पर्यावरणीय संघर्ष में भारत आगे
बंगाल की खाड़ी में, तमिलनाडु में अक्टूबर 8 , 2012 को कुडनकुलम परमाणु बिजली परियोजना के निकट एक विरोध प्रदर्शन के दौरान नावों में खड़े प्रदर्शनकारी
ग्लोबल इन्वाइरन्मेन्टल जसटिस एटलस ( ईजेएटलस ) के अनुसार, किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत पर्यावरणीय संघर्ष में सबसे आगे है और किसी भी अन्य कारण की तुलना में जल पर सबसे अधिक ( 27 फीसदी ) संघर्ष हुआ है।
ईजेएटलस, 1,703 वैश्विक पारिस्थितिकी संघर्ष का एक इंटरएक्टिव मानचित्र जो जल प्रबंधन, कचरा प्रबंधन, जीवाशम ईंधर और जलवायु न्याय और जैव विविधता के संरक्षण जैसे कारणों द्वारा वर्गीकृत है, के अनुसार, भारत में 222 सूचिबद्ध संघर्ष हैं – जनसंख्या के अनुपात में और भी कई हैं – जबकि कोलंबिया में 116 और नाईजेरिया में 71 संघर्ष हैं।
वर्तमान में जब देश, दशक के सबसे बुरे संकट का सामना कर रहा है एवं अगले नौ वर्षों में पानी की कमी होने की संभावना है, जैसा कि पिछले महीने इंडियास्पेंड ने बताया है,एटलस में सूचीबद्ध संघर्ष के पैमाने आगे और बिगड़ती स्थिति का संकेत देते हैं।
ईजेएटलस का काम प्रगति पर है और आने वाले वर्षों में और अधिक मामलों को जोड़ने की उम्मीद है।
भारत के पर्यावरण संघर्ष ड्राइव के कारण
हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक पानी के लिए संघर्ष, अधिकांश संघर्ष जल-विद्युत परियोजनाओं पर
पानी को लेकर सबसे अधिक संघर्ष हिमालयी राज्य के हिमाचल प्रदेश में हुआ है और अधिकांश संघर्ष जल विद्युत परियोजनाओं से संबंधित हैं जो अक्सर स्थानीय समुदायों की जरूरत और सहमति पर विचार किए बिना बनाई है।
इसी तरह के संघर्ष जम्मू-कश्मीर , झारखंड, मणिपुर, मिजोरम , उड़ीसा और सिक्किम में भी देखे गए हैं ।
जल-प्रबंधन संघर्ष के अन्य प्रकार भी हैं। खंडवा , मध्य प्रदेश में, पाइपलाइन के निर्माण और पानी की आपूर्ति बढ़ाने के लिए है एक निजी कंपनी के साथ नगर निगम की भागीदारी पर स्थानिय लोगों ने आपत्ति जताया है क्योंकि इसकी कीमतें, कंपनि द्वारा तय किए जाने थे। एक अन्य उदाहरण कोका कोला द्वारा भूजल का इस्तेमाल करना है, एक पेय पदार्थ कंपनी, जो स्थानीय समुदायों के साथ बॉटलिंग प्लांट के विरोध में पांच संघर्षों में शामिल हैं ( एक जयपुर, राजस्थान में, एक देहरादून, उत्तराखंड में, एक पाल्चीमडा केरल में, और दो मेहदीगंज, वाराणसी के पास उत्तर प्रदेश में )।
सैलेन राउत्रे, भुवनेश्वर स्थित स्वतंत्र शोधकर्ता कहते हैं, बांध, लागातार संघर्ष का कारण बने हुए हैं, विशेष कर जब वे बनाए एवं कमिशन किए जा रहे हों। इन्होंने बड़े पैमाने पर पानी के मुद्दों और संघर्ष पर काम किया है।
राउत्रे कहते हैं कि, “नदी के पानी पर भारत में लगभग सभी अंतर -राज्यों के बीच संघर्ष, बांधों और युद्धरत राज्यों का फलस्वरूप पानी के आवंटन से संबंधित हैं । भारत में बड़े- और मध्यम आकार के बांधों में अधिक निवेश नहीं करना चाहिए। इसी तरह, नदी जोड़ने की योजना पर काम बंद कर देना चाहिए क्योंकि इस योजना से अंतर- राज्यीय जल संघर्ष में कई गुना वृद्धि होने की संभावना है। ”
अर्थव्यवस्था के विस्तार से उत्पन्न होती है अन्य पर्यावरण संघर्ष
ईजेएटलस में सूचीबद्ध अधिकाश संघर्ष, देश की अर्थव्यवस्था के विस्तार का परिणाम दिखाई देते हैं।
उदाहरण के लिए, झारखंड में झरिया कोयला खदानों में उग्र होते भूमिगत आग - कोकिंग कोयले की एक विशेष गोदाम – सबसे पहले एक सदी पहले देखा गया था, 1970 के दशक में प्रसार शुरु हुआ और वर्तमान में, 70 से अधिक की खानों में आग है जिससे हवा, पानी और भूमि प्रदूषित हो रहा है और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ रहा है।
कचरा डंपिंग स्थलों जैसे कि मुंबई में देवनार, एनसीआर के पास सुल्तानपुर एवं बंधवारी गांव, चेन्नई में कोडियनगेयूर केरल में एलूर और बंगलौर के करीब के गांवों के आसपास कई संघर्ष केंद्र हैं। भारत भर से करीब कचरे का 3 मिलियन ट्रक, बिन उपचरित किए फेंक दिया जाता है, जैसा इंडियस्पेंड में पहले भी बताया गया है, बढ़ते शहरीकरण का परिणाम है।
नए हवाई अड्डों, बंदरगाहों और अन्य बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निर्माण स्थलों पर संघर्ष उभर के आए हैं। अधिकाशं संघर्षों के माध्यम से जो आम विषय-वस्तु सामने आया है वह भूमि के अधिकार में कमी या स्थानीय समुदायों की आजीविका है।
एटलस सूचियों की तुलना में भारत में अधिक संघर्ष
हालांकि, ईजेएटस ने भारत में 220 पर्यावरण संघर्ष को सूचीबद्ध किया है लेकिन यहां और भी कई संघर्ष हैं।
जोआन मार्टिनेज – एलियर, बार्सिलोना के स्वायत्त विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और आर्थिक इतिहास के प्रोफेसर और ईजेएटलस परियोजना के निदेशक, कहते हैं कि, “"आपको पता होना चाहिए कि 220 आबादी के अनुपात में है। किसी अन्य देश की तुलना में भारत में अधिक मामले हैं क्योंकि ईजेएटलस पर हमारे सहयोगी, जेएनयू ( जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय ) द्वारा बढ़िया काम किया गया है और यह भी जाहिर है क्योंकि भारत दुनिया में सबसे बड़ी आबादी के साथ वाला देश है। ”
मार्टिनेज – एलियर कहते हैं कि, “हम कह सकते हैं कि पर्यावरण अन्याय और संघर्ष के मामले में भारत औसत है। पर्यावरण अन्याय से संबंधित स्थिति बुरी है। ”
उन्होंने आर्थिक विस्तार से प्रेरित " सामाजिक चयापचय " में विकास को संघर्ष के लिए जिम्मेदार ठहराया है। मार्टिनेज – एलियर कहते हैं कि, “नए स्थानों से सामग्री और ऊर्जा निकाले जाते हैं और दूर ले जाए जाते हैं। खनन फैलता है और नई सीमाओं तक पहुँचता है। पनबिजली फैलता है और हिमालय में गांवों तक पहुँचता है। ”
कच्चे माल का आपूर्ति करने वाले राज्यों में उच्च पर्यावरण लागत
पर्यावरण संघर्ष वैश्विक हैं, लेकिन भारत एक महत्वपूर्ण बिंदु पर दक्षिण अमेरिका या अफ्रीका में अन्य विकासशील देशों से अलग है: विदेश व्यापार।
मार्टिनेज – एलियर कहते हैं, “एक विशाल देश होने के बावजूद, भारत अधिक आयात-निर्यात नहीं करता है। भारत में माल की अधिकांश निकासी आंतरिक खपत के लिए है। लेकिन वहाँ राज्यों के बीच संघर्ष हैं । कभी-कभी पानी के अधिकार के लिए है। और कभी-कभी कुछ राज्यों का ( जैसे ओडिसा और झारखंड ) का देश के बाकि हिस्सों को उच्च आंतरिक सामाजिक और पर्यावरणीय लागत पर प्रदान कराना है।”
राज्यों की तुलना से पता चलता है कि उनमें से कुछ ने वास्तव में पर्यावरण संघर्ष का एक बड़ा हिस्सा वहन किया है ।
राज्य अनुसार भारत में पर्यावरण संघर्ष
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सफलताएं प्रवाह को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं
पर्यावरण विवादों की बढ़ती मान्यता के साथ 2010 में भारत सरकार ने इस तरह के विवादों के लिए एक फास्ट ट्रैक अदालत के रूप में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की है लेकिन फिर भी पर्यावरण संघर्ष की घटनाओं में कमी नहीं हुई है।
स्वपन कुमार पात्रा, ईजेएटलस के लिए एक भारतीय सहायक, कहते हैं, “एनजीटी ने एक अच्छी भूमिका (पर्यावरण न्याय पहुंचाने में ) निभाई है। ” एक असंबंधित पत्र में, पत्रा और वी.वी. कृष्णा , जेएनयू के प्रोफेसर और ईजेएटलस के लिए अन्य भारतीय योगदानकर्ता लिखते हैं : " अपनी स्थापना के बाद से, एनजीटी विभिन्न मामलों में कई फास्ट ट्रैक निर्णय दिया है और संबंधित अधिकारियों को कई आदेश पारित किया है जैसे कि अवैध रेत खनन पर प्रतिबंध दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ निर्णय, पश्चिमी घाट पर्वत की जैव विविधता के संरक्षण , असम में काजीरंगा नेशनल पार्क में वन्य जीवन संरक्षण, कई पर्यावरण मंजूरी को निलंबित कर दिया है।
हालांकि, एनजीटी के हस्तक्षेप और प्रभावित स्थानीय लोगों से बढ़ती भागीदारी के बावजूद भारत में पर्यावरण अन्याय बढ़ रही है।
एस रवि राजन, सांताक्रूज में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पर्यावरण अध्ययन विभाग में संकाय सदस्य, कहते हैं, “हमारी सरकार पर्यावरण मुद्दे को किस प्रकार देखती है, समस्या उसमें ही नीहित है। भारत सरकार ( वर्तमान और अतीत) समझने में विफल रही है कि आर्थिक विकास पर्यावरण न्याय के प्रतिकूल नहीं है। भारत में, एक मजबूत अधिकार शासन के साथ कानून, अच्छा कर रहे हैं और फिर भी हम वितरित करने में नाकाम रहे हैं । इसी तुलना में, चीन में एक कमजोर अधिकार शासन है, लेकिन भारत की तुलना में पर्यावरण हनन के नीचे लाने में बहुत अच्छा काम किया है।”
मार्टिनेज – एलियर कहते हैं, हालांकि, सवाल यह नहीं है कि संघर्ष से कैसे बचा जाए बल्कि यह है कि इतने सारे संघर्षों के बारे में जागरूकता से कैसे लाभ निकाला जाए ।
(मनुप्रिया बैंगलौर स्थित साइंस लेखिका हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 अप्रैल 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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