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दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सूची में, दिल्ली शहर का नाम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में आने बाद से जनता गंभीरता से इस मुद्दे की ओर ध्यान दे रही है। साथ ही सरकार ने भी मजबूत उपायों के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने लंबे समय से प्रतीक्षित एक अध्ययन जारी किया है जो वायु प्रदूषण के स्रोतों की पहचान करने और नीतियों के संबंध में जानकारी देने का प्रयास करता है।

एविडेंस फॉर पॉलीसी डिज़ाइन ( EPoD ) में हम सरकारी मंत्रालयों के साथ उन नीतियों को तैयार करने एवं परीक्षण करने में मदद करते हैं। कल हमने मौजूदा स्रोत प्रभाजन के अध्ययन के संबंध में चर्चा की थी जो दिल्ली में होने वाले वायु प्रदूषण के स्रोत की पहचान करता है जैसे कि आग से निकलने वाला धुआं, निर्माणस्थलों से निकलने वाला धुआं और धूल। साक्ष्यों पर आम सहमती न होने के कारण इन अध्ययनों के अलग-अलग परिणाम सामने आते हैं। भारत में स्रोत प्रभाजन के अध्ययन के लिए व्यापक दिशा निर्देश मौजूद नहीं है।

आईआईटी कानपुर द्वारा किए गए अध्ययन में मौसम में होने वाले बदलाव से प्रदूषण के प्रभाव पर चर्चा की गई है। इस नए अध्ययन के अनुसार गर्मियों की तुलना में सर्दियों में वायु प्रदूषण में वाहनों का योगदान अधिक होता है। इस अध्ययन में प्रदूषण फैलाने वाले अन्य स्रोतों जैसे कि कूड़ा जलाना, धूल और फसलों को जलाना, के संबंध में भी चर्चा की गई है।

नियमित अंतराल पर प्रदूषण परिवर्तनों को ट्रैक करने एवं भारत के निमयकों को योजना लागू करने के लिए यह अध्ययन काफी सहायक है।

स्मार्ट प्रतिक्रिया के लिए बारीक डेटा

प्रदूषण के स्रोत की पहचान एवं नियंत्रण पाने के संबंध में स्रोत प्रभाजन अध्ययन ही पर्याप्त नहीं है। अध्ययन के साथ ही हवा की गुणवत्ता पर नज़र रखने वाली नेटवर्क की भी आवश्यकता है जो वास्तविक समय में वायु प्रदूषण की एक तस्वीर पेश करती है एवं लोगों को उच्च प्रदूषण के समय के दौरान खुद को इससे होने वाली हानि से बचाने का मौका देती है। इसके साथ ही नीति निर्माताओं को शहर के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों को लक्षित करने में मदद करती है।

दिल्ली की हवा की गुणवत्ता की निगरानी नेटवर्क की रीढ़ 21 परिवेशी वायु निगरानी स्टेशनों का सेट है जिसमें से 11 के आंकड़ों तक जनता की पहुंच है। शहर के मुख्य वायु प्रदूषण चिंता का विषय पीएम 2.5 है, छोटे कण जो फेफड़ों में आसानी से फंस जाते हैं। पीएम 2.5 से फेफड़ों के कैंसर, हृदय और सांस की बीमारियों, अस्थमा, और कई अन्य बीमारियों का ज़ोखिम बढ़ जाता है।

11 मॉनिटरों के लिए सीपीसीबी और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा चलाए जा रहे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी ) की वेबसाइट से प्राप्त आंकड़ों ( डीपीसीसी ) बताते हैं कि इन साइट पर पिछली सर्दियों में ( मौसम जो कण प्रदूषण का सबसे गंभीर स्तर के साथ जुड़ा है ) केवल 29 फीसदी पीएम 2.5 दर्ज किया गया है। मार्च 2015 के बाद से कवरेज में 46 फीसदी की वृद्धि हुई है लेकिन आंकड़ों में इस अंतर से शहर में वास्तविक हवा की गुणवत्ता स्थिति को चिह्नित कर पाना मुश्किल है। कवरेज में सुधार की प्रवृत्ति को जारी रखने के लिए उच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।

क्या दिल्ली के वायु गुणवत्ता मॉनिटर काम कर रहे हैं?

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कवरेज पैटर्न से पता चलता है कि मॉनिटर लंबी अवधि के अंतराल में संकेंद्रित है, जब पीएम 2.5 कई महीनों के लिए एकत्र नहीं किया जा रहा है। यह प्रबंधन कारणों से हो सकता है जो ढ़ंग से रखरखाव न करने से ठीक से कार्य न कर रहा हो एवं जो सूचना प्रवाह एवं प्रबंधन के साथ समस्याओं की ओर इशारा करते हैं। विडंबना यह है कि सीपीसीबी और डीपीसीसी के लिए लगातार नीचे जाने या कम समय के लिए मॉनिटर करने की तुलना में डेटा संग्रह में इन बड़े अंतर को संबोधित करना आसान हो सकता है। जनता के लिए वायु प्रदूषण की निगरानी डेटा का उपयोग आसान बनाना और उनको जवाबदेह बनाने की ओर एक अच्छा कदम होगा।

हवा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए, सबसे पहले जानकारी की गुणवत्ता में वृद्धि होनी चाहिए। स्रोत प्रभाजन के किसी भी कच्ची जानकारी के साथ सरकार कुछ कार्य कर सकती है जैसे कि बद्तर स्थिति वाले बिजली संयंत्रों को बंद करना एवं पड़ोसी राज्यों को फसल जलाने के लिए बेहतर रुप से विनियमित करने के लिए प्रोत्साहित करना। यदि एक बार यह हो जाए तब नीति निर्माताओं को बेहतर नीति प्रतिक्रिया डिजाइन करने के लिए स्थान , स्रोत, और वायु प्रदूषण के प्रकार पर तेजी से विस्तृत जानकारी की आवश्यकता होगी। भारत की मौजूदा निगरानी और सूचना प्रसार प्रणाली को मजबूत बनाने का यह सही समय है।

(डॉज एविडेंस फॉर पॉलिसी डिज़ाइन में डाटा एनालिटिक्ल लीड हैं।)

श्रृंखला समाप्त। पहला भाग यहां पढ़ सकते हैं।

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 20 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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