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मुंबई: करीब 292,000 गांवों के 23 मिलियन घरों में बिजली नहीं है। 7 फीसदी गांव(करीब 43,000) मोबाइल सेवाओं के बिना हैं। 17 फीसदी ग्रामीण आवासों में स्वच्छ पेयजल नहीं है और ग्रामीण क्षेत्रों में 14 से 18 वर्ष के 25 फीसदी बच्चे (लगभग 88 मिलियन) अपनी भाषा में मूल पाठ नहीं पढ़ सकते हैं।

ये आंकड़े देश के ग्रामीण इलाकों में भारत में विकास की कहानी से बाहर रहने वाले लोगों को दर्शाते हैं। ये वे लोग हैं, जिनकी तादात 833 मिलियन है या कह सकते हैं कि वे आबादी का 69 फीसदी हैं, जैसा कि विभिन्न आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है।

वर्ष 2016-17 में भारत की अर्थव्यवस्था 25 सालों में सात गुना बढ़कर 121.9 लाख करोड़ रुपये (1.8 ट्रिलियन डॉलर) हो गई है। इस अवधि के दौरान यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । इसी अवधि के दौरान प्रति व्यक्ति आय चार गुना से भी ज्यादा बढ़कर 15,766 रुपये से 82,269 रुपये हुई है।

भारत में 640,932 गांवों में से ( 597,608 बसे हुए और 43,324 निर्जन ) सभी बसे हुए गांवों का विद्युतीकरण किया गया है। ऐसा सरकार का मानना है, हालांकि यह असत्यापित है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में 23 मिलियन से अधिक परिवार बिना बिजली के रह रहे हैं।

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि, 219 मिलियन से अधिक ग्रामीण परिवारों में से 195 मिलियन या 89 फीसदी विद्युतीकृत किए गए हैं।

22 अगस्त 2018 तक 23 मिलियन ग्रामीण परिवारों को बिजली की सुविधा मिली है। 12 मिलियन से अधिक परिवारों के साथ उत्तर प्रदेश इस सूची में पहले स्थान पर है। इसके बाद असम -1.9 मिलियन- और ओडिशा -1.8 मिलियन-का स्थान रहा है।

पिछले तीन सालों से 2018 तक, कम से कम 18,374 भारतीय गांवों को बिजली मिली है, लेकिन 8 फीसदी या 1,425 गांवों से अधिक में, सभी घरों में बिजली नहीं है, जैसा कि सरकार के गर्व डैशबोर्ड से पता चलता है।

भारत में पहला मोबाइल फोन कॉल 1995 में किया गया था; और अब 23 साल बाद, 27 जुलाई 2018 तक, 43,000-दुर्गम गांवों में मोबाइल सेवाएं नहीं पहुंची थी, जैसा कि सरकारी आंकड़ों से पता चलता है। ओडिशा में ऐसे गांवों की संख्या सबसे ज्यादा है, जहां अब तक मोबाई सेवाएं नहीं पहुंची हैं, करीब 9,940। इसके बाद महाराष्ट्र (6,117) और मध्य प्रदेश (5,558) का स्थान रहा है।

हालांकि मोबाइल फोन स्वामित्व बढ़ रहा है लेकिन कई ग्रामीण निवासी अभी भी सरल दैनिक कार्यों के लिए बिजली तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जैसे मोबाइल चार्ज करना। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 17 मई, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

1.7 मिलियन ग्रामीण आवासों में से 289, 000 बस्तियों या लगभग 17 फीसदी में, पीने के पानी के लिए केवल आंशिक पहुंच है (प्रति व्यक्ति करीब 40 लीटर ), जैसा कि 8 अगस्त, 2018 को दिए गए लोकसभा के जवाब से पता चलता है। 62,582 बस्तियों में जो पानी है, वह गुणवत्ता के हिसाब से दूषित है।

ग्रामीण सड़क निर्माण में गति

वर्ष 2000 में शुरू प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सभी मौसम की सड़कों को सुनिश्चित करने के लिए 178,184 उपयुक्त गांवों को शामिल किया गया था। लेकिन 22 मार्च, 2018 को लोकसभा के इस जवाब के मुताबिक, 31,022 या 17 फीसदी बस्तियों को अभी तक जोड़ा जाना बाकी है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण सड़क निर्माण 2012-13 में 24,161 किमी से बढ़कर 2016-17 में 47,447 किमी हो गया है।

ग्रामीण सड़क निर्माण: 2012-13 से 2016-17

सड़क परिवहन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, कार्यक्रम शुरु होने के बाद से पीएमजीएसवाई के तहत 31 मार्च, 2016 तक 626,377 किलोमीटर ग्रामीण सड़कों का निर्माण किया गया है।

घरों का निर्माण

प्रधान मंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत गांवों में 9.9 मिलियन से अधिक घरों के निर्माण करने का लक्ष्य था, जिसमें से केवल 4.5 मिलियन या 45 फीसदी ही पूरा किया गया है, जैसा कि ग्रामीण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है। इस योजना के तहत 10.76 मिलियन लाभार्थियों को पंजीकृत किया गया है, जबकि 8.9 मिलियन घरों की मंजूरी दे दी गई है।

स्वास्थ्य देखभाल अभी भी एक चिंता का विषय

ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2017 के अंत तक स्वास्थ्य उप केंद्रों में 19 फीसदी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में 22 फीसदी की कमी है।

जबकि उप केंद्र ग्रामीण इलाकों में 5000 लोगों की आबादी को कवर करते हैं, वहीं पीएचसी 30,000 और सीएचसी में 120,000 लोगों की आबादी कवर करता है।

पीएचसी गांव समुदाय और चिकित्सा अधिकारी के बीच पहला संपर्क बिंदु है और यहां 46 फीसदी महिला स्वास्थ्य सहायकों और 60 फीसदी पुरुष स्वास्थ्य सहायकों की कमी है।

एलोपैथिक डॉक्टरों की कमी का प्रतिशत 12 है और इसकी मुख्य वजह, उत्तर प्रदेश पीएचसी में 1,412, छत्तीसगढ़ पीएचसी में 444 और ओडिशा पीएचसी में 340 डॉक्टरों की कमी है।

यहां तक ​​कि भारत में स्वास्थ्य संकट बढ़ने के बावजूद, पिछले पांच वर्षों से 2016 तक, राज्यों द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) फंड से अव्ययित राशि में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है, जैसा कि सरकार के लेखा परीक्षक द्वारा हालिया लेखापरीक्षा में बताया गया है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 20 अगस्त, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा नवीनतम लेखा परीक्षा के अनुसार, भारत के 28 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के पीएचसी, उप केंद्र और सीएचसी में चिकित्सा कर्मियों की उपलब्धता में 24 फीसदी से 38 फीसदी की कमी आई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 21 अगस्त, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

कैग सर्वेक्षण में पाया गया कि 73 फीसदी उप केंद्र दूरस्थ गांव से 3 किमी से अधिक दूरी पर थे, 28 फीसदी सार्वजनिक परिवहन की पहुंच में नहीं थे और 17 फीसदी स्वच्छ नहीं थे, जैसा कि हमने पहले भी बताया है।

सीखना अब भी चिंता का विषय

ग्रामीण क्षेत्रों में 14 से 18 वर्ष के 25 फीसदी बच्चे (लगभग 88 मिलियन) अपनी भाषा में मूल पाठ नहीं पढ़ सकते हैं, जैसा कि एक संस्था, प्रथम द्वारा एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2017 में बताया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में 14-18 आयु वर्ग के 86 फीसदी से ज्यादा युवा स्कूल या कॉलेज में औपचारिक शिक्षा प्रणाली में हैं।

2017 में, प्रथम ने, जो 2005 से एएसईआर रिपोर्ट कर रहा है, थोड़े ज्यादा उम्र के समूह पर केंद्रित किया। संस्था ने युवाओं पर ध्यान केंद्रित किया, जो 14 से 18 वर्ष के थे और प्राथमिक विद्यालय की आयु से ऊपर के थे।

रिपोर्ट में कहा गया है, "प्राथमिक स्तर पर-सार्वभौमिक नामांकन और स्वचालित पदोन्नति के परिणामस्वरूप अधिक से अधिक बच्चे प्राथमिक स्कूली शिक्षा को सफलतापूर्वक पूरा कर चुके हैं।"

आधे से ज्यादा विभाजन के सवालों ( 1 अंक से 3 अंक ) के साथ संघर्ष करते हैं। विभाजन करने की क्षमता को मूल अंकगणितीय परिचालन करने की क्षमता के लिए प्रॉक्सी के रूप में माना जा सकता है।

जबकि नमूने में सभी 14 वर्षीय लोगों में से 53 फीसदी अंग्रेजी वाक्यों को पढ़ सकते थे, 18 वर्षीय युवाओं के लिए, यह आंकड़ा 60 फीसदी के करीब था।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 अगस्त 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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