क्यों है अफगानिस्तान भारत के लिए महत्वपूर्ण
अफगानिस्तान में बन रहे पार्लियामेंट भवन के आगे खड़ा एक भारतीय कामगार। यह भवन भारतीय सरकार की सहायता से बनाया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही अफगानिस्तान की नव निर्मित पार्लियामेंट भवन के उद्घाटन समारोह में शिरकत कर सकते हैं। 710 करोड़ रुपए की लागत से बना अफगानिस्तान का पार्लियामेंट भवन बनानें में न सिर्फ भारत ने वित्तिय सहायता प्रदान की है बल्कि इसका निर्माण भी भारत द्वारा ही किया गया है।
पार्लियामेंट भवन के निर्माण के लिए भारत द्वारा अफगानिस्तान को 2 बिलियन डॉलर ( 1,2800 करोड़ रुपए ) की सहायता देना भारत का अफगानिस्तान के प्रति समर्थन को दर्शाता है जोकि पूरी तरह से बिखरने के बाद एक बार फिर से स्थायी प्रजातंत्र स्थापित करने की कोशिश में है।
अफगानिस्तान के पार्लियामेंट भवन का निर्माण भारत के केंद्रीय लोक निर्माण विभाग द्वारा साल 2009 में आरंभ किया गया था। यह भवन अपने निर्धारित लक्ष्य से तीन साल की देरी से बन कर अब पूरा होने को है।
इस भवन के पूरा होने से पहले की 22 जून 2015 को आतंकवादियों के हमले का शिकार बन चुकी है। एक बार पूरी तरह तैयार होने के बाद यह भवन आतंकवादी हमलों एवं भूकंप के झटकों से बचने के लिए पूरी तरह सक्षम हो जाएगी। इस भवन में भूकंप के 8 रिचर स्केल तक के झटके सहने की क्षमता है।
साल 2011 में अफगानिस्तान के साथ सामरिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद से पिछले चार सालों में भारत अफगानिस्तान की 2,000 करोड़ रुपए ( 300 मिलियन डॉलर ) की मदद कर चुका है।
लोकसभा के आंकड़ो के मुताबिक साल 2011 से लेकर साल 2014 तक में वित्तिय सहायता राशि में 80 फीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2011-12 में यह आंकड़े 327 करोड़ दर्ज किए गए थे जबकि साल 2013-14 में यह बढ़कर 585 करोड़ दर्ज किए गए है।
अफगानिस्तान को भारत की मदद
Source: Lok Sabha; *till January 2015
अफगानिस्तान के साथ ईरान तक भी पहुंचती है भारत की मदद
पश्चिम अफगानिस्तान के हेरात इलाके में 1,500 करोड़ रुपए की लागत से बांध निर्माण सहित, अफगानिस्तान के कई निर्माण कार्यों में भारत ने सहायता की है। बांध बन जाने के बाद यह 42 मेगावाट (एमडब्लू) बिजली बनाने सहायक होगी। वर्तमान में विश्व स्तर पर अफगानिस्तान सबसे न्यूनतम प्रति व्यक्ति बिजली बनाती है। हाल ही में किए गए एक विश्लेषण के मुताबिक देश में बिजली की गंभीर समस्या है। राजधानी काबुल में बिजली 15 घंटे तक नहीं रहती है।
Project Details | Year | Amount Spent (In Rs Crore) |
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Reconstruction and completion of Salma Dam Power Project (42 MW) in Herat Province. (2011-12 to 2014-15) | 2011-12 to 2014-15 | 601.6 |
Construction of the Afghan Parliament Building at Kabul | 2011-12 to 2014-15 | 260.2 |
Doshi and Charikar Power Project | 2011-12 to 2014-15 | 74.9 |
Wheat to Govt. of Afghanistan | 2011-12 to 2014-15 | 476.5 |
Setting up of an Afghan National Agriculture Science and Technology University in Kandahar, Afghanistan | 2013-14 to 2014-15 | 4 |
Small Development Projects (SDP I&II) in Afghanistan | 2011-12 to 2014-15 | 104.8 |
Restoration of Stor Palace in Kabul | 2012-13 to 2014-15 | 17 |
Source: Lok Sabha
साल 2009 में मनमोहन सरकार द्वारा, अनाज की कमी से जूझ रहे अफगानिस्तान को 250,000 मिटरिक टन गेहूं उपलब्ध कराने की संकल्प को पूरा करने के लिए साल 2011-12 से लेकर 2014-15 तक भारतीय सरकार ने 476 करोड़ रुपए खर्च किया है।
भारतीय बॉर्डर सड़क संस्था ( बीआरओ ) 600 करोड़ रुपए की लागत से 218 किलोमीटर सड़क का निर्माण कर रही है। यह सड़क ज़रंज़ से दक्षिण-पश्चिमी अफगानिस्तान के डेलारम शहर तक जाएगी। यह अफगानिस्तान हाईवे के ज़रिए अफगान के हेरात, कंधार, काबुल एवं मज़ार-ए-शरीफ होते हुए ईरान के चाहबहार बंदरगाह तक पहुंचने का महत्वपूर्ण लिंक है। इस सड़क के ज़रिए अफगान बॉर्डर तक सेंट्रल एशियन देशों की पहुंच भी आसान बनेगी।
मई 2015 में भारत ने ईरान के साथ चाहबहार बंदरगाह बनाने के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किया है।
भारत की उर्जा सुरक्षा के लिए अफगानिस्तान बेहद महत्वपूर्ण है,क्योंकि टीएपीआई परियोजना के लिए एक पाइप लाइन तुर्कमेनिस्तान से होता हुआ भारत लाया जाएगा।अफगानिस्तान कई क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों की निवेश की क्षमता भी दर्शाता है।
अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार अफगानिस्तान लगभग एक ट्रिलियन डॉलर जमा के संसाधन जमा करने में सक्षम है। भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की स्टील अथॉरिटी ( सेल ) के नेतृत्व में छह भारतीय कंपनियों की एक संघ ने 2011 में बामियान प्रांत में स्टील खान की बोली जीती है। यह कंपनि 10.8 बिलियन डॉलर ( 69,120 करोड़ रुपए ) का निवेश करेगी।
भारतीय कंपनियों के लिए अफगानिस्तान में बेहतर निवेश क्षमता
अफगानिस्तान एवं भारत के संबंध हमेशा आतंकवादियों के निशाने पर रहे हैं। साल 2008 एवं 2009 में काबुल में भारतीय दूतावास पर आतंकी हमला किया गया था। साल 2014 में हेरात एवं 2013 में जलालाबाद में वाणिज्यदूतावास पर हमला हुआ था। भारत ने इन हमलों का आरोप पाकिस्तान पर लगाया था।
लेकिन सामरिक महत्व के साथ-साथ अफगानिस्तान के साथ भारतीय कंपनियों के लिए व्यापार की बेहतर क्षमता होने के कारण दोनों देशों के संबंध बेहद महत्वपूर्ण हैं।
मोनिष तोउरंगब्म, भूराजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध , मणिपाल विश्वविद्यालय के विभाग में सहायक प्रोफेसर के अनुसार “ भारत की अभिरुचि आर्थिक रुप से स्थायी, राजनीतिक रुप से स्थिर एवं सामाजिक रुप से समावेशी अफगानिस्तान में नीहित है”।
अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति खराब हो गई है । अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन ( यूएनएमए ) की आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में संघर्ष संबंधित जनहानि ( मृत्यु एवं घायल ) की संख्या दोगुनी हुई है। साल 2009 में यह आंकड़े 5,968 दर्ज की गई थी जबकि साल 2014 में यह आंकडे बढ़कर 10,548 दर्ज की गई है। इसके बाद ही 13 साल पुराने अमेरिकी नेतृत्व के हस्तक्षेप का अंत होता है।
अफगानिस्तान में संघर्ष-संबंधित जनहानि
Source: United Nations Assistance Mission in Afghanistan
तोउरंगब्म ने बताया कि भारत की 2 मिलियन डॉलर की विकास सहायता का कार्यान्वयन, अमरिका के नेतृत्व में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल ( आईएसएएफ ) की सुरक्षा के अंदर तैयार की गई है।
सेना वापसी के बाद अफगानिस्तान की सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा बल ( एएनएसएफ ) पर पूरी तरह से निर्भर है।
वर्तमान समय में सुरक्षा बल तालिबानी विद्रोहियों के साथ गतिरोध बनाए रखने की संघर्ष कर रही है। द न्यू यॉर्क टाइम्स के आंकड़ों के अनुसार साल 2014 की तुलना में इस साल पहले ही , अफगान सुरक्षा बलों की होने वाली मौतों में 50 फीसदी से अधिक वृद्धि देखी गई है।
भारत ने अफगान नेश्नल आर्मी ( एएनए ) के कर्मियों को भारतीय सैन्य संस्थान जैसे कि भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण दिया है। भारत ने ट्रक, जीप और हेलीकॉप्टर जैसे सैन्य हार्डवेयर उपलब्ध कराने में मदद की है लेकिन तालिबानियों के हाथ लगने के डर से घातक हथियार जैसे कि टैंक और तोप उपलब्ध कराने में इच्छुक नहीं है।
( सेठी इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 31 जुलाई 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है|
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