नवीकरणीय उर्जा भारत को दे सकती है 30 लाख नई नौकरियां
नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की शाखा, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर 2030 तक भारत की 40 फीसदी बिजली नवीकरणीय उर्जा से आती है (फरवरी 2018 में 7.5 फीसदी से), तो देश लगभग 30 लाख नई नौकरियां बन सकती हैं।
यह खोने वाली नौकरियों से बहुत ज्यादा है। कार्बन और संसाधनों पर आधारित उर्जा केंद्रों को बंद करने पर लगभग259,000 नौकरियों का नुकसान होगा, जो नई 30 लाख नौकरियों का 8.6 फीसदी है, ऐसा जलवायु परिवर्तन को रोकने के बाद भारत और वैश्विक स्तर पर नौकरियों पर उसके प्रभाव का विश्लेषण करने वाले रिपोर्ट में बताया गया है।
भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ( मई 2018 तक स्थापित क्षमता के लगभग 20 फीसदी और फरवरी 2018 में कुल बिजली उत्पादन का 7.5 फीसदी ) ने 2017 में 432,000 लोगों को रोजगार दिया है, जिसने 2016 से 16 फीसदी की वृद्धि है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 5 जुलाई, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
नवीकरणीय ऊर्जा में सबसे ज्यादा नई नौकरियां
रिपोर्ट में कहा गया कि, "लगभग 2.8 मिलियन नौकरियों की शुद्ध वृद्धि टिकाऊ प्रथाओं को अपनाने का नतीजा होगी, जिसमें ऊर्जा मिश्रण में परिवर्तन, विद्युत वाहनों के उपयोग में अनुमानित वृद्धि, और मौजूदा और भविष्य की इमारतों में ऊर्जा दक्षता में वृद्धि शामिल है।"
भारत में कुल शुद्ध नौकरियों के लाभ में अलग-अलग कार्य क्षेत्रों में अंतर देखा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि खनन उद्योग को छोड़कर अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में 2030 तक अधिक रोजगार दिखाई देगा। नवीनीकरण में 15 मिलियन नई नौकरियां, निर्माण क्षेत्र में 466,200 नौकरियां और सेवा उद्योग में 285,200 नौकरियां होंगी।
भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाली सरकार ने पेरिस जलवायु समझौते 2015 के तहत 2022 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता के 175 जीडब्ल्यू स्थापित करने वादा किया है। यह एक घंटे के लिए 100 मिलियन बल्ब (100 वाट प्रत्येक) को बिजली देने के लिए पर्याप्त है।
भारत ने मई 2018 तक संचयी अक्षय ऊर्जा क्षमता में 69 जीडब्ल्यू जोड़ा है। दिसंबर 2022 के अंत तक 175 जीडब्ल्यू के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए, देश को अब हर महीने लगभग 1.92 जीडब्ल्यू जोड़ना होगा, जैसा कि हमने जुलाई की रिपोर्ट में बताया है।
आईएलओ के डिप्टी डायरेक्टर-जनरल डेबोरा ग्रीनफील्ड कहते हैं, "हमारी रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि नौकरियां एक स्वस्थ वातावरण में की जाने वाली सेवाओं पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "हरित अर्थव्यवस्था" गरीबी से उबरने के लिए लाखों लोगों को सक्षम कर सकती है, और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए बेहतर आजीविका प्रदान कर सकती है।
भारत में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) जैसे सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रम, श्रमिकों को फिर से स्थापित करने में महत्वपूर्ण नीतिगत साधन साबित होंगे, क्योंकि वे जलवायु परिवर्तन शमन के समर्थन में आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय उद्देश्यों को जोड़ते हैं, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।
2012 में मनरेगा कार्यक्रम के माध्यम से प्रदान किए गए लगभग 60 फीसदी कार्य घंटे में जल संरक्षण शामिल था और 12 फीसदी सिंचाई सुविधाओं के प्रावधान से संबंधित थे, जैसा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है।
प्राकृतिक आपदाओं को बद्तर बनाने से नौकरियों का नुकसान
15 वर्षों से 2015 तक, मानव गतिविधियों के कारण प्राकृतिक आपदाओं से नतीजतन हर साल भारत में प्रति व्यक्ति 5.7 कामकाजी जीवन-वर्ष (किसी व्यक्ति के जीवन में कनौकरी करने की अवधि) का औसत नुकसान हुआ है, जैसा कि अध्ययन में उल्लेख किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में गर्मी से तनाव बढ़ेगा और कर्मचारियों के कामकाजी घंटों की संख्या कम हो जाएगी।
कृषि कार्यकर्ता सबसे बद्तर ढंग प्रभावित होंगे। 2030 में भारत में गर्मी के तनाव के कारण लगभग 64 फीसदी घंटे खो गए थे, क्योंकि उनका काम शारीरिक है । बड़ी संख्या में वे लोग गर्भी से बुरी तरह त्रस्त रहेंगे, जो खेतों में काम करते हैं। वे किसान भी हो सकते हैं और श्रमिक भी।
आशंका है कि 21 वीं शताब्दी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस के आसपास वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी। श्रम बल के लिए अनुमान है कि 2030 तक, खोए गए काम के कुल घंटों का प्रतिशत 5.3 फीसदी तक बढ़ जाएगा। इससे उत्पादन क्षमता में जो हानि होगी, वह 30.8 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।
त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता है और इंडियास्पेंड से जुड़े हैं।
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 12 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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