Optimized by JPEGmini 3.13.3.15 0x3cf38bdf

नई दिल्ली: भारत की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2031 तक 13 फीसदी और बढ़ सकती है, यदि परिवार नियोजन नीतियों को सक्रिय रूप से प्राथमिकता दी जाती है। यह जानकारी एक नए अध्ययन में सामने आई है।

इससे 29 लाख शिशु मृत्यु और 12 लाख मातृ मृत्यु को रोका जा सकता है और प्रसव और बच्चों के अस्पताल में भर्ती के बाद होने वाले स्वास्थ्य व्यय के 77,600 करोड़ रुपये (20 फीसदी) बचाए जा सकते हैं।

वर्तमान में, परिवार नियोजन को भारत के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आवंटन का मुश्किल से 4 फीसदी हिस्सा मिलता है और यह हिस्सा कई वर्षों से स्थिर है।

‘पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के ‘कॉस्ट ऑफ इनएक्शन इन फैमली प्लानिंग इन इंडिया: एन एनालैसिस ऑफ हेल्थ एंड इकोनोमिक इंप्लिकेश्न नामक एक अध्ययन में, राष्ट्रीय स्तर पर और चार आबादी वाले राज्यों - बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में - परिवार नियोजन हस्तक्षेपों की लागत लाभ विश्लेषण का आकलन किया गया है। संयुक्त रुप से ये देश का 37 फीसदी बनाते हैं।

अध्ययन से पता चला कि भारत को आर्थिक लाभ सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित स्वास्थ्य रणनीतियों को लागू करने की आवश्यकता है:

  • किशोरों और युवाओं को लक्षित करना;

  • केंद्र और राज्यों के स्वास्थ्य बजट में परिवार नियोजन के लिए अधिक से अधिक संसाधन शामिल हो, यह सुनिश्चित करना;

  • एक बहु-क्षेत्रीय और सामुदायिक सहभागिता को अपनाना;

  • उपलब्धता और गुणवत्ता प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करना;

  • महिलाओं की शिक्षा और नौकरी के अवसरों में निवेश करना।

इन रणनीतियों के माध्यम से आने वाले लाभ को चार आबादी वाले राज्यों में अधिक स्पष्ट देखा जा सकता है, जैसा कि अध्ययन में अनुमान लगाया गया है। परिवार नियोजन पर जोर से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट में 27,000 करोड़ रुपये तक की संचयी बचत हो सकती है।

परिवार नियोजन के कारण अनुमानित अतिरिक्त प्रति व्यक्ति आय, 2026-2031

क्यों परिवार नियोजन महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है?

यदि नीतियों के मौजूदा सेट को उनके पूर्ण रूप से लागू किया जाता है तो भारत मेट्रिक्स में एक निश्चित और निरंतर सुधार देख सकता है, जैसे कम शिशु और मातृ मृत्यु, सुरक्षित गर्भपात और अनियोजित गर्भधारण में समग्र कमी, जैसा कि अध्ययन में कहा गया है। ये बदले में, उनके तात्कालिक वित्तीय प्रभाव की तुलना में अधिक लाभ का परिणाम देंगे। विश्व स्तर पर, सुरक्षित, स्वैच्छिक परिवार नियोजन तक पहुंच एक मानव अधिकार है और यह लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण की अवधारणाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। यह स्वस्थ युवाओं की सामाजिक-आर्थिक क्षमता को उजागर करने के लिए सबसे प्रभावी मार्ग भी है, जैसा कि हार्वर्ड के अर्थशास्त्री डेविड ब्लूम और डेविड कैनिंग द्वारा इस अध्ययन में साबित किया गया है। अध्ययन में कहा गया है कि पूर्व एशिया के आर्थिक उछाल के एक तिहाई का श्रेय, छोटे परिवार के आकार के आसपास केंद्रित जनसंख्या के आकार और आयु संरचना में अनुकूल परिवर्तनों को दिया जा सकता है। अनुमान के अनुसार, यह ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’, परिवार नियोजन के लिए उनकी आवश्यकता को पूरा करके केन्या, नाइजीरिया और सेनेगल जैसे देशों को 2050 तक 47 फीसदी से 87 फीसदी तक उनकी प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि कर सकता है। 2014 में स्वतंत्र कोपेनहेगन कोनसेनसस सेंटर द्वारा प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार परिवार नियोजन, स्वास्थ्य सेवा के माध्यम से होने वाले आर्थिक लाभों के संदर्भ में निवेश पर 120 गुना अधिक रिटर्न प्रदान करता है। बाजार के शब्दों में, विश्व स्तर पर परिवार नियोजन को ‘सर्वश्रेष्ठ सौदा’ माना जाता है।

भारत को जनसांख्यिकीय लाभांश दे सकता है परिवार नियोजन

वर्तमान में यूरोप और अमेरिका के धनी राष्ट्र तेजी से बढ़ती जनसंख्या के आर्थिक प्रभाव से निपट रहे हैं, लेकिन भारत के पास दुनिया के युवाओं का सबसे बड़ा समूह है। किशोरों और युवाओं (10-24 वर्ष) का गठन दुनिया में कुल जनसंख्या का लगभग 18.2 लाख (या 26.3 फीसदी) है।

जनगणना- 2011 के अनुसार, भारत की युवा आबादी 36.46 करोड़ (30.1 फीसदी) है।

भारत की युवा-केंद्रित जनसंख्या संरचना एक शक्तिशाली परिसंपत्ति है, जैसा कि यह अन्य निर्भर समूहों का समर्थन करने के लिए घरेलू और राज्य संसाधनों को मुक्त करती है। अध्ययन में कहा गया है कि इन संसाधनों को अपनी उत्पादकता में सुधार करने और आर्थिक विकास के लिए निवेश किया जा सकता है।

तो रणनीतिक परिवार नियोजन कैसे सुनिश्चित करता है कि युवा उत्पादक बने रहें? यह उन्हें स्वस्थ और प्रजनन, यौन और मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों से मुक्त रहने की अनुमति देता है और यह सुनिश्चित करता है कि वे स्कूल में रहें और पूरी शिक्षा प्राप्त करें। यह उन्हें नौकरी के बाजार में प्रवेश करने या अपना उद्यम शुरू करने, काम पर अधिक उत्पादक होने, बचत बढ़ाने और अपने जीवन को बेहतर चीजों पर खर्च को प्राथमिकता देने की स्वतंत्रता देता है। यह युवाओं को ऐसे समय में एक परिवार शुरू करने की अनुमति देता है, जब वे अपने बच्चों को सर्वोत्तम अवसर दे सकते हों।

परिवार नियोजन पर निवेश में वृद्धि से सरकार को बजटीय बचत, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि और घरों में परिवारों के लिए जेब खर्च पर बचत शामिल है, जैसा कि पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा हाल ही में किए गए अध्ययन से पता चलता है।

परिवार नियोजन के माध्यम से हासिल किए गए बचत से निवेश पर रिटर्न

  • 27,000 करोड़ रुपये: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के बजट में संचयी बचत
  • 77,600 करोड़ रुपये: परिवारों को आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय से बचत
  • 6,000 करोड़ रुपये: मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रम
  • 3,000 करोड़ रुपये: टीकाकरण की लागत
  • 300 करोड़ रुपये: बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
  • 550 करोड़ रुपये तक: राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम
  • 79 करोड़ रुपये: किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम
  • 4,250 करोड़ रुपये: मातृ, बच्चे और किशोर स्वास्थ्य के लिए चिकित्सा आपूर्ति और उपकरणों पर बचत

संबंधित मुद्दों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता - विवाह और मातृत्व

1952 की शुरुआत में, भारत ने इस संबंध में कई देशों से आगे बढ़कर अपना परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू किया था। आज, भारत परिवार नियोजन के लिए कैफेटेरिया दृष्टिकोण लेता है, जिसका अर्थ है कि यह कई विकल्प प्रदान करता है - विभिन्न जीवन चरणों में पुरुषों और महिलाओं के लिए आठ गर्भनिरोधक विकल्प।

इनमें छह अंतर विधियां और दो स्थायी विधियां शामिल हैं। इसके अलावा, हाल के वर्षों में, सरकार ने परिवार नियोजन के लिए निवेश बढ़ाने का वादा किया है। 2012 की लंदन शिखर बैठक में परिवार नियोजन पर, भारत ने 200 करोड़ डॉलर का निवेश करने के लिए वचनबद्ध किया और फिर 2017 में उसी के लिए अपनी प्रतिबद्धता को नवीनीकृत करते हुए 300 करोड़ डॉलर के परिव्यय का वादा किया।

परिवार नियोजन के लिए उपलब्ध निधियों में से, 80 फीसदी गर्भाधान को रोकने के टर्मिनल तरीकों की ओर निर्देशित है, विशेष रूप से महिला नसबंदी। बाल विवाह, विवाह की आयु और जन्म के बीच पर्याप्त अंतर जैसे अंतर-निर्धारक निर्धारकों को संबोधित करते हुए, परिवार नियोजन निवेशों में महिलाओं के लिए परिवार नियोजन विकल्पों की सीमा का विस्तार करने पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए, जैसा कि अध्ययन में कहा गया है।

निरंतर शामिल रहने के लिए, विशेष रूप से उच्च कुल प्रजनन दर वाले राज्यों में परिवार नियोजन के लिए आवंटन बढ़ाने की आवश्यकता है। सामाजिक जुड़ाव और व्यवहार परिवर्तन की पहल से सर्वोत्तम प्रथाओं के संयोजन के साथ-साथ सामुदायिक जुड़ाव को शामिल करने के लिए प्रयासों की आवश्यकता होती है। बजट में वृद्धि को विशेष रूप से युवा लोगों की जरूरतों और प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए अंतर के तरीकों के उद्देश्य से होना चाहिए।

पुरुषों और महिलाओं दोनों का निर्णय लेना आवश्यक

एक सक्रिय और परिणाम-उन्मुख दृष्टिकोण में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रिज़िक्टिविज्म की तुलना मेंऔर भी बहुत कुछ शामिल हैं। खासकर परिवार में पुरुष और महिला दोनों को समान निर्णय लेने वाले के रूप में जरूरत है, जैसा कि ‘कॉस्ट ऑफ इनएक्शन इन फैमली प्लानिंग इन इंडिया’ अध्ययन में बताया गया है। यह 120 गुना परिणाम सुनिश्चित कर सकता है, जैसा कि पहले बताया गया है। अध्ययन में कहा गया है कि भारत में बड़े पैमाने पर प्रजनन योग्य की आबादी है और इसमें किसी किस्म की उदासीनता देश बर्दाश्त नहीं कर सकता है।तेजी से प्रभाव के लिए, हस्तक्षेप की पहली पंक्ति में प्रजनन स्वास्थ्य की देखभाल और पहुंच पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए। सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता में सुधार के लिए निवेश में पर्याप्त वृद्धि के साथ, विशेष रूप से गर्भनिरोधक के तरीकों को बढ़ाने के लिए परिवार नियोजन के हस्तक्षेप की गति और पैमाने को बढ़ाने की आवश्यकता है।

(पूनम मुटरेजा पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक हैं।)

यह लेख 28 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :