ILO TB PROJECT

नई दिल्ली: भारत अपने आप को आयुषमान भारत के लिए तैयार कर रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवा को कवर करती है, लेकिन उधर एक अध्ययन के मुताबिक छत्तीसगढ़ राज्य के सार्वजनिक अस्पतालों में जेनेरिक दवाओं की खराब उपलब्धता है।

छत्तीसगढ़ ने 2013 में अपनी सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में मुफ्त जेनेरिक दवाओं तक पहुंच की गारंटी देने वाली नीति की घोषणा की थी। इस नीति के तहत उपचार करने वाले डॉक्टरों को कहा गया था कि वे मरीजों के लिए आवश्यक दवा सूची (ईडीएल) में केवल जेनेरिक दवाएं लिखें। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार आवश्यक दवाएं आबादी की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल जरूरतों को पूरा करती हैं। छत्तीसगढ़ राज्य में सूचीबद्ध ऐसी 796 दवाएं हैं।

अध्ययन में, छत्तीसगढ़ के 15 जिलों में 100 सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं से 1,290 चिकित्सकों के एक विश्लेषण से पता चला है कि लगभग 68 फीसदी दवाएं सामान्य और ईडीएल थीं, लेकिन प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में मरीजों को केवल 58 फीसदी ही उपलब्ध थी । ‘एक्सेस एंड एवेब्लीटी ऑफ एसेंशियल मेडिसिन इन छत्तीसगढ़: सिचुएशन इन पब्लिक हेल्थ फेसिलिटी’ नाम की यह रिपोर्ट जनवरी-फरवरी, 2018 में ‘जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर ’ में प्रकाशित किया गया था।

यह अध्ययन 2013-14 में मुफ्त जेनेरिक दवा योजना के काम करने के तरीकों के मूल्यांकन के रूप में रायपुर में राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र द्वारा आयोजित किया गया था।

2003 में, छत्तीसगढ़ भारत में ईडीएल की सूची बनाने वाला पहला राज्य था, और 2011 में सरकार ने सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं द्वारा आवश्यक दवाओं, शल्य चिकित्सा वस्तुओं और चिकित्सा उपकरणों की केंद्रीकृत खरीद, भंडारण और आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के लिए ‘छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ की स्थापना की थी।

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए आवश्यक दवाओं की आसान उपलब्धता महत्वपूर्ण है। 50 देशों के निम्न मध्यम आय वर्ग में भारतीय छठे सबसे बड़े आउट-ऑफ-पॉकेट (ओओपी) स्वास्थ्य व्ययकर्ता हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2017 की रिपोर्ट में बताया है। और स्वास्थ्य पर कुल घरेलू व्यय का लगभग 70 फीसदी दवाओं पर है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में अनुमानित 469 मिलियन लोगों को आवश्यक दवाओं तक नियमित पहुंच नहीं है।

विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि स्वास्थ्य देखभाल पर बढ़ते आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय सालाना 32-39 मिलियन भारतीयों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल रहे हैं।

"जेनेरिक दवाओं के कवरेज और पर्चे में सुधार पर ध्यान देने के बिना, हम ऐसी परिस्थिति में हम कुछ नहीं कर सकते हैं,क्योंकि जहां ओओपी स्वास्थ्य खर्च में समान कमी के बिना सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च बढ़ जाता है," जैसा कि बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और विश्व बैंक से जुड़े विकास अर्थशास्त्री राजीव अहुजा बताते हैं।

35 फीसदी निर्धारित दवाओं की खरीद निजी सुविधाओं पर

जेनेरिक दवाओं (68 फीसदी) के साथ पर्चे के कुल प्रतिशत के मुकाबले, 55 फीसदी पर रायगढ़ सबसे नीचे है, जैसा कि अध्ययन में बताया गया है। हालांकि, सर्वेक्षण किए गए जिलों में से एक तिहाई में, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में 50 फीसदी से कम जेनेरिक दवाएं उपलब्ध थीं, सबसे कम बिलासपुर जिले में लगभग 38 फीसदी दवाएं उपलब्ध थीं।

सभी सर्वेक्षण किए गए स्वास्थ्य केंद्र में 35 फीसदी से अधिक जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं को निजी सुविधाओं से खरीदा गया था। नारायणपुर ने सामान्य रूप से 87.37 फीसदी और 84.15 फीसदी पर सामान्य पर्चे और उपलब्धता के उच्चतम प्रतिशत की सूचना दी है।

लेकिन छत्तीसगढ़ में 2011 में राज्य की कमी के मुकाबले वर्तमान स्थिति में सुधार है। 2011 में तब आवश्यक बाल चिकित्सा दवाओं में से केवल 17 फीसदी उपलब्ध थे।

पंजाब और हरियाणा में, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में केवल 45.2 फीसदी और 51.1 फीसदी निर्धारित दवाएं उपलब्ध थीं।

अन्य राज्यों में किए गए अध्ययनों ने इसी तरह की समस्याओं को दिखाया है। गुजरात के जामनगर गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में, निर्धारित दवाओं में से केवल 63.34 फीसदी जेनरिक थीं। दक्षिणी भारत में, केवल 49.78 फीसदी दवाएं आवश्यक दवा की सूची से थीं।

25 मई, 2018 को इंडियास्पेंड द्वारा किए गए रिपोर्ट के अनुसार, आईआईटी-मद्रास द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (मानव संसाधन, दवाओं और निदान) को अपग्रेड करने के छह महीने के भीतर, मरीजों पर वित्तीय बोझ में गिरावट आई थी।

(जॉन एक सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवर हैं । वह नई दिल्ली के ‘कैंपबेल कोलाब्रेशन’ में ‘एविडन्स सिन्थिसिस स्पेशलिस्ट’ के रूप में काम करते हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 जून, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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