देश की आधी झुग्गी-बस्तियां 5 राज्यों में
सेंट्रल नई दिल्ली के काली बारी मार्ग क्षेत्र में एक बड़ी झुग्गी-बस्ती जे. जे. कैंप का एक नजारा। एक नए अध्ययन के अनुसार, पांच राज्य-छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड, तमिलनाडु और बिहार- में भारत की 51 फीसदी झुग्गी-बस्तियां है।
वर्ष 2008-09 में प्रति 100 पर झुग्गी-बस्ती घरों की संख्या के अनुसार शीर्ष पांच राज्यों ( छत्तीसगढ़ (18), ओडिशा (17), झारखंड (14), तमिलनाडु (11) और बिहार (10) ) में देश के 51 फीसदी झुग्गी परिवार रहते थे, जैसा कि एक नए पत्र में बताया गया है।
राजस्थान के ग्रामीण विकास विभाग में परियोजना निदेशक, एच एस चोपड़ा द्वारा सितंबर 2017 के एक पत्र के अनुसार प्रति 100 पर झुग्गी परिवारों की संख्या में सबसे ऊपर पांच वे राज्य / संघ शासित प्रदेश हैं, जिनकी झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की आबादी 10 फीसदी से ज्यादा है।
राज्य अनुसार भारत के झुग्गी परिवार
Source: Ministry Of Statistics & Programme ImplementationNote: Data not available for other states
वर्ष 2008-09 में, भारत में तमिलनाडु ऐसा राज्य था, जहां, झुग्गी की संख्या सबसे ज्यादा थी। इस संबंध में आंकड़े 931,196 या 30 फीसदी दर्ज किए गए हैं। यह एकमात्र राज्य / संघ राज्य क्षेत्र था, जिसकी हिस्सेदारी दोहरे अंक में थी।
भारत के आधिकारिक सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षक ‘नेशनल सर्वे सेंपल’ के वर्ष 2008-09 के सर्वेक्षण में ऐसे परिवार जहां एक ठोस छत, पीने के पानी, एक शौचालय और बंद जल निकासी की कमी थी, उन्हें मलिन बस्तियों या झुग्गी के रूप में गिना गया है। झुग्गी जनगणना समिति की अगस्त 2010 की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह मानदंड निर्धारित किया गया था।
पत्र के अनुसार, एक झुग्गी को, "ऊपर की मापदंड में दी गई झुग्गी-शक्ल जैसी कम से कम 20 घरों की आबादी के रुप में परिभाषित किया गया है।"
वर्ष 2008-09 में, कुल मिलाकर, 3.15 मिलियन ( 4.4 मिलियन के जनगणना 2011 के आंकड़े से लगभग 28 फीसदी कम ) या भारतीय परिवारों के 5 फीसदी झुग्गी परिवारों में थे।
झुग्गी में रहने वाले 10 फीसदी से ज्यादा आबादी के साथ एकमात्र समुदाय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजाति से थे, जो सरकारी सहायता के लिए भारत के संविधान में पहचाने गए वंचित समुदाय हैं।
समुदाय अनुसार भारत में झुग्गियां
India’s Slums By Community | |||
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Caste | Slum households (In million) | Total households (In million) | Slum households (As % of total households) |
Scheduled Tribes | 0.25 | 2.18 | 11.47 |
Scheduled Castes | 1.02 | 9.59 | 10.64 |
Other Backward Classes | 1.36 | 25.1 | 5.42 |
Other Castes | 0.52 | 29.5 | 1.76 |
Source: Ministry Of Statistics & Programme Implementation
शहरी भारत में, शहरी स्थानीय निकायों की 40 फीसदी स्वामित्व के साथ 60 फीसदी झुग्गियां सरकारी भूमि पर हैं, जैसा कि ‘नेशनल अर्बन रेंटल हाउसिंग पॉलिसी’- 2015 के मसौदे से पता चलता है।
झुग्गी बस्तियों पर आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के 2015 सांख्यिकीय सम्पादन के अनुसार 1 किलोमीटर के भीतर एक स्वास्थ्य केंद्र और एक प्राथमिक विद्यालय के साथ मलिन बस्तियों के हिस्सेदारी में 16 और 3 प्रतिशत अंक की गिरावट हुई है। वर्ष 1993 में यह आंकड़े 63 फीसदी और 90 फीसदी थे, जो वर्ष 2009 में गिर कर 47 फीसदी और 87 फीसदी हुए हैं।
मुंबई के ‘इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज’ की ओर से हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, मुंबई में आबादी के अनुसार दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी झुग्गी धारावी में 90 फीसदी मौत श्वसन रोग से होती है, जैसा कि ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने 7 अगस्त 2015 की रिपोर्ट में बताया है। धारावी के अलावा, मुंबई के उपनगरों की झुग्गी बस्तियां भी धारावी की तरह ही बड़ी हो रही हैं। इस संबंध में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने 6 जुलाई, 2011 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है। भारत की सबसे बड़ी झुग्गी बस्तियां होने के बावजूद महाराष्ट्र के 9.8 मिलियन घरों में सिर्फ 3.7 फीसदी जुग्गियों में रहते थे, और 2008-09 में राज्य में 100 घरों में से केवल एक झुग्गी-बस्ती में रहते थे।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ इकॉनॉमिक ग्रोथ’ की सौदामिनी दास कहती हैं, “झुग्गियों में रहने वाले अक्सर सरकार द्वारा दिए गए घरों को बेच देते हैं, क्योंकि ये उनके कार्यस्थलों से काफी दूर होते हैं,” सिटी लैब्स ने 9 जून, 2017 को बताया है।
- झुग्गी भूमि पर आवास का विकास: नेशनल अर्बन रेंटल हाउसिंग पॉलिसी 2015 का मसौदा तैयार करें।
- बस्तियों के घरों में सरकार सड़क और सीवेज की सुविधा प्रदान करे: "डू नेबरिंग फैसलिटी मैटर फॉर स्लम हाउसिंग? एविडेंस फ्रॉम इंडियनस्लम क्लस्टरस " 15 मार्च 2016, सौदामिनी दास और अरुप मित्रा ( इंस्ट्टयूट ऑर इकोनोमिक ग्रोथ, नई दिल्ली) और रजनीश कुमार (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली)।
- बिना शर्त निष्कासन गारंटी दें: मुक्ता नाइक ( सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च, 12 मई, 2017 को इंडियन एक्सप्रेस में )
(विवेक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 26 अक्टूबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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