ndcc_620

नासिक डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक की एक शाखा में ग्राहक कतार में खड़े हैं। केवल कुछ को ही 25,000 रुपये तक की सीमा तक रकम निकालने की अनुमति है। उन्हें इसके लिए चिकित्सा आपात स्थिति या विवाह से संबंधित आवश्यकता का प्रमाण देना होगा। डीमॉनेटाइजेशन की चोट सहने के एक वर्ष बाद, महाराष्ट्र के नासिक में देश में प्याज के उत्पादन के सबसे बड़े स्थान के 70फीसदी किसानों की पसंद का यह बैंक व्यवसाय में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहा है, इसके ग्राहकों की भी यही स्थिति है।

नासिक (महाराष्ट्र): देश में प्याज के उत्पादन के सबसे बड़े स्थान के अधिकतर किसानों के उपयोग वाले बैंक में वसूली के प्रभारी प्रबंधक प्रभाकर धागे को एक सामान्य अक्टूबर में कर्ज के नए आवेदन प्राप्त होते हैं और वे कृषि सहकारी संस्थाओं से दस्तावेजी प्रक्रिया को पूरा करते हैं। इसी समय किसान रबी या सर्दी की फसल की बुवाई करते हैं।.

लेकिन 2017 का मॉनसून समाप्त होने के बाद भी धागे (56) के पास कोई ग्राहक नहीं थे। जब हमने उनसे मुलाकात की तो वह राज्य सरकार की ओर से उन किसानों की सूची को अंतिम रूप दिए जाने का इंतजार कर रहे थे जो अपने कर्ज का कुछ हिस्सा रद्द कराने के लिए पात्र हैं। धागे ने कहा, “इस वर्ष बैंक के पास कोई फंड नहीं होने के कारण कर्ज के नए प्रस्तावों से निपटने का कोई प्रश्न ही नहीं है।”

धागे, उनके बैंक नासिक डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक (एनडीसीसी) और 1.25 करोड़ किसानों वाले महाराष्ट्र के लिए यह एक सामान्य अक्टूबर नहीं था।

डीमॉनेटाइजेशन की चोट सहने के एक वर्ष बाद, देश में प्याज के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र के किसानों में से 70 फीसदी की पसंद वाले वित्तीय संस्थान, एनडीसीसी बैंक के एक डायरेक्टर ने बताया कि बैंक व्यवसाय में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहा हैः धागे के अनुसार, 2017 में कर्ज के बकाया भुगतानों में से केवल 9फीसदी किए गए हैं, 2016 में यह आंकड़ा 70 फीसदी का था।

देश भर में इस तरह के 371 डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक हैं। इन बैंकों की 140,000 शाखाएं और 32 लाख ग्राहक हैं और इन सभी बैंकों के लिए एनडीसीसी बैंक एक बड़ा उदाहरण है, इनमें से अधिकतर पर डीमॉनेटाइजेशन की मार पड़ी थी, जिसके बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने इस तरह के बैंकों को पुराने नोटों को बदलने की अनुमति नहीं दी थी, क्योंकि सरकार को आशंका थी कि वे अघोषित धन को वैध बनाने का जरिया बन जाएंगे, सामान्य बोलचाल में इसे काले धन को सफेद में बदलना कहते हैं।

महाराष्ट्र में, एनडीसीसी बैंक और इस तरह के अन्य बैंकों की वित्तीय स्थिति पर किसानों के लिए कर्ज माफी से और बुरा असर पड़ा है। अधिकतर किसानों ने अपने कर्ज चुकाना बंद कर दिया है। एनडीसीसी बैंक के पास जून 2017 तक अपने लॉकरों में 343 करोड़ रुपये थे, जिसके बाद आरबीआई ने कहा था कि एक सीमित रकम को ही नए नोटों में बदला जा सकता है।

परिणामः औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था तक पहुंच रखने वाले नासिक के अधिकतर किसानों की निर्भरता वाला 62 वर्ष पुराना यह बैंक संकट में है। इसका नकद भंडार एक वर्ष में 78फीसदी गिरा है, बैंक के पास 2016 में 100 करोड़ रुपये का नकद भंडार था, जो नवंबर 2017 में घटकर 22 करोड़ रुपये रह गया; इसने पिछले वर्ष की रकम के मुकाबले इस वर्ष केवल 10 फीसदी कर्ज दिया है, और इसके डूबे हुए कर्ज 2016 में 785 करोड़ रुपये से 16फीसदी बढ़कर 2017 में 911 करोड़ रुपये हो गए।

बैंक की स्थिति खराब होने के साथ, 2017 के 11 महीनों में नासिक जिले में 96 किसानों ने आत्महत्या की है, यह बड़े और बढ़ते हुए कृषि संकट का एक संकेत है।

ndcc_farm_620

किसानों के सर्दी या रबी की फसल की बुवाई की तैयारी करने के साथ, नासिक डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक ने 2016-17 में 300 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है, यह रकम 2015-16 में 3,367 करोड़ रुपये की थी।

क्यों महत्वपूर्ण हैं डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक ?

9 नवंबर, 2016 को सरकार के अर्थव्यवस्था से मूल्य के लिहाज से करेंसी का 86% हटाने के बाद, इंडियास्पेंड ने एनडीसीसी बैंक पर आरबीआई की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों के कारण किसानों के लिए नकदी और कर्ज की कमी पर रिपोर्ट दी थी।

डीमॉनेटाइजेशन(नोटबंदी) के एक वर्ष बाद, हमने दोबारा बैंक का दौरा किया और पाया कि इसका संकट और बढ़ रहा है।

देश की तीन स्तरीय – प्राथमिक, जिला और राज्य- ग्रामीण सहकारी ऋण व्यवस्था का डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक हिस्सा हैं। इनकी शुरुआत किसानों को कृषि ऋण सुनिश्चित करने के लिए की गई थी। प्राथमिक कृषि सहकारी संस्थाओं पर आरबीआई का नियंत्रण नहीं है, लेकिन जिला और राज्य सहकारी बैंक आरबीआई के नियंत्रण में हैं। इनकी जांच नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डिवेलपमेंट (नाबार्ड) की ओर से की जाती है। नाबार्ड की स्थापना आरबीआई के कृषि ऋण कार्यों को करने के लिए 35 वर्ष पहले हुई थी।

Source: National Federation of State Cooperative Banks Ltd.

एनडीसीसी बैंक की 212 शाखाएं पूरे नासिक जिले में फैली हैं- जो गोवा के आकार का तीन गुणा और उसकी जनसंखअया का चार गुणा है- इनमें से बहुत सी ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।

एनडीसीसी के डायरेक्टर और पूर्व चेयरमैन, शिरीष कोतवाल ने 2016 में इंडियास्पेंड को बताया था, “बहुत से खाताधारकों के पास कोई अन्य खाता नहीं है।” उन्होंने कहा था कि बैंक खाता रखने वाले 10 किसानों में से सात उनके बैंक के ग्राहक हैं।

14 जून, 2017 को जब वित्त मंत्रालय ने डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों को रद्द किए गए नोटों को आरबीआई के पास 30 दिनों के अंदर जमा करने की अनुमति दी थी, तो केवल महाराष्ट्र में ही 31 डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों ने 2,270 करोड़ रुपये जमा करवाए थे। लेकिन मंत्रालय की छूट के साथ एक शर्त भी थी कि केवल 10 नवंबर, 2016 के बाद जमा किए गए नोट ही स्वीकार किए जाएंगे।

कोतवाल ने अक्टूबर 2017 में फोन पर दिए एक साक्षात्कार में बताया, “हमारे पास अभी भी पुरानी करेंसी में 22 करोड़ रुपये पड़े हैं। हम कानूनी रास्तों पर विचार कर रहे हैं, जिससे इन्हें भी आरबीआई के पास जमा करवाया जा सके।”

डीमॉनेटाइजेशन(नोटबंदी) के एक वर्ष बाद, बैंक की मुश्किलें बढ़ीं

एनडीसीसी बैंक के अधिकारियों को केवल 22 करोड़ रुपये की पुराने नोट ही परेशान नहीं कर रहे। उनकी वित्तीय स्थिति को हाल का झटका ज्यादा बड़ा है। जून 2017 में, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस ने 150,000 रुपये तक के कर्जों को रद्द करने की घोषणा की थी, यह देश भर में इस तरह की कर्ज माफी का हिस्सा था, जिसे इंडियास्पेंड ने जून 2017 में अपनी रिपोर्ट में काफी हद तक बेअसर बताया था।

फडनवीस की घोषणा के पांच महीनों बाद भी, राज्य सरकार ने पात्र किसानों की सूची को अंतिम रूप नहीं दिया है, अधिकतर किसानों ने इस सूची में अपना नाम शामिल होने की उम्मीद में अपने कर्ज की किस्तें चुकानी बंद कर दी है।

2016 में, एनडीसीसी बैंक ने किसानों को 2,794 करोड़ रुपये के कर्ज दिए थे, इसमें से केवल 252 करोड़ रुपये ही चुकाए गए हैं। धागे ने बताया, “प्रत्येक वर्ष 70% की तुलना में, इस वर्ष केवल 9% कर्ज ही चुकाया गया है।”

कर्ज माफी से पहले भी, अधिक उत्पादन और आयातित प्याज के कारण फसल की बाजार कीमतें गिरी थी और किसानों को कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा था। धागे ने कहा कि अब किसानों ने कर्ज चुकाना पूरी तरह बंद कर दिया है।

किसानों के लिए कार्य करने वाले समूह, नासिक के शेतकारी संगठन के प्रवक्ता, गिरीधर पाटिल का कहना है, “कर्ज माफी की प्रक्रिया सीधी है। प्रत्येक बैंक पात्र किसानों की एक सूची भेजता है, और सरकार बैंक को धन का हस्तांतरण करती है। लेकिन यहां सरकार इसे अनिश्चित समय के लिए टालना चाहती है।”

फडनवीस ने जून में घोषणा की थी कि किसानों को 31 अक्टूबर, 2017 से पहले कर्ज माफी मिलेगी, जो “महाराष्ट्र के इतिहास में सबसे बड़ी होगी”। 18 अक्टूबर, 2017 को भुगतान की प्रक्रिया शुरू होने के बावजूद, 100 किसानों के पास समान आधार नंबर और डेटा में अन्य गड़बड़ियां पाए जाने के बाद एक सप्ताह के अंदर प्रक्रिया धीमी पड़ गई।

सहकारिता, विपणन और कपड़ा मंत्री और कर्ज माफी के प्रभारी, सुभाष देशमुख ने इंडियास्पेंड को बताया, “प्रक्रिया (कर्ज माफी की) कंप्यूटर से चलती है। स्पेलिंग में एक गलती होने पर भी सॉफ्टवेयर फॉर्म को अस्वीकार कर देता है, इस वजह से पुष्टि की प्रक्रिया में समय लग रहा है”। उन्होंने कहा कि 55,000 किसानों के बैंक खातों में 370 करोड़ रुपये जमा किए गए हैं, और दिसंबर के दूसरे सप्ताह तक, सभी पात्र किसानों को कर्ज माफी मिल जाएगी।

बैंक संकट के केंद्र में कृषि क्षेत्र है जो अपने बचाव के लिए संघर्ष कर रहा है।

बैंक से कर्ज नहीं तो साहूकारों के पास जा रहे हैं किसान

महाराष्ट्र में प्राथमिक कृषि ऋण संस्थाओं के महासंघ, फेडरेशन ऑफ विविध कार्यकारी विकास सहकारी सेवा सोसाइटीज के जिला अध्यक्ष, राजू देसाले ने बताया कि एनडीसीसी बैंक ने 2015-16 में किसानों को 3,367 करोड़ रुपये के कर्ज दिए थे, 2016-17 में इसने 300 करोड़ रुपये से अधिक नहीं बांटे हैं।

उन्होंने कहा कि कर्ज के बिना किसान साहूकारों की सेवाओं का उपयोग करते हैं, जो एक से दो महीने की लघु अवधि के लिए 20,000 रुपये तक की रकम पर प्रति माह 5-10% और 100,000 रुपये से अधिक की रकम के लिए प्रति माह 3-6 प्रतिशत का ब्याज वसूलते हैं। इसका मतलब है कि किसानों को लघु अवधि के लिए उधार लिए गए प्रत्येक 100 रुपये पर 10 रुपये तक का ब्याज चुकाना पड़ सकता है। देसाले का कहना है कि 2017 में नासिक में कर्ज के कारण 140 किसानों ने आत्महत्या की है, जबकि एशियन एज ने 2 नवंबर, 2017 तक नासिक में 96 किसानों के आत्महत्या करने की रिपोर्ट दी थी, यह संख्या 2016 में 87 थी।

निकासी सीमित होने पर, नाराज ग्राहकों का सामना कर रहे हैं अधिकारी

नासिक शहर के द्वारका में एनडीसीसी के मुख्य कार्यालय में लगे एक नोटिस में बताया गया है, “आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट) ट्रांजैक्शंस के लिए 25,000 रुपये तक की ही अनुमति है। फॉर्म जमा करने के एक या दो महीने बाद पूछताछ करें। अगर संभव होगा तो बैंक इससे पहले भी ट्रांजैक्शंस पूरी कर सकता है। असुविधा के लिए खेद है।”

बैंक का नकद भंडार घटने के साथ इसके अधिकारी निकासी को सीमित कर रहे हैं। बैंक की शाखाओं के बाहर ग्राहक कतारें लगा रहे हैं, लेकिन कुछ को ही 25,000 रुपये की सीमा तक की अनुमति है- उन्हें चिकित्सा आपात स्थिति या विवाह से संबंधित आवश्यकता का एक प्रमाण देना होगा।

ndcc_notice_620

कुछ को ही 25,000 रुपये की सीमा तक की अनुमति है- उन्हें चिकित्सा आपात स्थिति या विवाह से संबंधित आवश्यकता का एक प्रमाण देना होगा।

नासिक से 100 किलोमीटर उत्तर में मालेगांव से नासिक शाखा पहुंची सरकारी शिक्षक, कल्पना देशपांडे ने बताया, “मैं फरवरी से प्रत्येक सप्ताह बैंक आ रही हूं। एनडीसीसी खाता मेरा वेतन खाता है, और मैंने अपनी बेटी के विवाह के लिए बचत की थी।”

जिले के सरकारी शिक्षकों के वेतन खाते एनडीसीसी बैंक में थे। इन खातों को अब सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंक, आईडीबीआई में भेज दिया गया है, लेकिन शिक्षकों का कहना है कि वे नकदी की कमी के कारण अपने एनडीसीसी खातों से धन निकालने में सक्षम नहीं हैं।

धागे ने बताया, “खाता धारक हमसे नाराज हैं। कुछ शाखाओं में बैंक अधिकारियों को अंदर बंद कर दिया गया था, खिड़कियां तोड़ी गई थी, लेकिन उन्हें महसूस हुआ कि हम अधिक कुछ नहीं कर सकते, केवल बैंक की ओर से वसूली का इंतजार करना होगा।”

डीसीसीबी के खिलाफ पक्षपात

सेंट्रल और स्टेट कोऑपरेटिव बैंकों के महासंघ, नेशनल फेडरेशन ऑफ स्टेट कोऑपरेटिव बैंक्स के मैनेजिंग डायरेक्टर, बी सुब्रमणियम ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि जब सरकार के कदम से डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक कमजोर हुए हैं।

उनका कहना है, “डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों के प्रति आरबीआई का रवैया सकारात्मक नहीं है क्योंकि वे लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा चलाए जाते हैं। वह चाहता है कि सरकारी अधिकारी डीसीसीबी चलाएं।””

आरबीआई का मानना है कि ऐसे बैंकों की निगरानी की आवश्यकता है। दिसंबर 2016 में उच्चतम न्यायालय की एक सुनवाई के दौरान, आरबीआई ने कहा था कि सहकारी बैंक खाता धारकों के लिए केवाईसी (नो युअर कस्टमर) दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे और यह एक प्रमुख कारण है कि उन्हें पुराने नोटो को बदलने की अनुमति नहीं दी गई। एक अन्य आशंका यह थी कि डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंकों में सदस्यों के तौर पर शामिल बहुत से राजनेता इन बैंकों के जरिए काले धने को सफेद बना सकते हैं, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने 22 जून, 2017 को रिपोर्ट दी थी।

पुराने धन को जमा करने में लगे सात महीनों के दौरान, डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंकों ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी, जिसने खातों के अनुपालन और नाबार्ड की ओर से चार पुष्टियों के बाद पुराने करेंसी नोटों को बदलने की अनुमति दी थी।

सुब्रमणियम ने कहा, “जब आरबीआई के तहत आने वाले और पेशेवरों द्वारा चलाए जाने वाले राष्ट्रीयकृत बैंकों के हजारों करोड़ रुपये के एनपीए (डूबे हुए कर्ज) हैं जिन्हें सरकार को दोबारा पूंजी देनी पड़ी है, तो वे डीसीसीबी को चलाने को लेकर कैसे प्रश्न कर सकते हैं?”

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं, इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 11 नवंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :