छत्तीसगढ़ में मातृत्व लाभ लेना एक बड़ी मुश्किल
अंबिकापुर (सरगुजा ज़िला): “जब पैसे ही नहीं हैं तो मैं बैंक अकाउंट का क्या करूं?” यह कहना है पुनीता पल्हे का जो मातृत्व लाभ के लिए आवेदन करने के एक साल बाद भी इसके नहीं मिलने से निराश हैं। उन्होंने 5 जुलाई, 2018 को एक बेटे को जन्म दिया था।
उत्तरी छत्तीसगढ़ में बलरामपुर ज़िले के राजपुर ब्लॉक की निवासी 23 वर्षीय पुनीता और उनके पति दिहाड़ी मज़दूरी करने के साथ ही अपने परिवार के एक एकड़ के खेत पर धान की फ़सल से अपने परिवार का ख़र्च उठाते हैं। खनिज की बहुलता वाले इस ज़िले में आदिवासियों की बड़ी संख्या है। इनमें पुनीता की पिछड़ी हुई कोडाकु जनजाति भी है।
बच्चे को जन्म देने के चार महीने बाद, पुनीता ने नवंबर 2018 में प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) के तहत लाभ का आवेदन करने के लिए नवंबर 2018 में अपना पहला बैंक अकाउंट खोला था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) की ओर से 2017 में लागू की गई इस योजना में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को सशर्त नक़दी दी जाती है। इसके लाभार्थियों को तीन किश्तों में 5,000 रुपए मिलते हैं।
पुनीता को उस बैंक की जानकारी नहीं है जिसमें उनका अकाउंट है, लेकिन वह कहती हैं कि उन्होंने अकाउंट खोलने की शुरुआती राशि के तौर पर 750 रुपए जमा किए थे। “राजपुर बस स्टैंड के पास वाले बैंक में खाता खुलवाया था,” छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक का ज़िक्र करते हुए पुनीता ने इंडियास्पेंड को बताया। सालाना डेबिट-एटीएम मेंटीनेंस के 170 रुपए कटने के अलावा उनके अकाउंट में कोई ट्रांज़ेक्शन नहीं है -- उन्होंने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया।
छत्तीसगढ़ में बलरामपुर ज़िले के राजपुर की रहने वाले पुनीता पल्हे और उनका बेटा प्रियांशु पिछड़ी हुई कोडाकु जनजाति से हैं। 23 वर्षीय पुनीता ने केंद्र सरकार की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं से जुड़ी सशर्त नक़दी ट्रांसफर योजना के तहत मातृत्व लाभ लेने के लिए नवंबर 2018 में एक बैंक अकाउंट खोला था। उन्हें 12 फरवरी, 2020 तक अपने अकाउंट में कोई पैसा नहीं मिला था।
पीएमएमवीवाई के तहत उन्हें नकद लाभ प्राप्त होने की उम्मीद थी, लेकिन पिछले 15 महीने में उनके अकाउंट में कोई पैसा नहीं आया है। योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार यह लाभ तीन किश्तों में हर 30 दिन की अवधि में दिया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ में पांच ज़िलों के छह ब्लॉक से पुनीता उन 565 (अधिकतर अशिक्षित) महिलाओं में से एक हैं जो एक ऐसी योजना के लाभार्थियों के तौर पर ख़ुद को अलग-थलग पा रही हैं जिसके ज़रिए उन्हें सबसे अधिक लाभ मिलना था। छत्तीसगढ़ सरकार ने पीएमएमवीवाई के तहत लंबित आवेदनों की बढ़ती संख्या पर ध्यान नहीं दिया है। हालांकि, राज्य सरकार ने इस योजना के तहत पहली बार मां बनने वाली महिलाओं के नामांकन बढ़ाने के लिए 2 से 8 अगस्त, 2019 को मातृत्व सप्ताह घोषित किया था। ऐसा एक ख़राब आवेदन प्रक्रिया और कमियों को दूर करने की व्यवस्था नहीं होने की वजह से हो रहा है, अधिकारों से जुड़ी पात्रताओं के लिए काम करने वाले अंबिकापुर के ग़ैर-सरकारी संगठन चौपाल ग्रामीण विकास प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के सदस्यों ने पाया।
फ़ॉर्म भरना और डेटा-एंट्री प्रक्रिया मुश्किल होने (जिसकी कभी निगरानी या दोबारा जांच नहीं की जाती) और फ़ीडबैक लेने की कमज़ोर व्यवस्था से बहुत से आवेदनकर्ताओं को ‘सुधार की कतार’ में लगना पड़ता है। उदाहरण के लिए, चौपाल कार्यकर्ताओं को 565 लाभार्थियों में से 493 के आवेदन मिल सके, 87.25% महिलाओं को उनके आवेदन फ़ॉर्म में टाइपिंग की ग़लतियों के कारण कोई लाभ नहीं मिला। टाइपिंग की अधिकांश ग़लतियां (लगभग 73%) आवेदनकर्ता के आधार पर छपी जानकारी से जुड़ी थीं। इनमें उनके पति (23.71%) की आधार जानकारी भी शामिल थी।
छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां मां, नवजात और बच्चों की मृत्यु दर अधिक है और राज्य प्रशासनिक लापरवाही की वजह से उन लोगों को लाभ नहीं दे पा रहा जिन्हें इसकी ज़रूरत है। छत्तीसगढ़ 2016 में नवजात शिशुओं की 26 से अधिक मृत्यु दर (आईएमआर; प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर पहले 28 दिनों में नवजात शिशुओं की मृत्यु) वाले राज्यों में शामिल था। यह सस्टेनेबल डवेलेपमेंट गोल्स के तहत 12 के लक्ष्य के दोगुने से अधिक है।
राज्य में नवजात शिशुओं की मृत्यु दर (आईएमआर; प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 12 महीने के अंदर नवजात शिशुओं की मृत्यु) 2017 में 38 थी। राज्य में मातृत्व मृत्यु अनुपात (एमएमआर; प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर गर्भावस्था या इससे जुड़ी समस्या के कारण होने वाली मांओं की वार्षिक मृत्यु) 141 था, इसकी तुलना में 2015-17 में इसका राष्ट्रीय अनुपात 122 था, यह 70 या उससे कम के एसडीजी लक्ष्य से काफ़ी अधिक है।
पीएमएमवीवाई जैसी मातृत्व लाभ योजनाएं इस स्थिति का समाधान करने में कुछ सहायता कर सकती हैं। यह बच्चे के कम पोषण और मां के स्वास्थ्य के बीच संबंध की पहचान करती हैं और इनका उद्देश्य मांओं को एक नकद प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराकर उनके स्वास्थ्य को सुधारना है। इसके साथ ही उनके आराम करने और स्वास्थ्य में सुधार के दौरान आमदनी के नुक़सान की कुछ भरपाई भी इन योजनाओं से होती है।
हालांकि, एमडब्ल्यूसीडी ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत एक सवाल के जवाब में बताया है कि केवल 25% मांओं को इसका लाभ मिला है (पीएमएमवीवाई के तहत कम से कम एक किश्त मिलना ‘लाभ’ की श्रेणी में माना गया है।)
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 5 दिसंबर, 2019 को यह आंकलन करने के लिए सात सदस्यीय कमेटी बनाई थी कि क्या पीएमएमवीवाई के तहत हर परिवार को एक बच्चे के लिए मातृत्व लाभ 5,000 रुपए से ज़्यादा दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश पर किया था। सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सरकार वाले पांच राज्यों के मुख्यमंत्रियों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के अनुसार यह करने को कहा था। इसके तहत सभी गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपए का मातृत्व लाभ देना सुनिश्चित किया जाना था। मुख्य सचिव आर पी मंडल कमेटी के अध्यक्ष हैं, इसके सदस्यों में राज्यों के मुख्य वित्त सचिव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास के प्रधान सचिव, और श्रम, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, खाद्य, और महिला एवं बाल विकास विभागों के सचिव शामिल हैं।
कमेटी के मातृत्व लाभ की राशि में वृद्धि करने पर विचार करने के बावजूद, पुनीता जैसी महिलाओं को उन बैंक अकाउंट में राशि रखने से नुकसान हो रहा है जिनका वह बहुत कम इस्तेमाल करती हैं और उन्हें मेंटेनेंस फ़ीस भी देनी पड़ती है। ऐसा क्यों हो रहा है यह समझने के लिए चौपाल के सदस्यों ने दिसंबर में छत्तीसगढ़ के मातृत्व सप्ताह के दौरान ‘मातृत्व पात्रता पर कार्रवाई सप्ताह’ अभियान चलााया था। यह अभियान उसी सप्ताह देश भर में सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक नेटवर्क की ओर से आयोजित भोजन के अधिकार से जुड़े बड़े अभियान का हिस्सा था।
चौपाल के फ़ील्ड में काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने छह ब्लॉक -- राजपुर (बलरामपुर ज़िला), बगीचा (जसपुर ज़िला), प्रेमनगर (सूरजपुर ज़िला), भरतपुर (कोरिया ज़िला) और लखनपुर और लुंदरा (सरगुजा ज़िला) -- में विभिन्न गांवों से 145 आवेदनकर्ताओं और लाभार्थियों को नामांकन में सहायता करने और लंबित आवेदनों को निपटाने के लिए जुटाया था। अधिकतर आवेदनकर्ताओं (इनमें वह भी शामिल थे जिन्होंने 2017 में आवेदन किया था) को मातृत्व लाभ नहीं मिला था, जबकि कुछ को बाद में पता चला कि उनके हिस्से की राशि बैंक अकाउंट में जमा हुई है लेकिन वह उस अकाउंट का अब इस्तेमाल नहीं करते हैं।
चौपाल कार्यकर्ताओं और आवेदनकर्ताओं/लाभार्थियों ने राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत, अपने संबंधित बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) को मातृत्व लाभ नहीं मिलने पर एक ज्ञापन दिया था। चौपाल कार्यकर्ताओं ने एक आवेदन भी जमा किया था जिसमें उन लोगों के नाम मांगे गए थे जिनके आवेदन सही माने गए थे, या अस्वीकार हुए थे।
योजना और प्रक्रिया
पीएमएमवीवाई का लाभार्थी बनने के लिए एक महिला अपनी अंतिम माहवारी (एलएमपी) के 730 दिन (लगभग दो साल) के अंदर आवेदन कर सकती है। एलएमपी के बारे में जानकारी ना होने पर, उसे बच्चे के जन्म से 460 दिन के अंदर आवेदन करना आवश्यक है। इससे पहले, एक महिला के लिए अपनी एलएमपी से 150 दिन (लगभग पांच महीने) के अंदर एक ‘मां और बच्चा सुरक्षा कार्ड’ (एमसीपीसी) लेने के लिए स्थानीय आंगनबाड़ी केंद्र (एडब्ल्यूसी) में पंजीकरण करवाना अनिवार्य है।
पीएमएमवीवाई के तहत 5,000 रुपए का लाभ तीन किश्तों में दिया जाता हैः एमसीपीसी के लिए पंजीकरण कराने के बाद 1,000 रुपए, कम से कम प्रसव पूर्व चेक-अप कराने के बाद 2,000 रुपए, और बच्चे के जन्म और टीकाकरण के बाद 2,000 रुपए। आवेदनकर्ताओं को हर बार किश्त लेने के लिए एक अलग फ़ॉर्म (पहली किश्त के लिए चार पेज का 1A फ़ॉर्म, दूसरी के लिए तीन पेज का 1B फ़ॉर्म और तीसरी के लिए तीन पेज का 1C फ़ॉर्म) भरना होता है।
यह फ़ॉर्म आंगनबाड़ी केंद्रों पर मुफ़्त में उपलब्ध कराए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में इनका हिंदी में अनुवाद किया गया है। इसके बावजूद, महिलाओं को इसे भरने में मुश्किल होती है -- 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की साक्षरता दर 55.06% है। चौपाल के कार्यकर्ताओं ने पाया कि आवेदनकर्ता अक़्सर फ़ॉर्म भरने के लिए किसी अन्य व्यक्ति को भुगतान करती हैं।
यह फ़ॉर्म कई दस्तावेज़ों के साथ जमा कराने होते हैं, इनमें आवेदनकर्ता का एमसीपीसी, आवेदनकर्ता और उसके पति का आधार, बैंक पासबुक, और तीसरी किश्त के लिए बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र (टेबल 1) शामिल हैं। दस्तावेज़ उपलब्ध कराना एक और बड़ा काम हैः एक बैंक अकाउंट खोलना और उसे आधार के साथ लिंक कराना महिलाओं के लिए हमेशा आसान नहीं होता। आवेदनकर्ताओँ ने चौपाल के कार्यकर्ताओं को बताया कि उन्हें अक्सर एक बैंक अकाउंट खोलने के लिए 750 रुपए तक और आधार लेने के लिए 200 रुपए तक देने पड़ते हैं।
Process & Documentation For Three Instalments Of PMMVY | |||
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Instalment | Conditions | Documents Required | Amount |
First Instalment | Requires mother to:
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| Rs 1,000 |
Second Instalment |
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| Rs 2,000 |
Third Instalment |
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| Rs 2,000 |
*Scheme guidelines state ID proof, but only Aadhaar is accepted as identity proof. Source: Scheme conditions
आवेदन फ़ॉर्म और दस्तावेज़ों की प्रतियां आंगनबाड़ी केंद्रों में जमा होती हैं। एक फ़ील्ड सुपरवाइज़र, राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग के तहत आने वाले एक सरकारी अधिकारी, इन फ़ॉर्म और दस्तावेज़ों को इन केंद्रों से इकट्ठा करते हैं। एक ज़िले में हर ब्लॉक के साथ एक फ़ील्ड सुपरवाइज़र होता है, हर ब्लॉक में 25 से 35 आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। सुपरवाइज़र आवेदनों को ब्लॉक ऑफ़िस में डेटा एंट्री ऑपरेटर (डीईओ) को देते हैं, जो इसके बाद कागज़ के फ़ॉर्म में दर्ज जानकारी को योजना के कॉमन एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर (पीएमएमवीवाई-सीएएस) में दर्ज करते हैं।
डेटा एंट्री ऑपरेटर्स और चौपाल कार्यकर्ताओं के अनुसार, इसी चरण में आवेदनकर्ताओं की जानकारी के बारे में ग़लतियां सिस्टम में दर्ज होने की आशंका अधिक रहती है, और इसमें सुधार नहीं होता।
डेटा एंट्री के बाद, सीडीपीओ, जो स्वीकृति देने वाला अधिकारी (एसओ) भी है, पीएमएमवीवाई पर एक आवेदन पर ‘स्वीकृति’, ‘अस्वीकृति’ या ‘सुधार’ के लिए अनुमोदित करता है। अस्वीकार होने पर, आवेदनकर्ता को वह किश्त नहीं मिलती; आवेदनों को मुख्य तौर पर इस कारण से अस्वीकार किया जाता है कि महिला लाभ के लिए पात्र नहीं होगी।
स्वीकृत होने पर, आवेदन ऑटोमेटिक तरीक़े से यूनीक आइडेंटिफ़िकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) और पब्लिक फ़ाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (पीएफ़एमएस; आधार से लिंक और आधार से बिना लिंक वाले बैंक अकाउंट में डायरेक्ट बेनेफ़िट ट्रांसफर के तहत सब्सिडी और लाभों के ई-पेमेंट का एक प्लेटफ़ॉर्म) से पुष्टि के लिए जाता है। अगर पुष्टि होती है तो राज्य के महिला एवं बाल विकास विभाग का नोडल अधिकारी भुगतान के लिए अंतिम स्वीकृति देता है। योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इसके बाद राशि पीएफ़एमएस गेटवे के ज़रिए 30 दिन के अंदर लाभार्थी के बैंक अकाउंट में जमा करानी होती है। चौपाल के कार्यकर्ताओं ने पाया कि प्रत्येक ब्लॉक और ज़िले में राशि मिलने में लगने वाला समय अलग-अलग है। उदाहरण के लिए, पीएमएमवीवाई-सीएएस डैशबोर्ड के अनुसार, सरगुजा ज़िले में प्रक्रिया को पूरा करने में औसतन 111 दिन लगते हैं।
‘सुधार’ की कतार
अनुमति देने वाले अधिकारी की स्वीकृति के बाद एक आवेदन यूआईडीएआई या पीएफ़एमएस से पुष्टि में निरस्त हो सकता है। अगर आवेदनकर्ता का नाम बैंक रिकॉर्ड में पीएफ़एमएस डेटाबेस से मेल नहीं खाता, या उसका अकाउंट ट्रांज़ेक्शन नहीं होने के कारण निष्क्रिय हो जाता है, तो पीएफ़एमएस पुष्टि अस्वीकार हो सकती है। लाभार्थी या उसके पति के विवरणों में टाइपिंग की ग़लतियों के कारण यूआईडीएआई की पुष्टि निरस्त हो सकती है। यह तब भी हो सकता है अगर एक लाभार्थी के आधार में उसके वर्तमान/ससुराल के पते के बजाय उसके मायके का पता हो।
अगर यूआईडीएआई या पीएफ़एमएस पुष्टि असफ़ल होती है, तो आवेदन को ‘सुधार के लिए’ भेज दिया जाता है जहां अस्वीकृति का कारण और उसे सुधारने की कार्रवाई बताई जाती है। जब एक आवेदन सुधार के लिए आता है, तो फ़ील्ड सुपरवाइज़र और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की ओर से आवेदनकर्ता को इसकी जानकारी दी जाती है जिससे आवश्यक सुधार कर उसे स्वीकृति के लिए दोबारा जमा कराया जा सके।
Source: Ministry of Women & Child Development A pictorial representation of the different stages in the process to access benefits under the Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana.
जानकारी देने की यह प्रक्रिया महत्वपूर्ण है क्योंकि आवेदनकर्ता को इसका पता ना चलने पर उनका आवेदन योजना के सॉफ़्टवेयर में महीनों तक सुधार के इंतज़ार में रहता है। चौपाल कार्यकर्ताओं ने अपने अभियान में पाया कि सुधार की कतार में लगे आवेदन के बारे में सूचना आवेदनकर्ता को मिली है या नहीं यह जांचने की कोई मज़बूत व्यवस्था नहीं है।
फ़ील्ड सुपरवाइज़रों और आंगनबाड़ी कर्मियों से इसमें चूक हो सकती है। उदाहरण के लिए, आंगनबाड़ी कर्मी तारा नेताम ने चौपाल कार्यकर्ताओं को बताया कि उन्हें संभावित आवेदनों की पात्रता की अवधि बताए जाने के बावजूद यह याद नहीं है। नेताम ने बताया कि उन्होंने जुलाई 2019 में राजपुर ब्लॉक के तहत थाडसुखपारा गांव में दो मांओं के बच्चों को जन्म देने के बाद फ़ॉर्म भरे थे, लेकिन उन्हें जनवरी 2020 तक अपने लाभ नहीं मिले। 35 वर्षीय तारा को यह नहीं पता कि उनके आवेदन स्वीकृत, अस्वीकार हुए हैं या सुधार की कतार में हैं।
सरगुजा ज़िले के लखनपुर ब्लॉक में सुधार की कतार। क्रेडिट: विपुल कुमार पैकरा
वास्तविकता
‘सुधार की कतार’ से कितनी समस्या हो सकती है यह तब दिखा जब चौपाल के शोधकर्ता क़रीब 1,20,000 निवासियों वाली एक तहसील, लखनपुर में थे। डेटा एंट्री ऑपरेटर राम कुमार (टेबल 2) ने बताया कि लखनपुर सीडीपीओ कार्यालय में 104 आवेदनों में से लगभग 90 टाइपिंग की ग़लतियों के कारण सुधार की कतार में थे। “स्पेलिंग में ग़लती या नाम के बाद एक डॉट या एक अतिरिक्त स्पेस से भी सुधार की कतार में आवेदन जा सकता है। जब हम एक लाभार्थी का आधार लिंक करते हैं, तो सिस्टम को आधार डेटाबेस से ऑटोमेटिक तरीक़े से व्यक्ति का नाम और अन्य विवरण भरने चाहिए। ऐसा क्यों नहीं होता?” उन्होंने बताया।
उत्तरी छत्तीसगढ़ में सरगुजा ज़िले के लखनपुर में बाल विकास परियोजना अधिकारी के कार्यालय के बाहर नाराज़ पीएमएमवीवाई आवेदनकर्ता
टाइपिंग की ग़लतियों के बारे में कुमार की राय उन आंकड़ों से जुड़ी है जो चौपाल कार्यकर्ताओं ने अपने अभियान के दौरान छह ब्लॉक में सीडीपीओ कार्यालयों से लिए थे। अधिकतर आवेदनों के सुधार की कतार में जाने का कारण आधार में नाम का मेल ना होना या इसका पीएफ़एमएस मास्टर लिस्ट (टेबल 2) के अनुसार ना होना था। सुधार की आवश्यकता के अन्य कारण बैंकिंग से संबंधित हैं -- इनमें अकाउंट नंबर अमान्य हैं या बैंक की जानकारी (नाम या आईएफ़एससी कोड) ग़लत है।
*Includes reasons such as ‘invalid bank/post office name’, ‘No such account’, ‘Account blocked or frozen,’ etc. **Includes reasons such as ‘Husband's Aadhaar is suspended’, ‘UID is invalid and account is rejected due to no response received from bank’, ‘Beneficiary's Aadhaar is suspended’ and so on.
जब आवेदन सुधार के लिए जाते हैं, तो सॉफ़्टवेयर ग़लतियों को ठीक करने के तरीक़े के बारे में सुझाव देता है। इनमें से कई, विशेष तौर पर टाइपिंग की ग़लतियां डेटा ऑपरेटर ठीक कर सकते हैं, वह फ़ील्ड सुपरवाइज़र को सूचना देकर आवेदनकर्ता को बुलाकर सही जानकारी ले सकते हैं।
चौपाल के कार्यकर्ताओं ने पाया कि जानकारी की चेन अक्सर आंगनबाड़ी कर्मी के पास पहुंचने पर टूटती है। “आंगनबाड़ी कर्मियों के साथ बैठकों में फ़ील्ड सुपरवाइज़र की ओर से नाम पढ़े जाते हैं और लाभार्थियों के सुधार की कतार में जाने के कारण बताए जाते हैं। हम अक़्सर यह घोषणा होने पर कागज़ पर इसे नहीं लिख पाते,” राजपुर से आंगनबाड़ी कर्मी, तारा नेताम ने इंडियास्पेंड को बताया। “इस कारण हम इसे आवेदनकर्ता को बताने में असफ़ल रहते हैं या उनसे आवश्यक जानकारी नहीं ले पाते,” उन्होंने कहा।
इसके अलावा, पीएमएमवीवाई-सीएएस सुधार की कतार में दिए अन्य कारणों के लिए कोई सुझाव या सुधार की कार्रवाई के बारे में नहीं बताता, इनमें ‘पीएफ़एमएस मास्टर के अनुसार बैंक नाम ना होना’ या ‘आधार निलंबित/अमान्य/रद्द’ होना शामिल हैं। ऐसे मामलों में, डेटा एंट्री ऑपरेटर की ओर से आवेदनकर्ता/लाभार्थी को अपने आधार या बैंक अकाउंट ‘एक्टिवेट’ करने के लिए कहा जाता है।
पीएमएमवीवाई के लिए पंजीकरण और सुधार की कतार आवेदनकर्ताओं के इस योजना में शामिल होने में रुकावट बन गए हैं। चौपाल कार्यकर्ताओं के पास मौजूद 565 लाभार्थियों के विवरण में से अधिकतर (96.63%) को उनके आवेदन पंजीकरण के स्तर (टेबल 3) से आगे नहीं जाने के कारण पीएमएमवीवाई के लाभ नहीं मिले थे। राजपुर और भरतपुर ब्लॉक के आंकड़ों से पता चलता है कि जिन महिलाओं ने आवेदन किया था, उनमें से कुछ का आवेदन 2017 का है, वह इस प्रक्रिया में ‘सुधार की कतार’ से आगे नहीं गई थी।
इस रुकावट के दूर होने पर, कुछ आवेदन पहली, दूसरी और तीसरी किश्तों के लिए सुधार न होने के कारण लंबित हैं। इनमें से अधिकतर के साथ बैंक अकाउंट बंद होने या केवाईसी लंबित होने जैसी बैंकिंग से जुड़ी समस्याएं थीं।
कुछ मामलों में लाभार्थियों ने दावा किया था कि उन्हें बैंक अकाउंट में लाभ की राशि नहीं मिली है, चौपाल कार्यकर्ताओं ने बाद में पाया कि इनमें से कुछ के बैंक अकाउंट में राशि पहुंची थी लेकिन वह उन अकाउंट का अब इस्तेमाल नहीं करतीं। बलरामपुर ज़िले के राजपुर ब्लॉक में करवा गांव के ऐसे कुछ लाभार्थियों ने चौपाल कार्यकर्ताओं को बताया कि उन्हें महीनों तक यह पता नहीं था कि किश्तें उनके अकाउंट में आ गई हैं क्योंकि वह इन अकाउंट का अब इस्तेमाल नहीं करतीं, विशेष तौर पर वह अकाउंट जो प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत खोले गए थे, क्योंकि सीडीपीओ, फ़ील्ड सुपरवाइज़र और आंगनबाड़ी कर्मी ने उन्हें सूचना नहीं दी थी।
अगर किसी व्यक्ति के पास एक से अधिक बैंक अकाउंट है, और सभी अकाउंट व्यक्ति के आधार के साथ जुड़े हैं, तो मातृत्व किश्त उस अकाउंट में ऑटोमेटिक तरीके से आ जाती है जो आधार से सबसे बाद में जुड़ा होता है।
योजना से बाहर, और कैसे करें सुधार
जब चैनिति एडगे 28 जून, 2019 को एक लड़के को जन्म देने के बाद पीएमएमवीवाई के तहत मातृत्व लाभ के लिए आवेदन करना चाहती थी, तो करवा गांव में आंगनबाड़ी कर्मी ने उन्हें बताया कि वह ऐसा नहीं कर सकेंगी क्योंकि उन्हें अपने बेेटे के पिता का आधार अपने साथ जमा करना होगा।
पहाड़ी कोरवा जनजाति (एक विशेष तौर पर कमज़ोर आदिवासी समूह, या पीवीटीजी) की 19 वर्षीय चैनिति बिना विवाह किए गर्भवती हुई थी। उनका साथी एक अलग जनजाति से है, और उसने चैनिति के गर्भवती होने और उसके बेटे को स्वीकार करने से इंकार कर दिया था।
चैनिति अपने पिता के घर में अपने बेटे के साथ रहती हैं, और उनके पास अपनी मां के राशन कार्ड के कारण राशन लेने की सुविधा है, इस कार्ड में उनका भी नाम है। वह अपने परिवार से सहायता लेने के बजाय एक दिहाड़ी श्रमिक के तौर पर काम करती हैं। “अगर मुझे पीएमएमवीवाई से लाभ मिला होता तो मैं अपने और अपने बच्चे के लिए ख़ुद चावल ख़रीद लेती,” उन्होंने इंडियास्पेंड को बताया।
उनके अनुभव से पता चलता है कि मातृत्व लाभ के लिए पति के दस्तावेज़ों की आवश्यकता से कैसे अकेली माएं इस योजना से बाहर हो जाती हैं। इस शर्त को हटाने से विवाहित आवेदनकर्ताओं को भी मदद मिलेगी क्योंकि बड़ी संख्या में आवेदन, पति के आधार में जानकारी का मिलान नहीं होने के कारण रुक जाते हैं।
अगर किसी भी आयु और वैवाहिक स्थिति की सभी मांओं को पात्र बनाया जाए तो पीएमएमवीवाई योजना का अधिक लाभ मिल सकता है, सरगुजा की ज़िला कार्यक्रम अधिकारी, ज्योति मिंज ने बताया। “सरगुजा जैसे आदिवासी क्षेत्रों में बाल विवाह का चलन है, और कम आयु की बहुत सी माएं पात्रता की शर्त के कारण इस योजना से बाहर हो जाती हैं,” उन्होंने कहा।
“पति के आधार को एक अनिवार्य दस्तावेज़ के तौर पर हटाने, आधार के अलावा पहचान के अन्य प्रमाणों की अनुमति देने और आवेदन फ़ॉर्म को आसान बनाने से पंजीकरण की प्रक्रिया में रुकावटें कम हो जाएंगी,” राजपुर की सामाजिक कार्यकर्ता किरनी एक्का ने इंडियास्पेंड को बताया।
किरनी ने यह भी बताया कि पीएमएमवीवाई में पारदर्शिता की कमी है क्योंकि ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना और जन वितरण प्रणाली जैसी अन्य सरकारी योजनाओं की तरह इसके लिए कोई वेबसाइट या सार्वजनिक जानकारी का ज़रिया नहीं है।
किरनी का कहना था कि अगर लाभ वर्तमान 5,000 रुपए से बढ़ाए जाते हैं तो इस योजना से उन महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता मिल सकती है जिनकी अपनी कोई आमदनी नहीं है। नीति आयोग के अप्रैल 2017 के एक सर्वेक्षण के अनुसार, पीएमएमवीवाई से पहले 15 राज्यों में इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना के 2,700 से अधिक लाभार्थियों में से अधिकतर ने 11,000 रुपए के नकद लाभ की इच्छा जताई थी। “राशि बढ़ने से महिलाओं को न केवल भोजन और दवा के लिए ख़र्च करने में आसानी होगी, बल्कि उन्हें सम्मान भी मिलेगा,” किरनी ने कहा।
(विपुल, सरगुजा में चौपाल ग्रामीण विकास प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान के साथ काम करते हैं। वह अभियान के लिए फ़ील्ड वर्कर्स में से एक थे। विपुल ने जीन ड्रेज, अद्वैता राजेन्द्र और अनमोल सोमांची का उनके इनपुट के लिए धन्यवाद किया है। इस रिपोर्ट का संपादन मरीशा करवा ने किया है।)
यह रिपोर्ट अंग्रेज़ी में 14 फ़रवरी 2020 को IndiaSpend पर प्रकाशित हुई है।
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