पथनमथिट्टा: अनुगीथ एजी, पिछले 10 दिन से अपने 10 महीने के बच्चे से नहीं मिली हैं। वह केरल के दक्षिणपूर्वी ज़िले पथनमथिट्टा में जनरल अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में स्टाफ़़ नर्स हैं।

उनकी 13 लोगों की टीम एक परिवार के उन पांच लोगों का इलाज कर रही है जो कोरोनावायरस के लिए पॉज़िटिव पाए गए हैं (परिवार के दो बुज़ुर्ग सदस्य भी संक्रमित हैं, जिन्हें एक दूसरे अस्पताल में भेजा गया है)। “इन लोगों के टेस्ट के नेगेटिव होने की पुष्टि और इनके डिस्चार्ज होने के बाद ही मैं जाना चाहती हूं,” उन्होंने इंडियास्पेंड को फ़ोन पर धीमी मगर आत्मविश्वास से भरी आवाज़ में बताया।

27 वर्षीय अनुगीथ ने इसी साल फरवरी में अस्पताल में स्टाफ़़ नर्स के तौर पर अपना एक साल पूरा किया था। इसके कुछ दिन बाद ही 8 मार्च को इटली से लौटे एक परिवार के संक्रमित होने का पता चला। वह 29 फरवरी को भारत आए थे।

कोविड-19 से लड़ने के लिए 24 घंटे काम कर रही टीम में अनुगीथ सबसे युवा हैं। इस वायरस से अब तक देश में आठ और दुनिया भर में लगभग 15,000 लोगों की मौत हो चुकी है। 23 मार्च, 2020 को रात बजे तक, देश के 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसके 467 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी, हेल्थचेक डेटाबस, कोरोनावायरस मॉनीटर के अनुसार।

23 मार्च तक केरल में इसके 67 पॉज़िटिव मामलों में से 9 दक्षिणपूर्वी पथनमथिट्टा ज़िले में हैं। देश में कोरोनावायरस के कुल मामलों में से लगभग 16% केरल में हैं। ज़िले में सभी नौ मामले एक ही परिवार में पाए गए हैं।

कोविड-19 से प्रभावित ज़िलों में, डॉक्टर, नर्स और सफ़ाई कर्मी आइसोलेशन वार्ड में अपनी थका देने वाली ड्यूटी चुपचाप कर रहे हैं।

नर्सिंग और सफ़ाई का ज़्यादातर स्टाफ़़ हर वक़्त एक ही मंज़िल पर आइसोलेशन रूम में रहता है, वह यहां से नहीं निकलते जिससे संक्रमण फैलने का ख़तरा न्यूनतम किया जा सके -- यह महत्वपूर्ण है क्योंकि इनमें से बहुत से लोगों के घर पर छोटे-छोटे बच्चे हैं। एक नज़र डालते हैं पथनमथिट्टा के आइसोलेशन वार्ड में इनके जीवन पर।

आइसोलेशन में जीवन

केरल में कोविडा-19 का पहला मामला 30 जनवरी को मिलने के बाद से, लक्षणों वाले सभी मरीज़ों – शुरुआती मरीज़ों के प्राथमिक और द्वितीय संपर्कों और विदेश यात्रा से लौटने वालों -- को उनके टेस्ट के परिणाम नेगेटिव आने तक आइसोलेशन में रखा जा रहा है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग के 18 मार्च के आंकड़ों के अनुसार, कुल 237 लोगों को घर पर आइसोलेशन में रखा गया है।

पथनमथिट्टा के जनरल अस्पताल में आइसोलेशन वार्ड पूरी तरह अंधेरे में नहीं है। “लेकिन, फिर भी यह एक डरावना माहौल है,” अनुगीथ ने कहा। “इसमें रहना आसान नहीं है, चाहे मरीज़ हो या अस्पताल का स्टाफ़। किसी वजह से यहां आने पर पाबंदियां हैं और लेकिन अगर लोगों को यहां आने की इजाज़त दे भी दी जाए, तो भी मुझे शक है कि कोई यहां आने की हिम्मत करेगा।”

पथनमथिट्टा के जनरल अस्पताल में आइसोलेशन रूम की ओर जाने वाला कॉरिडोर। वार्ड में ताज़ी हवा के लिए खिड़कियां खुली हैं, यह मरीज़ों और स्टाफ़़ के लिए बाहर की दुनिया देखने का एकमात्र साधन है।

अस्पताल के भुगतान वाले वार्ड को एक आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया गया है और सभी 10 कमरों में दो सिंगल बेड और एक बाथरूम है।

आइसोलेशन वार्ड की टीम में सात स्टाफ़ नर्स, एक हेड नर्स, दो नर्सिंग असिस्टेंट और तीन सफ़ाईकर्मी शामिल हैं, इनकी उम्र 27 से 56 साल के बीच है। स्टाफ़ नर्स में से पांच के 5 साल से कम उम्र के बच्चे हैं और वह अनुगीथ की तरह 24 घंटे वार्ड में ही रहती हैं, जबकि दो अन्य घर जाती हैं और रोज़ वापस लौटती हैं।

एक चौड़ा कॉरिडोर दोनों ओर बने कमरों की तरफ़ जाता है जहां तीन लोगों का परिवार -- पिता, मां और बेटा -- एक रूम में हैं। इन तीनों ने अपनी यात्रा की जानकारी छिपाई थी और हवाई अड्डे पर जांच से बच गए थे, और उन्होंने अपने दूसरे रिश्तेदारों को भी संक्रमित कर दिया था, उनमें से दो -- पिता का भाई और उनकी पत्नी -- अब उनके सामने वाले कमरे में आइसोलेशन में हैं।

पहला कमरा चार सिंगल बेड और बेड के साथ कुछ टेबल रखने के लिए पर्याप्त है, अनुगीथ ने फ़ोन पर बताया। वार्ड में ताज़ी हवा के लिए खिड़कियां खुली हैं, यह मरीज़ों और स्टाफ़ के लिए बाहर की दुनिया देखने का एकमात्र ज़रिया है। सामान्य तौर पर इस्तेमाल होने वाली -- हरे रंग की सफ़ेद बॉर्डर वाली बेड शीट को नियमित बेड कवर से बदल दिया गया है -- मरीज़ों के इस्तेमाल वाली हर चीज़ को रोज़ सुरक्षित तरीके से हटाया जाता है, उसका कभी दोबारा इस्तेमाल नहीं होता।

ज़िला टीम ने 29 फ़रवरी को परिवार के भारत पहुंचने के बाद उनकी यात्रा की जानकारी हासिल की। जब पांच स्वैब्स -- प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक -- और ब्लड सैम्पल को 6 मार्च को टेस्टिंग के लिए लिया गया था, तो आइसोलेशन वार्ड ऐसे अन्य मामलों के लिए तैयार हो चुके थे। इस परिवार के 8 मार्च को टेस्ट में पॉज़िटिव पाए जाने तक यहां किसी का भी टेस्ट पॉज़िटिव नहीं आया था।

पथनमथिट्टा जनरल अस्पताल में ख़ाली आइसोलेशन वार्ड। अधिकारियों ने टेस्ट में पॉज़िटिव पाए गए तीन लोगों के परिवार को एक रूम में रहने की इजाज़त दी है। पड़ोस के एक रूम में उनके ही दो रिश्तेदार हैं।

“अन्य मामलों के नेगेटिव होने का जब हमें पता चला तो यह हैरान करने वाला था। हम आइसोलेशन वार्ड में पांच मरीज़ों की देखभाल को लेकर अचानक चिंतित हो गए थे क्योंकि हमें ज़्यादा जानकारी नहीं थी और किसी को भी इस तरह की स्थिति से निपटने का अनुभव नहीं था,” अनुगीथ ने बताया।

“भुगतान वार्ड में आइसोलेशन के लिए बेड तैयार करने के लिए वहां भर्ती मरीज़ों को उनकी बीमारी की गंभीरता के आधार पर डिस्चार्ज या जनरल वार्ड में ले जाया गया था,” अस्पताल के रेज़ीडेंट मेडिकल ऑफ़िसर (आरएमओ), आशीष मोहनकुमार ने बताया। कोविड-19 को लेकर मेडिकल स्टाफ़़ में घबराहट थी क्योंकि हर एक चर्चा इससे जुड़ी थी।

अनुगीथ की तरह, मोहनकुमार ने भी अपनी छह साल की बेटी को 8 मार्च के बाद से नहीं देखा है, जो उनकी पत्नी के साथ अस्पताल से 30 किलोमीटर दूर थिरुवला में उनके घर पर हैं। “एक दिन में 12 से 14 घंटे बिताने के बाद मैं थक जाता हूं। मामलों के कम होने तक मैं घर से दूर ही रहना चाहता हूं। अगर मैं घर भी जाता हूं तो मुझे लगता है कि मैं अधिकांश समय फोन पर ही बिताउंगा,” उन्होंने बताया। वह अस्पताल के पास ही एक गेस्ट हाउस में रहते हैं।

पथनमथिट्टा जनरल अस्पताल में डॉक्टर नाज़लिन सलाम और आशीष मोहनकुमार। मोहनकुमार ने अपनी छह साल की बेटी को 8 मार्च के बाद से नहीं देखा है, जो अस्पताल से 30 किलोमीटर दूर थिरुवला में उनके घर पर उनकी पत्नी के साथ हैं। “एक दिन में 12 से 14 घंटे बिताने के बाद मैं थक जाता हूं। मामलों के कम होने तक मैं घर से दूर ही रहना चाहता हूं।” वह अस्पताल के पास एक गेस्ट हाउस में रहते हैं।

पॉज़िटिव मामलों की ख़बर आने के तुरंत बाद, सड़कों पर या अस्पताल में कोई नहीं था। “क्या आप किसी अस्पताल की कल्पना कर सकते हैं जहां लोग ही ना हों?” उन्होंने पूछा।

शुरुआती दिनों में, ख़बरें आने के बीच उनके रोजमर्रा के प्रशासनिक कामों में व्यस्त होने के कारण भोजन, पानी और ज़रूरी चीज़ों की व्यवस्था करने की जल्दबाज़ी में कोशिशें हो रही थी। “शुरुआत में, दुकानों के बंद होने और हर किसी के बीमारी से डरने की वजह से हम भोजन और पानी के लिए इधर-उधर दौड़ रहे थे। अब लोगों से हमें काफ़ी सहायता मिल रही है,” उन्होंने बताया। उन्होंने कपड़ों और बेडशीट के बॉक्स और दिन के अख़बारों का एक बंडल दिखाया जो कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें दिया था।

व्यक्तिगत सुरक्षा ‘आसान नहीं’

नाज़लिन सलाम (36) को जब यह बताया गया कि आइसोलेशन में अन्य मरीज़ों के सैम्पल नेगेटिव आए हैं तो वह खुश हो गईं। इसका मतलब था कि इस आइसोलेशन वार्ड में केवल पांच पॉज़िटिव मामले थे जिन्हें इस वार्ड फिज़िशियन को देखना था।

8 मार्च को, सलाम ने ही इटली से लौटे परिवार को बताया था कि उन्हें कोविड-19 है। उन्हें याद है जब वह अनिवार्य व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) पहनकर परिणामों की जानकारी देने के लिए उनके कमरे में गई थीं। “परेशान करने वाली जानकारी देना डॉक्टरों के लिए कुछ नया नहीं है। मैंने उन्हें बताया, ‘आप का टेस्ट पॉज़िटिव आया है और आपको परिणाम नेगेटिव आने तक आइसोलेशन में रहना होगा,'” उन्होंने बताया।

उन्हें शायद ऐसी ही उम्मीद थी, सलाम ने बताया, और उन्होंने हमेशा की तरह अपना काम किया। “यह बाकी दिनों की तरह था बस थोड़ा ज़्यादा अलर्ट और संवेदनशील होने की ज़रूरत थी।”

उनके और वायरस के बीच सुरक्षा की परत, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) पहनना उन्हें असहज लग रहा था। “पीपीई के अंदर असुविधा और उमस थी,” उन्होंने बताया। वह और उनके दोनों डॉक्टर सहकर्मी, जयश्री और सारथ ने मरीज़ों की जांच की और इन कपड़ों में उनके स्वैब लिए। लगातार पसीना आने और चश्मा धुंधला होने से काम में मुश्किलें आ रही थीं।

स्टाफ़ को प्रशिक्षण देने के दौरान सूट पहनने वाले मोहनकुमार को प्लास्टिक की अलग गंध याद थी, लेकिन सलाम और अनुगीथ ने कहा कि उन्हें इसकी आदत थी। “मुझे लगता है कि अस्पताल में मुझे गंध की काफ़ी आदत है, लेकिन मुझे शायद चमेली के फूलों की सुगंध का पता नहीं चलेगा,” सलाम ने मुस्कुराते हुए कहा। सलाम और अनुगीथ ने बताया कि एन-95 मास्क से गंध कम हो जाती है।

ऐसे सुरक्षा उपकरण पहनने से डॉक्टरों और नर्सों के बीच पहचान करना मुश्किल होता है। सलाम हर रोज़ मरीज़ों को अपना परिचय देती हैं: “मैं डॉक्टर नाज़लिन सलाम हूं, आपकी फिज़ीशियन।”

कुछ वक़्त पहले तक अस्पताल में 24 लोग आइसोलेशन में थे, इनमें ऐसे लोग शामिल थे जिनमें लक्षण थे लेकिन उनका टेस्ट पॉज़िटिव नहीं था। सलाम को याद है कि किस तरह वह रोज़ाना सभी 24 मरीज़ों की जांच के लिए उनके पास जाती थीं। शुरुआत उनसे होती थी जो टेस्ट में पॉज़िटिव नहीं थे। इसमें लगभग दो घंटे लगते थे, पीपीई पहनने और उतारने में लगे 15 मिनट समेत।

पथनमथिट्टा जनरल अस्पताल में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण पहने डॉक्टर और नर्स।

“मुझे स्टेथस्कोप का इस्तेमाल करना मुश्किल लग रहा था क्योंकि अपनी त्वचा को हम बाहर नहीं निकाल सकते।” वह स्टेथस्कोप को कमरे में रखती हैं और इसे हर बार इस्तेमाल करने से पहले सेनेटाइज़र से साफ़ करती हैं, और कमरे से बाहर आने और सूट उतारने के बाद जांच के बिंदुओं को लिखती हैं, क्योंकि वह कमरे में पेन और पेपर नहीं ले जा सकती।

बिना एयरकंडीशन वाले रूम में, उमस और उसके बाद पसीना आने से मुश्किल हो जाती है, अनुगीथ ने बताया। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि आप इसे अधिकतम 30 मिनट तक पहन सकते हैं।” प्लास्टिक जैसी सुरक्षा की परत, दस्तानों की दो परतें, एक मास्क, चश्मा और जूतों पर प्लास्टिक का सुरक्षा कवर जो लगभग घुटनों तक जाता है। कई बार तो जांच में लंबा समय लगता है।

अब अनुगीथ को सूट पहनने में पांच मिनट लगते हैं।

टीम को दोहरी सतर्कता रखनी पड़ती है - उन्हें यह सूट एक निर्धारित रूम में उतारना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि पीपीई को पीछे से खोला और अंदर की ओर मोड़ा जाए, और इसके बाद नीचे बैठकर बाकी के सुरक्षा कपड़े उतारना, पूरे समय सुरक्षा उपकरण के साथ त्वचा को छूने से बचाते हुए। इसके बाद पीपीई को एक पीले रंग के बायोहजार्ड बैग में सुरक्षा से रखा जाता है। सुरक्षा से जुड़े इन कामों में लगभग आठ मिनट लगते हैं। नर्स स्टेशन “अधिकतम संभव दूरी” पर है -- चार रूम दूर – जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई संपर्क न हो, अनुगीथ ने बताया। नर्सों को स्वास्थ्य जांच में सहायता करनी, और भोजन परोसना होता है।

मामलों के अधिक होने पर, जनरल अस्पताल ने एक दिन में 50 पीपीई किट का इस्तेमाल किया था, इनमें एंबुलेंस ड्राइवर और अन्यों के लिए किट शामिल थी जो संदिग्ध मामलों के निकट संपर्क में आते हैं। यह संख्या अब घटकर 40 हो गई है, आरएमओ, मोहनकुमार ने बताया।

भोजन और मानसिक स्वास्थ्य

स्टाफ़़ तीन शिफ़्ट में काम करता हैः सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे, दोपहर दो बजे से रात आठ बजे और रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक। शुरुआत के तीन दिन में, उन्होंने एक मज़बूत और अच्छा सिस्टम बनाने के लिए ज़्यादा वक़्त तक काम किया था। “क्या करने की ज़रूरत है इसे साफ़ करने और समझने के लिए स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ निरंतर बातचीत करने से हमने प्रक्रिया तैयार की थी,” अनुगीथ ने बताया।

सुबह की शिफ़्ट में दवाएं देना, भोजन परोसना और सफ़ाई को सुनिश्चित करने समेत मेडिकल ज़रूरतें पूरी की जाती हैं; दोपहर की शिफ़्ट में मैगज़ीन या पुस्तकें उपलब्ध कराकर मरीज़ों का मनोरंजन करने की कोशिश की जाती है और भोजन दिया जाता है, और ज़रूरत पड़ने पर मनोवैज्ञानिक सहायता उपलब्ध कराई जाती है। “रात की शिफ़्ट में अगले दिन के लिए दवा या भोजन या किसी दूसरी ज़रूरतों की तैयारी होती है,” अनुगीथ ने बताया।

भोजन में चावल, कांजी, फल और नट्स, अंडे, मछली और मीट, चपाती और चाय शामिल होती है।

जो मरीज़ लगभग दो सप्ताह तक कमरे से बाहर नहीं आ सकते, उनके लिए आइसोलेशन मुश्किल हो सकता है। वह कई बार अपने परिवार के साथ वीडियो चैट करते हैं, जिससे उन्हें कुछ राहत मिलती है। ज़रूरत पड़ने पर, पीपीई पहने मनोचिकित्सक उनकी काउंसलिंग करते हैं। “अगर वह अकेले में बातचीत करना चाहते हैं, तो हम बाहर आ जाते हैं,” अनुगीथ ने कहा,

केवल मरीज़ों को ही डिप्रेशन वाला माहौल नहीं लगता, अनुगीथ ने कहा। “ऐसे मुश्किल मौक़े आते हैं लेकिन हम एक दूसरे के साथ सहानुभूति वाले शब्द बोलते हैं और खुश रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन अगर काउंसलिंग की ज़रूरत होगी, तो हम हिचकिचाएंगे नहीं।”

अनुगीथ, सलाम, और मोहनकुमार जैसे डॉक्टर और नर्स इससे खुश हैं कि इन मुश्किल स्थितियों में उन्हें अपने परिवारों से सहयोग मिल रहा है। “हमें अपने परिवारों से सहयोग मिल रहा है, लेकिन टीम से प्रेरणा मिलती है,” अनुगीथ ने कहा। “हेड नर्स जल्दी ही रिटायर होने वाली हैं लेकिन वह हमेशा की तरह समर्पित हैं और उनका अनुभव महत्वपूर्ण है। ऐसे ही सफ़ाईकर्मी भी हैं जो हर रोज़ कचरा हटाने का काम करते हैं।”

(पलिअथ, इंडियास्पेंड के साथ एनेलिस्ट हैं।)

यह रिपोर्ट अंग्रेज़ी में 19 मार्च 2020 को IndiaSpend पर प्रकाशित हुई, जिसका हिंदी के लिए अपडेट के साथ 23 मार्च को अनुवाद किया गया।

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