चार फैक्टर करेंगे बिहार का भविष्य तय
बिहार में हो रहे विधानसभा चुनाव में इस बार नए मतदाताओं की अहम भूमिका होगी। इस वर्ष राज्य के मतदाता सूची में करीब 3.5 मिलियन नए मतदाता जुड़े हैं और यह नए मतदाता चुनाव के परिणाम पर खासा असर डाल सकते हैं। अनुमान किया जा रहा है कि चुनावी नतीजों में मामूली अंतर हो सकते हैं।
क्या नए मतदाता प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी या राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( एनडीए ) के पक्ष में वोट करेंगे या जनता दल (यूनाइटेड) , राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस के महागठबंधन को जीत दिलाएंगे?
जाति मुद्दे के अलावा चार और मुख्य कारक हैं ( दो व्यवहारवादी और दो चुनाव गणित पर आधारित ) जो बिहार की राजनीतिक मुकद्दर का फैसला तय करेंगे।
पहला: बिहार के युवा मतदाता
5 नवंबर तक पांच चरणों में होने वाली बिहार विधानसभा चुनाव में 30 वर्ष से कम उम्र के 20 मिलियन वोटर्स में नए मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। राज्य के 66 मिलियन मतदाताओं में 30 फीसदी युवा मतदाता हैं।
युवा वोट क्यों एवं किसके लिए है महत्वपूर्ण ?
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर डेवलपिंग सोसाइटीज के अध्ययन के अनुसार वर्ष 2014 के आम चुनाव में, आर्थिक वर्गों में भाजपा को युवा वोटों का सबसे अधिक लाभ हुआ था।
2014 आम चुनाव में वर्ग के अनुसार मतदान
हालांकि यह सच है कि उच्च एवं मध्यम वर्ग के युवाओं ने तेजी से भाजपा को वोट दिया लेकिन निचले वर्ग के युवाओं में भी पार्टी कगार पर ही थी।
दो: मतदान में उछाल
बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान में पहला उछाल 1967 और 1980 के बीच समाजवादी राजनीति की लामबंदी के दौरान आया था। इसी उछाल ने जनता पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया था एवं 1977 के लोकसभा चुनाव में 54 में से 52 की सीटों पर जीत दिलाई थी।
बिहार में विधानसभा चुनाव में मतदान (%)
दूसरा उछाल, बिहार के राजनीतिक लामबंदी के दूसरे चरण ( 1980-2000 ) के दौरान हुआ। यह समय मंडल युग था जब मतदान का आधार मुख्यत: जाति था। इसी समय राज्य की सत्ता का पूरा कंट्रोल जनता परिवार ( आरजेडी और जद (यू) ) के हाथों में गया जो 1990 से लेकर 2015 तक रहा। ( 1 )
अंत में मतदाताओं की उछाल का तीसरा चरण 2010 में शुरु हुआ जोकि केंद्र में कांग्रेस शासन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर, बिहार के आर्थिक पुनरुत्थान , और सबसे अधिक महत्वपूर्ण 2014 के लोकसभा चुनाव की मोदी की लहर का एक परिणाम प्रतीत होता है।
12 अक्टूबर को हुए बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 57 फीसदी मतदान दर्ज किया गया है। गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव 56.26 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था। दूसरे चरण में 55 फीसदी मतदान दर्ज की गई है जो कि लोकसभा चुनाव की तुलना में निश्चित रुप से कम है।
तीन: वोट की कम से कम प्रतिशत के साथ जीतना
भारत में सभी प्रत्यक्ष चुनाव (चुनाव ) के लिए फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली ( जो सबसे आगे, जीत उसकी ) को अपनाया गया है ।
इसलिए भारत में उम्मीदवार द्वारा एकत्र वोटों के अनुपात को देखे बिना जिस किसी के पास सबसे अधिक वोट होता है उसे विजेता माना जाता है। उदाहरण के तौर पर, 100 मतदाताओं वाले निर्वाचन क्षेत्र में यदि किसी उम्मीदवार को 20 ( 20 फीसदी ) वोट मिलते हैं और अन्य सभी उम्मीदवारों को 20 से कम वोट मिलते हैं तो 20 वोट वाला उम्मीदवार विजेता होता है।
इसका अर्थ हुआ कि न्यून संख्या वोट भी बहुमत सरकार बना सकती है। ( 2 )
सीट शेयर गुणक, पार्टी को मिले वोट प्रतिशत द्वारा कुल सीटों को विभाजित कर निकाला जाता है। गुणक, पार्टी की ‘वोट के प्रतिशत’ को ‘जीती सीट’ में परिवर्तित करने की क्षमता को दर्शाता है जोकि वोटों (राजनीतिक समानता और लोकप्रिय लोकतंत्र की बुनियादी इकाई ) को सीटों में परिवर्तित करने की क्षमता है।
उदाहरण के लिए, 10 फीसदी वोट प्रतिशत के साथ 25 सीटों पर जीती एक पार्टी के लिए , गुणक 2.5 ( 10 से विभाजित 25) है । 15 फीसदी वोट प्रतिशत और तीन सीटों के साथ एक पार्टी के लिए, गुणक 0.2 (15 से विभाजित 3) होगा। सीधे शब्दों में कहें तो एक उच्च सीट शेयर गुणक उच्च चुनावी दक्षता का प्रतिनिधित्व करता है ।
2000 से 2010 तक राज्य विधानसभा चुनाव के लिए चार चुनावी महत्वपूर्ण दलों की वोट शेयर करने वाली सीटों से जीता सह-संबंध में कुछ महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है ।
2000 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद की आरजेडी सत्ता में थी, और 4.38 की सीट शेयर गुणक पार्टी के लिए सबसे अधिक थी।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में , भाजपा के लिए 4.58 का एक प्रभावी गुणक सुनिश्चित किया था, जिसने 15 फीसदी कम वोट शेयर के साथ 67 सीट पर जीत हासिल की थी( कुल में से 27.5 फीसदी )।
वोट शेयर, बिहार विधानसभा चुनाव 2000-2010 में चार मुख्य दलों के लिए सीटों पर जीत एवं सीट शेयर गुणक
दस वर्षों में आरजेडी से ध्यान जद ( यू ) की ओर केंद्रित हुआ है। 2010 के विधानसभा चुनाव में जद ( यू ) का 5.09 के गुणक दर्ज की गई है वहीं आरजेडी के लिए 1.17 दर्ज की गई है।
जद (यू) ने 22.5 फीसदी वोटों के साथ 115 (47 फीसदी) सीटों पर जीत हासिल की है वहीं 19 फीसदी वोट शेयर के साथ आरजेडी ने केवल 22 सीटों पर जीत प्राप्त की है। यहां तक कि 2010 के चुनावों के दौरान भाजपा ने 5.52 के साथ उच्च गुणक दर्ज की है।
यह दर्शाता है कि किस प्रकार चार पार्टियों में भाजपा के पास कम वोट प्रतिशत के साथ सबसे अधिक सीट जीतने की क्षमता है।
चार: 2014 लोकसभा परिणाम और उनके प्रभाव
2014 के आम चुनाव के दौरान एनडीए ने बिहार में अच्छा प्रदर्शन किया था। भाजपा ने 30 सीटों पर लड़े चुनाव में से 22 सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के सात में से छह सीट जीता था जबकि और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ( आरएनएसपी ) ने लड़े तीनों सीटों पर जीत हासिल की थी।
जबकि आरजेडी ने चार सीटें जीती थीं, वहीं जद (यू) और कांग्रेस ने दो-दो सीटे एवं एनसीपी ने एक सीट जीती थी।
2014 के आम चुनाव के विधानसभा क्षेत्र वार परिणाम
संख्या, विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को दर्शाता है जहां संबंधित पार्टी को सबसे अधिक वोट मिले थे
निर्वाचन आयोग द्वारा प्रकाशित लोकसभा चुनाव की विस्तृत विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के परिणामों के अनुसार भाजपा ने 122 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त हासिल की, 35 सीटों पर लोजपा आगे रही, और 17 विधानसभा क्षेत्रों में आरएलएसपी आगे रही।
174 विधानसभा सीटों पर प्रभावी ढंग से एनडीए आगे रही थी।
जद (यू) ने अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ा और 17 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस गठबंधन के साथ आरजेडी ने 45 सीटों पर बढ़त हासिल की है।
यदि विधानसभा चुनाव के लिए वही गठबंधन मोर्चे जारी रहते तो बिहार विधानसभा में एनडीए के लिए दो -तिहाई बहुमत हो सकती थी।
लोकसभा चुनाव में शिकस्त के बाद बिहार के दो समाजवादी नेता – नीतीश कुमार एवं लालू प्रसाद यादव – ने हाथ मिलाया है एवं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को भी शामिल किया है।
यदि इस महागठबंधन ने 2014 के आम चुनाव में एनडीए के खिलाफ एक साथ चुनाव लड़ा होता तो वोट विभाजन से बचा जा सकता था।यदि उसी तरह का वोटिंग पैटर्न इस बार भी होता है तो महागठबंधन में शामिल तीनों पार्टियां विधानसभा सीटों की 145 सीटों पर बढ़त हासिल कर सकती हैं जबकि एनडीए को केवल 92 सीटें ही मिलेंगी।
बिहार में 10 विधानसभा सीटों के लिए 2014 में हुए उप चुनाव में आरजेडी, जद ( यू ) एवं कांग्रेस के महागठबंधन को छह सीटें मिली जबकि चार सीटें भाजपा के खाते में गई हैं।
तो मुख्य सवाल यह हैं: इस बार के चुनाव में किसका जादू चलेगा आरजेडी, जद ( यू ) एवं कांग्रेस के महागठबंधन का या फिर मोदी लहर के आगे यह महागठबंधन फीका पड़ जाएगा?
या फिर 3.1 मिलियन नए मतदाताओं के आने से सभी पार्टियों को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा?
इन सभी सवालों के जवाब 8 नवंबर को स्पष्ट हो जाएंगे।
References:
(1) Christophe Jaffrelot, India’s Silent Revolution: The Rise of Lower Castes in North India (Columbia University Press, 2003)
(2) Lloyd Rudolph and Susanne Rudolph, In Pursuit of Lakshmi: The Political Economy of the Indian State (University of Chicago Press, 1987)
( वाघमारे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 20 अक्तूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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