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हाल ही में रेडियो कार्यक्रम मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज़ोर देते हुए कहा है कि हर सरकार को स्कूल में नामांकन की बजाए सीखने की गुणवत्ता एवं परिणाम पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

अप्रैल 2016 को मोदी द्वारा व्यक्त की गई चिंता निराधार नहीं है।

2014 में, भारत में, कम से कम 62 फीसदी बच्चे सरकारी प्राथमिक स्कूल में पढ़ते थे जबकि वर्ष 2007-08 में यही आंकड़े 72.6 फीसदी थे – यह निजी स्कूलों के लिए बढ़ती वरीयता का संकेत देता है – यह आंकड़े हाल ही में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) द्वारा जारी किए गए शिक्षा सर्वेक्षण के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आए हैं।

उच्च प्राथमिक स्तर पर सरकारी स्कूलों में छात्रों का प्रतिशत 2007-08 में 69.9 फीसदी था जो 2014 में गिरकर 66 फीसदी हुआ है।,/p>

शहरी-ग्रामीण विभाजन स्पष्ट नज़र आता है है: शहरी क्षेत्रों में केवल 31 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते हैं, जबकि 2014 में ग्रामीण इलाकों के लिए यही आंकड़े 72.3 फीसदी दर्ज किए गए हैं। फिर भी इसका अर्थ यह नहीं है कि सीखने के परिणाम में सुधार हुआ है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

पहले की तुलना में अधिक बच्चे पसंद करते हैं निजी स्कूल

Source: National Sample Survey Organisation

‘प्रथम’, एक शिक्षा एनजीओ, द्वारा की गई शिक्षा पर वार्षिक स्थिति की 2014 रिपोर्ट के अनुसार पांचवी क्लास की 26 फीसदी के अधिक बच्चे गणित का भाग नहीं कर सकते हैं। इस आंकड़े में पिछले चार वर्षों में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट हुई है।

प्राथमिक शिक्षा पर पिछले एक दशक में 586,085 करोड़ रुपये (94 मिलियन डॉलर) खर्च करने के बावजूद, भारत सीखने की प्रक्रिया में हो रही गिरावट पर काबू पाने में असमर्थ रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

सीखने के स्तर में गिरावट, 2010-14

Source: Annual Status of Education Report, 2014

सरकारी स्कूल हो रहे हैं दूर, सरकारी कॉलेज की मांग में वृद्धि

बारहवीं कक्षा तक छात्र सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी संस्थानों को पसंद करते हैं। 58.7 फीसदी लोगों ने प्राथमिक स्तर पर सरकारी स्कूलों की तुलना में निजी स्कूलों को पसंद करने का कारण "सीखने के लिए बेहतर माहौल" बताया है।

केवल 11.6 फीसदी लोगों ने निजी स्कूल चुनने का कारण "सीखने के माध्यम के रूप में अंग्रेजी" भाषा का होना बताया है।

हालांकि, जहां तक स्नातक, स्नातकोत्तर और डिप्लोमा की पढ़ाई का सवाल है, कई लोगों ने निजी संस्थानों में इसलिए दाखिला लिया है क्योंकि उन्हें सरकारी संस्थानों में प्रवेश नहीं मिला है।

उदाहरण के लिए, डिप्लोमा कर रहे 43 फीसदी उत्तरदाताओं ने माना कि सरकारी संस्थानों में दाखिला न मिलने के कारण उन्होंने सरकारी संस्थानों में नामांकन कराया है जबकि स्नातक स्तर या इससे ऊपर पढ़ाई कर रहे लोगों के संबंध में यही आंकड़े 27.5 फीसदी है।

यह प्रवृति शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए समान है - हालांकि शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्तर पर अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा की मांग 7 फीसदी अधिक है – यह बढ़ती शिक्षा और कैरियर आकांक्षाओं की ओर इशारा करता है।

भारतीय क्यों पसंद करते हैं निजी संस्थान

Source: National Sample Survey Organisation

भारत भर में 26 फीसदी छात्र निजी कोचिंग ले रहे हैं

भारत में कम से कम 71 मिलियन या 7.1 करोड़ छात्र (कुल छात्रों का 26 फीसदी) निजी कोचिंग ले रहे हैं : प्रति 1000 पुरुषों का 273 और प्रति 1,000 महिलाओं का 243 ।

महिला छात्रों की तुलना में अधिक पुरुष छात्र लेते हैं निजी कोचिंग

इसके अलावा, 89 फीसदी छात्रों का कहना है कि "बुनियादी शिक्षा" को बेहतर बनाने के कारण वे अतिरिक्त ट्यूशन लेते हैं।

क्यों छात्र लेते हैं निजी कोचिंग

वाणिज्य एवं उद्योग संगठन एसोचैम के अनुसार, 2015 के अंत तक भारत में निजी कोचिंग का बाज़ार 40 बिलियन डॉलर (2.6 लाख करोड़ रुपए) तक रहा है।

(साहा नई दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 16 मई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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