जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए तटीय ओडिशा में महिलाओं ने उठाए नए कदम
( ओडिशा के बाढ़ग्रस्त तटीय जिले भद्रक में, 11 ग्राम पंचायतों में महिलाओं ने बाढ़ या सूखे जैसी आपदा के बाद उन समस्याओं से लड़ने के लिए समूह का गठन किया है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार और तीव्र होते जा रहे हैं। )
भद्रक, ओडिशा: दयानमंती बिस्वाल झोपड़ी मिट्टी की है और इसमें एक कमरे हैं। उनकी झोपड़ी की छत से एक रस्सी बंधी है और उससे से दो टोकरे लटकते रहते हैं। पूर्वी भारत के इस कोने में वार्षिक बाढ़ के दौरान जब मानसून, सब कुछ डूबा देना चाहता है, तब उन टोकरी में रखे सामान जैसे कि कुछ फल, कपड़ों की कुछ चीजें आदि ही होती हैं, जो सूखी रहती हैं। 48 वर्षीय महिला और चार बच्चों की मां कहती हैं, “पानी घटने का इंतजार करते हुए हम कभी-कभी 15 दिन बिस्तर पर बैठे रहते हैं।”
सीतापुर गांव में बिस्वाल का घर, बैतरणी नदी की सहायक नदियों में से एक से 50 मीटर से कम दूरी पर है, जो भारत के पूर्वी तट के साथ ओडिशा राज्य में दूसरी सबसे लंबी नदी है।
ओडिशा के पूर्वोत्तर में भद्रक के एक गांव शीतलपुर में रहने वाले लोगों के लिए, बाढ़ और बारिश का अर्थ एक ही है।
सलाना आने वाली बाढ़ के पानी में कीड़े और सांप आते हैं। घरों की मिट्टी की दीवारें रास्ता देती हैं। और हैंड पंप ( इन गांवों में मीठे पानी का एकमात्र स्रोत ) पानी के नीचे चले जाते हैं। पानी खिसकने में कभी-कभी एक पखवाड़े का समय लग जाता है।
हाल के वर्षों में, जलवायु परिवर्तन ने बंगाल की खाड़ी के आसपास वर्षा की अनिश्चितता को बढ़ा दिया है। वहां के लोग अब ज्यादा संख्या में तीव्र चक्रवात का सामना करते हैं।
पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिरोलॉजी में वैज्ञानिक अस्मिता देव, जिन्होंने मई 2015 में प्रकाशित अपने अध्ययन में निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए तीन दशक तक के आंकड़ों को देखा है, कहती हैं, "कुल मिलाकर, उत्तर भारतीय महासागर में चक्रवाती गतिविधियां बढ़ रही है, जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल हैं।चक्रवात पहले भी हो रहे थे; लेकिन अब उनकी आवृत्ति और तीव्रता भी बढ़ रही है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को इंगित करता है। " बंगाल की खाड़ी के आसपास की भूमि भी लगातार सूखे का सामना करती है। पानी और फसल भूमि में लवणता में वृद्धि होती है और साथ ही समुद्र और नदी का कटाव भी होता है, जैसा कि दुनिया का सबसे बड़ा पर्यावरण नेटवर्क, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ( आईयूसीएन ) की 2013 की रिपोर्ट में बताया गया है। रिपोर्ट में ओडिशा के 20 गांवों के डेटा शामिल थे। रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन महिलाओं के नेतृत्व वाले घरों को असमान रूप से प्रभावित कर रहे थे। 80 फीसदी को कम काम के अवसर मिले और 70 फीसदी ने आपदाओं के दौरान और बाद में, जब नौकरियां दुर्लभ थीं, तब कठिनाई और ज्यादा घंटे तक तक काम करने की सूचना दी है। सीतापुर जैसे गांवों में, जहां सड़कों और संचार में पिछले कुछ वर्षों में सुधार हुआ है, लगातार बाढ़ से घरों और परिसंपत्तियों को नुकसान पहुंचा है, जिससे बिस्वाल जैसे लोग गरीबी के चक्र में फंसते चले गए हैं।
पहले, उन्होंने इसे अपने भाग्य के रूप में स्वीकार किया। लेकिन अब, वे ऐसा नहीं कर रहे हैं।
जैसा कि जलवायु परिवर्तन से जीवन कठिन हो जाता है, बिस्वाल जैसी महिलाएं अब एक महिला महासंघ के माध्यम से अपनी आवाज उठा रही हैं, जहां वे अपनी आजीविका पर मौसम से संबंधित आपदाओं के प्रभाव को साझा करते हैं और समाधानों पर चर्चा करते हैं। जैसे-जैसे ये संघ आकार और प्रभाव में बढ़ रहा है, इसमें शामिल महिलाएं स्थानीय अधिकारियों से जवाबदेही की मांग करने लगी हैं
यह भारत की जलवायु-परिवर्तन वाले हॉटस्पॉट पर हमारी श्रृंखला की चौथा रिपोर्ट है (आप पहली रिपोर्ट यहां, दूसरी यहां और तीसरी यहां पढ़ सकते हैं।)। श्रृंखला नवीनतम वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ रिपोर्टिंग को जोड़ती है और यह पता लगाती है कि लोग बदलते जलवायु के लिए कैसे अनुकूल हैं।
Bhadrak is a coastal district in Odisha along the Bay of Bengal, the world’s largest bay. During the monsoons, flash floods are a monthly occurrence, and for several days life comes to a standstill.
दुनिया की सबसे बड़ी खाड़ी में परिवर्तन
बढ़ता समुद्र का स्तर। नमकीन पानी। तापमान बढ़ रहा है। अधिक चक्रवात। अधिक तीव्र वर्षा। अधिक शुष्क दिन। ये कुछ परिवर्तन पहले से ही हो रहे हैं लेकिन बंगाल की खाड़ी के लिए अधिक तेजी से परिवर्तन की भविष्यवाणी की गई है।
बंगाल की खाड़ी दुनिया का सबसे बड़ा, पानी का एक तटीय भाग है जो एक बड़े मुख्य भाग से जुड़ता है।
इस खाड़ी के साथ श्रीलंका, भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देश हैं, जो ग्रह के एक चौथाई लोगों का घर हैं। बंगाल की खाड़ी भारतीय महासागर से जुड़ती है, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जो पश्चिम में अफ्रीका से पूर्व में ऑस्ट्रेलिया तक फैला है।
इस क्षेत्र के निम्न-स्तर वाले देश, जैसे कि बांग्लादेश, अक्सर समुद्र के बढ़ते स्तर और वर्षा के पैटर्न में बदलाव से प्रभावित होते हैं। भारत में पश्चिम बंगाल और ओडिशा समान समस्याओं का अनुभव करते हैं, लेकिन यहां जलवायु परिवर्तन के प्रभाव ने अब तक कम ध्यान आकर्षित किया है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग ( आईएमडी) के जलवायु डेटा प्रबंधन और सेवाओं के प्रमुख पुलक गुहाठाकुरता कहती हैं, “हम शुष्क दिनों के साथ-साथ अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि देख रहे हैं; यह पानी के संकट का बड़ा कारण है। इसके बदले हमें कई दिन तक कम तीव्रता वाली बारिश चाहिए । ओडिशा में मानसून के महीनों के दौरान होने वाली सभी बारिश बंगाल की खाड़ी से होती है। ”
बढ़ते तापमान से मौसम की चरम घटनाएं सामने आती हैं, जिसमें भारी वर्षा की आवृत्ति और तीव्रता शामिल है, जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्न्मेन्टल पैनल द्वारा अक्टूबर 2018 में जारी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र का जलस्तर कम होने और निचले इलाकों में पानी की कमी हो जाएगी।
भद्रक के ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता (आरडब्ल्यूएसएस) के एक्सक्युटिव इंजिनियर, अंतरयामी नायक कहते हैं, “यह सारा पानी समुद्र में चला जाता है। इसके परिणामस्वरूप भूजल पुनर्भरण नहीं करता है और बाढ़ के बाद पानी की कमी होती है। " 1901 से 2003 तक एक सदी से अधिक के डेटा पर नजर रखने वाले और 2006 में प्रकाशित हुए आईएमडी द्वारा भारत पर वर्षा पैटर्न के रुझानों पर एक अध्ययन के अनुसार औसत वर्षा की मात्रा कम हो रही है, लेकिन ओडिशा में "महत्वपूर्ण रूप से नहीं" और पड़ोसी छत्तीसगढ़ में "महत्वपूर्ण रूप से", जहां ओडिशा की कई नदियां निकलती हैं, जो राज्य में जल प्रवाह को प्रभावित करती हैं।
The mean rainfall is decreasing over Odisha but not in a significant way during the south-west monsoon season. It is decreasing significantly over the states of Jharkhand and Chhattisgarh where many of Odisha’s rivers either originate or flow through.
Source: Trends in rainfall pattern over India by P Guhathakurta and M Rajeevan; National Climate Centre Research Report
2014 में प्रकाशित वर्षा के आंकड़ों के एक और हालिया विश्लेषण से पता चलता है कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ दोनों में वर्षा में "महत्वपूर्ण कमी" है।
Red colour indicates a significant change while the arrows represent an increase or decrease in the amount of southwest monsoon rainfall.
Source: Observational analysis of Heavy rainfall during southwest monsoon over Indian region, Pulak Guhathakurta, in High-Impact Weather Events over the SAARC Region published in 2014.
उपग्रह डेटा के अनुसार, भद्रक सहित ओडिशा के तटीय क्षेत्रों में सतह के पानी की मात्रा पिछले तीन दशकों में कुछ स्थानों पर घटी है।
यह कमी पानी लाने के लिए लंबी और कठिन दूरी में प्रकट होती है । यह एक बोझ है, जो भद्रक की महिलाओं पर पड़ता है।
The red spots indicate a decrease in surface water from 1984 to 2015, and are based on satellite data, while the black represents water bodies that show no change in size.
Source: Global Surface Water Explorer developed by The European Commission’s Joint Research Centre using satellite data from USGS and NASA.
परिवार के लिए पानी भरना एक बोझ
गर्मियों के महीनों में, भद्रक की नदियों का पानी खारा हो जाता है, क्योंकि समुद्री जल भीतरी हिस्सों में रास्ता बनाता है। इसका मतलब है कि खारा भूजल और पीने योग्य पानी लाने के लिए लंबी दूरी की यात्रा।
58 साल की कुंतला राउत परिवार के सभी लोगों के लिए पर्याप्त पानी भरने के लिए तीन, कभी-कभी चार, चार घंटे बिताती हैं। उनके गांव कलियापाट के बाहर एकमात्र हैंडपंप है जो गांव से 500 मीटर तक की दूरी पर है। हैंडपंप तक जाने में 20 मिनट से 60मिनट तक का वक्त लग सकता है, यह इस बात पर निर्भर है कि हैंडपंप पर कितनी भीड़ है।
कालियापाट में चार हैंड पंपों में से केवल एक का पानी पीने योग्य है। दूसरे हैंड पंपों का पानी खारा हो गया है।
भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा के भद्रक जिले के एक गांव में रहने वाली 58 वर्षीय कुंतला राउत कहती हैं कि पानी भरने का भार महिलाओं पर पड़ता है और वे हर दिन लगभग चार घंटे पानी भरने में लगाती हैं।
निश्चित रूप से, यह कोई नई समस्या नहीं है।
लगभग एक दशक पुराने अध्ययनों के अनुसार, इस क्षेत्र में भूजल ताजे पीने के पानी की तुलना में खारा है। भारत के जल संसाधन मंत्रालय की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, ओडिशा के तटीय क्षेत्र में भूजल का प्रमुख प्रदूषक समुद्र का पानी है।
यह भी बताया गया कि पश्चिमी की तुलना में भारत के पूर्वी तट पर भूजल की गुणवत्ता में अधिक अंतर है।
समुद्र के स्तर में वृद्धि, वर्षा में कमी और जमीन से अतिरिक्त खिंचने के कारण भूजल अधिक खारा हो जाता है। पहले दो कारण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सीधे जुड़े हुए हैं।
जब कालीपट के बाहर का हैंडपंप हर कुछ महीनों में टूट जाता है, तो महिलाएं पानी भरने के लिए पड़ोस के एक किलोमीटर पैदल चलकर आती हैं। प्रत्येक यात्रा में एक घंटे से अधिक समय लगता है।
राउत कहती हैं, " हमें चोट भी लगती है, हमारे जोड़ों और पीठ में दर्द है। पानी की खपत को कम करने के लिए हम बहुत अधिक पानी नहीं पीने की कोशिश करते हैं।" बिस्वाल और राउत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से आवाज उठाने वाली दर्जनों महिलाओं में से हैं, जिन्होंने अब तक भद्रक में 11 ग्राम पंचायतों में एनजीओ वाटरएड इंडिया की मदद से संघों का गठन किया है। पानी की कमी, अधिक हैंडपंपों की आवश्यकता और प्राकृतिक आपदा के बाद स्वच्छता के मुद्दे ( जिन पर पुरुषों की दिलचस्पी नहीं है, उन्होंने कहा ) कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर वे चर्चा करते हैं।
ओडिशा के भद्रक में अधिकांश पड़ोसियों की तरह 48 साल की दयामंती बिस्वाल को मानसून के बाद हर साल अपने मिट्टी के घर का पुनर्निर्माण करना पड़ता है। उसने दूर जाने के बारे में सोचा है, लेकिन ऐसा करने का जोखिम नहीं उठा सकती हैं। वह कहती हैं, "मैंने यह सुनिश्चित किया कि मेरी सभी बेटियां शिक्षित हो।
यदि महिलाओं को बाढ़ के दौरान मासिक धर्म होती हैं, तो उनके पास सेनेटरी नैपकिन के रूप में उपयोग किए जाने वाले रक्त से लथपथ कपड़े को फिर से उपयोग करने के लिए बाढ़ के पानी से धोने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।
क्रॉफर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी ऑफ एएनयू कॉलेज ऑफ एशिया एंड द पैसिफिक, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और पानी के संकट के लिंग प्रभाव पर विशेषज्ञ,कुंतला लाहिड़ी-दत्त कहती हैं, “जलवायु परिवर्तन से संबंधित इस तरह की घटनाओं के दौरान गोपनीयता की कमी अति-महत्वपूर्ण लक्षण है। हमारे समाज में महिलाओं पर शर्म का बोझ है। ” लाहिड़ी-दत्त ने कहा कि जलवायु परिवर्तन महिलाओं को कैसे प्रभावित कर रहा है, इस पर अध्ययन प्रारंभिक अवस्था में है और ‘बहुत अधिक ध्यान देने’ की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि, हालांकि, यह एक आदमी के लिए सार्वजनिक रूप से खुद को राहत देने के लिए स्वीकार्य माना जाता है, एक महिला के पास समान विकल्प नहीं है। लाहिड़ी-दत्त ने 2017 के वृत्तचित्र में आपदाओं के दौरान महिलाओं के कुछ अंतरंग मुद्दों को संबोधित किया है।
कुंतला लाहिड़ी-दत्त की डॉक्यूमेंट्री, ‘वूमन एट द एज’, इस बात की पड़ताल करती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जल स्तर सुंदरवन में महिलाओं को कैसे प्रभावित करता है।.
महिलाएं आपदाओं के दौरान स्वास्थ्य सेवा की कमी से संबंधित मुद्दों को भी उठाती हैं। बिस्वाल ने कहा कि बाढ़ के बीच उनकी चारों बेटियां घर पर पैदा हुईं थीं। पूरे गांव की यही कहानी है।
जसोदा दास याद करते हुए बताती हैं कि कैसे उनके पिता और भाई ने सात साल पहले, जब वह प्रसव पीड़ा में थी, तब गन्ने से बनी टोकरी में उन्हें अपनी पीठ पर लादकर ले गए। हेंगूपति खतुआ साही गांव में उनका घर एक अस्पताल से 7 किमी दूर था और घुटने तक गहरे पानी में होकर वहां पहुंचना पड़ा था। 21 साल की जसोदा ने रास्ते में अपने बेटे को जन्म दिया था।
कुछ गांवों में, गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाने के लिए गांव के मछुआरों के स्वामित्व वाली नावों का उपयोग किया जाता है। कपड़े, रस्सी, बेंत या प्लास्टिक, जो कुछ भी उपलब्ध हो उससे मेकशिफ्ट स्ट्रेचर बनाए जाते हैं।
नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक ओडिशा भारत में गर्भवती महिलाओं के लिए शीर्ष पांच सबसे घातक राज्यों में से एक है, जिसमें मातृ मृत्यु दर भारत के राष्ट्रीय औसत से लगभग 27 फीसदी अधिक है। 15-49 आयु वर्ग की ओडिशा की आधी महिलाएं एनीमिक हैं और हर चार में से एक की बॉडी मास इंडेक्स कम है। राज्य का बाल लिंगानुपात ( पिछले पांच वर्षों में पैदा हुए बच्चों के लिए जन्म के समय लिंग अनुपात ) घट रही है, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस), 2015-16 के सरकारी आंकड़ों से पता चलता है। विशेषज्ञों ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही तनावग्रस्त स्वास्थ्य वितरण प्रणाली पर एक अतिरिक्त तनाव होगा।
चित्र में दिखाई देने वाली मछली पकड़ने वाली नावों का उपयोग बाढ़ आने पर एम्बुलेंस के रूप में किया जाता है।बाढ़ग्रस्त तटीय ओडिशा में ऐसी नौकाओं से महिलाओं को अस्पताल ले जाया जाता है।
कालियापाट में अन्य महिलाओं ने त्वचा रोगों और सांस की समस्याओं की शिकायत की, दोनों पानी में लवणता में वृद्धि से जुड़े थे। पीने के पानी में अतिरिक्त नमक भी महिलाओं में उच्च रक्तचाप और अपरिपक्व जन्म के उच्च जोखिम से जुड़ा हुआ है।
इसका शिकार केवल कालियापाट की महिलाएं नहीं हैं। बांग्लादेश में रिपोर्टों ने गर्भावस्था की जटिलताओं में वृद्धि को पानी की लवणता से जोड़ा है। बांग्लादेश की राजधानी ढाका के एक पत्रकार अबू सिद्दीकी, जिन्होंने ढाका ट्रिब्यून के लिए समस्या की रिपोर्ट की है, ने कहा, "ज्यादातर मामलों में महिलाओं को पता नहीं है कि खारा पानी इसका कारण है।"
लाहिड़ी-दत्त ने कहा, "महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का एक मजबूत सबूत प्रदान करती है। पहले और बाद की तस्वीर को देखना बहुत आसान है और फिर भी (यह) सबसे उपेक्षित क्षेत्र बना हुआ है।"
राउत ने कहा, '' पुरुष हमारी शिकायतों को नहीं सुनते हैं। ”
लेकिन पुरुष बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। ओडिशा के सूखे की वजह से अस्तित्व को बचाने के लिए प्रवास पर काम कर रहे शोध केंद्र ‘संसृष्टि’ के शोधकर्ता और पीएचडी अमृता पटेल कहती हैं, "कृषि उत्पादन प्रभावित होने के कारण हम अधिक पुरुषों को पलायन करते हुए देखते हैं। इसलिए अधिक महिलाओं को कृषि जिम्मेदारियों को निभाना पड़ रहा है जिनके लिए उन्हें प्रशिक्षित नहीं किया गया था। "
इसलिए, महिलाएं एक-दूसरे की मदद करना सीख रही हैं।
सक्रिय महिला संघ
अपने गांव में स्व-सहायता महासंघ की बैठक में, राउत ने महिलाओं की मदद न करने के लिए पुरुषों को जिम्मेदार ठहराया। ज्यादातर युवा महिलाएं, अक्सर, शुरू करने के लिए शांत होती हैं। उन्हें यह पहचानने में समय लगता है कि कम पानी पीना और दिन का पांचवा हिस्सा पानी भरना सामान्य नहीं है।
जल्द ही, शिकायतें शुरू हो गईं। खेतों में प्रवेश करने वाले खारे पानी ने अच्छी फसल की संभावना को खत्म कर दिया है। हमें हैंडपंप का उपयोग करना पड़ता है जो स्कूल का है, एक अन्य ने बताया।
वाटरएड इंडिया के परियोजना समन्वयक पूर्ण मोहंती ने कहा, "ये महिला समूह बहुत जीवंत हैं और समस्याओं की पहचान करने में सक्षम हैं। वे अधिकारियों से संसाधनों की मांग कर रहे हैं ।" महिलाओं की महासंघ परियोजना के कारण कई निष्क्रिय एसएचजी जीवित हो रहे थे।
भारत की 60 फीसदी आबादी भूजल भंडार पर निर्भर करती है, लेकिन लगभग 15% पहले से ही अति-शोषित है। हालांकि भविष्य में भूजल तालिकाओं के बारे में कोई अनुमान उपलब्ध नहीं है, सामान्य भंडार में वर्षा में कमी के साथ गिरावट की उम्मीद है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानवीय हस्तक्षेपों और नीतियों द्वारा गलत हो गया है। भद्रक के सरकारी इंजीनियर, नायक ने कहा, "बांधों का पानी तटीय इलाकों में पानी के बहाव को अवरुद्ध कर देता है।"
केंद्रीय जल आयोग के 2016 के आंकड़ों के अनुसार, ओडिशा में 204 बांध हैं, और पड़ोसी छत्तीसगढ़, जहां इसकी कुछ नदियां उत्पन्न होती हैं, में 258 हैं, जिनमें से कुछ निर्माणाधीन हैं। भद्रक तक पहुंचने तक कई नदियां सूख जाती हैं और जैसे-जैसे समुद्र का स्तर बढ़ता है, समुद्र का पानी बढ़ने लगता है।
बिस्वाल उस तरह की समस्या का भार वहन करती है, जिसे वह कम उम्र की महिलाओं को हस्तांतरित नहीं करना चाहती। वह कहती हैं, इसलिए महिला संघ महत्वपूर्ण है।
" सवाल यह नहीं है कि जीवन कैसा होना चाहिए," बिस्वाल ने कहा, "और मुझे उम्मीद है कि चीजें बदल जाएंगी।"
इस रिपोर्टिंग के लिए अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्कस बे ऑफ बंगाल क्लाइमेट रेजिलिएंस इनिशिएटिव द्वारा अनुदान मिला था।
दिशा शेट्टी कोलंबिया जर्नलिज्म स्कूल और इंडियास्पेंड की रिपोर्टिंग फेलो हैं, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लिखती हैं।
यह भारत के जलवायु परिवर्तन पर रिपोर्टों की श्रृंखला का चौथा भाग है। आप पहला, दूसरा और तीसरा भाग यहां पढ़ सकते हैं।
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 9 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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