नीतीश के साथ बिहार है विकास की राह पर ? – I
बिहार में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। गौरतलब है कि जनसंख्या के मामले में बिहार देश में तीसरे स्थान पर है। यदि दूसरे देश से तुलना की जाए तो बिहार की आबादी फिलीपींस की आबादी के बराबर है। साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र में सत्ता पर आने बाद राजनीतिक रुप से बिहार के विधानसभा चुनाव एक बड़ी चुनौती साबित होगी।
बिहार विधानसभा में नरेंद्रमोदी एवं भारतीय जनता पार्टी ( बीजेपी ) अध्यक्ष को पटखनी देने के लिए राष्ट्रीय जनता दल ( आरजेडी ) के प्रमुख लालू यादव एवं जनता दल युनाइटेड ( जेडीयू ) के प्रमुख नीतीश कुमार ने महागठबंधन किया है।
एक ओर जहां नीतीश कुमार को राज्य की अर्थव्यवस्था में सुधार लाने का श्रेय दिया जाता है वहीं, बेरोज़गारी एवं बुनियादी सुविधाओं के अभाव के साथ बिहार अब भी गरीबी की सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर ही है।
गरीब राज्यों की तुलना में बिहार की वृद्धि सबसे तेजी से हुई
सामाजिक-आर्थिक रुप से पिछड़े आठ राज्यों- बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, उत्तरांचल एवं मध्य प्रदेश - की पहचान एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप (ईएजी ) के रुप में की गई है।केंद्र सरकार ने ईएजी राज्यों का गठन, 2001 की जनगणना के बाद आठ राज्यों में जनसंख्या विस्फोट पर नियंत्रण पाने के उदेश्य से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंदर किया गया है।
हम ईएजी समूह के अन्य राज्यों के साथ बिहार की तुलना करते हुए यह जानने की कोशिश करेंगे कि पिछले दस सालों में बिहार का प्रदर्शन कैसा रहा है।
ईएजी राज्यों के लिए 2013-14 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद ( जीएसडीपी ) विकास दर
Source: NITI Ayog
9.9 फीसदी के साथ ईएजी राज्यों में बिहार की सकल राज्य घरेलू उत्पाद ( जीएसडीपी ) विकास दूसरे स्थान पर है। 11 फीसदी के साथ पहला स्थान मध्यप्रदेश का है।
बिबेक देबरॉय, अर्थशास्त्री एवं एनआईटीआई आयोग के सदस्य, ने अंग्रेज़ी अखबार द हिंदु से बात करते हुए बताते हैं कि “आधार स्तर एवं वृद्धि के बीच अंतर होता है लेकिन जैसे वृद्धि होती है, ऐतिहासिक दृष्टि से पिछड़े राज्यों का कोई सवाल नहीं रहा, विशेष कर राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ तेजी से बढ़ रहे हैं ”।
साल 2005-06 के दौरान बिहार की अर्थव्यवस्था में 1.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी। इसके बाद 2006-07 में 16.1 फीसदी की विकास दर दर्ज की गई थी।
यदि एक नज़र सकल राज्य घरेलू उत्पाद ( जीएसडीपी ) के विश्लेषित विवरण पर डाली जाए तो पता चलता है कि झारखंड को छोड़ कर बाकी सभी आठ रोज्यों में सेवाएं एक प्रमुख हिस्सा है।
साल 2013-14 के आंकड़ों के मुताबिक बिहार की सेवाएं क्षेत्र का योगदान कुल जीएसडीपी में 62 फीसदी का है। दूसरे स्थान पर कृषि है जिसका योगदान 16 फीसदी दर्ज किया गया है।
देश के गरीब राज्यों के मुकाबले बिहार में बेरोज़गारों की संख्या सबसे अधिक
ईएजी के अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में सबसे अधिक बेरोज़गारों की संख्या दर्ज की गई है।
ग्रामीण बेरोज़गारी दर
शहरी बेरोज़गारी दर
Source: Lok Sabha
बिहार के शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारों की संख्या में कुछ सुधार देखी गई है। 2009-10 में जहां यह आंकड़े 7.3 फीसदी थे वहीं 2011-12 में यह आंकड़े गिर कर 5.6 फीसदी दर्ज की गई है।
वहीं ग्रामीण क्षेत्र में ठीक इसका विपरीत देखने को मिला है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर 2 फीसदी से बढ़ कर 3.2 फीसदी देखा गया है।
गरीबी स्तर मामले में बिहार तीसरे स्थान पर
33.7 फीसदी आंकड़ों के साथ गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के मामले में बिहारतीसरे स्थान पर है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 26 रुपए या इससे कम पर निर्वाह करने वालों की पहचान गरीबी रेखा के नीचे के रुप में की गई है। वहीं शहरी इलाकों में गरीबी रेखा से नीचे के आंकड़े 31 रुपए तय किए गए हैं। गरीबी स्तर मामले में 39.9 फीसदी आंकड़ो के साथ छत्तीसगढ़ पहले एवं 36.9 फीसदी के साथ झारखंड दूसरे स्थान पर है।
गरीबी रेखा के नीचे आबादी, 2013 ( % )
गरीबी रेखा के नीचे आबादी, 2013 ( मिलियन )
Source: NITI Ayog
बिहार में कम से कम 32 मिलियन लोग गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन यापन करते हैं।
यदि एक नज़र 2004-05 के गरीबी अनुमान के आंकड़ों पर डाली जाए तो कुल आबादी का 54 फीसदी हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे होने के साथ बिहार सबसे अधिक गरीब राज्य माना गया था।
हाल के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में गरीबी कम हुई है। और इसके लिए राज्य कीसराहना की जा रही है। हालांकि अन्य ईएजी राज्यों की तुलना में 35.8 मिलियन गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन यापन करने वाली आबादी की संख्या के साथ बिहार दूसरे स्थान पर है। यह आंकड़े उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 58.9 फीसदी दर्ज की गई है।
यदि हम 2004-05 से अब तक गरीबी रेखा के नीचे से उपर आए लोगों की तुलना करें तो अनुमान बताते हैं कि इस मामले में राजस्थान एवं ओडिसा का प्रदर्शन अन्य के मुकाबले बेहतर रहा है। राजस्थान में 51 फीसदी लोगों को गरीबी रेखा के नीचे से उपर खींचा गया है जबकि ओडिसा में ऐसे लोगों की संख्या 37 फीसदी दर्ज की गई है।
बिहार में गरीबी रेखा के नीचे से उपर खीचें जाने वाले लोगों के आंकड़े 26 फीसदी दर्ज किए गए हैं।
निजी एवं सार्वजनिक बुनियादी ढ़ाचों पर काफी करना होगा काम
हालांकि बिहार की अर्थव्यवस्था ठीक हो रही है लेकिन बुनियाद ढ़ाचों के विकास पर अब भी काफी काम किया जाना बाकि है।
हमने पिछड़ेपन को उजागर करने के लिए दो पहलूओं की तुलना की है –
- राज्य राजमार्गों।
- सामाजिक बुनियादी ढ़ांचों के हिस्से के रुप में, घरों में शौचालयों की सुविधा।
सड़कें :सड़क एवं परिवाहन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च 2013 तक राज्य राजमार्ग बनाने में 22.9 फीसदी आंकड़ों के साथ महाराष्ट्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही है।
अन्य टॉप राज्य कर्नाटक ( 12.3 फीसदी ), गुजरात ( 10.9 फीसदी ), मध्यप्रदेश ( 6.5 फीसदी ) एवं तमिलनाडु ( 6.4 ) रहे हैं।
राज्य राजमार्गों की कुल लंबाई ( 150,000 किलोमीटर ) में से इन पांच राज्यों की हिस्सेदारी 59 फीसदी रही है।
राज्य राजमार्गों में ईएजी राज्यों की हिस्सेदारी 36 फीसदी रही है, हालांकि देश की आबादी की 46 फीसदी आबादी इन्हीं राज्यों में रहती है। राज्य राजमार्गों में बिहार की हिस्सेदारी 4.9 फीसदी से अधिक नहीं है जबकि भारत की 8.6 फीसदी आबादी बिहार में रहती है।
राज्य राजमार्गों में ईएजी की हिस्सेदारी, 2008 एवं 2013 ( किमी )
Source: Ministry of Road Transport and Highways
बिहारने2008 तकधरातलराज्यमार्गों–पक्कीसड़कें (मंत्रालय की रिपोर्ट में शब्द का इस्तेमाल किया , बिटुमिनस या सीमेंट कंक्रीट के साथ सबसे ऊपर पक्की सड़कों या सड़कों को संदर्भित करता है )मेंबेहतरप्रदर्शनकियाहै।
लेकिन अगले पांच सालों में 2013 तक, इसकी गति धीमी होती दिखाई दी है। राज्य राजमार्गों के 193,000 किलोमीटर का निर्माण किया गया लेकिन 61 फीसदी से अधिक धरातल नहीं है।
शौचालय : बिहार के ग्रामीण इलाकों में कम से कम 98 फीसदी परिवारो में घर में शौचालयों की व्यवस्था नहीं है। यह आंकड़े ईएजी के किसी भी अन्य राज्य से सबसे अधिक है।
ईएजी राज्यों में बिना शौचालय के घर
ग्रामीण घरों शौचालयों की संख्या ( % )
Source: Ministry of Drinking Water and Sanitation, Census, 2011
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक बिहार के ग्रामीण इलाकों में 16.8 मिलियन परिवार रहते हैं। इनमें से 16.4 मिलियन घरों में शौचालयों की सुविधा नहीं है। यह आंकड़े स्वच्छ भारत अभियान के लक्ष्य को पूरा करने में एक बड़ी चुनौती है।
( इस लेख के दूसरे भाग में हम सामाजिक संकेतकों जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध पर चर्चा करेंगे )
सालवे एवं तिवारी इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 17 अगस्त 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
______________________________________________________________________
"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :