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जंगली जानवरों को दूर रखने के लिए सोयाबिन के खेत के चारो ओर बाड़ लगाता युवक। केंद्रीय सरकार के अनुसार, पिछले दो वर्षों के दौरान जंगली जानवरों के हमलों से खेतों को होने वाले नुकसान में 33 फीसदी की गिरावट हुई है।

एक ओर जहां भारत के दो मंत्री जंगली जानवरों को मारने की अनुमति पर आमने-सामने हो गए हैं, वहीं पिछले दो वर्षों में – 2012 तक - जंगली जानवरों के हमलों से खेतों को होने वाले नुकसान में 33 फीसदी की गिरवाट हुई है। यह जानकारी अगस्त 2014 में, राज्यसभा को दिए गए एक जवाब में सामने आई है।

सरकार के मुताबिक, देश भर में क्षतिग्रस्त फसलें 2010 में 29989 हेक्टेयर से घटकर 2012 में 19962 हेक्टेयर हुई है। 2012 में क्षतिग्रस्त फसलें 81 वर्ग किलोमीटर थी, जोकि मोटे तौर पर सूरत के एक-चौथाई आकार के बराबर है।

बिहार उन पांच राज्यों में से एक राज्य है जिसने दिसंबर 2015 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जानवरों को मारने के प्रस्तावों को आमंत्रित करने के बाद, इस काम की अनुमति मांगी है। बिहार में, 2010 से 2012 के बीच जंगली जानवरों द्वारा किए गए हमलों से खेतों और फसलों को हुए चार गुना अधिक नुकसान होने की रिपोर्ट दर्ज की गई है। अन्य चार राज्यों, जिसने जानवरों को मारने की अनुमति मांगी है, उनके लिए कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं।

राज्य अनुसार जंगली जानवरों द्वारा खेतों को हुए नुकसान

Source: Rajya Sabha

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी , जो पशु प्रेमी हैं, पर्यावरण मंत्री के नीलगाय, सुअर, बंदर सहित जंगली जानवरों को मारने की अनुमति पर आमने-सामने खड़े हैं। 9 जून 2016 को प्रकाशित हुए इस रिपोर्ट के अनुसार गांधी का कहना है कि, पर्यावरण मंत्रालय की जानवरों को मारने की “उत्कट इच्छा” दिखाई दे रही है। पर्यावरण मंत्रालय ने हिमाचल प्रदेश में बंदरों एवं बिहार में नीलगाय एवं जंगली सुअरों को मनुष्यों के साथ संघर्ष होने पर जान से मारने की अनुमति दी है।

रिपोर्ट कहती है कि, “केंद्र को राज्य को जानवरों को जान से मारने की सलाह देने की बजाय अन्य विकल्प तलाशने चाहिए थे।”

बिहार और हिमाचल प्रदेश उन पांच राज्यों में से हैं जिन्होंने पर्यावरण मंत्रालय के फसल नष्ट करने वाले जानवरों को सूचिबद्ध करने की सलाह पर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। उत्तराखंड जंगली सुअर से निजाद पाना चाहता है जबकि महाराष्ट्र एवं गुजरात दोनों नीलगाय से निजाद चाहते हैं।

द क्विंट के इस रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि बिहार, उत्तराखंड और हिमाचल के प्रस्ताव पर मंत्रालय द्वारा विचार किया गया है जबकि महाराष्ट्र और गुजरात से प्रस्ताव "सक्रिय रूप से विचार" के तहत हैं।

2012 में, छत्तीसगढ़ में जंगली जानवरों के हमले से फसलों में होने वाले नुकसान में 13 फीसदी की वृद्धि हुई है, 11,828 हेक्टेयर से बढ़ कर 13,321 हेक्टर हुआ है।

कर्नाटक में, नुकसान में 75 फीसदी की गिरावट हुई है। 2010 से 2012 के दौरान 7,572 हेक्टेयर से गिरकर 1,900 हेक्टेयर हुआ है।

फसल के क्षति के लिए केंद्र सरकार द्वारा दिया जाने वाला मुआवजा

Source: Rajya Sabha

जंगली जानवरों का फसलों के नुकसान के लिए एक बड़ा कारण होने के बावजूद भी बिहार को कोई मुआवज़ा प्राप्त नहीं हुआ है। विभिन्न राज्यों द्वारा प्राप्त मुआवजे में 17 फीसदी की वृद्धि हुई है, 2010 में 1.1 करोड़ रुपए से बढ़ कर 2012 में 1.29 करोड़ रुपए हुआ है।

अनीश अंधेरिया, वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट, एक गैर सरकारी संगठन के अध्यक्ष, का कहना है कि “जंगली सुआर और नीलगाय पिछले कई वर्षों से किसानों की परेशानी का कारण हैं। इसलिए अंत: राज्यों ने खेतों को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों की मारने की अनुमति दी है जबकि न्यजीव अभयारण्यों, राष्ट्रीय उद्यानों या जंगलों में रहने वाले जानवरों को नुकसान पहुंचाने की अनुमति नहीं है।”

अंधेरिया कहते हैं कि, बहुत सारे जानवरों को मारने से खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो सकता है जैसा कि मांसाहारी नीलगाय और जंगली सूअर का शिकार करते हैं। यदि शिकार में गिरावट होगी तो मांसाहारियों का ध्यान पालतू जानवरों एवं मनुष्यों क ओर जाएगा। अंधेरिया सुझाव देते हैं कि जानवरों को मारना "उचित देखरेख और निगरानी के तहत" किया जाना चाहिए।

(मित्तल इंडियास्पेंड के साथ इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 11 जून 16 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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