नए आंकड़ों के अनुसार भारतीय बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार, लेकिन दूसरे देशों का प्रदर्शन और बेहतर
पिछले 10 वर्षों में भारत का शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) 16 अंक नीचे हुआ है। भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संकेतकों के लिए सबसे बड़े मूल्यांकन ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 (एनएफएचएस-4) के इस फैक्ट शीट के अनुसार, 1 वर्ष की आयु के नीचे प्रति 1,000 जन्मों पर 41 बच्चों की मृत्यु हुई है। एक दशक पहले यs आंकड़े 57 थे।
वर्ष 2005-06 के एक दशक बाद किए इस सर्वेक्षण से भारत में पांच वर्ष से कम आयु के तहत मृत्यु दर में 24 अंकों की गिरावट का पता चलता है। वर्ष 2005-06 में पांच वर्ष की आयु के तहत प्रति 1000 जीवित जन्मों पर 74 बच्चों की मृत्यु का आंकड़ा था, जो अब घट कर 50 हुए हैं। ये आंकड़े गरीब अफ्रीकी द्वीप देश मेडागास्कर के बराबर हैं।
भारत के शिशु एवं बाल मृत्यु दर
Source: National Family Health Survey, 2015-16
इसी तरह का सुधार लगभग सभी बाल स्वास्थ्य संकेतकों में देखा गया है। यह निश्चित रुप से इस बात का संकेत देते हैं कि स्वास्थ्य के मामले में भारतीय का प्रदर्शन बेहतर हुआ है।
हालांकि, भारत को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। भारत का आईएमआर 41 है, जो अब भी कई गरीब पड़ोसियों से नीचे है। बांग्लादेश के लिए ये आंकड़े 31, नेपाल के लिए 29, अफ्रीकी देशों के रवांडा के लिए 31 और बोत्सवाना के लिए 35 हैं।
भारत की पांच वर्ष की आयु वर्ग की मृत्यु दर 50 है, जो गरीब पड़ोसी देशों की तुलना में बद्तर है। हम बता दें कि नेपाल के लिए ये आंकड़े 36, बांग्लादेश के लिए 38 और भूटान के लिए 33 हैं।
मृत्यु दर: एक तुलना
Indicator | India in 2005-06 | India in 2015-16 | Better than India | Worse Than India | On par with |
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Infant mortality rate | 57 | 41 | Bangladesh (31), Nepal (29), Rwanda (31) | Haiti (52), Senegal (42), Pakistan (66) | Ethiopia (41) |
Under-five mortality rate | 74 | 50 | Nepal (36), Bangladesh (38), Bhutan (33) | Pakistan (81), Rwanda (45), Bostwana (44) | Madagascar (50) |
Source: National Family Health Survey, 2015-16
हालांकि, पिछले 23 वर्षों में भारत के शिशु मृत्यु दर में 48 फीसदी की गिरावट हुई है। आंकड़े वर्ष 1992-93 में 79 से कम हो कर वर्ष 2015-16 में 41 हुए हैं। लेकिन भारत अब भी सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों से काफी दूर है। हम बता दें कि सहस्राब्दि विकास लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के परामर्श से तय किया गया है और इस लक्ष्य के मुताबिक भारत को आईएमआर 27 तक लाना है। इस बारे में इंडियास्पेंड ने जनवरी 2017 में विस्तार से बताया है।
इन मामलों में राज्यों के बीच काफी असमानता है। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ में आईमआर सबसे उच्च-54 दर्ज किया गया है। जबकि देश में पांच वर्ष की आयु वर्ग के तहत मृत्यु दर में मध्यप्रदेश सबसे ऊपर है। मध्यप्रदेश के लिए ये आंकड़े 65 हैं। वहीं केरल के आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य का आईएमआर 6 और पांच वर्ष की आयु के तहत मृत्यु दर 7 है। यह आंकड़ा देश में सबसे कम है।
मिजोरम ही एकमात्र राज्य है, जहां शिशु मृत्यु दर में वृद्धि दर्ज की गई है। मिजोरम में जहां वर्ष 2005-06 में प्रति 1000 जीवित जन्मों पर मृत्यु दर 34 था, वहीं वर्ष 2015-16 में यह 40 पर आ गया है। उत्तर प्रदेश के लिए ये आंकड़े अब तक जारी नहीं किए गए हैं।
अधिक बच्चों का हो रहा है अब टीकाकरण
12 से 23 मीहने के कम से कम 62 फीसदी भारतीय बच्चों को टीकाकरण के बाद पूरी तरह से प्रतिरक्षित किया गया है। ये आंकड़े वर्ष 2005-06 की तुलना में 43.5 फीसदी ज्यादा हैं। हम बता दें कि इन में बीसीजी, खसरा, पोलियो, डिप्थीरिया और टिटनेस के टीके शामिल हैं।
बीमारी और मौत को रोकने के लिए टीकाकरण लागत के हिसाब से सबसे अधिक प्रभावी तरीका माना जाता है। प्रेस सूचना ब्यूरो की मार्च 2015 की इस रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी बीमारियां जिन्हें टीकारण से ठीक किया जा सकता था, भारत में दो साल की उम्र तक के 500,000 बच्चों की जान ले लेता है।
कम से कम 90.7 फीसदी बच्चों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रतिरक्षित किया गया है। जबकि वर्ष 2005-06 में ये आंकड़े 82 फीसदी थे। निजी सुविधाओं में प्रतिरक्षित बच्चों की संख्या 2005-06 में 10.5 फीसदी से गिरकर 7.2 फीसदी हुआ है।
भारतीय बच्चों में टीकाकरण
Source: National Family Health Survey, 2015-16; Children aged 12-23 months
दस्त से पीड़ित बच्चे ज्यादा जाते हैं स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों पर
सर्वेक्षण से पहले दो हफ्तों के दौरान पांच साल की आयु वर्ग में दस्त पीड़ित बच्चों का अनुपात लगभग स्थिर रहा है। इस संबंध में वर्ष 2015-16 में यह आंकड़े 9.2 फीसदी और वर्ष 2005-06 में 9 फीसदी रहे हैं।
हालांकि, पिछले दशक की तुलना में दस्त पीड़ित बच्चों के लिए उपचार के तौर पर मौखिक पुनर्जलीकरण लवण प्राप्त करने का अनुपात दोगुना हुआ है। ये आंकड़े 26 फीसदी से बढ़ कर 50.6 फीसदी हुए हैं।
वर्ष 2005-06 की तुलना में अधिक दस्त पीड़ित बच्चों को स्वास्थ्य सुविधा केंद्र ले जाया गया है। ये आंकड़े 61.3 फीसदी से बढ़ कर 67.9 फीसदी हुए हैं। यह निश्चित तौर पर बाल अवस्था की आम बीमारियों पर माता-पिता की बढ़ी जागरूकता का संकेत है।
दस्त पीड़ित अधिक बच्चों का इलाज
Source: National Family Health Survey, 2015-16; In the two weeks preceding the survey
स्टंड बच्चों में कमी, वेस्टेड बच्चे अधिक
पांच वर्ष की आयु वर्ग में स्टंड बच्चों की संख्या में 10 प्रतिशत अंक की कमी हुई है। स्टंड बच्चों का अर्थ उम्र के अनुसार कम कद का होना है। इस संबंध में आंकड़े वर्ष 2005-06 में 48 फीसदी से कम हो कर वर्ष 2015-16 में 38.4 फीसदी हुए हैं।
पांच वर्ष की आयु वर्ग के तहत, कम वजन के बच्चों में सात प्रतिशत अंक की गिरावट हुई है। ये आंकड़े वर्ष 2005-06 में 42.5 फीसदी से गिर कर से वर्ष 2015-16 में 35.7 फीसदी हुए हैं।
वर्ष 2015-16 में 59 महीने से लेकर छह वर्ष की आयु के कम बच्चे एनीमिया से पीड़ित हुए हैं। वर्ष 2015-16 में ये आंकड़े 58.4 फीसदी से गिरकर 69.4 फीसदी हुए हैं।
हालांकि, पांच वर्ष की आयु वर्ग के तहत वेस्टेड बच्चे, यानी कद के अनुसार कम वजन वाले बच्चों की संख्या 19.8 फीसदी से बढ़कर 21 फीसदी हुआ है। गंभीर रुप से वेस्टेड बच्चों की संख्या 6.4 फीसदी से बढ़ कर 7.5 फीसदी हो गया है।
पांच वर्ष की आयु से कम भारतीय बच्चों में कुपोषण
Source: National Family Health Survey, 2015-16; *Children aged 6-59 months who had haemoglobin levels
(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 02 मार्च 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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