देश में अंडे की कमी नहीं, लेकिन अब भी राज्य बच्चों को पोषण कार्यक्रम में अंडे देने में सक्षम नहीं
अंगुल, ओडिशा: जब 23 साल की रेबती नाइक गर्भवती थी, तो उसे सरकार के पूरक पोषण कार्यक्रम के तहत 'टेक-होम' राशन के रूप में चटुआ,बादाम से बने लड्डू (सूखे दालों और अनाज का मिश्रण), और प्रति माह आठ अंडे दिए गए, यानी जिनकी वे हकदार हैं, उससे चार कम। अब उसका बेटा, श्याम नाइक, नौ महीने का है, और वह राशन में सूजी भी प्राप्त करता है।
अंडे पाचन योग्य प्रोटीन, विटामिन ए और बी12 के समृद्ध स्रोत हैं। मातृ और बच्चे के पोषण के लिए महत्वपूर्ण हैं। ओडिशा का पोषण कार्यक्रम गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को 12 अंडे प्रदान करता है, जब तक कि बच्चा छह महीने का नहीं हो जाता। मां को गर्भावस्था के दौरान एक बार में 12 अंडे मिलते हैं । लेकिन रेबती नाइक को चार अंडे कम मिले, जिसकी वह हकदार थी। इन अंडों को पहले उनके पति, सास और दो भाइयों के साथ साझा किया जाता है। "मुझे एक महीने में आठ अंडे मिलते हैं, हम करी बनाते हैं और इसे सब एक साथ खाते हैं," नाइक ने बताया। पोषक तत्वों के एक महत्वपूर्ण स्रोत से खुद को वंचित करते हुए वह सबसे अंत में खाती है।
यह विशेष रूप से ओडिशा के अंगुल जिले में महत्वपूर्ण है, जहां पांच साल से कम आयु के 31.8 फीसदी बच्चे स्टंड हैं (उम्र के हिसाब से कम कद) और 2015 में 37.4 फीसदी एनीमिक थे, जैसा कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफएचएस 4) के आंकड़ों से पता चलता है। भारत भर में, गर्भवती महिला, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों को बेहतर पोषण की आवश्यकता होती है। 2015-16 में भारत भर में 38.4 फीसदी बच्चे स्टंड थे, 35.8 फीसदी कम वजन वाले थे और 58.6 फीसदी एनीमिक थे, जैसा कि एनएफएचएस के आंकड़ों से पता चलता है।
1975 में शुरू हुए, इन्टग्रेटिड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस (आईसीडीएस) के तहत सरकार का पूरक पोषण कार्यक्रम, प्रत्येक गर्भवती महिला, स्तनपान कराने वाली मां और बच्चे को तीन से छह साल की उम्र तक घर के लिए राशन और बच्चे के पहले 1000 दिनों में सहायता के लिए गर्म पका हुआ भोजन मुहैया कराती है। यह वह समय होता है, जब एक बच्चे में वृद्धि और संज्ञानात्मक विकास अधिकतम होता है।
कुछ ही महिलाओं और बच्चों को भारत में मिल पाते हैं अंडे
अंडे आसानी से पचने योग्य प्रोटीन जैसे आवश्यक फैटी एसिड, विटामिन ए और बी 12, हार्मोन और प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले पदार्थ, मां के शरीर द्वारा आसानी से अवशोषित और चयापचय के लिए एक समृद्ध स्रोत हैं। अंडे खाने से बच्चे के विकास में मदद करने वाले स्तन-दूध के पोषक मूल्य में वृद्धि होती है।
स्विट्जरलैंड में स्थित पोषण थिंक टैंक, साइट एंड लाइफ द्वारा कल्पना बेसाबुथुनी, सुरजीत लिंगाला और क्लॉस क्रैमर द्वारा अंडा उत्पादन के टिकाऊ तरीकों पर एक 2018 के अध्ययन के अनुसार अंडे को प्राप्त करना अपेक्षाकृत आसान है। यह कई अलग-अलग प्रकार की खाना पकाने की तकनीकों के अनुकूल और अत्यधिक सुपाच्य प्रोटीन का एक किफायती स्रोत है।
वाशिंगटन डी.सी. स्थित एक रिसर्च संस्था, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआर) द्वारा 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, अधिकांश निम्न-आय वाले देशों में, प्रजनन आयु की महिलाओं के बीच अंडों की खपत बहुत कम है, विशेष रूप से निम्न धन क्विंटाइल घरों की महिलाओं के बीच।
अध्ययन में पाया गया है कि जबकि भारत दुनिया में अंडे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। सर्वेक्षण से पहले के 24 घंटे की अवधि में 14.7 फीसदी बच्चों ने अंडे का सेवन किया, जो अन्य दक्षिण एशियाई देशों (25 फीसदी) की तुलना में काफी कम है। अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में भारत में अंडे सस्ते होने के बावजूद, केवल 19 फीसदी माताओं ने कहा कि उन्होंने अंडे खाए हैं या सर्वेक्षण से पहले 24 घंटे की अवधि में एक अंडे का सेवन किया।
दिल्ली स्थित एक नीति अनुसंधान संस्थान, रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रिज के लिए आर.जी. नांबियार और राजेश मेहता द्वारा पोल्ट्री उद्योग पर 2007 के अध्ययन के अनुसार, अंडे की मांग में स्थिर वृद्धि ने भारत में अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तुलना में कीमतें कम हैं-यहां अंडे चावल की तुलना में 4.7 गुना महंगे हैं, जबकि दक्षिण एशिया के बाकी हिस्सों में चावल की तुलना में अंडे लगभग छह गुना महंगे हैं। अध्ययन के अनुसार, उप सहारन अफ्रीका में- दुनिया का सबसे गरीब क्षेत्र में --अंडे औसतन अनाज की तुलना में 9.5 गुना महंगे हैं।
In India, Only 14.7% of Children Consumed Eggs in a 24‐Hour Recall Period | |||
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Category | Eggs available for consumption per capita per year | Children, 6-23 months, who consumed an egg in a 24-hr recall period (In %) | Ratio of egg price to cereal price |
High-income countries | 265 | NA | 2.3 |
Latin America and the Carribean | 218 | 42.8 | 4.8 |
Middle East and North Africa | 129 | 30.8 | 5.4 |
Eastern Europe and Central Asia | 238 | 34 | 3.6 |
East Asia | 241 | 20.8 | 7.1 |
South Asia excluding India | 50 | 25 | 5.9 |
India | 52 | 14.7 | 4.7 |
Sub- saharan Africa | 40 | 12.6 | 9.5 |
Source: 2018, An egg for everyone: Pathways to Universal Access to One of Nature’s Most Nutritious Food, IFPRI
ओडिशा बच्चों को सबसे ज्यादा संख्या में अंडे प्रदान करने में दूसरे स्थान पर
भारत में स्टंड बच्चों के उच्चतम अनुपात वाले 10 राज्यों में से, केवल तीन ( बिहार, झारखंड और कर्नाटक ) पूरक पोषण कार्यक्रम के भाग के रूप में बच्चों को अंडे प्रदान करते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जुलाई 2018 में बताया है। अंडे प्रदान करने वाले सभी राज्यों में से ,ओडिशा, जहां स्टंड बच्चों का 13 वां उच्चतम अनुपात है, ओडिशा आंगनवाड़ियों में बच्चों को सबसे ज्यादा संख्या में अंडे प्रदान करने में दूसरे स्थान पर है।
ओडिशा के अंगुल जिले के नंदापुर गांव में, एक मेक-शिफ्ट केंद्र में, जहां ओडिशा आजीविका मिशन के लिए उपकरण रखे गए हैं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सुषमा राव (बाएं)। कक्षा में नामांकित 22 बच्चों में से केवल 11 उपस्थित थे। केंद्र काफी दूर स्थित है इसलिए सभी लोगों के लिए नियमित रूप से भाग लेना मुश्किल है।
ओडिशा में पांच से कम आयु के 34.1 फीसदी बच्चे स्टंड हैं, जबकि उत्तर प्रदेश (यूपी) में ऐसे बच्चों की संख्या 46.3 फीसदी है।यूपी योजना के तहत बच्चों को अंडे नहीं देता है।
बहुत सी महिलाओं, बच्चों को टेक होम के लिए राशन, गर्म पका हुआ भोजन नहीं मिलता
रेबती नाइक गांव के आंगनवाड़ी केंद्र से 4 किमी दूर रहती हैं। उसने कहा कि वह नहीं जानती है कि टेक-होम राशन कब वितरित किया जाता है और उसे अपना हिस्सा प्राप्त करने में अक्सर देर हो जाती है।उसने कहा, "हमें आंगनवाड़ी दीदी द्वारा नहीं बताया जाता है जब राशन वितरित किया जाता है और यह कभी-कभी केंद्र तक पहुंचने तक समाप्त हो जाता है।"
ओडिशा के अंगुल जिले के मानपुर गांव की 23 साल की रेबती नाइक अपने नौ महीने के बच्चे को दूध पिलाती हैं, क्योंकि वह आंगनवाड़ी से बहुत दूर रहती है, उसे नहीं पता था कि सरकार द्वारा प्रदान किए जाने वाले टेक-होम राशन के लिए कहां पंजीकरण करना है।आंगनवाड़ी में पंजीकरण करने के लिए उसे तीन महीने का समय लगा।
नाइक को आंगनवाड़ी केंद्र में खुद को पंजीकृत करने के लिए तीन महीने लग गए, और उन्हें इन तीन महीनों के लिए टेक-होम राशन नहीं मिला। 28 साल की रेवती के पति और एक खेतिहर मजदूर भीशु नाइक ने कहा, "हमारे गांव में आंगनवाड़ी नहीं है, इसलिए हमें नहीं पता था कि कहां जाना है।"
हर महीने की पांच तारीख से पहले आधे से अधिक महिलाओं को टेक-होम राशन नहीं मिलता था, जैसा कि कार्यक्रम के दिशा निर्देशों के अनुसार निर्धारित किया गया है। महीने के 20वीं तारीख के बाद लगभग एक-चौथाई को टेक-होम राशन प्राप्त हुआ।
टेक-होम राशन के लिए, एक कंपनी के माध्यम से जो सरकारी निविदा जीतती है, एक महीने में एक बार अंडे प्राप्त किए जाते हैं।
अंगुल जिले के मानपुर गांव की आंगनवाड़ी कार्यकर्ता 40 वर्षीय अनीता दास ने कहा, '' हमें हर दिन प्रति बच्चे को गर्म पके भोजन के लिए केवल 7.70 रुपये दिए जाते हैं। हमें खुले बाजार से 5 रुपये में अंडे खरीदने पड़ते हैं। कभी-कभी गर्म भोजन के लिए भी 6 रुपये मिलते हैं। हमारे पास केवल 2.70 रुपये बचते हैं, जिसमें हमें सुबह के नाश्ते, चावल, दाल, तेल और हल्दी का प्रबंध करना पड़ता है।”
उसने बताया, “2018 में सरकार द्वारा अंडों की संख्या आठ से बढ़ाकर 12 कर दी गई, लेकिन दरों में तदनुसार वृद्धि नहीं की गई। हमें कभी-कभी टेक-होम राशन से समायोजन करना पड़ता है ताकि केंद्र में आने वाले बच्चे भूखे न रहें।”
अंगुल के नंदपुर में एक आंगनवाड़ी केंद्र में, जहां तीन से छह साल के बच्चों ने ओडिशा के आजीविका मिशन से उपकरणों के साथ क्षेत्र साझा किया है, नामांकित 22 में से केवल 11 बच्चे उपस्थित थे। अधिकांश बच्चे जो उपस्थित नहीं थे, वे एक अन्य गांव नमोगो से थे , जो वहां से 3 किमी दूर था, जिसका अपना कोई आंगनवाड़ी नहीं है।
ये बच्चे खुद से केंद्र तक पहुंचने के लिए अकेले नहीं निकल सकते हैं, इसलिए वे सुबह के नाश्ते, अंडे, चटुआ और सूजी के अपने गर्म पकाए भोजन से चूक जाते हैं। केंद्र में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता 42 वर्षीय सुषमा राव ने कहा कि आंगनवाड़ी में आने वाले बच्चों को बचे हुए अंडे दिए जाते हैं, लेकिन स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि नहीं की जा सकी है।
राव ने कहा, पहले, यह आंगनवाड़ी एक पेड़ के नीचे या किसी के घर में संचालित होता था, और अब यह एक पंचायत (ग्राम समिति) बैठक हॉल में संचालित होता है। राव कहते हैं, “हमें पांच साल बाद पंचायत बैठक हॉल आवंटित किया गया था, हमारे पास अभी भी एक नामित आंगनवाड़ी केंद्र नहीं है।मैंने सरपंच (ग्राम प्रधान) से अनुरोध किया है कि वे इसका हल निकालें, लेकिन हमें बताया गया है कि आंगनवाड़ी के लिए कोई जमीन उपलब्ध नहीं है।”
ग्राम प्रधान 39 वर्षीय अनीता प्रधान इस स्थिति से बेखबर थीं और उन्होंने हमें इस मुद्दे के बारे में अपने पति से बात करने के लिए कहा। अनीता प्रधान के 44 वर्षीय पति जयंत प्रधान ने कहा, "मैंने बाल विकास परियोजना अधिकारी से बात की है और हमें आंगनवाड़ी केंद्र के लिए जमीन की पहचान करने के लिए कहा गया है। लेकिन गांव में कोई जमीन नहीं बची है।"
(अली रिपोर्टर हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 31 अगस्त 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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