बेंगलुरु: चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति जैसे अनियमित वर्षा होना, जिसकी जलवायु परिवर्तन पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल (आईपीसीसी) ने अपनी अक्टूबर 2018 रिपोर्ट में संभावना जताई थी, वह भारत में पहले से ही दिखाई दे रहा है। असम, पश्चिमी महाराष्ट्र और केरल के बड़े हिस्से इस मानसून में डूब गए । एक बार बाढ़ आने के बाद, पानी के ठहराव के कारण अब लोगों को मलेरिया और डेंगू जैसी वेक्टर जनित बीमारियों के जोखिम का सामना करना पड़ेगा।

इस गर्मी में 65 फीसदी भारतीयों ने मई और जून के महीनों में हीटवेव का सामना किया। 2018 में ये आंकड़े 53 फीसदी थे। इस चरम गर्मी का स्वास्थ्य और उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है और इससे मौतें हो सकती हैं।

यह मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन का अनुभव करने वाले सबसे स्पष्ट तरीकों में से एक है।

डब्ल्यूएचओ में पब्लिक हेल्थ,इन्वाइरन्मेन्टल एंड सोशल डिटर्मनन्ट्स ऑफ हेल्थ की निदेशक 57 वर्षीय मारिया नीरा के अनुसार, इस तथ्य की बहुत कम मान्यता है।उन्होंने एक साक्षात्कार में इंडियास्पेंड को बताया, "जलवायु परिवर्तन केवल ध्रुवीय भालू और ग्लेशियरों के पिघलने के बारे में नहीं है, यह हमारे फेफड़ों के बारे में भी है।"

हर साल अनुमानित 70 लाख लोग वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले मर जाते हैं। लेकिन जब लोग प्रदूषित वायु और स्वास्थ्य के बीच संबंध देखते हैं, तो वे यह नोटिस करने में विफल रहते हैं कि जलवायु परिवर्तन का कारण बनने वाली कई गैसें वायु प्रदूषण का कारण बनती हैं।

1990 के मुकाबले आर्कटिक में सर्दियों के तापमान में पहले से ही 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन के लिए शमन रणनीतियों के साथ-साथ इसके प्रभाव पर चर्चा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र 23 सितंबर, 2019 को जलवायु शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहा है। उसी दिन वर्ल्ड बॉडी यूनीवर्सल हेल्थ कवरेज (यूएचसी) तक पहुंच पर चर्चा करने के लिए एक उच्च-स्तरीय बैठक की भी मेजबानी करेगा।

इंडियास्पेंड के साथ टेलीफोन पर बातचीत में, नीरा ने जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन में निवेश पर मिलने वाले स्वास्थ्य और आर्थिक लाभ पर जोर दिया। 1993 में डब्ल्यूएचओ में शामिल होने से पहले, नीरा ने अफ्रीका में मोजांबिक और रवांडा में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर काम किया था। सशस्त्र संघर्ष के दौरान उन्होंने दक्षिण में सल्वाडोर और होंडुरास में शरणार्थी शिविरों में अंतरराष्ट्रीय मानवीय चिकित्सा नेटवर्क, मेडेसिन्स सन्स फ्रंटियर (डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स) के लिए एक चिकित्सा समन्वयक के रूप में भी काम किया है।

उनसे साक्षात्कार के संपादित अंश:

2018 डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले 15 देशों में,वायु प्रदूषण का जो स्वास्थ्य है, उसकी लागत उनके सकल घरेलू उत्पाद का 4 फीसदी आने का अनुमान है। इस संकट से निपटने की चुनौतियां क्या हैं?

मैं यह कहकर शुरुआत करना चाहूंगी कि जलवायु परिवर्तन हर किसी को प्रभावित कर रहा है - चाहे आप एक विकासशील देश में हों या एक विकसित देश में। ग्रामीण क्षेत्र हो या शहरी क्षेत्र - हम सभी जोखिम में हैं। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है। जाहिर है, कमजोर देश वे होंगे जो जलवायु परिवर्तन के परिणामों का सामना करने की क्षमता नहीं रखते हैं। और परिणाम इस कारण सामने होंगे कि आपके पास सूखा, बाढ़ या हीटवेव जैसी मौसम संबंधी आपदाएं होंगी। ये आपदाएं बढ़ती जाएंगी। वेक्टर जनित रोग जैसे मलेरिया या डेंगू विशेष रूप से आर्द्रता और मौसम की स्थिति के कारण बढ़ेंगे।

जलवायु परिवर्तन के साथ समस्या यह है कि यह हमारे स्वास्थ्य के प्रमुख स्तंभों पर हमला करता है और हमें अस्थिर कर देता है। सुरक्षित पानी, भोजन और आश्रय तक पहुंच बनाने की हमारी क्षमता इससे प्रभावित होती है। जलवायु परिवर्तन से हवा की गुणवत्ता जुड़ी है, जिस हवा में हम सांस लेते हैं। यदि हमारे पास सूखा है, जो इससे कृषि उत्पादन खतरे में हो जाता है और भोजन की कमी पैदा कर सकता है। लोग इस वजह से पलायन शुरू कर देंगे कि उनके पास खाना नहीं है और जाहिर है कि पानी के साथ भी ऐसा ही होगा। जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण के कारण बहुत समान हैं। हम एक बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण की स्थिति देख रहे हैं। इसलिए, यह सब मिलकर हमारे स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करता है।

भारतीय शहरों में दुनिया की सबसे खराब वायु गुणवत्ता है। डब्ल्यूएचओ की ओर से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में 15 में से 11 स्लॉट पर भारतीय शहर कब्जा करते हैं। इस समस्या पर क्या कहेंगी आप?

मुझे लगता है कि सबसे पहले इस तथ्य को पहचानना होगा कि वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। हमें प्रदूषण के स्रोतों का आकलन करना होगा। सभी देशों के समान स्रोत नहीं होंगे। भारत को लेकर ऐसा आकलन किया गया है। बहुत अच्छे अध्ययन और बहुत अच्छी योजनाएं भी हैं।

मुझे लगता है कि अब यह उन सभी कार्यों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छा को तेज करने की जरूरत है। भारत में आपके पास बहुत अच्छे विशेषज्ञ हैं, बहुत अच्छे वैज्ञानिक हैं और बहुत अच्छे योजनाकार हैं; बहुत अच्छी राष्ट्रीय योजनाएं हैं और शहर की योजनाएं भी अच्छी हैं। मुझे लगता है कि अब सवाल उन योजनाओं को तेज करने की है और इसपर अडिग होने की है कि वायु प्रदूषण से होने वाली मृत्यु दर पूरी तरह से अस्वीकार्य है। तथ्य यह भी है कि कई प्रकार की पुरानी बीमारियां हैं, जो वायु प्रदूषण और अस्पताल में भर्ती होने के कारणों से जुड़ी हैं।

हम अच्छी तरह से जानते हैं कि यह एक बहुत ही बुद्धिमान आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य निवेश है। वायु प्रदूषण से निपटने से न केवल स्वास्थ्य बल्कि देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी भारी लाभ होगा।

आपने शहरी योजनाकारों की आवश्यकता के बारे में लिखा है कि हमारे शहरों को और अधिक खुले स्थानों के साथ बेहतर ढंग से डिजाइन करने के लिए जलवायु को ध्यान में रखना आवश्यक है। एक ही शहर के भीतर भी जलवायु परिवर्तन निवासियों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करेगा कि वे ऊंचे मकानों में रहते हैं या एयर कंडीशनिंग के खर्च को बर्दाश्त कर सकते हैं या शीतलन विकल्पों तक पहुंच के बिना झुग्गी में रह सकते हैं। इक्विटी को जलवायु परिवर्तन के लिए नीतियों को कैसे फ्रेम करना चाहिए, इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए, क्या आर ऐसा नहीं मानती हैं?

यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। यदि आप झुग्गियों में रह रहे हैं, जहां आपके पास जलवायु परिवर्तन से निपटने और अनुकूलन करने की क्षमता नहीं है। उदाहरण के लिए, आपके पास पानी की कमी है तो आप वेक्टर-जनित रोगों में वृद्धि देख सकते हैं। आपके पास कई तरह की वैसी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हो सकती हैं जो जलवायु परिवर्तन के लिए अनुकूल हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आपके पास अपने कृषि उत्पादन में विविधता लाकर जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया से निपटने की क्षमता नहीं हो सकती है।

गरीब आबादी, जो ग्रीनहाउस गैसों के प्रदूषण के कारणों में योगदान करने वाली नहीं हैं, वे सबसे अधिक प्रभावित हैं। यह बहुत ही अनुचित है। अगर हम दुनिया का नक्शा उन देशों को रखते हुए देखते हैं जो सबसे अधिक वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं, तो वे लोग सबसे कम प्रभावित दिखते हैं। जबकि अफ्रीका जैसे महाद्वीप, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए बहुत कम जिम्मेदार हैं, उनमें से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

भारत के मामले में देखें तो, मलिन बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्र सीओ 2 उत्सर्जन में ज्यादा योगदान नहीं दे रहा है, लेकिन नाटकीय रूप से जलवायु परिवर्तन के परिणाम भुगत रहे हैं। इसलिए, यहां इक्विटी का मुद्दा है। गरीब लोग सबसे ज्यादा पीड़ित हैं।

यूएचसी के साथ-साथ जलवायु शिखर सम्मेलन की उच्च-स्तरीय बैठक, एक ही दिन है। सार्वजनिक स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के रुख के बावजूद बैठकों की अतिव्यापी तारीखें नीति निर्माताओं को एक दूसरे को चुनने के लिए मजबूर करेंगी। इससे संयुक्त राष्ट्र द्वारा दुनिया के बाकी हिस्सों को भेजे गए मिश्रित संदेश के बारे में पहले ही सवाल उठ चुके हैं।

खैर, यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्वास्थ्य बहुत महत्वपूर्ण है, हम जलवायु शिखर सम्मेलन में महासचिव (यूएन) के साथ बहुत मेहनत कर रहे हैं कि मुझे लगता है कि हम सफल हुए हैं, क्योंकि महासचिव के कार्यालय ने अब यह माना है कि जलवायु परिवर्तन का चौंकाने वाला प्रभाव एक सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंडा है।

जब हम जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हैं, तो वायु प्रदूषण और इस तथ्य के बारे में सोचें कि वायु प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख मौतें समय से पहले होती हैं। वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण लगभग 70 फीसदी ओवरलैप होते हैं।

यह अभी भी दुनिया की आधी आबादी को प्रभावित कर रहा है। हमारे लिए यह एक स्वास्थ्य एजेंडा है। जलवायु परिवर्तन एक स्वास्थ्य एजेंडा है।

हमारी दो बड़ी स्वास्थ्य प्रतिबद्धताएं हैं। एक देश डब्ल्यूएचओ की वायु गुणवत्ता मानकों का समर्थन करने का अनुरोध कर रहा है। यदि हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि देश उस प्रतिबद्धता का समर्थन करते हैं तो देशों को उस प्रदूषण को कम करने के लिए एक बेहतर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की आवश्यकता होगी।

आप अक्षय ऊर्जा में अधिक निवेश करेंगे तो आप प्रदूषण कम करेंगे। आप लोगों के लिए घरेलू स्तर पर क्लीनर ईंधन तक पहुंच बढ़ाएंगे और इसका मतलब होगा कि आप निमोनिया को कम करेंगे, फेफड़ों के कैंसर की दर को कम करेंगे, सीओपीडी (पुरानी प्रतिरोधी फेफड़े की बीमारी) को कम करेंगे, स्ट्रोक को कम करेंगे और इस्केमिक हृदय रोग को कम करेंगे।

बैठकें एक ही दिन होने के कारण, नीति निर्माता और विभिन्न देशों के नेता एक दूसरे को चुनने के लिए मजबूर होंगे।

मुझे नहीं पता कि यह कैसे हुआ। मुझे लगता है कि यह एक प्रक्रिया का नतीजा था कि यूएचसी हाई लेवल इवेंट पहले से ही प्रस्तावित थी और तब महासचिव ने कहा कि उन्हें एक जलवायु शिखर सम्मेलन करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह बहुत जरूरी था। लेकिन मुझे एक-दूसरे से ताकत प्राप्त करने का अवसर दिखता है और कहा जा सकता है कि ठीक है, कोई सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज नहीं है यदि आप सुनिश्चित नहीं करते हैं कि आपकी स्वास्थ्य सुविधाएं जलवायु परिवर्तन के लिए अनुकूल हैं।

हर तीन भारतीयों में से लगभग दो इस गर्मी में घातक हीटवेव के संपर्क में आए हैं। 2017 के एक अध्ययन के अनुसार, पिछले तीन दशकों में लगभग 59,000 किसान मौतों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा सकता है। फिर भी, विज्ञान के बावजूद कई देशों में शमन और अनुकूलन के मामले में कार्रवाई बहुत धीमी है। कोई इस अंतर को कैसे दूर कर सकता है?

जब भी मैं वायु प्रदूषण के बारे में बात करती हूं, उदाहरण के लिए, हमारे सामने यह तथ्य है कि हमने 70 लाख मौतों को देखा है। मैं हमेशा कह रहा हूं कि राजनेताओं से अनुरोध किया जाएगा कि वे अपनी कमी पर जवाबदेही तय करें, कभी-कभी अदालतों में भी और यह ब्रिटेन और फ्रांस में भी हो रहा है।

लोग यह नहीं कह सकते हैं कि "मुझे यह पता नहीं है।" यह इस बात पर निर्भर करेगा कि एक सभ्य समाज के रूप में हम उस विज्ञान को और अधिक उपयोगी बनाने पर कैसे जोर देंगे। कैसे हम अपने राजनेताओं पर दबाव डालते हैं कि वे तेजी से इस दिशा में अधिक महत्वाकांक्षी हों।

हम पिछले दो वर्षों में विशेष रूप से इस काम को बहुत मजबूती से करने की कोशिश कर रहे हैं कि डब्ल्यूएचओ वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को जोड़ कर देखे।

लोग अस्थमा और वायु प्रदूषण के बीच संबंध को समझते हैं, उनके लिए यह बहुत आसान है। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझना थोड़ा अधिक कठिन है, लेकिन वे हवा की खराब गुणवत्ता और उनके स्वास्थ्य के बीच संबंध को देखते हैं। यह सिर्फ बड़े ग्लेशियरों और ध्रुवीय भालुओं बात नहीं है। जब हम जलवायु परिवर्तन के बारे में बात करते हैं तो हमें अपने फेफड़ों के बारे में भी बातें करनी होगी।

उपलब्ध विज्ञान के आधार पर नीति निर्माताओं के लिए मुख्य टेकअवे क्या है? इसके अलावा, हमारे पास कितना समय है?

राजनेताओं को जो संदेश मैं दे रहा हूं, वह अनुकूलन और शमन की दृष्टि से यह एक अच्छा निवेश है। यहां केवल स्वास्थ्य में नहीं, दूसरे बड़े लाभ आएंगे। लागत पूरी तरह से रिटर्न पर कवर होगा। अपने अर्थशास्त्र को भी आप टेबल पर रखें। अमीर देशों को देखें, स्कैंडिनेवियाई... वे पर्यावरण के अनुकूल हैं और बहुत समृद्ध हैं। यह विचार, कि पर्यावरण को नष्ट किए बिना कोई अर्थव्यवस्था विकसित नहीं हो सकती, नकली है, गलत है... गलत है। हमारे फेफड़ों और हमारे पर्यावरण को नष्ट किए बिना चीजों को करने में कई प्रमुख आर्थिक हित हैं। यह एक संदेश है।

दूसरा, यह कि यहां सिर्फ 2050 का सवाल नहीं है। यहां सवाल यह है कि कितने फेफड़े हैं या कितनी जिंदगियां नष्ट हो रही हैं । क्योंकि अगर हम मजबूत कदम नहीं उठाते हैं तो हम जानते हैं कि हजारों लोगों की जान जा रही है। अब कोई और मौत स्वीकार्य नहीं है। अगर आप एक राजनीतिज्ञ हैं तो हर दिन को ध्यान में रखने की जरूरत है जब आप। आपसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं। हको जितना स्थगित करते हैं, हम उतनी ही जिंदगी को खोते जा रहे हैं।

(शेट्टी इंडियास्पेंड में रिपोर्टिंग फेलो हैं।)

यह साक्षात्कार 08 सिंतबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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