस में लगा एसी सिस्टम, को स्थापित करना 5 फीसदी सस्ता है और चर- एयर मात्रा एसी सिस्टम की तुलना में 34 फीसदी कम ऊर्जा की खपत होती है।
अब तक 2008 के स्तर से इंफोसिस ने प्रति व्यक्ति बिजली की खपत में 46 फीसदी कटौती की है। 2008 से कर्मचारियों की संख्या को दोगुना करने के बावजूद, इसकी ऊर्जा जरूरतों में केवल 13 फीसदी की वृद्धि हुई है।
Infosys' Electricity Consumption Curtailment Achievements | ||
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Year | 2008 | 2015 |
Annual electricity consumption by office buildings of Infosys | 18.6 kWh per sqft | 7 kWh per sqft |
Electrical load for software buildings including the chiller plant | 6.5 W per sqft | 3.5 W per sqft |
Lighting design | 1.2 W per sqft | 0.48 W per sqft |
Air conditioning design | 350 sqft per TR | 750 sqft per TR |
Per capita electricity consumption | 297 kWh | 159 kWh |
Source: Infosys
भारत के पास जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए अच्छा अवसर
सीओपी 21 में भारत का पक्ष स्पष्ट करते हुए प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने कहा कि "जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख वैश्विक चुनौती है। लेकिन, यह हमारे बनाने की नहीं है। "
यह सत्य है। लेकिन यदि भारत इमारत - ऊर्जा का उपयोग बदलने का अवसर प्राप्त करता है तो यह नई राह रोशन कर सकता है।
(बाहरी माउंट आबू , राजस्थान स्थित एक स्वतंत्र लेखक और संपादक है। )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 22 दिसंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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