तमिलनाडु में बढ़ते कृषि संकट के बीच रिकॉर्ड उपज की उम्मीद
नई दिल्ली में भूख हड़ताल में शामिल तमिलनाडु के किसान। जान लें , तमिलनाडु में वर्ष 2014-15 में देश के 5.6 फीसदी चावल का उत्पादन हुआ है। कृषि के क्षेत्र में इस उथल-पुथल के बीच इस बार भी कृषि मंत्रालय ने तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्तर पर रिकॉर्ड उपज का अनुमान लगाया है।
तमिलनाडु में 140 वर्षों में सबसे खराब पूर्वोत्तर मानसून की वजह से इस बार किसानों ने 2015-16 में की तुलना में एक-तिहाई कम जमीन जोती है। छह प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर गिरना जारी है और पांच वर्षों के दौरान कृषि क्षेत्र में अधिक लोगों ने आत्महत्याएं की हैं।
याद रहे ,तमिलनाडु में वर्ष 2014-15 में देश के 5.6 फीसदी चावल का उत्पादन हुआ है। लेकिन इन दिनों वहां कृषि क्षेत्र में उथल-पुथल है। फिर भी इस बार भी कृषि मंत्रालय ने रिकॉर्ड राष्ट्रीय फसल का अनुमान लगाया है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे अग्रिम अनुमान में सबसे ज्यादा खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। अनुमान है कि वर्ष 2015-16 में 251.57 मिलियन टन की तुलना में जून से समाप्त होने वाले फसल वर्ष 2016-17 में उपज 9 फीसदी बढ़कर 273.4 मिलियन टन तक होगा।
कृषि मंत्रालय की नवीनतम स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक तमिलनाडु में 2 फरवरी, 2017 तक पूरे फसल की बुवाई में साल-दर-साल 29 फीसदी की गिरावट हुई है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 1876 से अब तक करीब140 वर्षों में पूर्वोत्तर मानसून 2016 तक पिछले सबसे ज्यादा बुरा था। हालांकि आमतौर पर पूर्वोत्तर मानसून पर लोग ध्यान नहीं रखते।दक्षिणी-पश्चिमी मानसून का महत्व ज्यादा है। इंडियास्पेंड ने जनवरी 2017 में इस बारे में बिस्तार बताया है। रिकॉर्ड रखना 1871 में शुरू हुआ था, लेकिन 1876 में अक्टूबर से दिसंबर के बीच तमिलनाडु, तटीय आंध्र प्रदेश, दक्षिणी कर्नाटक और केरल के बीच बुरा पूर्वोत्तर मानसून दर्ज किया गया था। वर्ष 2016 दूसरा सबसे खराब मानसून का वर्ष रहा है।
2015-16 से तमिलनाडु में फसल बुवाई 29 फीसदी कम
Source: Department of Agriculture Cooperation & Farmers Welfare; Data as of February 2, 2017
तमिलनाडु के 6 प्रमुख जलाशयों में से 3 में जल स्तर में , 5 जनवरी से 11 मई 2017 के बीच 25-70 फीसदी की गिरावट हुई है। इसकी निगरानी केन्द्रीय जल आयोग के पास है। यह जानकारी आयोग के आंकड़ों में सामने आई है। यहां तक कि 11 मई, 2017 को समाप्त सप्ताह के दौरान 6 जलाशयों में औसतन सामान्य से 82 फीसदी कम पानी था। राज्य के 78 जलाशयों से पानी का उपयोग करके तमिलनाडु के खेतों में कितने प्रतिशत सिंचाई की जाती है, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।
तमिलनाडु के प्रमुख जलाशयों में भंडारण
Source: Central Water Commission data for January 5, 2017 and May 11, 2017
आधिकारिक तौर पर 10 जनवरी, 2017 को सूखा वर्ष घोषित किया गया था। लेकिन राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सूखे की वजह से किसान आत्महत्या नहीं कर रहे हैं। हालांकि इस पर विवाद है। नई दिल्ली में तिमिलनाडु के किसानों के प्रतिनिधि प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका विरोध अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींच कर रहा है।
सूखे की वजह से किसानों की आत्महत्या नहीं: राज्य सरकार
तमिलनाडु सरकार का दावा है कि अक्टूबर 2016 से अब तक सिर्फ 82 किसानों ने आत्महत्या की है। लेकिन दिल्ली में तमिलनाडु किसानों के प्रतिनिधियों में से एक और तमिलनाडु देसिया (नेशनल साउथ इंडियन रिवर भारतीय इंटरलैंकिंग फार्मर्स एसोसिएशन ) के अध्यक्ष पी. अय्याकन्नु ने हमें बताया कि यह जानकारी गलत है।
अय्याकन्नु ने दावा किया कि सूखे के कारण करीब 400 किसानों ने आत्महत्या किया है और इन आत्महत्या के मामले पुलिस में भी दर्ज किए गए हैं। इंडियास्पेंड स्वतंत्र रूप से इस दावे को सत्यापित नहीं कर सका है।
तमिल मीडिया रिपोर्टों के अनुसार अकेले जनवरी 2017 में 106 किसानों की मृत्यु हुई है। इसके आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और राज्य सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक तमिलनाडु में कृषि क्षेत्र में हुई आत्महत्यायों में ( जिनमें भूमिहीन किसान और कृषि श्रमिक शामिल हैं ) 2010 और 2015 के बीच 12 फीसदी की वृद्धि हुई है।
अय्यकानु ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा कि पुलिस ने सूखे या फसलों के नुकसान से जुड़ी कई आत्महत्याओं के मामलों को गलत दर्ज किया है। सही कारणों को छोड़कर परिवार की समस्याओं, बुढ़ापे जैसे अन्य कारण बताए गए हैं। इसके अलावा, एनसीआरबी ने दो श्रेणियों के तहत खेत से संबंधित आत्महत्याओं का नया वर्गीकरण किया है – एक किसानों और दूसरा कृषि मजदूर। पिछले 6 सालों से वर्ष 2014 तक किसान आत्महत्याओं में दिख रही कमी की वजह, यह नया वर्गीकरण भी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जुलाई 2015 में विस्तार से बताया है।
तमिलनाडु में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या, 2010-15
Source: Accidental Deaths & Suicides in India reports 2010, 2011, 2012, 2013, 2014 & 2015Note: Farm sector includes those who till their own land or someone else's as well as agricultural labourers. For the years 2010-13, figures are those reporting farming/agriculture under self-employment.
8 मई, 2017 को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 140 साल में राज्य के सबसे खराब मानसून के बाद सूखे के कारण मरने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजे के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। यह जानकारी इंडियास्पेंड को किसानों के सलाहकार एन राजारामन ने दी है।
राज्य सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को यह सबूत दिया गया कि किसानों की आत्महत्याएं सूखे की वजह से नहीं थीं। अय्याकन्नू ने इसके खिलाफ चुनौती दी है।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और ए.एम. खानविलकर की सुप्रीम कोर्ट की पीठ को जब अय्याकन्नू ने यह बताया कि पिछले एक साल में किसानों की आत्महत्या के 20 मामले जिला कलेक्टरों को दिए गए हैं, तो किसानों के सलाहकार राजारमन को यह मामला सुप्रीम कोर्ट की बजाय उच्च न्यायालय के ध्यान में लाने की सलाह दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई, 2017 को कहा था कि कि यह न्यूनतम समर्थन कीमतों और मंडियों (स्थानीय बाजार) के संरचनात्मक पहलुओं से जुड़ा है। राजारमन ने इंडियास्पेंड को बताया कि सुप्रीम कोर्ट मुआवजे पर अधिक दबाव पर अनिच्छुक था।
कोयम्बटूर के तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के एग्रो क्लाइमेट रिसर्च सेंटर के प्रमुख प्रो. एस पन्नेरसेल्वम ने इंडियास्पेंड को बताया कि दक्षिणपश्चिम मानसून पर मौसम विभाग सामान्य रूप से अप्रैल 2017 में पहले पूर्वानुमान के आधार पर परामर्श जारी करेगा। पूर्वानुमान जून में अपडेट किया जाएगा।
(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 15 मई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।
__________________________________________________________________
"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :