टीबी का सामना करते केरल की कैसे हो रही है जीत ?
कोल्लम, पठानमथिट्टा, इडुक्की (केरल): कोल्लम शहर में अगथी मंदिरम (गरीब लोगों का घर) भिखारियों को आश्रय प्रदान करने के लिए आजादी के बाद बनाया गया था। आज, इसके 123 निवासियों में से ज्यादातर मानसिक या शारीरिक अक्षमता वाले बेघर लोग हैं, जिन्हें सड़कों पर घूमते पाए जाने के बाद यहां लाया जाता है।
मई 2018 में, कोल्लम जिले के क्षय रोग (टीबी) केंद्र ने टीबी के लिए अगथी मंदिरम में रहने वाले लोगों में से प्रत्येक की जांच करने का फैसला किया। आम तौर पर, उनके इन-हाउस डॉक्टर, श्रीकुमार डी, टीबी जैसे लक्षणों की पहचान करते हैं और कई बार राज्य टीबी सेल में सालाना विश्लेषण के लिए अपने बलगम नमूने भेजते हैं, जिससे प्रत्येक वर्ष दो या तीन मामले सामने आते हैं।
इस साल पहली बार, वर्ष 2020 तक टीबी मामलों की संख्या को कम करने और टीबी से संबंधित मौतों को पूरी तरह समाप्त करने के उद्देश्य से मार्च 2018 में लांच किए गए केरल टीबी एलिमिनेशन मिशन के हिस्से के रूप में, केंद्र ने घर में हर व्यक्ति की जांच करने के लिए एक पल्मोनोलोजिस्ट भेजा। घर के सभी लोगों की जांच करने वाले एक सलाहकार डॉक्टर पी.अनीश ने कहा, "यह चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि यहां रहने वाले अक्सर अपने लक्षणों की व्याख्या नहीं कर सकते है और न ही उनके बलगम नमूना दे सकते थे।" सामान्य रूप से टीबी का पता लगाने के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक, जैसे कि सीटी-स्कैन, के जरिए उन्होंने 22 मामलों का पता लगाया। राज्य में टीबी को खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित करने के बाद, राज्य भर में अप्रैल से जून 2018 तक, अगथी मंदिरम में यह अभ्यास दोहराया गया। राज्य को अपने मजबूत स्वास्थ्य तंत्र पर भरोसा है, जिससे पहले ही वांछनीय संकेतक मिल चुके है।
ऐसा विश्वास इसलिए है, क्योंकि केरल के लिए टीबी को समाप्त करना आसान है, राज्य के स्वास्थ्य सचिव राजीव सदानंदन ने इंडियास्पेंड को बताया, "हम एकमात्र राज्य हैं, जो इस बीमारी को खत्म करने में सक्षम है।" केरल की रणनीति और संभावित सफलता का पूरे भारत पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इस देश पर दुनिया का सबसे बड़ा टीबी बोझ - 2.74 मिलियन है या वैश्विक कुल का 27 फीसदी हिस्सा है। इसके अलावा, लगभग 300,000 भारतीय निगरानी प्रणाली से दूर हो जाते हैं या दवा के अपने पाठ्यक्रम को पूरा नहीं करते हैं, जिससे अधिक विषाक्त, दवा प्रतिरोधी उपभेदों में वृद्धि होती है। 2016 में, 435,000 लोग भारत में टीबी से मर गए थे। टीबी रोगियों को अक्सर बहुत अधिक स्वास्थ्य खर्चों के कारण वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है।
Health security threats, financial loss apart from equity and human rights are good reasons for countries to take TB seriously @USAID #UNHLMTB @USAIDMarkGreen @StopTB @WHO pic.twitter.com/t83DdIVJZi
— Soumya Swaminathan (@doctorsoumya) July 22, 2018
मार्च 2017 विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, " जबकि किसी भी बीमारी के बोझ से लोगों को छुटकारा दिलाना खुद ही एक आदर्श लक्ष्य है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से टीबी उन्मूलन सार्वजनिक हस्तक्षेप शायद सबसे महत्वपूर्ण मामलों में से एक है। " रिपोर्ट में अर्थशास्त्रियों ने कहा, है "टीबी की घटनाओं को कम करने से प्रति डॉलर खर्च पर $ 33 लाभ उत्पन्न होगा। " यदि संक्रमित रोगी उपचार तक नहीं पहुंच सकते हैं या परहेज को पूरा करने में असफल हो सकते हैं, तो अक्सर बीमारी के अधिक प्रतिरोधी और विषाक्त रूपों के साथ वे कई अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। यही कारण है कि टीबी को प्रारंभिक निदान, पूर्ण उपचार और देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के माध्यम से निपटाया जाना चाहिए। और केरल का उदाहरण याद करने लायक है। कोझिकोड मेडिकल कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रोफेसर के.पी अरविंदन कहते हैं," केरल में टीबी मामलों में कमी चमत्कार की तरह है। एक ऐसी बीमारी, जो बेहद आम थी, अब यहां यह एक दुर्लभ बीमारी है। "
केरल की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर चार आलेकों की श्रृंखला में, इंडियास्पेंड यह जांच करेगा कि कैसे केरल की नीतियां परिणाम दिखा रही हैं और वे भारत के दूसरे राज्यों को क्या सीखा सकते हैं। आज के इस पहले भाग में, हम राज्य के हर निवासी का परीक्षण करने के लिए सक्रिय रणनीति और उसके पूर्ण कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेंगे और कमजोर इलाके आबादी को रेखांकित करेंगे, जिससे नियमित रूप से निगरानी, परीक्षण और उनका इलाज किया जा सके।
सक्रिय मामलों की खोज
सक्रिय ‘केस-फाइंडिंग’ में स्वास्थ्य सेवाकर्ताओं को टीबी के लिए लोगों को सक्रिय रूप से जांचना शामिल है। केरल ने स्वास्थ्य संस्थानों में 2009 की शुरुआत में और 2014 में समुदाय में सक्रिय ‘केस-फाइंडिंग’ शुरू की, जो राष्ट्य स्तर पर 2017 में हुआ है। सेंट्रल टीबी डिवीजन, जो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत काम करता है और आरएनटीसीपी को लागू करने के लिए जिम्मेदार है, के लिए सभी राज्य टीबी इकाइयों को कमजोर के रूप में पहचाने जाने वाले आबादी के बीच तीन बार एक सक्रिय केस-फाइंडिंग अभ्यास करने की आवश्यकता होती है, जैसे कि झोपड़ियां और श्रम शिविरों में रहने वाले, खादान श्रमिक, चाय बागान के श्रमिक और बेघर लोग।
यह आम तौर पर एक विज्ञापन-शैली में किया जाता है और कोई लगातार अनुवर्ती नहीं होता है, अधिकांशतः क्योंकि टीबी मामलों की संख्या अधिक होती है और संसाधन कम होते हैं।
हालांकि, केरल ने पहले से ही मजबूत स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार किया है और सक्रिय कार्य-निष्पादन के लिए प्रेरित सेवा श्रमिकों को इतनी अच्छी तरह से गतिमान किया है कि स्वास्थ्य कर्मी मामलों को खोजने के लिए हर दरवाजे तक जाएंगे और इस वर्ष प्रत्येक निवासी की जांच की जाएगी। टीबी के लिए संवेदनशील माने गए व्यक्तियों की जांच हर तीन महीने में किया जाएगा। केरल राज्य टीबी सेल के अनुसार, इन गतिविधियों में प्रति 100,000 परीक्षण किए गए लोगों में टीबी के लक्षण रोगियों की संख्या में वृद्धि हुई है, लगभग 700 से (अखिल भारतीय आंकड़े) लगभग 1,250 तक। बाइडिरेक्शनल स्क्रीनिंग टीबी दुनिया भर में ज्यादातर युवा वयस्कों को प्रभावित करता है। केरल में, हालांकि, 45 वर्षों से अधिक आयु वालों के बीच आनुपातिक रूप से अधिक लोगों को टीबी है, जैसा कि राज्य टीबी सेल शो द्वारा एकत्रित आंकड़े बताते हैं। राज्य टीबी सेल डेटा के मुताबिक, 2004 से 2014 के बीच, 45 साल से ऊपर के लोगों के बीच टीबी मामलों का अनुपात 10 फीसदी से अधिक बढ़ गया है।
आयु वर्ग के अनुसार केरल में प्रति 100,000 पर टीबी मामले
इसने मधुमेह जैसी पुरानी बीमारियों के बीच लोगों को भेजा है, जो वृद्ध लोगों को और अधिक प्रभावित करता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार केरल और कुछ अन्य दक्षिण भारतीय राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, गोवा और तमिलनाडु और पुडुचेरी के संघ क्षेत्र ने राष्ट्रीय औसत की तुलना में उच्च रक्त शर्करा के स्तर की रिपोर्ट की है, जो मधुमेह के संकेतक हैं।
केरल सरकार द्वारा समर्थित एक 2012 के अध्ययन में पाया गया कि 44 फीसदी टीबी रोगियों में मधुमेह था। इसके अलावा, 21 फीसदी टीबी रोगियों को मधुमेह से ग्रस्त पाया गया था।
इससे नीति में बदलाव आया। केरल के उदाहरण के बाद, आरएनटीसीपी के तहत पंजीकृत सभी टीबी रोगियों को मधुमेह के लिए स्क्रीनिंग के लिए संदर्भित किया जाना चाहिए। यह रेफरल स्वास्थ्य संस्थान की ज़िम्मेदारी है, जहां टीबी उपचार शुरू किया जाता है।
वल्नरबिलिटी मैपिंग
हर घर के दौरे के दौरान टीबी का निदान करने वाले कार्यकर्ताओं को चेकलिस्ट दिया जाता है। चेक किए गए बिन्दुओं के आधार पर, वल्नरबिलिटी स्कोर की गणना की जाती है–सबसे कमजोर टीबी रोगियों के घरेलू संपर्क लिए जाते हैं। इसके बाद इम्युनोस्प्रेसंट दवाओं, कुपोषित, हेल्थकेयर श्रमिकों, और मधुमेह, अंग विकार, आदि का स्थान है। जिन लोगों को संवेदनशील माना जाता है, उन्हें निगरानी के तहत रखा जाता है, फॉलो-अप करने वाले हर तीन महीने में जांच करते हैं। बढ़ती निगरानी के अलावा, राज्य ने कोल्लम के अगथी मंदिरम में कार्ट्रिज-आधारित न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टेस्ट (टीबी को लेकर एक सूक्ष्म जांच), एक्स-रे और सीटी-स्कैन सक्रिय केस-सर्चिंग के दौरान अधिक नैदानिक उपकरण तैनात किए हैं। कुमार, इस तकनीक का जिक्र करते हुए, जिसमें प्रयोगशाला तकनीशियन टीबी बेसिलि को बलगम में देखता है ( एक माइक्रोस्कोप का उपयोग करके एक विषय लार और श्लेष्म का मिश्रण मिला है), कहते हैं, "हम स्पुतम माइक्रोस्कोपी का उपयोग कर टीबी का पता लगाने में चरम बिंदु तक पहुंच गए हैं। अब यह अन्य तकनीकों का उपयोग करने का समय है। " कुछ अन्य जिलों में चल रहे पूरक कार्यक्रम उपचार सहायता समूहों और निजी क्षेत्र के साथ मामलों की रिपोर्टिंग बढ़ाने के लिए चल रहे हैं ( (निजी क्षेत्र के मामलों को आम तौर पर रिपोर्ट नहीं की जाती है, जिस तरह सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा रिपोर्ट किए गए आधिकारिक टीबी आंकड़ों में ज्यादातर घटनाओं, प्रसार, उपचार और इलाज के आंकड़े दर्शाते हैं)। बालाकृष्णन कहते हैं कि जनवरी से 25 जुलाई, 2018 तक निजी क्षेत्र से 2,672 अधिसूचनाएं और सार्वजनिक क्षेत्र से 10,200 सूचनाएं दी गई हैं। वर्ष 2017 में, पूरे भारत में, कुल मामलों में से लगभग 20 फीसदी निजी क्षेत्र से थे (कुल 1.8 मिलियन के 384,000 निजी क्षेत्र के मामले) जबकि केरल में, यह आंकड़ा 36 फीसदी था (कुल 22,754 में 8,232 निजी क्षेत्र के मामले)। पिछले दो सालों से, केरल टीबी सेल ने निजी क्षेत्र के सेवा केंद्रों को अपने टीबी रोगियों की रिपोर्ट करने, अपने मरीजों को मुफ्त दवाएं देने और उन्हें अपने निजी डॉक्टरों के पास वापस जाने के लिए प्रोत्साहित किया है। सरकार 10 से अधिक वर्षों से टीबी उपचार प्रोटोकॉल में निजी डॉक्टरों को भी प्रशिक्षण दे रही है।
केरल टीबी उन्मूलन मिशन रणनीति दस्तावेज के मुताबिक, दो दशकों से संक्रमित वयस्कों के साथ रहने वाले बच्चों को निवारक दवाएं दी गई हैं और कीमोप्रोफिलैक्सिस नामक प्रोटोकॉल के हिस्से के रूप में उनकी निगरानी की जाती है। टीबी पॉजिटिव मरीजों को संक्रमण-नियंत्रण किट देने का फैसला किया गया है। कुमार बताते हैं कि पहले दो महीनों के दौरान टीबी की रक्षा के लिए मास्क, डिस्पोजेबल स्पिटून और कीटाणुनाशक समाधान शामिल हैं। पहले दो महीनों में बीमारी बहुत अधिक है संक्रामक होती है।
बालाकृष्णन बताते हैं कि, सक्रिय केस फाइंडिग और वल्नरबिलिटी मैपिंग अभ्यास के दौरान अब तक विभाग को पूरे राज्य में टीबी के 352 नए मामले मिले हैं ( 38 मिलियन की आबादी में )। हालांकि, केरल में स्क्रीन किए गए लोगों का लगभग 12 फीसदी तक टीबी के लिए बेहद कमजोर पाया गया है, इसमें वे शामिल नहीं हैं जो एचआईबी से पीड़ित हैं।
टीबी की घटनाओं में कमी
2017 आरएनटीसीपी आंकड़ों के मुताबिक, केरल की टीबी घटनाओं में प्रति 100,000 पर 67 मामले होने का अनुमान है, जो प्रति 100,000 पर 138 के भारत के आंकड़े से आधे से भी कम है। 2009 से, जब केरल ने सक्रिय मामला खोजना शुरू किया, राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र में टीबी अधिसूचना दर हर साल लगभग 3 फीसदी गिर रही है। बालाकृष्णन ने कहा कि यह इस तथ्य के बावजूद है कि टीबी के लिए परीक्षण किए जा रहे लोगों की संख्या लगातार बनी हुई है।
केरल में टीबी, 2008-2014
Source: Kerala State TB Centre
2016 के एक अध्ययन के अनुसार, 2013 की तुलना में 2014 में केरल ने निजी क्षेत्र में दवा की बिक्री में 20 फीसदी से अधिक गिरावट दर्ज की थी, जो यह दर्शाता है कि निजी क्षेत्र में भी मामलों की संख्या गिर गई थी।
केरल में मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी टीबी की भी कम दर है(एमडीआर-टीबी, जो पहली पंक्ति दवाओं के साथ उपचार के लिए प्रतिरोधी है, रिफाम्पिसिन और आइसोनियाजिड) और व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी टीबी (एक्सडीआर-टीबी, दूसरे लाइन के साथ-साथ पहली पंक्ति दवाओं के उपचार के लिए प्रतिरोधी) भी है।
2017 आरएनटीसीपी आंकड़ों के मुताबिक पूरे भारत में, 2017 में दवा प्रतिरोधी टीबी के साथ 5.62 फीसदी टीबी रोगियों का पता चला, जबकि केरल में आंकड़ा 3.05 फीसदी था।
केरल टीबी उन्मूलन मिशन रणनीति दस्तावेज के अनुसार, प्रति 100,000 आबादी पर 51 मामलों और 44 मामलों के सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिसूचना दर के साथ मध्य केरल में इडुक्की और उत्तर केरल में वायनाड ने टीबी मामलों की संख्या में अधिकतम गिरावट देखी है।
कम उम्र के बच्चों में टीबी का अनुपात लगातार कम
केरल में, 15 वर्षों से कम उम्र के बच्चों में टीबी का अनुपात लगातार कम हुआ है। 2016 में, 14 साल से कम बच्चों में से 6.3 फीसदी टीबी के मामले थे जबकि 2008 में यह आंकड़े 8.7 फीसदी थे।
आयु वर्ग के अनुसार, सामने आए टीबी के मामलों का अनुपात
राज्य के टीबी अधिकारी सुनील कुमार ने इंडियास्पेंड को बताया कि छोटे बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि प्राथमिक संचरण घट गया है। इसका मतलब यह हो सकता है कि पर्यावरण से या अन्य टीबी रोगियों से बीमारी का प्रत्यक्ष संचरण कम हो गया है।
यह रासायनिक संपर्कों के लिए संक्रमण को रोकने के लिए केमोप्रोफिलैक्सिस - दवाओं को देने पर आरएनटीसीपी दिशानिर्देशों का पालन करके हासिल किया गया है। केरल टीबी उन्मूलन मिशन रणनीति दस्तावेज का कहना है कि उसने संक्रमित वयस्कों के साथ रहने वाले बच्चों को दो दशकों तक निवारक दवाएं दी हैं। हालांकि, पूरे देश में लगातार इसका पालन नहीं किया जाता है, क्योंकि या तो जागरूकता की कमी है या दवाइयों की अनुपलब्धता है।
टीबी की कम घटना वाले देशों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश में चेतावनी है कि अगर टीबी के मामले कम होते हैं, नए रोगियों पर निगरानी और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
कुमार ने कहा, " योजना निगरानी प्रणाली बनाए रखना और अधिक मरीजों का परीक्षण करना है, जिससे कोई भी बाहर नहीं रह जाए।"
भारत के लिए सबक
बिलासपुर के एक समुदाय अस्पताल जन स्वास्थ्य सहयोग के संस्थापक योग योगेश जैन कहते हैं कि शेष देश के लिए केरल का सबसे बड़ा सबक है। कार्यक्रम की सफलता बुनियादी कार्यान्वयन में है। शुरुआती निदान से संबंधित आरएनटीसीपी के "पुराने तरीकों" के दिशानिर्देशों का पालन करना, जिसमें प्रारंभिक उपचार को पूरा करने के लिए अन्य प्रोटोकॉल को बढ़ा-चढ़ा कर नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने कहा, " यहां कोई जादू बुलेट नहीं हैं। केरल देश के बाकी हिस्सों को आईना दिखा रहा है कि हमें वही करना है जो हम अच्छी तरह से कर सकते हैं। "
इंपीरियल कॉलेज लंदन में ‘पब्लिक हेल्थ स्कूल’ के निमलन अरिनमिनपैथी ने कहा, "हमें टीबी की सक्रिय मामलों की खोजने की आवश्यकता है। जितना साथ में यह भी महत्वपूर्ण है कि यह झोपड़ियां और अन्य वंचित समुदायों के पास हमें जाना होगा। , हमें मधुमेह और धूम्रपान करने वालों के पास भी जाना होगा।"
“हालांकि केरल का उदाहरण ( भारत की विशाल आबादी, संसाधनों की कमी, और बुनियादी ढांचे की कमी, क्षमता और तैयारी ) भारत भर में पूरी तरह से लागू नहीं हो सकता है, लेकिन अरिनमिनपथी कहते हैं, “मौजूदा संसाधनों के साथ भी बहुत कुछ किया जा सकता है।”
“आशाओं के द्वारा हर तीन महीनों में कमजोर समूहों की निगरानी करना बहुत अच्छी रणनीति है”, अरिनमिनपथी कहते हैं, “क्योंकि यह उनके नियमित काम का हिस्सा हो सकता है और राज्य को कोई अतिरिक्त लागत नहीं होती है।”
अरविंदन ने बताया कि ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे कम संसाधन वाले राज्यों में भी कुछ कार्यक्रम चल रहे हैं। दरअसल यह राजनीतिक इच्छाशक्ति है, जो कार्यक्रमों या योजनाओं में काम करती है।"
यह टीबी के खिलाफ केरल की लड़ाई पर चार आलेखें की श्रृंखला का पहला भाग है।
( राव स्वतंत्र पत्रकार हैं और दिल्ली में रहती हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 8 अक्टूबर 2018, को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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