ध्वस्त मकानों की संख्या में 28 फीसदी की वृद्धी हुई है। वर्ष 2001 में ध्वस्त मकानों की संख्या 1.03 करोड़ थी। वर्ष 2011 की जनगणना में यह संख्या 1.32 करोड़ दर्ज की गई है।

जनगणना वर्गीकरण के अनुसार, यदि घर की दीवार घास, फूस, चिमटे, बांस, प्लास्टिक या पॉलिथीन से बनी होती है तो उसे धवस्त के रुप में वर्गीकृत किया जाता है।

सेवायुक्त घर (धातु, अभ्रक शीट, पक्के ईंट, पत्थर या कंक्रीट से बने) को अच्छा माना जाता है, जबकि मिट्टी, कच्चे ईंटों या लकड़ी से बनी दीवारों के साथ अस्थायी, सेवायुक्त घर को रहने योग्य घर के रुप में वर्गीकृत किया जाता है।

वर्ष 2011 में, 41.5 फीसदी मकान रहने योग्य थे, जबकि 53.1 फीसदी अच्छी स्थिति में थे।वर्ष 2001 की जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि तब 5.5 फीसदी मकान ध्वस्त थे, 44.2 फीसदी मकान रहने योग्य थे और 50.2 फीसदी अच्छी स्थिति में थे।

वर्ष 2011 जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, 1.09 मकानों के साथ लगभग 82 फीसदी ध्वस्त मकान ग्रामीण इलाकों में थे। ध्वस्त मकानों की संख्या वर्ष 2001 में 0.84 करोड़ थी। यह बढ़कर वर्ष 2011 में 1.09 करोड़ हुआ है। यानी 29 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है।

इसी अवधि के दौरान, शहरी क्षेत्रों में ध्वस्त मकानों की संख्या में 20 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।

मकानों की स्थिति, वर्ष 2001 एवं वर्ष 2011

Source: Census 2011

(सालवे विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 8 अगस्त 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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