ग्रीष्म लहर से मरने वालों का आंकड़ा 23 साल में तीन गुना बढ़ा
भारत में पिछले 23 सालों में ग्रीष्म लहर से मरने वालों की संख्या में 296% या तीन गुना बढ़ोतरी हुई है. इस साल अब तक इससे 150 से अधिक मौतें हो चुकी हैं।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की इस 2016 की रिपोर्ट के अनुसार 1992 में गर्मी से 612 लोग मारे गए थे, 2015 में ये आंकड़ा 2,422 तक पहुँच गया।
इस साल पारा 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुँचने के साथ ही 100 से अधिक मौतें भारत के सबसे नए राज्य तेलंगाना में होने की खबर है और 45 लोगों की मौत ओडिशा में हुई है।
ओडिशा में ग्रीष्म लहर और जल संकट के कारण स्कूल 26 अप्रैल तक बंद रहेंगे।
All schools in Odisha shut till April 26 due to severe heat wave, water crisishttps://t.co/fTu5rlI8Hz pic.twitter.com/DNLh4aa6cx
— India Today (@IndiaToday) April 19, 2016
इंडियास्पेंड ने पहले बताया था कि देशभर में 91 प्रमुख जलाशयों में क्षमता का 23% पानी रह गया है और ये पिछले एक दशक में सबसे कम है।
लगातार दो दिनों तक अधिकतम 45 डिग्री सेल्सियस का तापमान रहने को ग्रीष्म लहर या लू माना जाता है, इससे शारीरिक तनाव हो सकता है और कभी-कभी ये जान भी ले लेती है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार 1992 से 2015 के बीच देशभर में लू से 22,563 लोगों की मौत हुई।
23 वर्षों में ग्रीष्म लहर से मृत्यु के आंकड़े
Source: National Disaster Management Authority
आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार 1901 के बाद जब से गर्मी का रेकॉर्ड रखना शुरू हुआ है तब से साल 2015 तीसरा सबसे गर्म साल था।
2015 में भारत में लू से 2,422 लोगों की मौत हुई, ये आंकड़ा पिछले साल के मुक़ाबले 44% अधिक है।
पृथ्वी पर तामपान में बढ़ोतरी की तर्ज पर पिछले 110 साल में भारत में भी औसत तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है।
31 मार्च 2016 को जारी आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार भारत में इस साल अप्रैल से जून तक औसत से अधिक तापमान रहेगा।
भारतीय मौसम विभाग ने आठ राज्यों को ग्रीष्म लहर के हालात के लिए तैयार रहने की चेतावनी दी है।
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद के शोध सहायक हेम ढोलकिया ने इंडियास्पेंड को बताया, “गर्मी की परिस्थितियों में पसीना आना शरीर का तापमान बनाए रखने की मुख्य प्रक्रिया है। सामान्य वयस्क को एक घंटे में एक लीटर तक पसीना आ सकता है (स्वस्थ व्यक्ति को हर घंटे 3 लीटर तक पसीना आ सकता है)। यदि पसीने के जरिये हुई पानी की कमी को पूरा नहीं किया गया तो ज्यादा पसीना बहने से निर्जलीकरण हो सकता है।”
ढोलकिया ने कहा, “निर्जलीकरण से अन्य शारीरिक गड़बड़ियों के अलावा गर्मी से बेहोशी, गर्मी से ऐंठन, गर्म से थकावट, लू लग सकती है....और कुछ मामलों में व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। समय पर पानी पीने से निर्जलीकरण रोका जा सकता है और गर्मी से होनेवाली बीमारियों को कम किया जा सकता है।”
(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ एक विश्लेषक हैं।)
यह लेख मूलतः अंग्रेजी में 20 अप्रैल, 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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