तेज़ी से सूख रहे हिमालय के पास मौजूद शहर
बेंगलुरु: हिमालय क्षेत्र में स्थित मसूरी, दार्जिलिंग और काठमांडू जैसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों को जल्द ही पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। एक नए शोध से पता चला है कि यहां के कुछ शहरों में मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर 70% तक है।
भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश के हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र में मौजूद 13 शहरों में किए गए 10 अध्ययनों की एक श्रृंखला में पाया गया कि पानी के संकट की वजह ख़राब प्रबंधन और जलवायु का बिगड़ना है।
“हिमालय के शहरी क्षेत्र सूख रहे हैं,” इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस (आईएसबी), हैदराबाद के भारती इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी में रिसर्च डायरेक्टर और एसोसिएट प्रोफ़ेसर, अंजल प्रकाश ने कहा। “इनके पानी के अधिकतर स्रोत झरने हैं और झरने जलवायु और ग़ैर-जलवायु कारणों के जटिल मिश्रण के कारण कम हो रहे हैं।” एशिया की सबसे बड़ी नदियों में से 10 पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और पूर्व में चीन में हिंदूकुश के पहाड़ों से निकलती हैं। शोध में पाया गया कि इन इलाक़ों में पानी की मांग और आपूर्ति में अंतर 2050 तक दोगुना हो सकता है। सर्वे वाले आठ शहरों में यह अंतर 20% से 70% तक है, झरनों पर अधिक निर्भरता वाले शहरों में यह अंतर 50% और 100% के बीच है।
10 अध्ययनों की यह श्रृंखला को पूरा होने में दो साल लगे। इन अध्ययनों को अंतरराष्ट्रीय जर्नल वॉटर पॉलिसी के 1 मार्च, 2020 के विशेष संस्करण में शामिल किया गया था। अंजल प्रकाश ने नेपाल के इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डवेलेपमेंट (आईसीआईएमओडी) के डायरेक्टर जनरल, डेविड जेम्स मोल्डन के साथ मिलकर इसका संपादन किया और एक संपादकीय में अध्ययनों के मुख्य बिंदुओं पर रोशनी डाली।
शहरीकरण में तेज़ी और जलवायु की आपात स्थिति ज़िम्मेदार
फ़िलहाल हिंदूकुश की कुल जनसंख्या में से 3% बड़े शहरों में और 8% छोटे शहरों में रहती है, इस संपादकीय के अनुसार। 2050 तक इस क्षेत्र की जनसंख्या का 50% से अधिक शहरों में रहेगा, जिससे जल संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा, श्रृंखला के पूर्वानुमानों में कहा गया है।
अध्ययनों में से एक में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण को उठाया गया है। इसमें पानी के ख़राब प्रबंधन, योजना की कमी, पीक सीज़न के दौरान पर्यटन के ख़राब प्रबंधन के साथ ही जलवायु की बिगड़ती स्थिति को जल संकट के लिए दोषी बताया गया है।
भारत के हिमालयी शहरों मसूरी और देवप्रयाग पर हुए एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि पर्यटन के अधिक होने के बावजूद इन शहरों में बारिश के पानी को इकट्ठा करने, तूफ़ान के पानी के प्रबंधन और उपयुक्त सीवेज की कमी है।
इन शहरों में मांग बढ़ी है, लेकिन आपूर्ति में बारिश के बदलते पैटर्न और झरने के पानी की घटती उपलब्धता के कारण कमी आई है। “जब हम पहाड़ों में जलवायु परिवर्तन के बारे में सोचते हैं, तो हम ग्लेशियरों के पिघलने पर विचार करते हैं। यह एक गंभीर समस्या है, लेकिन जिस समस्या को हम अनदेखा कर देते हैं वह बारिश और झरनों की है,” डेविड जेम्स मोल्डन ने कहा।
आने वाले सालों में बहुत अधिक बारिश और बाढ़ की घटनाएं बढ़ सकती हैं, जलवायु परिवर्तन के आंकलन के लिए बनाई गई संयुक्त राष्ट्र की संस्था, इंटरगवर्नमेंटल पैनल फ़ॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की नई रिपोर्टों के अनुसार। कुछ स्थानों में अधिक नमी होने का अनुमान है, जबकि अन्य स्थानों पर सूखा बढ़ेगा। मॉनसून के असामान्य होने से फ़सलों को पहले ही नुक़सान हो रहा है, और इससे देश में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ सकती है जिन्हें खाना नहीं मिल पाता, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अपनी रिपोर्ट में बताया था।
“जलवायु और जल की कहानी आसान है,” इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ ह्यूमन सेटलमेंट (आईआईएचएस), बेंगलुरु में सीनियर क्लाइमेट रिसर्चर, आमिर बज़ाज़ ने बताया। “यह कहानी बारिश, बर्फ़ गिरने और ओलावृष्टि से जुड़ी है। जलवायु परिवर्तन से इनके पैटर्न में बदलाव होगा। आपके पानी के सभी स्रोतों को इन्हीं स्रोतों से पानी मिलता है क्योंकि कोई अन्य स्रोत नहीं है।”
पहाड़ों में, पानी का स्रोत झरना है -- जनसंख्या बढ़ने से इनके पानी का अधिक इस्तेमाल हो रहा है और बारिश के पैटर्न में बदलाव से इनमें पर्याप्त पानी नहीं पहुंच रहा है।
समाधान इसलिए और ज़्यादा मुश्किल है क्योंकि झरनों की अभी तक मैपिंग नहीं की गई है, न ही सीज़न के हिसाब से इनमें आए बदलावों को समझा गया है, अंजल प्रकाश ने बताया। “पहाड़ी शहर जलवायु से जुड़े उन ख़तरों के लिए तैयार नहीं हैं जिनका पूर्वानुमान आईपीसीसी रिपोर्टों में दिया गया है,” उन्होंने कहा।
भारत के 12 हिमालयी राज्यों में से, असम, मिज़ोरम और केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर और लद्दाख को जलवायु परिवर्तन से अधिक ख़तरा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अपनी पहले की रिपोर्ट में बताया था।
प्रवासी, ग़रीब और महिलाएं सबसे ज़्यादा प्रभावित
अध्ययन में शामिल देशों में पानी के संकट के अनुभव पिछले कुछ सालों में और वर्ग, जाति और लिंग के अनुसार अलग-अलग हैं। श्रृंखला के अध्ययनों में से एक में पाया गया कि काठमांडू में पैसे वाले परिवार ग़रीब परिवारों की तुलना में पानी पर 38.2% कम ख़र्च करते हैं। काठमांडू के लगभग 20% ग़रीब परिवार शहरी निकायों से होने वाले पानी की आपूर्ति से वंचित हैं। यह परिवार पानी के प्राइवेट टैंकर जैसी महंगी अनौपचारिक प्रणालियों पर निर्भर हैं।
पानी की अर्थव्यवस्था अनौपचारिक से औपचारिक में जाने से ग़रीबों को फ़ायदा होगा। “असमानताएं व्यापक हैं और लोगों के लिए पानी के अधिकारों में फ़र्क है,” अंजल प्रकाश ने बताया। इंडियास्पेंड ने ओडिशा और राजस्थान के मैदानी क्षेत्रों के बारे में अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि अधिकतर मामलों में परिवारों में पानी भरने की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर होती है। नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में भी इसी तरह का प्रचलन बताया जाता है।
ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में पलायन करने वाले लोग भी इस ख़तरे का शिकार हैं। 2018 में, 148 देशों में विवाद और आपदाओं का शिकार 2.8 करोड़ लोग नए विस्थापित थे, मई 2019 में जारी ग्लोबल रिपोर्ट ऑन इंटरनल डिसप्लेसमेंट के अनुसार।
देश में अभी तक जलवायु परिवर्तन के कारण पलायन करने वालों की गिनती करने की कोई प्रणाली नहीं है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे अधिक जोखिम वाले देशों में भारत पांचवें स्थान पर है, दिसंबर 2019 की इंडियास्पेंड की इस रिपोर्ट के मुताबिक़।
“शहर में आने वाले प्रवासियों के पास सुविधाओं की कमी है, महिलाओं के पास सुविधाओं की कमी है। ग़रीबों के पास अक़्सर सुविधाओं की कमी होती है,” आईसीआईएमओडी के डेविड जेम्स मोल्डन ने कहा। “असली संकट यही है।”
पानी के बेहतर प्रबंधन की ज़रूरत
श्रृंखला में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग (पानी की बहुतायत वाले क्षेत्र में स्थित एक शहर) के उदाहरण का इस्तेमाल संभावित समाधानों को समझाने के लिए किया गया है। दार्जिलिंग में पानी की समस्या का बड़ा कारण स्थानीय निगम निकाय की ओर से ख़राब प्रबंधन और ब्रिटिश दौर के सिस्टम में सुधार के लिए कम निवेश किया जाना है, अध्ययन के मुताबिक़।
पानी की कमी से निपटने के लिए स्थानीय निकायों को कुशल बनाना एक अच्छा समाधान है, अध्ययन में दिए गए सुझाव के मुताबिक़। पानी के प्रबंधन में महिलाओं की भूमिकाओं को और ज़्यादा प्रोत्साहित करने और उन्हें योजना बनाने और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में शामिल करने के तरीक़े खोजने की ज़रूरत है। “हमें समाधानों और निवेश की ज़रूरत है लेकिन वह ख़ास तौर पर पहाड़ों के लिए होने चाहिए और इसके लिए उन्हें सूचना के वर्तमान स्रोतों पर विचार करना होगा,” डेविड जेम्स मोल्डन ने कहा।
(दिशा, इंडियास्पेंड के साथ रिपोर्टिंग फ़ेलो हैं।)
यह रिपोर्ट अंग्रेज़ी में एक मार्च 2020 को IndiaSpend पर प्रकाशित हुई है।
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