दो वर्षों में पत्रकारों पर हमले के 142 मामले दर्ज
6 सितंबर, 2017 में नई दिल्ली में, भारतीय पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए
हाल ही में, 5 सितंबर 2017 को बेंगलूर की पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मार कर हत्या कर दी गई । नवीनतम उपलब्ध राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, इस घटना के साथ ही पिछले दो वर्षों में देश भर में पत्रकारों पर 142 खतरनाक हमले के मामले दर्ज हुए हैं।
एक गैर लाभकारी संस्था, कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नालिस्ट के मुताबिक, पिछले 24 वर्षों से 2016 तक कम से कम 70 पत्रकार मारे गए हैं।
लंकेश पर 5 सितंबर, 2017 को हमलावरों ने सात गोलियां दागी थी। चार गोलियां चूक गई, जबकि दो सीने पर और एक माथे पर लगी थी, जैसा कि 6 सितंबर 2017 की अपनी रिपोर्ट में इंडिया टुडे ने बताया है।
गौरी लंकेश कन्नड़ टैब्लॉइड अखबार ‘गौरी लंकेश’ की संपादक और हिंदू राइट-विंग विचारधारा और संगठनों की आलोचक थीं।
एनसीआरबी ने 2014 से पत्रकारों पर हमले के आंकड़ों को इकट्ठा करना शुरू किया है, जैसा कि मंत्री ने अपने जवाब में कहा है। भारतीय दंड संहिता की धारा 325, 326, 326 ए और 326 बी के तहत मामले ‘गंभीर चोट’ के लिए पंजीकृत किए गए थे।
142 मामलों में से, 2014 में 114 और 2015 में 28 दर्ज किए गए थे।
इस संबंध में सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए हैं। उत्तर प्रदेश में दो साल में 64 दर्ज किए, लेकिन केवल चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश (26) और बिहार (22) में पत्रकारों पर हमले के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। देश भर में हुए पत्रकारों पर हमलों में, इन तीन राज्यों की 79 फीसदी की हिस्सेदारी है। ऐसे मामलों में सर्वाधिक 42 गिरफ्तारी मध्यप्रदेश में हुई है। वर्ष 2014 में 10 और 2015 में 32 गिरफ्तारी की सूचना दी गई है।
मीडियाकर्मियों पर हुए हमले: दर्ज मामले -2014-15
मीडियाकर्मियों पर हुए हमले : गिरफ्तार आरोपी, 2014-15
Source: Rajya Sabha NOTE: No cases were registered or persons arrested in other states/union territories. Data for West Bengal was not received.
संस्था कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नालिस्ट के मुताबिक, 1992 और 2016 के बीच भारत में कम से कम 70 पत्रकार मारे गए थे। 40 पत्रकारों को मारने के पीछे के इरादों की पुष्टि की गई है: 27 की हत्या की गई थी और 13 को खतरनाक असाइन्मन्ट की वजह से मारा गया था।
Since 1992, 28 journalists murdered in India; 96% cases unsolved: https://t.co/YdvdpTGacO #GauriLankesh
— IndiaSpend (@IndiaSpend) 5 September 2017
Since 1992, 55% journalists who were murdered in India covered politics: https://t.co/YdvdpTGacO #GauriLankesh
— IndiaSpend (@IndiaSpend) 5 September 2017
लंकेश की तरह ही एक घटना में, मुंबई स्थित एक पत्रकार ज्योतिर्मय डे की जून 2011 में हत्या कर दी गई थी। डे पर कुछ मोटर साइकिल सवारों ने गोली चलाई थी, जिस से उनकी मौत हो गई थी। डे अंडरवर्ल्ड के मुद्दों पर लिखा करते थे। उनकी हत्या का मामला अब भी चल रहा है।
एक संस्था रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (आरडब्ल्यूबी) द्वारा जारी 2017 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की सूची में भारत 136वें स्थान पर रहा है।
आरडब्ल्यूबी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि, “पत्रकार तेजी से सबसे कट्टरपंथी राष्ट्रवादियों द्वारा चलाए जा रहे ऑनलाइन अभियानों का सबसे बड़ा शिकार पत्रकार ही बन रहे हैं। यहां न केवल उन्हें गालियों का सामना करना पड़ता है, बल्कि शारीरिक हिंसा की धमकियां भी मिलती रहती हैं। स्थानीय मीडिया संस्थानों के लिए काम कर रहे पत्रकार अक्सर सैनिकों की हिंसा का शिकार बनते हैं, जिसके लिए उन्हें केंद्र सरकार की मौन सहमति मिली रहती है.”।
अहिर ने राज्यसभा को दिए जवाब में कहा कि, “भारत में आरडब्ल्यूबी के स्रोत अस्पष्ट हैं, और नमूना प्रकृति में काफी यादृच्छिक है जो भारत में प्रेस की आजादी की सही तस्वीर पेश नहीं करता।”
(मल्लापुर विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 06 सितंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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