Gas 620

वैश्विक गैस की कीमतों में गिरावट होने से भारत की मुश्किलों से घिरी गैस विद्युत संयंत्र क्षेत्रों के अच्छे दिन आ गए हैं। गौरतलब है देश में कई परियोजनाएं बंद हैं एवं राज्यों के विभिन्न विद्युत उपयोगिताओं पर देश के बैंकों के कई करोड़ रुपए बकाया हैं।

तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की कमी के कारण बंद होने के 18 महीने बाद, महाराष्ट्र में दाभोल बिजली संयंत्र 26 नवंबर 2015 से, भारतीय रेलवे के लिए फिर से बिजली उत्पन्न करना शुरू कर दिया है।

इस प्रेस रिलीज़ में, रेल मंत्रालय ने कहा है कि इस परियोजना से बिजली की 300 मेगा वाट (मेगावाट) खरीद शुरू कर दी गई है जो बाद में बढ़ कर 500 मेगावाट तक होगी। मंत्रालय के अनुसार, यह बिजली, रेलवे द्वारा बिजली कम्पनियों के लिए करने वाले भुगतान दर की तुलना में 4 रुपये प्रति यूनिट सस्ती होगी एवं इससे सालाना 1000 करोड़ की बचत होगी।

रत्नागिरी गैस एंड पावर, जिसका 1,980 मेगावाट दाभोल बिजली संयंत्र पर स्वामित्व है एवं संबद्ध प्राकृतिक गैस आयात टर्मिनल पर बैंकों का 8,500 करोड़ रुपये बकाया है – वह राशि अब चुकता करने की संभावना दिखती है।

इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि, अंतरराष्ट्रीय गैस की कीमतों में तेजी से गिरावट होने के कारण ही दाभोल परियोजना का पुनरुद्धार मुमकिन हुआ है।

ईंधन की कम कीमतें

पिछले 18 महीनों में, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की कीमतों में करीब 60 फीसदी गिरावट हुई है।

निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियां, जैसे कि टोरेंट पावर, जीएमआर , जीवीके और लैंको, गैस ईंधन ऊर्जा संयंत्रों के 9773 मेगावाट का स्वामितिव रखते हैं। यह सभी संयंत्र या तो निष्क्रिय कर दिए गए हैं या फिर पिछले कई वर्षों से कम क्षमता पर काम कर रहे हैं। सस्ते घरेलू स्तर पर उत्पादित गैस उपलब्ध नहीं थे जबकि अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर आयातित गैस का उपयोग करना बहुत महंगा था।

यह अब बदल रहा है। अक्टूबर 2015 के दौरान, अक्टूबर 2014 में उत्पादित बिजली की तुलना में इन संयंत्रों ने 2.5 गुना ( 150 फीसदी से अधिक ) अधिक बिजली उत्पन्न किया है। अप्रैल और अक्टूबर के बीच, इन बिजली संयंत्रों द्वारा कुल बिजली उत्पादन में 76 फीसदी की वृद्धी हुई है।

अतिरिक्त बिजली उत्पादन बिना उत्पादन क्षमता के मेगा वाट जोड़े गए ही किया गया है। यह सुधार बेहतर क्षमता उपयोग से हुआ है।

गैस आधारित बिजली परियोजनाओं का प्रदर्शन, 2014 एवं 2015

गैस आधारित बिजली परियोजनाओं का प्रदर्शन, 2014 एवं 2015

Source: Performance reports of central, state, and private sector power projects, Central Electricity Authority.

गैस विद्युत संयंत्रों के संचालन के स्वास्थ्य में सुधार होना भारतीय बैंकों के लिए भी राहत भरी खबर है जिसने कॉरपोरेट समूहों, जैसे कि जीएमआर , जीवीके और लैंको, को बड़ी रकम उधार दी है।

ब्रोकरेज क्रेडिट सुइस की हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन तीन व्यावसायिक समूहों पर 1.29 लाख करोड़ रुपये ( 19.4 बिलियन डॉलर ) का सकल ऋण है। इस ऋण का केवल एक हिस्सा, गैस आधारित विद्युत संयंत्रों के कारण है, जो इन समूहों द्वारा चलाए जा रहे कई व्यवसायों में से एक हैं।

वित्तीय वर्ष 2015 के दौरान, ब्याज दर कवर ( इन समूहों द्वारा बकाया ब्याज भुगतान करने के लिए कर पूर्व आय अनुपात ) एक से भी कम था। इसका मतलब यह हुआ कि बैंकों का बकाया ब्याज का भुगतान करने के लिए तीन समूहों द्वारा पर्याप्त कर पूर्व लाभ नहीं बना है।

निजी क्षेत्र की बिजली / इंफ्रा कंपनियों का सकल ऋण

क्या सरकारी कंपनियों में सुधार की आवश्यकता है?

हालांकि, ईंधन की कीमतों में हुई गिरावट को हर कोई भुनाने में सफल नहीं हुआ है। केंद्र और राज्य सरकारों के स्वामित्व में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, जो गैस आधारित बिजली उत्पादन क्षमता की कुल 14,465 मेगावाट की स्वामित्व रखते हैं, का वास्तव में 2015 में परिचालन प्रदर्शन में गिरावट होते दिखा है। ( टेबल 1 एवं 2 )

बीतते समय के दौरान, जहां निजी क्षेत्र के संयंत्रों ने 76 फीसदी अतिरिक्त बिजली उत्पन्न की है, सरकार के स्वामित्व वाली संयंत्रों ने पिछले वर्ष की तुलना में कम बिजली उत्पन्न की है।

इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला यह कि, सरकार के स्वामित्व वाली बिजली कंपनियां, निजी क्षेत्र के समकक्षों की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सस्ती गैस खरीदने और भारत लाने में शीघ्रता नहीं की है। उदाहरण के लिए, दाभोल परियोजना के अंत: नवंबर के अंत से ही पुन: प्रारंभ किया गया है- निजी क्षेत्र के संयंत्रों के संचालन के चालू होने के एक महीने बाद।

दूसरी समस्या, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि राज्य बिजली कम्पनियों की नाकाम स्थिति हो सकती है।

इन उपयोगिताओं में से अधिकतर, बिजली चोरी , पारेषण हानियों और सब्सिडी में भारी नुकसान से ग्रसित है।

बुरी वित्तीय स्वास्थ्य का मतलब है इनमें से कई केवल सस्ते स्रोतों से बिजली वहन कर सकते है – इस मामले में कोयला है।

राज्य बिजली कम्पनियों की स्थिति इतनी बुरी है कि गैस की कीमतों में गिरावट होने की बाद भी इसका फायदा नहीं उठा पाई है। लाभदायक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां, जैसे कि एनटीपीसी को अपने संयंत्रों बेचना इनके लिए बेहतर हो सकता है जो इन्हें ठीक ढ़ंग से चला पाए।

भारत में पहले भी प्राकृतिक गैस की कमी थी और भविष्य में भी कमी रहेगी और इस कमी को पूरा केवल आयात द्वारा ही किया जा सकता है। लेकिन ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से नए गैस की आपूर्ति अगले कुछ वर्षों तक उपलब्ध रहेगी और इसी कारम से कुछ समय तक गैस की कीमत ऐसे ही कम रहने की संभावना है।

भारत जो एक बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है, एक मजबूत सौदेबाजी की स्थिति में है, मौजूदा कम दरों पर लंबे समय तक गैस आपूर्ति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार है।

( भंडारी एक मीडिया, अनुसंधान और वित्त पेशेवर है। भंडारी ने आईआईटी -बीएचयू से एक बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए किया है। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 दिसंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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