जातियों के भीतर व्यापक आय असमानताएं, सवर्ण जातियों में से टॉप 10 के पास 60 फीसदी संपत्ति का स्वामित्व
बेंगलुरु: भारत के सवर्ण जाति के परिवारों ने राष्ट्रीय औसत वार्षिक घरेलू आय की तुलना में लगभग 47 फीसदी अधिक कमाई की है। वर्ष 2012 में इन जातियों के भीतर टॉप 10 फीसदी के पास 60 फीसदी संपत्ति थी। यह जानकारी ‘वर्ल्ड इनक्वालटी डेटाबेस’ द्वारा हाल ही में जारी एक पेपर में सामने आई है।
इसके अलावा, 2012 के दशक में सबसे धनी 1 फीसदी लोगों ने अपने धन में लगभग 16 प्रतिशत अंक की वृद्धि कर 29.4 फीसदी किया है, जैसा कि नवंबर 2018 में प्रकाशित 'वेल्थ इनइक्वलिटी, क्लास एंड कास्ट इन इंडिया, 1961-2012' नाम के पेपर में कहा गया है।
पेपर में उजागर की गई जातियों में और जातियों के बीच आय और धन की व्यापक असमानता, सवर्ण जातियों में गरीब वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में 10 फीसदी कोटा के लिए भारतीय जनता पार्टी सरकार के नए बिल के प्रकाश में महत्वपूर्ण हैं, जिसे अदालत में चुनौती दी गई है।
न केवल धन और आय का अंतर बड़ा है, बल्कि यह बढ़ रहा है - 36 वर्षों में 2016 तक सभी जातियों में। 10 फीसदी द्वारा स्वामीत्व करने वाले धन का हिस्सा 24 प्रतिशत अंक बढ़कर 55 फीसदी हो गया है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 2 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।
जातियों के बीच असमानता
पेपर के अनुसार, सीमांत जाति समूह जैसे अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) 113,222 रुपये की औसतन राष्ट्रीय घरेलू आय की तुलना में बहुत कम कमाते हैं। एससी और एसटी परिवारों की आय, क्रमशः 21 फीसदी और 34 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत से कम है। ओबीसी परिवार बेहतर कमाते हैं, लेकिन फिर भी वार्षिक भारतीय औसत से 8 फीसदी या 9,123 रुपये कम कमाते हैं। 'वेल्थ इनइक्वलिटी, क्लास एंड कास्ट इन इंडिया, 1961-2012' नामक पेपर के अनुसार सवर्ण जाति समूहों में, ब्राह्मण राष्ट्रीय औसत से 48 फीसदी ऊपर कमाते हैं और गैर-ब्राह्मण अगड़ी जातियां 45 फीसदी ज्यादा कमाती हैं। 9 जनवरी, 2019 को, भारतीय संसद ने नागरिकों की सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण प्रदान करने के लिए संविधान (124 वां संशोधन) विधेयक को मंजूरी दी। ये ऐसे परिवार हैं, जो एससी, एसटी या ओबीसी श्रेणियों से संबंधित नहीं हैं, और सालाना 800,000 रुपये से कम कमाते हैं। उनके पास 5 हेक्टेयर से कम कृषि भूमि और 1,000 वर्ग फुट से छोटे आवासीय संपत्तियां हैं।
PM #NarendraModi announced a cabinet decision today to amend the Constitution & provide 10% reservation for ‘economically backward’ upper castes in direct recruitment in govt services & admissions for higher #education. Follow thread for insights: #Reservation
— IndiaSpend (@IndiaSpend) January 7, 2019
Eligibility will be based on: 1) income < Rs 800,000/yr (less than Rs 66,000/month), equivalent to the salary of an entry-level bureaucrat (IAS officer) or senior software engineer/ developer/ or programmer. #Reservation
— IndiaSpend (@IndiaSpend) January 7, 2019
2) Agri land < 5 acre which includes small, marginal, medium & semi-medium holdings that collectively account for 89% of agricultural holdings. Large holdings that account for 10% of agri-land & which declined almost 11% between 2001-2010 not covered. #Reservation
— IndiaSpend (@IndiaSpend) January 7, 2019
3) House < 1,000 sq ft or residential plot <100 yards (less than 900 sq ft) in municipal areas. This is larger than avg size of flats in new building projects across #Mumbai (<900 sq. ft.) & Pune (<1000 sq. ft) launched in 2016. https://t.co/ABdfr4qSF6 #Reservation
— IndiaSpend (@IndiaSpend) January 7, 2019
4) Or a residential plot < 209 yards (less than 1,800 sq ft) in non-notified (non-residential) areas. https://t.co/GkDH3IQMpg #Reservation
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The new 10% #reservation will be over and above the existing reservations & will not affect the quota for scheduled castes/scheduled tribes/other backward castes, according to news reports.
— IndiaSpend (@IndiaSpend) January 7, 2019
The proposed bill, to be introduced tomorrow, will amend Articles 15 & 16 of the Constitution as the 10% reservation exceeds the #SupremeCourt limit of 50% on quotas. #Reservation
— IndiaSpend (@IndiaSpend) January 7, 2019
Critics have already pointed out that the move announced towards the end of the winter session of Parliament means it would not be cleared soon. https://t.co/yp1v4o7CFw https://t.co/6Pg8MKrH6V https://t.co/3nVGX11iIW #Reservation
— IndiaSpend (@IndiaSpend) January 7, 2019
‘वर्ल्ड इनइक्वलिटी डेटाबेस’ को आधार मानते हुए पेपर ने धन सर्वेक्षण, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण-अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण (एनएसएस-एआईडीआईएस), और करोड़पति सूचियों से डेटा संयुक्त किया है। इसने भारत में वर्ग और जाति के बीच बढ़ते संबंधों का पता लगाने के लिए सेंसर, एनएसएस-एआईडीएस और भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण का उपयोग किया।
पेपर कहता है, "आर्थिक रैंकिंग जाति पदानुक्रम का अनुसरण करती है, जिससे जाति समाज में एक वैध स्तरीकरण हो जाती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एफसी समूहों में मानक विचलन भी बहुत अधिक है। यानी उस समूह में सभी अच्छी तरह समृद्ध नहीं हैं। सामाजिक समूहों का क्लस्टरिंग सही नहीं है। ”
जातियों के भीतर, सबसे ज्यादा अंतर अगड़ी जातियों में हैं ( और बढ़ रहे हैं ) और सबसे कम धन अंतर एससी के बीच पाए जाते हैं।
सामाजिक मानव विज्ञानी और स्वतंत्र शोधकर्ता, ए.आर. वसावी ने इंडियास्पेंड को बताया कि, “संसाधनों के आवंटन से अवसरों तक के लिए, सामाजिक पूंजी के लिए वितरण पैटर्न तिरछी सामाजिक संरचना से मेल खाता है। वे रैंकिंग में अधिक हैं या बहुमत से इनकार करने की कीमत पर बेहतर आवंटन प्राप्त करते हैं।”
2018 के वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है, जिसमें टॉप 10 फीसदी कुल धन का 55 फीसदी नियंत्रित करता है। 1980 में यह आंकड़े 31 फीसदी थे। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 2 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 ( एनएफएचएस-4) के अनुसार अनुसूचित जाति की जनसंख्या के 26.6 फीसदी, ओबीसी की 18.3 फीसदी, अन्य जातियों की 9.7 फीसदी और जिनकी जाति अज्ञात है, उनकी 25.3 फीसदी की तुलना में 45.9 फीसदी अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या सबसे कम संपत्ति वर्ग में थी। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 28 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
मुसलमानों की औसत से कम आय, गैर-हिंदू, गैर-मुस्लिम समूह की सबसे अधिक
मुसलमानों का एससी, एसटी और ओबीसी आबादी की तुलना में बेहतर प्रदर्शन है लेकिन राष्ट्रीय औसत से 7 फीसदी कम वार्षिक आय की सूचना है।
पेपर ने कहा, अन्य (गैर-हिंदू, गैर-मुस्लिम समूह और जो लोग एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों के अंतर्गत नहीं आते हैं) सबसे अमीर समूह हैं, हालांकि वे देश की आबादी का केवल 1.5 फीसदी हिस्सा बनाते हैं। उन्होंने भारत में वार्षिक घरेलू आय औसत से दोगुना, 242,708 रुपये की वार्षिक आय अर्जित की।
जाति और धर्म के बीच आय असमानता
दिल्ली विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर एमेरिटस, आंद्रे बेटिल ने इंडियास्पेंड को बताया, "जाति, रिश्तेदारी या परिवार, या तो एक या ये सभी आर्थिक प्रगति में बाधा डाल सकते हैं, यदि वे प्रतिबंध लगाते हैं।"
जनसंख्या की तुलना में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित
जनजाति के पास धन कम
हालांकि एससी भारत की आबादी का लगभग 18-20 फीसदी है, लेकिन 2012 में उनके पास धन का स्वामित्व उनकी आबादी की हिस्सेदारी से 11 प्रतिशत अंक कम था। एसटी के मामले में, यह समुदाय की आबादी की हिस्सेदारी (9 फीसदी) से लगभग 2 प्रतिशत कम था, जैसा कि पेपर से पता चलता है। पेपर के मुताबिक, “ओबीसी समूह के पास 2002 में कुल संपत्ति का 32 फीसदी हिस्सा था जिसमें 2012 में केवल मामूली वृद्धि हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप जनसंख्या हिस्सेदारी (-7.8 फीसदी से -10.2 फीसदी) का सापेक्ष अंतर बिगड़ गया। इसका कारण उनकी जनसंख्या में खासा वृद्धि होना है।”
सवर्ण जाति समूह की हिस्सेदारी ने कुल धन में उनके हिस्से में 39 फीसदी से 41 फीसदी की वृद्धि दिखाई है और 4 प्रतिशत अंकों से अंतर को 18 फीसदी तक सुधार किया है।
जातियों के भीतर असमानताएं, अगड़ी जातियों में सबसे तेज
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, अगड़ी जातियों ने 2012 के अंत में दशक के दौरान तीन जाति समूहों के टॉप 5 फीसदी के बीच सबसे अधिक (47.6 फीसदी) संपत्ति में वृद्धि दिखाई। 2012 तक, समूह का टॉप 10 फीसदी, कुल अग्रेषित जाति धन का 60 फीसदी का स्वामित्व कर रहे थे।
उसी दशक में, एसटीएस के बीच, टॉप 1 फीसदी ने 4.4 प्रतिशत अंक के साथ 19.5 फीसदी के पास संपत्ति को बढ़ाया जबकि एससी के टॉप 1 फीसदी ने 1991 और 2012 के बीच अपनी संपत्ति को 2.5 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 14.4 फीसदी कर दिया।
ओबीसी और एसटी के बीच भी, शीर्ष 10 फीसदी ने अधिकांश धन अर्जित किया था। 2012 में दोनों समूहों के टॉप 10 फीसदी के पास लगभग 52 फीसदी संपत्ति थी और टॉप 10 फीसदी एससी की हिस्सेदारी 2012 तक दो दशकों में तीन प्रतिशत अंक बढ़कर 46.7 फीसदी हो गई।
इसमें कहा गया कि, "2002 में, एसटी समूह के एक व्यक्ति को दूसरे दसमक की दहलीज से टॉप डिकाइल (1/10 वीं) तक पहुंचने के लिए 23 गुना अधिक धन की आवश्यकता थी। इसी तरह एससी, ओबीसी, एफसी और मुस्लिम के लिए 10 वीं दशमक में प्रवेश के लिए क्रमशः 22, 32, 45 और 57 गुना की आवश्यकता होती है।"
एफसी, एससी, एसटी और ओबीसी के बीच टॉप दशमक में धन का हिस्सा
Source: Wealth Inequality, Class and Caste in India, 1961-2012 (November, 2018)
Note: Graph shows the wealth share in top 10%,5% and 1% within different caste groups.
जबकि व्यापक जाति समूहों के भीतर असमानता का सटीक परिमाण देश भर में भिन्न हो सकता ग्रामीण बिहार में जाति समूहों के बीच असमानता पर विश्व बैंक के एक अध्ययन से पता चलता है कि उप-जातियों के बीच असमानता भारत में आर्थिक असमानता का एक प्रमुख चालक हो सकती है, जैसा कि लाइवमिंट ने 25 जुलाई, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
उदाहरण के लिए, मासिक उपभोग व्यय और शैक्षिक प्राप्ति दोनों के संदर्भ में अनुसूचित जातियों के बीच, चामर और दुशाध की तुलना में मुशहरों (तीनों ही जातियों में पारंपरिक रूप से काम में लगे हुए हैं) की स्थिति बद्तर हैं। ओबीसी के बीच, कोइरी जैसी उप-जातियां अधिकांश दलित उप-जातियों की तुलना में बुरा प्रदर्शन करती हैं, जैसा कि लाइवमिंट ने रिपोर्ट में बताया है। इसने इसके लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पेपर में कहा गया है कि, “ निचले 50 फीसदी आबादी ने सभी जाति श्रेणियों में 2-4 प्रतिशत अंक खो दिए हैं। एफसी में बड़ी गिरावट एसटी, ओबीसी और एससी और मुसलमानों के हिस्से में आई है। ”
( पलियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 14 जनवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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