तकनीक के बेहतर इस्तेमाल से भारत के सरकारी स्कूलों में सुधार
तकनीक की मदद से बच्चे बेहतर तरीके से सीख सकते हैं। दिल्ली में जनवरी 2017 में स्कूल के बाद बच्चों के बीच किए गए अध्ययन के अनुसार यदि प्रोग्राम को अच्छी तरह से डिजाइन और लागू किया जाए और हर बच्चे की अनोखी जरूरतों के प्रति संवेदनशील होकर अगर बच्चों के मौजूदा ज्ञान स्तर पर सामग्री का निजीकरण किया जाए तो यह काफी सहायक हो सकता है।
सरकारी उच्च प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के बच्चे ( कक्षा छह से दस तक ) इस अध्ययन में शामिल किए गए थे। इसमें सीखने की प्रगति के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया। अध्ययन के अनुसार, जो बच्चे इस कार्यक्रम में शामिल नहीं थे, उनकी तुलना में शामिल रहे बच्चों में गणित में दोगुना और हिंदी में 2.5 गुना की प्रगति देखी गई। सैन डिएगो में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से कार्तिक मुरलीधरन, लंदन यूनिवर्सिटी कॉलेज से अभिजीत सिंह और और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अब्दुल जमील पोवर्टी एक्शन लैब से अलेजांड्रो जे. गनीमियान इस अध्ययन के सह-लेखक थे।
विकास अर्थशास्त्री प्रोफेसर मुरलीधरन ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि "एक अच्छी तरह से डिजाइन किए हस्तक्षेप के बड़े प्रभाव हो सकते हैं।"
कार्यक्रम से जो लाभ देखा गया, उसमें गणित में आसान प्रकार के प्रश्नों पर सही उत्तर देने में 12 फीसदी से लेकर ज्योमेट्री और मेजरमेंट जैसे कठिन विषयों पर 36 फीसदी वृद्धि तक पाया गया है।
हिंदी में जो छात्र इस कार्यक्रम का हिस्सा रहे, उन्हें वाक्य पूरा करने जैसे आसान टॉपिक पर 7 फीसदी का लाभ हुआ है और वाक्यों को पढ़ कर समझने और प्रश्नों के उत्तर देने जैसे कठिन टॉपिक पर 19 फीसदी लाभ देखा गया है। अध्ययन के अनुमान के अनुसार, अगर कार्यक्रम को बड़े पैमाने पर लागू किया जाता है तो कार्यक्रम की लागत प्रति छात्र पर प्रति माह 130 रुपए ( 2 डॉलर) की आएगी।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 के अनुमानों के अनुसार, भारत में छह से दस वर्ष के बीच के करीब 13 करोड़ प्राथमिक-आयु और 11 और 15 साल के बीच के 12 करोड़ माध्यमिक विद्यालयों की आयु के बच्चे हैं। लेकिन वर्ष 2016 में किए सर्वेक्षण के अनुसार, कक्षा आठ में पढ़ने वाले कम से कम 40.2 फीसदी बच्चे गणित का गुना करने सक्षम थे। करीब 70 फीसदी बच्चे कक्षा दो की किताबें ठीक से पढ़ सकते थे, जैसा कि ग्रामीण भारत में सीखने पर नागरिक नेतृत्व के आकलन शिक्षा रिपोर्ट की वार्षिक स्थिति, 2016 में बताया गया है।
Source: Annual Status of Education Report, 2016
अध्ययन के अनुसार कमजोर छात्रों को इस तकनीकी हस्तक्षेप से ज्यादा फायदा हुआ। क्योंकि कमजोर छात्र जो केवल नियमित स्कूल ही जाते हैं, उनकी स्कूल वर्ष के दौरान प्रगति करने की संभावना कम थी। अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इसका एक कारण छात्रों को व्यक्तिगत ध्यान न मिलना हो सकता है या फिर शिक्षण के अभिनव तरीके उन्हें नहीं मिले। बोझिल तरीकों की वजह से सीखने में उनकी दिलचस्पी ही नहीं जगी।
अध्ययन में 'माइंडस्पार्क' के प्रभाव का विश्लेषण किया गया है। यह एक सॉफ्टवेयर है, जो छात्रों के सवालों के जवाब के आधार पर सामग्री को अनुकूलित करता है। अध्ययन में सितंबर 2015 और फरवरी 2016 के बीच दिल्ली में तीन 'माइंडस्पार्क' केंद्रों में भाग लेने वाले 314 छात्रों का विश्लेषण किया गया है और परिणामों की तुलना अकस्मात रूप से नियंत्रण समूह के लिए चुने गए 305 छात्रों से की गई है। सभी 619 छात्र ( 97.5 फीसदी कक्षा छह से नौ तक ) सरकारी स्कूलों से थे।
'माइंडस्पार्क' सॉफ्टवेयर के जरिए प्रत्येक छात्र के स्तर पर सीखने और उनकी गति के साथ प्रगति प्रदान किया गया। सॉफ्टवेयर ने छात्र की गलतियों में पैटर्न का भी विश्लेषण किया और ऐसी सामग्री प्रदान की जो इन संकल्पनात्मक बाधाओं को लक्षित करती है। ऐसा करना कक्षा में शिक्षकों के लिए मुश्किल हो सकता है।
बड़े पैमाने पर इस कार्यक्रम की लागत प्रति छात्र पर 130 रुपए
अध्ययन के अनुमान के अनुसार, अगर कार्यक्रम बड़े स्तर पर लागू किया जाता है तो खर्च लगभग 2 डॉलर (130 रुपए) का आएगा। मुरलीधरन कहते हैं कि इस कार्यक्रम ने कई राज्यों के हित को आकर्षित किया है। वह कहते हैं, “ इसमें बड़ी क्षमता है लेकिन इसे सरकारी स्कूल व्यवस्था में शामिल करने में ढेर सारे काम करने होंगे।”
अध्ययन के दौरान माइंडस्पार्क कार्यक्रम में प्रति माह प्रति छात्र 1,000 रुपए ( 15 डॉलर ) की लागत आई है। इसमें बुनियादी ढांचा लागत, हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर शामिल हैं। जब बच्चों के स्कूल में प्रति-छात्र के 1,500 रुपए मासिक खर्च से इसकी तुलना की गई तो परिणाम सीखने के मामले में लागत प्रभावी थे।
सप्ताह में छह दिन के हिसाब से छात्र साढ़े-चार महीने के लिए अध्ययन सेंटर पर आए। 12-15 छात्रों के समूह में वे 45 मिनट तक व्यक्तिगत पठन और 45 मिनट तक के लिए उन्हें शिक्षण सहायक से मदद मिली।
अध्ययन सेंटर पर औसत उपस्थिति 58 फीसदी थी।
प्रौद्योगिकी सीखने में मददकार, लेकिन सही तरीके की जरूरत
लेखकों ने अध्ययन में लिखा है कि कार्यक्रम जो घर पर या स्कूलों में कंप्यूटर प्रदान करते हैं, ज्यादातर उनका सीखने पर सकारात्मक प्रभाव नहीं होता है।
लेकिन कम्प्यूटर-सहायता प्राप्त कार्यक्रम, जो छात्र को स्वयं की गति से अपनी कक्षा योग्य सामग्री की समीक्षा करने की अनुमति देते हैं, उनके सकारात्मक परिणाम होते हैं। लेखक आगे समझाते हैं कि, एक हस्तक्षेप जो विद्यार्थी की सीखने के स्तर के अनुसार व्यक्तिगत सामग्री वितरित कर सकता है (जैसे कि माइंडस्पार्क कार्यक्रम) और इसके परिणाम काफी सुखद हो सकते हैं।
मुरलीधरन का कहना है कि, "अधिकांश राजनेताओं के लिए, प्रौद्योगिकी हार्डवेयर है और हार्डवेयर का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। " उन्होंने मामना है कि कि राजनेता लैपटॉप और कंप्यूटर पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो सही नहीं है।
उदाहरण के लिए, पेरू में " प्रति बच्चा एक लैपटॉप " कार्यक्रम से स्कूलों में छात्रों पर कंप्यूटर के अनुपात में वृद्धि हुई है। लेकिन एक विश्लेषण में पाया गया कि गणित और भाषा के स्कोर में सुधार नहीं हुआ है।
इसी तरह, गुजरात में एक कंप्यूटर आधारित शिक्षा कार्यक्रम, जिसने स्कूलों में नियमित पाठों पर बिताए समय को बदल दिया, से टेस्ट स्कोर कम हुए हैं। यह संकेत देते हैं कि स्कूलों में कंप्यूटरों का इस्तेमाल, सीखने के स्कोर के लिए हानिकारक भी हो सकता है। इस पर 2008 के इस अध्ययन को देखा जा सकता है।
मुरलीधरन समझाते हैं कि, "प्रौद्योगिकी में भारी क्षमता है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इसे कैसे शिक्षा या सीखने की प्रक्रिया के साथ जोड़ा गया है।"
एक ही क्लास में हर स्तर के छात्रों के लिए तकनीक मददकार
अध्ययन में पाया गया कि, कार्यक्रम का हिस्सा रहे कक्षा छह के छात्र औसतन, कक्षा छह के गणित मानकों से 2.5 ग्रेड नीचे थे। इसके अलावा, आम तौर पर एक कक्षा में छात्र उनके सीखने के स्तर के अनुसार पांच से छह ग्रेड तक फैले हुए होते हैं, जो हर छात्र के स्तर पर शिक्षकों को सिखाने के लिए कठिन बना सकता है। मुरलीधरन का कहना है, "हम पाते हैं कि एक क्लास में नीचे से एक तिहाई छात्र कुछ सीख नहीं रहे हैं। "
अध्ययन से पता चलता है कि ग्रेड स्तर पर शिक्षण कमजोर छात्रों को नजरअंदाज कर सकता है, लेकिन एक कंप्यूटर प्रोग्राम प्रत्येक बच्चे के कक्षा स्तर के अनुसार सामग्री को निजीकृत करने में मदद कर सकता है।
(शाह लेखक / संपादक हैं और इंडियास्पेंड से साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 28 मार्च 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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