पिछले एक साल में भारत में टीबी से होने वाली मौतों की संख्या दोगुनी , कारण किसी को पता नहीं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन की वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट 2016 के अनुसार साल 2015 में भारत में तपेदिक (टीबी) से होने वाली मौतों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है। आंकड़ों पर नजर डालें तो 2014 में टीबी से मरने वालों की संख्या 220,000 थी, जबकि 2015 में ये आंकड़े बढ़ कर 480,000 हो गए, जबकि पिछली रिपोर्ट में उम्मीद थी कि आंकड़े घटेंगे।
टीबी एक संक्रामक रोग है और हर साल इसके शिकार सैकड़ों लोग बनते हैं। आंकड़ों पर ध्यान दें तो दुनिया भर में टीबी के जितने नए मरीज हैं, उनमें से 27 प्रतिशत लोग सिर्फ भारत से हैं और यह आंकड़ा डराने वाला है।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में नए टीबी मामलों की संख्या 22 लाख थी जबकि 2015 में यह संख्या बढ़ कर 28 लाख हुई है।
रिपोर्ट कहती है कि, दुनिया भर में जितने टीबी के मामले सामनवे आते हैं, उनमें भारत के टीबी मरीजों संख्या बहुत ज्यादा होती है।और यही कारण है कि मरीजों की संख्या का वैश्विक अनुमान 96 लाख से बढ़ कर 104 लाख हो गया है।
2015 में, भारत में दवा प्रतिरोधी टीबी के साथ वाले रोगियों की संख्या भी उच्च रही है। ऐसे रोगियों की संख्या 79000 थी जो कि 2014 के आंकड़ों की तुलना में 11 फीसदी अधिक है। नए टीबी के मामलों के करीब 2.5 फीसदी रिफैम्पिसिन या रिफैम्पिसिन और आइसोनियाजिड दोनों के प्रतिरोधी होते हैं। ये दोनों सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले टीबी विरोधी दवाएं हैं। गौर हो कि इससे पहले इलाज किए जा रहे 60 फीसदी टीबी के मामले दवा प्रतिरोधी थे।
अनुमान के अनुसार भारत में 28 लाख टीबी के नए मामले
Source: World Health Organization
डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार,“टीबी जैसे संक्रमक रोग का खतरा पहले की तुलना में अधिक बड़ा है। यह टीबी के प्रति भारत की सजगता और सर्वेक्षण के आंकड़ों को दर्शाती है। पिछले अनुमान में आंकड़े घटाने के साक्ष्य में घरेलू सर्वेक्षण, राज्य-व्यापी टीबी प्रसार सर्वेक्षण, निजी क्षेत्र में विरोधी टीबी दवा की बिक्री का अध्ययन, अधिसूचना डेटा और मृत्यु दर के आंकड़ों के नए विश्लेषण शामिल हैं।”
पिछले दो वर्षों में जितने भी टीबी के मामलों का निदान हुआ है और जिनका निजी क्षेत्रों में इलाज हो रहा है, उन सभी मामलों को सरकार के साथ पंजीकृत किया गया है। पहले टीबी मरीजों रोगियों की सफलतापूर्वक इलाज की संख्या पर नजर रखने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सरकार के पास कोई जरिया नहीं था। 2012 में सरकार ने निजी डॉक्टरों के लिए यह अनिवार्य कर दिया कि उनके पास आने वाले टीबी के सभी मामलों की सूचना संबंधित सरकारी विभाग को देना अनिवार्य कर दिया था। रिपोर्ट कहती है कि निजी क्षेत्र के मरीजों की सूचना में करीब चार गुना वृद्धि हुई है। भारत के संशोधित राष्ट्रीय तपेदिक कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में भारत के निजी क्षेत्र में प्रति 100,000 लोगों पर 14.4 मामलों की सूचना दी गई है। यह आंकड़े 2013 में 3.1 के आंकड़ों से अधिक है।
स्वास्थ्य के निजी क्षेत्रों में टीबी के मामलों को लेकर सरकार अंधेरे में नहीं है। 2016 में लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन कहती है कि भारत में निजी क्षेत्र 22 लाख टीबी मामलों का इलाज करती है। ये आंकड़े मुख्य टीबी विरोधी दवा , रिफैम्पिसिन युक्त दवाओं की बिक्री पर आधारित है। अध्ययन में आगे यह भी कहा गया है कि 2014 में निजी क्षेत्र में मामलों की संख्या 11.9 लाख से 52.4 लाख के बीच हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, तपेदिक एक वायु जनित रोग है जिसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन भारत में अनुमानित टीबी रोगियों के केवल 59 फीसदी तक ही इलाज की पहुंच पाता है।
‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ में टीबी की रोकथाम के लिए कामं कर रहे वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी पुनीत दीवान कहते हैं, “सामान आकार और सामान टीबी के पैमाने वाले अधिकांश अन्य देशों की तुलना में सरकारी टीबी कार्यक्रम ने बेहतर काम किया है। ” ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ एक निजी संस्था है जो भारत में टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के लिए धन देता है। दीवान कहते हैं, "लेकिन ऐसे ढेर सारे मरीज हैं जो सरकार की निगरानी कार्यक्रम के दायरे में नहीं हैं।"
2016 की डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट केवल 2015 में नए टीबी के मामलों की संख्या की गणना करता है। टीबी के कुल मामलों (नए और पुराने) की गणना नहीं की गई है। रिपोर्ट कहती है कि इसका कारण डब्लूएचओ द्वारा राष्ट्रीय टीबी प्रसार सर्वेक्षण से 2017-2018 के लिए अनुसूचित परिणाम का इंतजार करना है।
दुनिया भर में टीबी के नए मरीजों में से 60 फीसदी मरीज सिर्फ छह देशों में रहते हैं। ये छह देश हैं, भारत, इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका। दुनिया भर में मल्टी ड्रग रीजिस्टन्ट मामलों में भारत, चीन और रूस में 45 फीसदी मामले पाए गए हैं।
(शाह पत्रकार / संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 14 अक्टूबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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