निर्भया फ़ंड के इस्तेमाल में कोताही से बढ़ीं पीड़ितों की मुश्किलें, सिर्फ़ 22% राशि ख़र्च हुई
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार एक तरफ़ तो महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ रहे अपराधों को कम करने के दावे कर रही है, लेकिन साल 2013 में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने निर्भया फ़ंड का उत्तर प्रदेश में अब तक कुल 22% इस्तेमाल किया गया है। ये जानकारी केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने 29 नोवेम्बर 2019 को लोक सभा में पूछे गये एक सवाल के जवाब में दिए।
निर्भया फंड महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और पीड़ितों की मदद करने के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2013 में गठित किया था। जानकारों का कहना है कि अगर इस राशि का पूरा और सही इस्तेमाल हो तो पीड़ितों को इंसाफ़ के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ेगा।
संगीता (बदला हुआ नाम) उत्तर प्रदेश के उन्नाव में हाल ही में कथित तौर पर जला कर मारी गई बलात्कार पीड़ित की बहन हैं। संगीता बताती हैं कि पुलिस ने उनकी बहन की एफ़आईआर महीनों तक नहीं लिखी। “मेरी बहन और पिता के पास एक अच्छा वकील करने के लिए भी पैसे नहीं थे, और तो और रोज़-रोज़ पुलिस थाने जाना, मेडिकल करवाने जाने के लिए भी बहुत पैसा लगता था। अगर एक ही जगह पर सब काम हो जाते तो पैसे और समय दोनों की बचत होती और मेरी बहन को इतनी परेशानी ना झेलनी पड़ती,” संगीता ने बताया।
हाल ही में यूपी के उन्नाव में बलात्कार की शिकार 23 साल की एक युवती को कथित तौर पर जला कर मार दिया गया था। इस घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उन्नाव में साल 2019 में 30 नवंबर तक बलात्कार के 51 मामले सामने आए हैं। उन्नाव के पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर दलील देते हुए कहते हैं कि साल 2018 में इसी दौरान बलात्कार के 64 मामले दर्ज हुए थे और इस साल महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों में कमी आई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल ही में साल 2017 के आंकड़े जारी किए। एनसीआरबी के मुताबिकट उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से एक है जहां महिलाओं के ख़िलाफ़़ अपराध के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किए गए हैं।
गृह मंत्रालय से मिली राशि का बड़ा हिस्सा ख़र्च नहीं हुआ
29 नोवेम्बर 2019 को लोक सभा में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के जवाब के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश को कुल 207.5 करोड़ रूपए दिए गए थे जिसमें से कुल 45.8 करोड़ रुपये ही ख़र्च किए गए। सरकार के जवाब के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश को केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ़ से 119.4 करोड़ रूपए दिए गए थे जिसमें से कुल 3.9 करोड़ रुपये ही ख़र्च किए गए जो आवंटित राशि का 3.29% है।
वूमेन पावर लाइन (डब्ल्यूपीएल) के कर्मचारी अपने कॉल सेंटर पर कॉल अटेंड करते हुए।
सरकार के इस जवाब से पता चलता है कि निर्भया फ़ंड से सबसे ज़्यादा ख़र्च प्रदेश में वीमेन पावर लाइन पर हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक वीमेन पावर लाइन के लिए 2.3 करोड़ रुपये दिए गए थे जिसमें से 1.4 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए। वीमेन पावर लाइन की अतिरिक्त महानिदेशक अंजू गुप्ता बताती हैं कि उनके विभाग ने निर्भया फ़ंड का इस्तेमाल शहरों और गांवों को महिलाओं के लिए सुरक्षित करने के लिए किया है। अंजू बताती हैं कि हाल ही में उनके विभाग को निर्भया फ़ंड से कुछ राशि आवंटित की गई थी जिसका इस्तेमाल सीसीटीवी कैमरा लगवाने और मोबाइल एप्लीकेशन बनवाने के काम में किया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश वीमेन पावर लाइन के आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2019 में 31 अक्टूबर तक कुल 237,000 शिकायतें मिली हैं जिसमे से 99% का समाधान कर दिए जाने का सरकार का दावा है। अंजू बताती हैं कि 'सुरक्षित राजधानी प्रोजेक्ट' के तहत जल्दी ही महिलाओं के लिए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 100 पिंक बूथ और 110 पिंक पैट्रॉल गाड़ियां भी निर्भया फ़ंड से दी जाएंगी। वीमेन पावर लाइन ने आवंटित राशि से 61.65% का इस्तेमाल कर लिया है।
लोकसभा में सरकार के जवाब के मुताबिक़ डिपार्टमेंट ऑफ़ रेल ट्रांसपोर्ट एंड हाइवेज़ के तहत निर्भया फ़ंड से उत्तर प्रदेश के लिए 40.20 करोड़ रूपए की राशि आवंटित की गई थी, जिसमें से राज्य ने 31.10 करोड़ रूपए ख़र्च किए हैं।
वन स्टॉप सेंटर पर ध्यान नहीं
देश के सबसे बड़े इस राज्य में वन-स्टॉप सेंटर के लिए निर्भया फ़ंड से मिली रक़म भी ठीक से नहीं ख़र्च हो पाई। आवंटित 40.88 करोड़ रूपये में से 5.40 करोड़ रूपये ही इस्तेमाल किए गए। साल 2017 में केंद्र सरकार ने महिलाओं से जुड़े अपराधों का एक ही छत के नीचे समाधान करने के लिए वन-स्टॉप सेंटर स्कीम शुरु की थी। इस स्कीम के तहत महिलाओ के लिए ट्रांसपोर्ट जैसी चीज़ों पर भी काम होना था।
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेन एसोसिएशन (एडवा) की मधु गर्ग कहती हैं कि निर्भया फ़ंड से रक़म का ख़र्च ना किया जाना सरकार की उदासीनता बताता है। “उत्तर प्रदेश में क़ानून-व्यवस्था और महिलाओं के ख़िलाफ़़ बढ़ते अपराधों को देखते हुए निर्भया फ़ंड से मिले पैसे ख़र्च ना करना सरकार की नाकामी है। क्योंकि उत्तर प्रदेश में महिलाओ के प्रति हिंसा और अपराध का ग्राफ़ नीचे की बजाय ऊपर ही जा रहा है। अब तो स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि लोग बलात्कार जैसे संगीन अपराध करने के बाद पीड़ित को आग तक लगा दे रहे हैं,” मधु बताती हैं।
पुलिस तक नहीं पहुंच पाती हैं पीड़ित
महिला और बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले आगरा के सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पाराश का कहना है कि अगर निर्भया फ़ंड का सरकार सही से इस्तेमाल करती तो आज उत्तर प्रदेश को भारत के बलात्कार की राजधानी न कहा जाता। निर्भया फ़ंड से जो वन स्टॉप सेंटर बनने थे अगर वही बन जाते तो महिलाओं को न्याय के लिए दर-दर भटकना न पड़ता।
“उत्तर प्रदेश के देहात (ग्रामीण) के इलाकों में 70% से ज़्यादा पीड़ित महिलाएं पुलिस के पास नहीं जाती हैं। उसकी वजह यह है कि या तो पुलिस स्टेशन तक पहुंचने के साधन में मुश्किल या फिर उन्हें इंसाफ़ के लिए पुलिस थाने से लेकर कोर्ट, कचहरी तक दर-दर भटकना पड़ता है। जिसकी वजह से उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है,” नरेश बताते हैं।
हमने राज्य के अपर मुख्य सचिव और महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव से इस बारे में फ़ोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने बात नहीं की। उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारी निर्भया फ़ंड के इस्तेमाल से जुड़े सवालों से बचते दिखे और किसी ने भी बात नहीं की।
“मेरी बहन को सरकार की तरफ़ से किसी भी तरह की कोई सहायता नहीं मिली। अगर निर्भया फ़ंड के पैसे का इस्तेमाल हुआ होता तो मेरी बहन शायद आज ज़िंदा होती,” संगीता कहती हैं।
(सौरभ, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com के सदस्य हैं।)
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