नोटबंदी का असर: घटती बिक्री, बढ़ता गुस्सा क्यों मत्स्य पालन उद्योग नहीं बन सकता कैशलेस?
दक्षिण गोवा के मडगांव थोक मछली बाजार का एक दृश्य। नोटबंदी के बाद पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में बिक्री में भारी गिरावट। बाजार बंद होने की भी सूचना
सिओलिम, मापुसा, पणजी और मडगांव (गोवा): गंगू कुंदाइकर हर सुबह तीन बजे उठ कर किराए के टेम्पो से पणजी में मलिम जेट्टी जाती हैं। गांव से मलिम जेट्टी की दूरी 8 किमी है।
50 वर्षीय कुंदाइकर बाजार में दिन भर बेचने के लिए मछली खरीदती है फिर उसे ले कर अपने गांव, चिंबेल वापस आती हैं। कुंदाइकर कक्षा 10 तक पढ़ी हैं और इनके पास बैंक खाता नहीं है। मोबाइल फोन है, लेकिन इंटरनेट कनेक्शन नहीं है। इनके अलावा परिवार में दो लोग और हैं। बूढ़ी मां और एक बेरोजगार बेटा। परिवार की यह अकेली कमाऊ सदस्य हैं। हम बता दें कि गोवा भारत के सबसे समृद्ध और साक्षर राज्यों में से एक है।
गंगू कुंदाइकर, उत्तरी गोवा के चिंबेल गांव से एक छोटी मछली विक्रेता हैं। इनके काम पर नोटबंदी की गहरी मार पड़ी है। 500 और 1,000 रुपए के अमान्य होने के बाद मछलियों की बिक्री आधी हो गई है। ऐसे में गंगू परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से कर पा रही हैं।
कुंदाइकर हर रोज 3,000 से 4,000 रुपए की मछली लाती हैं। उनमें से जो नहीं बिक पाती है, उसे फ्रिज में रख देती हैं। कुंदाइकर हर रोज काम करती हैं और बड़ी मुश्किल से अपने परिवार की देखरेख कर पाती हैं।
कुंदाइकर की यह स्थिति 8 नवंबर, 2016 की आधी रात से पहले थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के 86 फीसदी नोटों को अमान्य घोषित किया था। नोटबंदी की घोषणा के बाद से कुंदाइकर परिवार के बजट को संतुलित करने के लिए कुछ ज्यादा ही संघर्ष कर रही हैं। मछलियों की मांग गिर गई है और बिक्री में 30 फीसदी की गिरावट हुई है। इंडियास्पेंड से बात करते हुए उन्होंने बताया कि, “हम गरीब और मेहनततश लोग हैं। सरकार के इस फैसले ने हमारे लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं।”
चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है। लेकिन यह जल्दी खराब होने वाली चीज है। देश भर में 19 फीसदी से भी कम ऐसे मछली केन्द्र हैं, जहां मछली को संसाधित या जमा करने की सुविधा है। मछली पकड़ने वाले 23 फीसदी गांवों में इंटरनेट की पहुंच है और मछली पालन की अर्थव्यवस्था नकदी पर निर्भर है। वर्ष 2012 के इस शोध पत्र के अनुसार, मुनाफा मार्जिन बेचे गए प्रजातियों के अनुसार बदलती रहती हैं। 3.5 फीसदी से 10 फीसदी और 20 फीसदी तक। यह इस बात पर निर्भर करता है कि मछलियां अधिक कीमत वाली हैं या मध्यम कीमत वाली या फिरकम कीमत वाली।
तो, मछली पकड़ने वाले गावों में अच्छे इंटरनेट पहुंच होने के बावजूद (जो फिलहाल नहीं है) बैंकों द्वारा व्यापारी प्रभार (2-2.5 फीसदी (क्रेडिट कार्ड पर, 0.75-1 फीसदी डेबिट कार्ड पर) और यहां तक कि डिजिटल बटुआ, पेटीएम पर लगाया गया 1 फीसदी शुल्क वहन योग्य नहीं है।
गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले समुद्री मत्स्य पालन परिवार
Source: Marine Fisheries Census 2010
नोटबंदी के बाद से मछली पकड़ने वाले समुदायों में ज्यादातर लोगों की कहानी कुंदाइकर की तरह ही है। पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में मछलियों की बिक्री में गिरावट और बाजार बंद होने की सूचना भी मिल रही है। 2,000 रुपए के नए नोट आने से छुट्टे न मिलने जैसी नई समस्याएं सामने आ रही हैं।
मछली पकड़ने पर निर्भर रहने वाले 1.45 करोड़ भारतीयों पर आए संकट (ग्रीस या पुर्तगाल की आबादी से ज्यादा) से उद्योग लड़खड़ा गया है। इस उद्योग का भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 1.1 फीसदी का योगदान है। इनमें से करीब एक चौथाई लोग भारत के समुद्र तट के 8118 किमी के साथ और करीब 1 करोड़ अंतर्देशीय जलमार्ग के 197,024 किमी के साथ काम करते हैं।
1.45 करोड़ में से अधिकांश भारत के अनौपचारिक क्षेत्र का हिस्सा हैं। ये ऐसे असंगठित श्रमिक हैं जो भारत के 50 करोड़ मजबूत श्रमिकों के कुनबे में 82 फीसदी का योगदान करते हैं और राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में आधे का योगदान करते हैं। हम बता दें कि ये आंकड़े संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका की संयुक्त आबादी से ज्यादा है। और जैसा कि हम देख रहे हैं उनकी दुनिया अब रातों-रात बदल सी गई है। अपने ही बाजार में वे बेगाने हो गए हैं।
मछली व्यापार में 50 फीसदी से अधिक नुकसान, सरकार पर गुस्सा
दक्षिण गोवा के मडगांव में सरकार द्वारा संचालित मछली बाजार में 20 मछली बिक्रेताओं के साथ इंडियास्पेंड ने बातचीत की। उनमें से 80 फीसदी ने मांग कम होने के कारण थोक बिक्रेताओं से कम मछली खरीदने की बात कही है। जबकि 75 फीसदी ने पिछले एक महीने में आधे से अधिक नुकसान होने की बात कही।
हमारे सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि करीब 30 फीसदी महिलाओं के पास बैंक खाता नहीं है। 55 फीसदी मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते हैं। जो फोन का इस्तेमाल करते हैं, उनमें से केवल 33 फीसदी के पास इंटरनेट है, लेकिन वे बैंक के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं।
मडगांव मछली बाजार में दुकानदारों का सर्वेक्षण
Source: IndiaSpend survey
इंडियास्पेंड ने पाया कि छोटे खुदरा मछली विक्रेता हर रोज 3,000 से 4,000 रुपए की कमाई करते हैं। अगर लेन-देन के लिए वे पेटीएम का उपयोग करते हैं तो उन्हें पैसे निकालने के लिए 1 फीसदी शुल्क देना होगा, जो कि 30 से 40 रुपए का होगा। वे कहते हैं कि रोजाना 350 से 400 रुपए के मुनाफे के लिए यह वहन करने योग्य नहीं है।
मापुसा नगर निगम बाजार में मछली की लागत का विश्लेषण
Source: IndiaSpend survey
ऊपर दिए गए टेबल से स्पष्ट होता है कि कैशलेस लेन-देन एक तत्काल विकल्प नहीं हैं। इससे नुकसान जारी रहेगा। मापुसा बाजार में मछली विक्रेता एसोसिएशन की अध्यक्ष शशिकला गोवेकर कहती हैं कि ज्यादातर लोगों के पास फोन में इंटरनेट नहीं है और इससे शायद ही कभी वे उनके बैंक खातों का उपयोग करें।
मापुसा बाजार में मछली विक्रेता एसोसिएशन की अध्यक्ष शशिकला गोवेकर के पास फोन में इंटरनेट कनेक्शन नहीं है। और एटीएम कार्ड होने के बावजूद इन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया है। कैशलेस समाज बनाने की सरकार की दलीलों पर वह कहती है, “हममें से ज्यादातर अनपढ़ हैं। हम लोग स्वाईप मशीन का उपयोग कैसे कर पाएंगे।”
‘ऑल गोवा होलसेल फिश मार्केट एसोसिएशन’ के सदस्यों के अनुसार, हमने इस तरह के नुकसान का व्यापक प्रभाव पाया है। 8 नवंबर, 2016 से पहले, मछली विक्रेता 280 से 300 रुपए प्रति किलो बांगड़ा मछली बेच रहे थे, जिसमें अब 35 फीसदी की गिरावट हुई है। अब वही मछली 180 से 200 रुपए किलो बिक रही है। मडगांव थोक बाजार गोवा का एक मात्र थोक बाजार है, जहां महाराष्ट्र और कर्नाटक के पड़ोसी राज्यों से भी मछलियां आती हैं। राज्य के बाहर से मछली लाने वाले वाहनों की संख्या एक तिहाई तक कम हुई है।
पकड़ी हुई मछलियां यदि दो दिनों में न बिक पाई तो उन्हें फ्रिज में रखने या फेंकने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता है। भारत में 67 फीसदी ताजा मछलियों की खपत होती है, 23 फीसदी से ज्यादा प्रसंस्कृत (सूखाना, जमाना या डिब्बा बंद) नहीं किया जाता है।
पूर्व योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बुनियादी सुविधाओं और घरेलू विपणन की कमी के कारण मछली पकड़ने के बाद होने वाला नुकसान 20 फीसदी से ज्यादा का है। यह घाटा बाजार की मौजूदा मंदी से और बढ़ रही है।
वर्ष 2012 तक भारत की 19 फीसदी से कम मछली पकड़ केन्द्र (1,376 में से 256) "विकसित" थे, जिसका मतलब हुआ कि इनके पास पर्याप्त लैंडिंग और बर्थिंग बुनियादी सुविधा और मछली के संरक्षण और संग्रहण बुनियादी ढांचे थे। रिपोर्ट कहती है कि, भारत के समुद्री मछली पकड़ने के वाहनों में से एक-तिहाई के पास तटवर्ती सुविधाएं हैं। उद्योग का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक होने और सरकार के दायरे से परे होने के साथ नोटबंदी से मुकाबले के लिए मछुआरे अतिरिक्त कानूनी तरीके तैयार कर रहे हैं।
500 रुपए का नोट: मछली बाजार पर अब भी वैध
उत्तरी गोवा के सिओलिम में सुबह 11 बजे दीपाली गोवेकर की आधी बिक्री 500 रुपए के नोटों में हुई है, जो अब अमान्य है। गोवेकर ‘दिलीप सी फूड’ स्टॉल चलाती हैं जिसके लिए वे 80 रुपए प्रति दिन देती हैं। गोवेकर जेम्स डिसूजा को बड़े झींगे, स्क्वीड रेड स्नैपर, और भारतीय सैलमन बेचती हैं। जेम्स डिसूजा गोवा में एक रेस्टूरेंट के मालिक हैं। 500 रुपए का जिक्र करते हुए डिसूजा कहते हैं, “हम देने के लिए मजबूर हैं और वे लेने के लिए मजबूर हैं।” गोवेकर कहती हैं, “हमें लेना पड़ता है क्योंकि मछलियां ज्यादा दिन नहीं रह सकती हैं। मैं इससे मछली लाने वाले टैम्पो का किराया दूंगी और वह पेट्रोल पंप पर डीजल के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं।”
नोट का यह चलन ग्राहकों से खुदरा बिक्रेताओं, वहां से थोक बिक्रेताओं, वहां से ट्रांसपोर्टरों / ट्रॉलर तक 2 दिसंबर, 2016 तक चल रहा था – पेट्रोल पंप पर पुराने नोट स्वीकार करने का यह अंतिम दिन था।
छोटे मछली विक्रेता जिनके पास बैंक खाते हैं, वे 2 दिसंबर, 2016 के बाद भी 500 रुपए के नोट स्वीकार कर रहे थे और उन्हें जमा करा रहे थे, क्योंकि बाजार के बाहर उसे कोई नहीं ले रहा था। लेकिन अगर वे नोट लेने से मना कर देगें तो उनके ग्राहक कम हो जाएंगे और मछलियां नहीं बिकेंगी। मडगांव बाजार में सर्वेक्षण किए गए 20 में से एक खुदरा बिक्रेता ने कहा कि उनके पास ग्राहकों के लिए छुट्टे पैसे नहीं हैं और इसलिए वे 7 दिसंबर 2016 तक 500 रुपए के पुराने नोट स्वीकार कर रहे हैं।
मडगांव में दक्षिण गोवा योजना और विकास प्राधिकरण मछली बाजार का एक दृश्य। इंडियास्पेंड द्वारा सर्वेक्षण किए गए 20 मछली बिक्रेता में से 80 फीसदी ने बताया कि मांग कम होने के कारण वे थोक बिक्रेता से कम मछलियां खरीद रहे हैं। जबकि 75 फीसदी ने आय में नुकसान होने की बात कही है।
नाम न बताने की शर्त पर मडगांव में एक मछली बिक्रेता ने पूछा कि, “सरकार 500 रुपए के नए नोट क्यों नहीं ला रही है? 2000 और 100 रुपए के बीच का अंतर बड़ा है। हमें व्यापार में भारी नुकसान हो रहा है।”
सच में गोवा बन सकता है कैशलेस? क्या मुख्यमंत्री को भी ऐसा लगता है?
25 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा के 16 दिनों के बाद, इंडियन एक्सप्रेस में छपे एक रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मंत्री और तत्कालीन गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने गोवा को 30 दिसंबर, 2016 तक भारत का पहला कैशलेस राज्य बनाने की बात कही है।
पणजी के पास एक जनसभा में पार्रिकर ने कहा कि, “गोवा में बड़ी संख्या में लोग कार्ड (एटीएम / क्रेडिट) का उपयोग कर रहे हैं। जल्द ही प्रधानमंत्री का कैशलेस समाज का सपना पूरा करने वाला गोवा पहला राज्य हो जाएगा।”
7 दिसंबर, 2016 को, उनकी पार्टी और विपक्षी द्वारा गोवा में असंतोष जाहिर करने के बाद मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर ने कहा कि गोवा के कैशलेस हो जाने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं होगी। उन्होंने कहा, 'कैशलेस हो जाने के लिए समय सीमा तय नहीं किया जा सकता है।" पारसेकर ने कहा कि "मैंने हमेशा कहा है कि यह कैशलेस नहीं है, लेकिन कम नकदी के साथ गोवा से शुरूआत कर सकते हैं। गोवा यह कर सकता हैं।"
भारत का कैशलेस अर्थव्यवस्था के लिए तैयार नहीं होने का प्रमुख कारण कनेक्टिविटी की कमी है। कम से कम 73 फीसदी भारतीयों के पास इंटरनेट की पहुंच नहीं है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने दिसंबर 3, 2016 को बताया है।
भारत के नौ तटीय राज्यों में 3237 ऐसे गांव हैं, जहां भारी संख्या में मछली पकड़ने वाले लोग रहते हैं। इनमें से 91 फीसदी गांवों में मोबाइल फोन की पहुंच है। लेकिन केवल 23 फीसदी के पास इंटरनेट की पहुंच है।
मछली पकड़ने वाले गांवों के भीतर बुनियादी सुविधाएं
Source: Marine Fisheries Census 2010
मत्स्य पालन मुख्य रूप से नकदी आधारित अर्थव्यवस्था है। ट्रॉलर और परिवहन के लिए प्रयोग किया जाने वाला डीजल, बाजारों में किराए पर मिलने वाली जगह, मजदूर, बर्फ खरीदना और मछलियों के लिए भुगतान सब या तो नकद पर या उधार पर किया जाता है।
अशोक लमाने मोरजिम के पास कई रेस्तरां को मछली बेचता है। लमाने कहते हैं, 8 नवंबर 2016 के बाद उनके उधार में कई गुना वृद्धि हुई है।
इसी तरह, मडगांव थोक बाजार में उधार या कर्ज का चलन बढ़ रहा है। थोक बिक्रेता, श्रीधर पुजारी कहते हैं, “पहले भी बाजार क्रेडिट पर चलता था, करीब 50 फीसदी पर लेकिन अब यह बढ़ कर 80 फीसदी हो गया है। और पहले जहां पैसे एक से दो दिनों में आ जाते थे, वहीं अब ये आठ से दस दिनों में मिल रहे हैं।” पुजारी चेक द्वारा मछली स्टॉक के लिए भुगतान करते हैं लेकिन वह कहते हैं कैशलेस व्यापार चलाना असंभव है।
बस से 45 मिनट का सफर तय करके हर रोज राजश्री सावंत गोवा के नगर निगम के बाजार में मछली बेचने आती हैं। बाजार में वह 10 बजे सुबह से शाम 7 बजे तक रहती है। नोटबंदी के बाद से उनकी बिक्री 1,000 रुपए से गिर कर 200 रुपए पर आ गई है। वह कहती हैं, “मोदी ने कही गरीबी हटाओ, गरीबी हटाओ लेकिन अब वही हमें गरीबी की ओर भेज रहे हैं।”
इस बाजार के कैशलेस न हो पाने के कई कारणों में एक व्यापार की प्रकृति भी है। चूंकि मछली लंबे समय तक नहीं रख सकते हैं, खुदरा बिक्रेता क्रेडिट पर खरीदते हैं और अपना स्टॉक बेचने के बाद थोक बिक्रेताओं को भुगतान करते हैं। दूसरा कारण दिहाड़ी मजदूर हैं, जैसे कि मछली-क्लीनर, बर्फ के वाहक और टोकरा-वाहक, जिनके पास बैंक खाता नहीं है और वे अपना भुगतान नकद में चाहते हैं। वापस मापुसा के बाजार में आते हैं,शशिकला गोवेकर के पास फोन में इंटरनेट नहीं है और एटीएम कार्ड होने के बावजूद उन्होंने कार्ड का इस्तेमाल नहीं किया है।
गोवेरकर कहती हैं, “मछली के व्यापार में काम करने वाले 70 फीसदी लोग अनपढ़ हैं। हमें स्मार्टफोन का इस्तेमाल करना तक नहीं आता है। हम स्वाईप मशीन का प्रयोग कैसे करेंगे? मुश्किल से चार में से एक दिन हम मुनाफा कमाते हैं और इस मशीन के अलावा भी हमारे पास कई अन्य तरह की समस्याएं हैं। इसके अलावा, थोक बाजार सुबह तीन बजे से छह बजे तक चलता है और तब अंधेरा रहता है। और मछलियों की क्वालिटी देखेंगे कि स्वाइप मशीन पर ध्यान देंगे? ”
(पाटिल एक विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। यह वीडियो, ‘वीडियो वालंटियर्स’ के सहयोग से बनाया गया है। वीडियो वालंटियर्स ,एक वैश्विक पहल है, जो वंचित समुदायों को कहानी एवं आंकड़े संग्रहित करने का कौशल प्रदान करता है। साथ ही सकारात्मक बदलाव के लिए वीडियो को उपकरण की तरह उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित करता है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 19 दिसंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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