पिछड़े राज्य के पिछड़े क्षेत्रों में मोदी हैं पहली पसंद
(2018 की यह तस्वीर मल्हार टोली की स्थिति को दिखाती है,तब 40 वर्षीय चिंतामणि मल्हार की मृत्यु हो गई थी। आसपास के लोगों ने कहा कि वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आवंटित खाद्यान्न उसे मिल नहीं पाया और उसकी मृत्यु भूख के कारण हुई थी। )
रामगढ़ जिला (झारखंड): मल्हार टोली का रास्ता ढूंढना मुश्किल था, आंशिक रूप से क्योंकि लगभग 250 कुनबों के लिए कोई सड़क नहीं है।रामगढ़-बोकारो राजमार्ग से दूर, मध्य झारखंड के रामगढ़ जिले में मल्हार टोली तक जाने वाला मार्ग दो पेड़ों के बीच एक विस्तारित खाई से चिह्नित है। नए जमाने तक तक पहुंच बनाने के लिए ग्रामीणों ने मिट्टी दबा कर हाईवे और जमीन के बीच खड़ी ढलान बनाया है। अभी के लिए, मल्हार टोली के लोगों के लिए सड़क कोई चिंता का विषय नहीं है। हमारे वहां जाने से दो रात पहले, दो बड़े पेड़ गिर गए थे, जिससे तीन घर पूरी तरह से और एक आंशिक रूप से नष्ट हो गए थे। टूटे हुए घरों (दीवारों को सूखे शाखाओं और टहनियों से बनाया गया था, कुछ को पुराने, छोड़े गए कपड़े से ढंक दिया गया था) को फिर से बनाना होगा।
जैसा कि झारखंड 2019 के आम चुनावों के चौथे राष्ट्रीय चरण में पहली बार 29 अप्रैल को मतदान करने की तैयारी में है, मल्हार टोली भारत के कुछ सबसे विकास संबंधी मुद्दों का प्रतिनिधित्व करता है। ये मुद्दे देश के किसी भी पिछड़े इलाके के हो सकते हैं। गांव में दलित मल्हारों ( हिंदू जातियों में सबसे नीचे ) की आबादी है और वे गरीबी, पूर्वाग्रह और कुप्रथा के चक्र में फंसे हुए हैं। अधिकांश ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं तक पहुंच नहीं है। उनके पास राशन कार्ड भी नहीं, जिससे वे सब्सिडी वाला खाना खरीद सकें। वे इनमें से किसी के लिए भी आवेदन नहीं कर सकते, क्योंकि उनका कोई निश्चित पता नहीं है । वे घर बनाने में आर्थिक रूप से बहुत ही असमर्थ हैं। निकटवर्ती गांव समय-समय पर मल्हार टोली के लोगों को बेदखल करते हैं क्योंकि वे अर्ध-घुमंतू हैं और उन्हें अक्सर शक की निगाह से देखा जाता है।
2018 में, मल्हार टोली में स्थानीय प्रशासन की अनुपस्थिति के कारण 40 वर्षीय चिंतामणि मल्हार की मृत्यु हो गई। स्थानीय कार्यकर्ताओं के एक तथ्य-खोज मिशन में पाया गया कि मल्हार ने कई दिनों तक खाना नहीं खाया था, क्योंकि वह सरकारी सब्सिडी वाले खाद्यान्न के लिए पात्र नहीं थे। उनके पास राशन कार्ड नहीं था। जब तक उनके पास पैसे थे उन्होंने बाजार से अनाज खरीदा। कम से कम तीन गुना अधिक कीमत पर।
एक दिन मल्हार अपने घर के बाहर गिर गया। झारखंड में एक वर्ष से जुलाई 2018 तक 14 भुखमरी से हुई मौतों में से लगभग आधे लोगों की मौत गरीब लोगों को रियायती भोजन देने में प्रशासनिक विफलताओं से जुड़ी थीं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अगस्त 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
फिर भी, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा संचालित एक राज्य में, मल्हार टोली के लोगों में ये बात साफ थी कि वे पार्टी के नेता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से निर्वाचित करना चाहते थे। इसका मतलब था कि स्थानीय उम्मीदवारों से उनका कोई रिश्ता नहीं था।
“केवल मोदी ही हमारी मदद कर सकते हैं ”प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से झारखंड भारत का छठा सबसे गरीब राज्य है। भारतीय औसत की तुलना में, यह राज्य गरीब है। इसकी साक्षरता कम है। उच्च मातृ मृत्यु अनुपात है। अधिक लोग खुले में शौच जाते हैं। स्टंड बच्चों का अनुपात ज्यादा है, और पीने के पानी और सड़कों तक पहुंच के साथ घरों का छोटा अनुपात है।
2014 में, 40.1 फीसदी वोट शेयर के साथ झारखंड ने बीजेपी को 14 लोकसभा सीटों में से 12 सीटें दीं। उस वर्ष नवंबर में, बीजेपी ने ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) के साथ गठबंधन में 81 में से 43 सीटें जीतीं और राज्य में सरकार बनाई।
पांच साल बाद, कई मामलों में, झारखंड लड़खड़ा रहा है। एक संस्था, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की निगरानी करती है, की ओर से भोजन के अधिकार अभियान के आंकड़ों के अनुसार, 2015 के बाद से किसी भी अन्य राज्य की तुलना में यहां कम से कम 19 लोगों की भुखमरी से मृत्यु हुई है। ऐसे अपराधों को ट्रैक करने वाले फैक्टकैचर डेटाबेस, हेट क्राइम वॉच के अनुसार, केंद्र और राज्य में भाजपा के सत्ता में आने के बाद 16 धर्म-आधारित घृणा अपराधों में कम से कम 13 में हत्या हुई है। यह आंकड़ा उत्तर प्रदेश के बाद झारखंड को घृणा अपराधों से दूसरा सबसे घातक राज्य बनाता है। लेकिन इनमें से कोई भी तथ्य प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की फिर से चुनाव के लिए कोई बाधा नहीं डालता है। कारण भिन्न हैं - कुछ के लिए, उपलब्धियां विफलताओं से आगे निकल जाती हैं; दूसरों के लिए, विफलताओं को ठीक करने के लिए मोदी को वापस सत्ता में लाने की जरुरत है।
विभिन्न विषम नौकरियों के माध्यम से आजीविका कमाने वाले मंधरान मल्हार ने कहा, "अगर कोई हमें इस स्थिति से बाहर निकलने में मदद कर सकता है, तो यह केवल मोदी हैं।" मल्हार टोली के पश्चिम में 170 किमी से अधिक दूर गुमला जिले के तपकारा गांव में, हमें मोदी के लिए इसी तरह का समर्थन दिखा।
“मोदी ने नक्सलियों को कुचल दिया”महुआ के पेड़ों से घिरा हुआ 800 लोगों का गांव-खटगांव। यहां शाम ढलने के बाद घनघोर अंधेरा हो जाता है।
स्थानीय सरकारी स्कूल के शिक्षक शामू मास्टरजी कहते हैं, " 2014 में गांव में बिजली की लाइनें पहुंचीं, लेकिन आपूर्ति इतनी अनियमित है कि अगर हम हर रोज हर घर में एक बल्ब जला सकें तो हम भाग्यशाली महसूस करते हैं।"23 अप्रैल, 2019 को झारखंड को सरकारी रिकॉर्ड में "100 फीसदी विद्युतीकृत" माना गया है। यदि कोई गांव का 10 फीसदी से अधिक सार्वजनिक स्थानों, जैसे कि स्कूल और स्वास्थ्य केंद्रों के साथ ग्रिड से जुड़ा हुआ है तो एक प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है। खटगांव, राष्ट्रीय राजमार्ग 143, जो गुमला से निकलती है और ओडिशा के दक्षिण में बरकोट तक जाती है, से 20 मिनट की दूरी पर है, ।
खटगांव और टपकारा के पड़ोसी गांव दिसंबर 2017 में रिपोर्ट की गई एक लिंचिंग से जुड़े हैं। खटगांव के तीन ग्रामीणों ( एक दंपति और उनकी बेटी ) को उसी गांव की भीड़ ने मौत के घाट उतार दिया था।
परिवार ने शिकायत की थी कि खाटेगांव के एक युवा व्यक्ति ने उनकी बेटी का अपहरण कर लिया है। और जब वह पुलिस से भागने की कोशिश कर रहा था, तो भीड़ के हाथ आ गया।
40 वर्षीय मोतीलाल केवट ने परिवार की जीवित बेटियों में से एक से शादी की है और टपकारा में ही रह रहे हैं। हत्याओं की कहानी और असुरक्षा की भावना के बीच, केवट ने मोदी को अपना समर्थन देने की घोषणा की।
उन्होंने कहा, "मैं ही नहीं, पूरा गांव उन्हें वोट देगा।"
केवट के लिए, मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि नक्सलियों के खिलाफ सफलता रही है। वह कहते हैं, "मोदी के शासन के तहत, हमें नक्सलवाद से कोई डर नहीं लगता है। उन्होंने इसे कुचल दिया है।"
परिवार द्वारा अपहरण की शिकायत पर पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए एक गांव के नौजवान की मौत पर उपजे तनाव के बाद संजो देवी के परिवार ( उसके माता-पिता और उसकी बहन ) की हत्या उसी गांव की भीड़ द्वारा की गई थी। देवी और उनके पति, मोतीलाल, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को वोट देंगे, क्योंकि वह उन्हें गुमला के टपकरा गांव को माओवादी हिंसा से बचा कर रखने में कामयाब हुए हैं।
गुमला 11 राज्यों में से 90 भारतीय जिलों में से एक है, जो ‘वामपंथी उग्रवाद’ से प्रभावित होने के लिए जाना जाता है। फरवरी 2019 में, उनके और अर्धसैनिक बलों के बीच गोलाबारी के दौरान तीन माओवादियों की यहां मौत हो गई थी।
एक निर्माण श्रमिक, केवट को उस समय की याद आ गई जब उन्हें शाम होने से पहले घर लौटना ही होता था। वह बताते हैं, " वह बहुत मुश्किल भरा वक्त था। जो लोग व्यापार में थे, वे सब्जियां बेचकर और दुकानें कैसे चला सकते थे और कैसे जीवित रह सकते थे?"
दरअसल, मोदी के कार्यकाल में माओवादी हिंसा कम हुई है। देश भर में माओवादी हमलों में 36 फीसदी की गिरावट हुई है। 2010-14 के बीच 1,389 से 2015-19 की अवधि के बीच 894 तक, जबकि मौत की संख्या ( नागरिक, माओवादी और सुरक्षा बल ) इसी अवधि में लगभग आधी हो गई हैं, 2,913 से 1,5,000 तक, जैसा कि दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल से नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है। दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल से नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 2015-19 की अवधि में, केवट के गुमला जिले में हमले आधे से अधिक 52 तक कम हुए हैं। 2010-14 के बीच ये आंकड़े 124 थे। मौतों की संख्या ( नागरिक, माओवादी और सुरक्षा बल ) इसी अवधि में 111 से दो-तिहाई से अधिक कम होकर 30 तक पहुंचा है।
केवट को सत्यापन के लिए डेटा की आवश्यकता नहीं थी। वह कहते हैं, "मेरा परिवार भी बिना किसी हिंसा के डर के यहां रह सकता है। कोई भी व्यक्ति यही चाहता है।"
फिर, उन्होंने एक काउंटर सवाल पूछा: “क्या आप यहां तक शांति से नहीं पहुंचे? आपको किसी भी हिंसा का सामना करना पड़ा?"
केवट के लिए, सरकार के सामाजिक कार्यक्रम ( आप मोदी के रिपोर्ट कार्ड में विस्तृत फैक्टरकैचर आकलन पढ़ सकते हैं ) सहायक फुटनोट हैं, जो प्रधान मंत्री में उनके विश्वास को दोहराते हैं।
केवट बताते हैं, "ये सभी योजनाएं, गैस सिलेंडर से लेकर बिजली आपूर्ति और सड़कों तक, वे सभी हमारे लिए जीवन को बेहतर बना रहे हैं।"
पड़ोसी जो भूखे थेकेवट की तरह, टपकरा के उत्तर में 200 किलोमीटर दूर, गढ़वा जिले के कोरटा गांव में महिलाओं के एक समूह ने मोदी सरकार के प्रदर्शन के संबंध में समान विश्लेषण व्यक्त किया।
49 विभिन्न विकासात्मक संकेतकों के आधार पर एक सरकारी थिंक टैंक, नीति आयोग द्वारा 2018 में भारत के 100 सबसे पिछड़े जिलों की सूची में गढ़वा को 57 वां स्थान दिया गया था। जिले में एक अनसुलझी समस्या पर्याप्त खाद्यान्न के बिना सार्वजनिक वितरण प्रणाली है। भोजन के अधिकार अभियान के अनुसार, सिस्टम में गड़बड़ियों के कारण राशन से वंचित होने के बाद तीन साल से 2019 तक तीन लोगों की मौत हो गई।
तीन पीड़ितों में से एक, 64 वर्षीय प्रेमनी कुंवर, कोरटा में रहती थीं और दिसंबर 2017 में उनकी मौत की यादें, गांव में जीवित हैं और इसपर विवाद भी रहे हैं।
ग्रामीणों ने इंडियास्पेंड को बताया कि कैसे एक बेरोजगार विधवा कुंवर, जो अपने 13 साल के बेटे, उत्तम के साथ रहती थी, को दो महीने से राशन नहीं मिला और दो दिन तक खाना नहीं खाने के बाद उनकी मौत हो गई।
प्रेमनी कुंवर का एक कमरे का घर, जहां वह मरने से पहले रहती थीं। घर पर अब कोई नहीं रहता है। उनका बेटा, उत्तम, अब उसी गढ़वा के कोरटा गांव में रिश्तेदारों के साथ रहता है।
‘राइट टू फूड अभियान’ के कार्यकर्ता जेम्स हेरहंज ने कहा कि कुंवर की मौत भूख से हुई। सरकार ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुए, भुखमरी से इनकार किया और जोर देकर कहा कि परिवार के पास खाने के लिए पर्याप्त अनाज था।
जब इंडियास्पेंड ने अगस्त 2018 में मेडिकल विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से बात की, तो हमने पाया कि सामान्य सरकार की प्रतिक्रिया में कुपोषण और भुखमरी के बीच संबंधों को शामिल करने वाले दो कारकों को ध्यान में नहीं रखा गया है:
- चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से देखें तो ये मौतें संक्रमण और बीमारियों के कारण सबसे अधिक होती हैं। लेकिन लंबे समय तक कुपोषण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करता है, जिससे जानलेवा संक्रमण होने की संभावना होती है।
- भुखमरी से होने वाली मौतें गरीबी, सरकारी उदासीनता और आधार-राशन-कार्ड एकीकरण के घेरे में आने के कारण होती हैं, जिसकी कमी गरीब नागरिकों को खाद्यान्न से वंचित कर देती है जिसके वे सरकारी योजनाओं के तहत हकदार हैं। समय के साथ, यह कुपोषण और मौत का कारण बनता है।
कुंवर की मृत्यु के 17 महीने बाद, कोरटा के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति ( 2000 से अधिक लोगों का घर ) अनियमित थी। कई लोगों ने शिकायत की कि उन्हें समय पर राशन नहीं मिला।
कुंवर की मौत कोई चुनावी मुद्दा नहीं है। उनकी बहू राजकुमारी देवी ने निचली नौकरशाही पर इन विफलताओं को जिम्मेदार ठहराया।
नियमित राशन हो या नहीं हो, ज्यादातर ग्रामीण, जिनसे हमने कोरटा में बात की, उन्होंने कहा कि वे मोदी को वोट कर रहे थे।
देवी की पड़ोसी ने कहा, "मोदी सरकार ने हमें एक कॉलोनी दी है," जैसा कि उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना, ग्रामीण आवास के लिए सरकार की फ्लैगशिप योजना के तहत गांव में बने घरों का उल्लेख किया है। “क्या हम इसके लिए मतदान नहीं करेंगे? पड़ोसी ने बताया, " मोदी गरीबों के लिए अच्छे हैं और उनकी सरकार ने बहुत कुछ दिया है जो किसी अन्य सरकार ने नहीं दिया है।” देवी कहती हैं, "हमारे गांव की सड़क पहले की तुलना में बहुत बेहतर है। हमारे पास भी अब भी शौचालय है।" अन्य लोगों ने भी बताया,"हमें पहले से बेहतर राशन मिल रहा है।"
पाकिस्तान कारककोरटा के अंधेरे गांव की सड़क से पांच मिनट की पैदल दूरी पर गांव चौक है। रात के करीब 8 बज रहे थे और जब हम गए तो गतिविधियां बंद थी। कार के पास खड़े कुछ लोग खबर पर चर्चा कर रहे थे - जिले के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता भाजपा में शामिल हो गए थे। लोगों ने गांव के बारे में मुश्किल से बात की। उन्होंने कहा, उनका वोट भी मोदी को जाएगा, लेकिन उनके कारण महिलाओं से अलग थे।
राजाराम नाम के एक व्यक्ति ने मोदी को "एक असली नेता" बताया। उन्होंने बताया कि क्यों: "एक असली नेता का काम जमीन पर देखा जा सकता है। मोदी ने पाकिस्तान से लड़ाई लड़ी। क्या यह हर किसी ने नहीं देखा? ” राजाराम के अनुसार, “ मोदी के अलावा और कोई हवाई हमले नहीं कर सकता था।”
राजाराम ने कहा, "पाकिस्तान को हमेशा लगता था कि भारत कभी भी उनकी गतिविधियों का जवाब नहीं देगा। मोदी ने उसे बदल दिया।"
हवाई हमले की प्रभावशीलता पर संदेह पुरुषों के समूह को परेशान नहीं करता था।एक अन्य व्यक्ति ने बताया,"शायद 250-300 आतंकवादियों के मारे जाने का कोई सबूत नहीं हो सकता है। लेकिन, तथ्य यह है कि मोदीजी पकड़े गए पायलट को मुक्त करने में कामयाब रहे। पिछले युद्धों के हमारे कई पायलट अभी भी पाकिस्तानी जेलों में हैं। "
विकास के शीर्ष कारणों में यह नहीं बताया गया है कि कोरटा के लोग बीजेपी को क्यों वोट देंगे, लेकिन पुरुष इस बात से सहमत थे कि मोदी सरकार की योजनाएं गांव को लाभ पहुंचा रही हैं।
राजाराम ने बताया, "देखें, मोदीजी की योजनाओं और पिछले वाले के बीच मुख्य अंतर है मोदीजी की योजनाएं जमीनी स्तर पर हैं। अन्य केवल कागज पर थे।"
महुआ टोली में, ग्रामीणों ने कहा कि उन्होंने सरकार की योजनाओं का कोई सबूत नहीं देखा है, न तो जमीन पर न ही कागज पर।
पानी का संकट था - पास के गांव कुंडारिया ने महुआ टोली के लोगों को अपने कुएं से पानी लेने से मना कर दिया था।
अधिकांश निवासी सरकारी दस्तावेजों पर अपना नाम दर्ज करने की कोशिश कर रहे हैं - आधार कार्ड, राशन कार्ड, कुछ भी। उन्होंने जोर देकर कहा कि मोदीजी उनका जीवन बदल देंगे। तब तक वे नौकरशाही से लड़ते रहेंगे।
(पुरोहित स्वतंत्र पत्रकार हैं और राजनीति, लिंग, विकास और प्रवास के मुद्दों पर लिखते हैं। वह लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज’ के छात्र रहे हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 27 अप्रैल, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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