भारत के पूर्वी राज्य झारखंड में 15 से 19 वर्ष आयु वर्ग की विवाहित लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है। झारखंड के लिए यह आंकड़े 49 फीसदी हैं।

गैर लाभकारी संस्था ‘पॉपुलेशन काउंसिल, सेव द चिल्ड्रेन एंड ऑक्सफैम’ की वर्ष2017 की रिपोर्ट ‘मोर दैन ब्राइड अलाइंस : ए बेसलाइन’ के अनुसार 15-19 वर्ष की आयु वाली विवाहित लड़कियों का अनुपात चार राज्यों में 13 फीसदी से लेकर 49 फीसदी तक रहा है। ये चार राज्य हैं, झारखंड, ओडिशा, बिहार और राजस्थान।

चार राज्यों के 9 जिलों में 12-19 साल की आयु के 2,982 लड़कियों को शामिल करने वाले अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट में इन चार राज्यों में शादी की औसत आयु में काफी बदलाव आया है। ओडिशा में, विवाह की आयु 17 वर्ष, जबकि बिहार और झारखंड में 15 और राजस्थान में 13 वर्ष देखा गया।

रिपोर्ट के आनुसार झारखंड में 12-19 वर्ष की आयु की कम से कम 26 फीसदी लड़कियां विवाहित थीं और अपने पति के साथ रह रही थीं, जबकि बिहार के लिए यह आंकड़े 13 फीसदी, ओडिशा के लिए 7 फीसदी और राजस्थान के लिए 8 फीसदी हैं।

हालांकि भारत में शादी की कानूनी आयु लड़कियों के लिए 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है, लेकिन देश के कई हिस्सों में बाल विवाह सामान्य है। वर्ष 2014 में, दुनिया भर में होने वाले बाल विवाह में भारत की हिस्सेदारी करीब एक-तिहाई रही है, जो कि बहुत ज्यादा है।

सहजीवन के औसत आयु में एक अलग प्रवृत्ति थी। राजस्थान की लड़कियां शादी के बाद अपने माता-पिता के घरों में चार साल बिताने के बाद 17 वर्ष की आयु में अपने पति के साथ रहना शुरू कर रही हैं।

12 से 19 वर्ष की आयु में विवाह की उम्र

रिपोर्ट कहती है कि, “ बाकी के राज्यों में विवाह की उम्र और सहजीवन की उम्र के बीच कोई अंतर नहीं पाया गया है। यह एक संभावित संकेत है कि शादी में बढ़ती उम्र के साथ, गौना की संस्कृति [ उत्तर में अपने ससुराल घर में दुल्हन रहना शुरू होता है] का इन राज्यों में पतन हो रहा है। ”

झारखंड में, 18-19 साल की आयु वर्ग के लड़कियों में, लगभग तीन-पांचवीं (63 फीसदी) का विवाह 18 वर्ष से हुआ है जबकि बिहार के लिए यह आंकड़े करीब आधा और राजस्थान में 42 फीसदी था।ओडीशा में कम उम्र में विवाह कम से कम प्रचलित था। 18-19 वर्ष की उम्र की केवल सात में से 1 (15 फीसदी) लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हुआ था।

बाल दुल्हन हिंसा और दुर्व्यवहार का सामना करती हैं और उनमें एचआईवी / एड्स और अन्य यौन संचारित बीमारियां होने की संभावना ज्यादा होती है और साथ ही स्कूल छोड़ने और किशोरावस्था में बच्चों को जन्म देने की अधिक संभावना होती है।

किशोर गर्भावस्था से कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जैसे कि एनीमिया, मलेरिया, एचआईवी और अन्य यौन संचारित संक्रमण, प्रसवोत्तर रक्तस्राव और मानसिक विकार। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने जुलाई 2017 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 जनवरी, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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